Tuesday, August 9, 2022

अभिमन्यु अनत – जन पीड़ा एवं जन मुक्ति के साहित्यकार

 अभिमन्यु अनत

अभिमन्यु अनत भारत से बाहर हिंदी लेखन के सशक्त रचनाकार हैं, जिन्होंने वृहद और उत्कृष्ट साहित्य सृजन कर हिंदी-भाषा-साहित्य को वैश्विक आधार उपलब्ध कराया है। भारत से बाहर मॉरीशस ही ऐसा देश है, जहाँ साहित्य की विविध विधाओं में हिंदी लेखन हुआ है। मॉरीशस के हिंदी साहित्य में अभिमन्यु अनत महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म ९ अगस्त १९३७ को त्रिओले ग्राम में हुआ था। अनत जी ने हिंदीमय पारिवारिक वातावरण में हिंदी का अध्ययन किया। १९५९ में वे सरकारी हिंदी अध्यापक बने। हिंदी अध्यापन के साथ ही वे साहित्य-सर्जन करने लगे। घर में परिवार के मध्य हिंदी का वातावरण पाकर बचपन से ही उन्हें हिंदी पढ़ने-लिखने में रुचि जागृत हुई और साहित्य लेखन के क्षेत्र में कहानीकार के रूप में पदार्पण किया। अपने अप्रतिम साहित्य के माध्यम से देश की सीमाओं को पार कर उन्होंने भारत और विश्व में प्रतिष्ठा अर्जित  की। वसंत पत्रिका के अंक-४३ में रामायण मर्मज्ञ श्री राजेंद्र अरुण ने लिखा है, "मॉरीशस में प्रवासी भारतीयों की १५०वीं वर्षगांठ के अवसर पर हमें इतिहास के माथे पर अमिट अक्षरों में लिखे इस सत्य को स्वीकार करना होगा कि अभिमन्यु अनत ने हिंदी साहित्य को अंतर्राष्ट्रीय बनाया है।" अभिमन्यु अनत जन-पीड़ा एवं जन-मुक्ति के साहित्यकार हैं। हिंदी जगत में प्रेमचंद साहित्य के विद्वान डॉ० कमल किशोर गोयनका से बातचीत में उन्होंने स्वयं स्वीकारा है, "मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा इतिहास की यातना, उससे उपलब्ध आम आदमी की वह दयनीय स्थिति और उसका उस स्थिति के सामने कभी न टूटने का संकल्प रहा है। इसी ने मुझसे मेरी रचनाएँ लिखवाई हैं।" (अभिमन्यु अनत - एक बातचीत, १९७५ भूमिका)

अभिमन्यु अनत बहुमुखी प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है और अपने साहित्य के माध्यम से मॉरीशसीय परिवेश के यथार्थ जीवन से जुड़ी समस्याओं और परिस्थितियों को उद्घाटित किया है । 

मॉरीशस एवं भारतीय पत्र-पत्रिकाओं और निजी संग्रहों में अभिमन्यु अनत की लगभग २०० से अधिक कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं। उनके प्रकाशित आठ कहानी संग्रहों की कहानियों में आप्रवासी भारतीय मजदूरों के सुख-दुख, खेत खलिहान, धर्म और राजनीति, संस्कृति एवं अस्मिता से संबद्ध प्रश्नों व समस्याओं को सुगठित ढंग से पिरोया गया है। उपन्यासों एवं कहानियों में अभिमन्यु अनत की पात्र-सृष्टि बड़ी ही व्यापक रही है। बहुभाषी एवं बहुसांस्कृतिक परिवेश में रहते उनके पात्र हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि धर्मों के निम्न, मध्य एवं उच्च वर्गों के पात्र हैं। पात्रों का यह सुंदर सामंजस्य उनके कथा साहित्य को बेजोड़ बनाता हैं। उनके अनेक पात्र भोजपुरी, फ्रेंच, क्रिओल भाषा का प्रयोग करते हैं। यह आंचलिकता अभिमन्यु अनत की अपनी विशेषता है। 

अभिमन्यु अनत के ३२ उपन्यास प्रकाशित हुए हैं। अधिकांश उपन्यासों में उन्होंने मॉरीशस के जीवन का अतीत, वर्तमान और भविष्य, तीनों स्थितियों-परिस्थितियों को साकार करने का सफ़ल प्रयास किया है। उनके उपन्यासों में 'लाल पसीना', 'गांधी जी बोले थे', 'और पसीना बहता रहा' विशेष उल्लेखनीय हैं, जिसमें उन्होंने उपनिवेशवादी ताकतों द्वारा भारत से लाए गिरमिटिया मज़दूरों एवं कुलियों पर किए गए क्रूर, अमानवीय शोषण का पर्दाफ़ाश किया है। उनका ‘लाल पसीना’ उपन्यास भारतीय अस्मिता, मानव अधिकार और स्वतंत्रता हेतु भारतीय मजदूरों के लिए संघर्ष को उद्घाटित करता है। अनत जी के उपन्यासों में मॉरीशस की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक सभी परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण हुआ है। उनका ‘हम प्रवासी’ उपन्यास भी भारतीय अप्रवासियों के जहाज़ी जीवन की दारुण अवस्था से लेकर धर्म-परिवर्तन का संकट, शोषण की प्रवृत्ति, नारी उत्पीड़न तथा हिंदी भाषा-संस्कृति सुरक्षा की ललक लिए उभरा है। उनका ‘एक बीघा प्यार’ जो कई वर्षों तक माध्यमिक पाठ्यक्रम का अंग रहा है, किसान का भूमि-प्रेम तथा मानवीय संबंधों का सुंदर चित्र प्रस्तुत करता है। ‘शेफाली’ उपन्यास नारी को केंद्र में रखकर लिखा गया, जो विशेष रूप से वेश्या-जीवन का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है। 'चुन-चुन चुनाव' राजनीति के क्षेत्र में हो रहे प्रपंचों, छल-कपट, जातिवाद, एवं सांप्रदायिक समस्याओं को उकेरता है। ‘अपनी-अपनी सीमा’ दांपत्य जीवन तथा पति-पत्नी के संबंध तथा नारी के प्रतिकार पर केंद्रित हैं। उनका ‘लहरों की बेटी’ तथा ‘चलती रहो अनुपमा’ मछुआरों की जीवनचर्या तथा स्त्री-विमर्श का यथार्थ दिखलाता है। समग्र रूप से देखा जाए तो अभिमन्यु अनत के उपन्यासों में ग्रामांचल से लेकर शहरी जीवन की अनेकानेक समस्याओं को उभारा गया है, जो अनत जी के विषय-वैविध्य दृष्टिकोण का परिणाम है। 
कहानी, उपन्यास के साथ-साथ अनत जी कविताओं के सृजन से भी भावनात्मक अभिव्यक्ति करते हैं।  अभिमन्यु अनत का काव्यबोध बहुत सशक्त है। उनकी कविताओं के विविध भावबोध में भी मूलतः मॉरीशस पहुँचे भारतीय मजदूरों के जीवन-संघर्ष की त्रासदी प्रतिध्वनित होती है। गिरमिटिया मजदूरों का संघर्ष, अपनी भाषा व संस्कृति तथा धर्म की रक्षा हेतु उनके अनवरत प्रयास कविताओं का मूल स्वर है। उनकी प्रसिद्ध कविता ‘गूंगा इतिहास’ की ये पंक्तियाँ प्रवासियों की पीड़ा का मार्मिक चित्र प्रस्तुत करती है,
एक हाथ में गन्ना
दूसरे में गँड़ासा
माथे पर पसीना
सिर पर अभाव की बोझिल  गठरी
पीठ पर कोड़े से अंकित
मालिक के लाल हस्ताक्षर आँखों में
प्रसुप्त ज्वालामुखी का धुंधलका
पेट में एक खाली कुआँ
तार-तार हुआ फेफड़ा
उलझी हुई साँसें, गिरवी आत्मा
पैबंद लगा वर्तमान
बारह अध्याय का यह इतिहास
आज भी अकुला रहा है

अभिमन्यु अनत ने स्वयं स्वीकारा है कि उनके भीतर के कवि ने कविताओं में भूगोल तो मॉरीशस देश का लिया है, परंतु पीड़ा तो समूचे विश्व की है। डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने लिखा है कि अभिमन्यु अनत की कविताएँ उन्हें क्रांतिकारी कवि मायकोव्स्की की याद दिलाती हैं। अनत जी के काव्य की संवेदना देश की छल-कपटपूर्ण राजनीतिक स्थिति, भाई-भतीजावाद, शोषण, दमन, भेदभाव व्यवस्था, बेकारी, अभाव, भूख, अमानवीयता, विसंस्कृतिकरण, झूठे आश्वासन, मनुष्य की अस्मिता का प्रश्न आदि उभारती हैं। अभिमन्यु के कविता संग्रहों में ये सारी समस्याएँ इंगित हुई हैं। ‘खाली पेट’ कविता की कुछ पंक्तियाँ गरीबी एवं लाचारी के साथ-साथ साहित्यकार अनत की तड़प को भी परिलक्षित करती हैं,
तुमने आदमी को खाली पेट दिया
ठीक किया
पर एक प्रश्न है रे नियति।
खाली पेट वालों को
तुमने घुटने क्यों दिए?
फैलने वाला हाथ क्यों दिया?

अभिमन्यु अनत की भाषा गंभीर और समृद्ध है। काव्य में मिश्रित भाषा का प्रयोग कर, प्रचुर कल्पना, प्रतीक और बिंब विधान आदि विशेषताओं ने मॉरीशसीय काव्य-जगत को प्रकाशमान किया है। 

युवा एवं क्रीड़ा मंत्रालय में सलाहकार के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने हिंदी नाट्य क्षेत्र में अनत जी ने महनीय कार्य किया। हिंदी नाटकों की रचना, अभिनय तथा उसके विकास में भी अभिमन्यु अनत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वे नाटकों के साथ-साथ नियमित रूप से एकांकी की मंच-प्रस्तुति गाँव व शहरों में किया करते थे। रेडियो पर भी उनके अनेक नाटक प्रस्तुत हुए। वे स्वयं नाटक का लेखन, निर्देशन और अभिनय भी करते थे। उनके प्रयास से मॉरीशस हिंदी-रंगमंच को भी एक नई दिशा मिली।

अभिमन्यु अनत ने उपन्यास, कहानी, काव्य एवं नाटक के अलावा आत्म संस्मरण भी लिखे हैं। उनके जीवन का आरंभिक अध्याय ‘भावों का पहला पहर’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। उनके आत्म-संस्मरण ‘पाँच सेंट में बिका था मैं’ में उनके जीवन की झाँकी प्राप्त होती है, जहाँ उस समय ऐसी धारणा थी कि अगर नौ बच्चों में से पाँच गुज़र गए और असमय बचपन में अनत जी बार-बार बीमार पड़ जाते थे, तो ऐसी स्थिति में अगर बच्चे को कोई और खरीद ले तो उसकी जान बच जाती थी । रामजी भौजी ने इसीलिए उनको पाँच सेंट में खरीद लिया था। इस तरह के सुंदर एवं भावविभोर कर देने वाले संस्मरण बड़े ही संवेदनशील हैं। 
अभिमन्यु अनत महात्मा गाँधी संस्थान, मॉरीशस में सृजनात्मक एवं प्रकाशन विभाग के अध्यक्ष होने के नाते, हिंदी पत्रिका ‘वसंत’ और ‘रिमझिम’ के लिए संपादकीय दायित्व भी निभाते रहे और लगभग २४ वर्षों तक इन पत्रिकाओं का संपादन किया। इन पत्रिकाओं के संपादकीय बड़े ही आक्रोशपूर्ण होते थे। वे बड़ी ही स्पष्टता एवं बेबाकी से हिंदी, भोजपुरी एवं संस्कृति पर अपने आक्रोश भर विचार व्यक्त किया करते थे। उन्होंने लोगों को हिंदी भाषा के प्रति सजग किया और इस भाषा को दमित करने वालों को आड़े हाथों लिया। विशेषकर ऐसे समय में जब प्राथमिक स्तर पर भारतीय भाषाओं को फ्रेंच और अँग्रेज़ी के सामने हेय माना जाता था। ऐसे में उनका संपादकीय बड़ा ही सशक्त रहा। एक उदाहरण देखिए, "बच्चों के हृदय से उनकी अपनी ज़बान नोचकर उसकी जगह पर सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की, यानी दूसरी गुलामी की ज़बान फ्रेंच आज़ादी के बाद भी बसाई जा रही है, जिसे राजभाषा न होने के कारण अनिवार्य भाषा होने का कोई हक नहीं और ऊपर से यह फतवा कि भाषा प्रतिष्ठा की भाषा होती है और इसकी उपेक्षा और बहिष्कार की कैसे हो सकती है? भाषा और संस्कृति से संबद्ध हमारी सभी संस्थाएँ होंठों पर साबुत लेस्टोप्लास्ट चिपकाकर क्यों बैठी हैं? (‘हिंदी’ - ‘हिंदी के मसीहा चुप क्यों हैं?" १९७९ (वसंत, अंक ३)

अभिमन्यु अनत ने अनेक बार भारत की यात्राएँ कीं और इस दौरान उन्हें हिंदी के श्रेष्ठ साहित्यकारों, विद्वानों से मिलने, विचार-विमर्श का अवसर प्राप्त हुआ। हिंदी साहित्यकार अनत जी को हिंदी में सृजनात्मक लेखन के कारण देश-विदेशों में आयोजित सेमिनारों, संगोष्ठियों आदि में प्रतिभागिता करने का मौका मिला। उन्होंने अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, भारत, त्रिनिदाद आदि देशों की यात्राएँ भी कीं। हिंदी की साक्षात्कार विधा में उन्होंने एक नया प्रयोग किया, स्वयं अपना ही साक्षात्कार लिया जो उनकी पुस्तक ‘आत्म विज्ञापन’ - ‘आईने के सामने’ में प्रकाशित हुआ, जो हिंदी जगत में बहुत सराहा गया। ‘अभि’ प्रश्नकर्ता और ‘मन्यु’ उत्तरदाता के रूप में पाठकों के समक्ष आता है, 
अभि - एक लेखक को दूसरे शब्दों में तुम क्या कहोगे?
मन्यु - लेखक को तो बहुत सारे दूसरे शब्द दिए जा चुके हैं। श्रद्धा कहा गया है।
अभि - तुम क्या कहते हो?
मन्यु - मैं उसे मानव-मस्तिष्क का इंजीनियर मानना पसंद करूँगा।
अभि - यह पहली बार कहा जा रहा है?
मन्यु - हो सकता है, यह पहले भी कहा गया हो।
अभि - लेखक को तुम भी मानव-मस्तिष्क का इंजीनियर क्यों मानते हो ?
मन्यु - इंजीनियर का काम पुल बनाना होता है। और लेखक भी पुल बनाता है, पर लोहे-पत्थर और सीमेंट का नहीं, बल्कि विचारों और रिश्तों का। वह आदमी-आदमी के बीच रिश्तों का पुल बनाता है। वह छोटे-बड़े, गरीब-धनी, मजदूर-मालिक, वैश्या-सती, पुजारी और पापी - इन सारे अंतर्विरोधों के बीच की गवाही को पाटने के लिए सेतु तैयार करता है।

अभिमन्यु अनत मॉरीशस के एकमात्र ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने सर्वाधिक विधाओं में अनेकानेक पुस्तकें लिखी हैं। जीवन के अंतिम पड़ाव में, आलजाइमर बीमारी का शिकार होने के कारण, बीच-बीच में उनका स्मृति लोप हो जाता था। ४ जून २०१८ को वे परमतत्त्व में विलीन हो गए। परंतु उनकी आत्मा आज भी उनके शब्दों के रूप में, साहित्य जगत में अपनी सुरभी बिखेरती रहती है। निरंतर पाँच दशकों तक साहित्य सृजन के प्रति उनका यह समर्पण भाव सदा नई पौध का मार्गदर्शन करती रहेगी। अनत ने अपना नाम ‘अनत’ चरितार्थ किया है। यथा नाम, तथा गुण। ऐसी पुण्यात्मा को शत-शत नमन।

अभिमन्यु अनत : जीवन परिचय

जन्म 

९ अगस्त १९३७, त्रिओले, मॉरीशस

निधन

४ जून २०१८

कार्यक्षेत्र

  • हिंदी अध्यापक 

  • युवा एवं क्रीड़ा मंत्रालय में नाट्य शिक्षक व सलाहकार

  • महात्मा गांधी संस्थान, मोका, मॉरीशस में भारतीय भाषा-विभाग एवं सर्जनात्मक लेखन तथा प्रकाशन-विभाग के अध्यक्ष के रूप में २४ वर्ष तक कार्यरत

  • रवींद्रनाथ टैगोर संस्थान, इलोट के प्रथम प्रभारी अधिकारी

प्रकाशन 

भारत और फ्रांस के प्रसिद्ध प्रकाशकों द्वारा उपन्यास, कविता, कहानी, नाटक, लघुकथा, जीवनी, इतिहास, संस्कृति इत्यादि की ७० पुस्तकें प्रकाशित 

साहित्यिक रचनाएँ

उपन्यास

  • और नदी बहती रही

  • आंदोलन

  • एक बीघा प्यार

  • जम गया सूरज

  • तीसरे किनारे पर

  • चौथा प्राणी

  • लाल पसीना

  • तपती दोपहरी

  • कुहासे का दायरा

  • शेफाली

  • हड़ताल कब होगी

  • चुन चुन चुनाव

  • अपनी ही तलाश

  • पर पगडंडी नहीं मरती

  • अपनी-अपनी सीमा

  • गाँधी जी बोले थे

  • अचित्रित

  • और पसीना बहता रहा

  • लहरों की बेटी

  • चलती रहो अनुपमा

  • आसमान अपना आँगन

  • अस्ति-अस्तु

  • हम प्रवासी

  • क्यों न फिर से

  • उपवन मन अपना

  • मेरा निर्णय

  • प्रिया

  • मार्क ट्वेन का स्वर्ग

  • जय गाँव का बहादूर

  • फैसला आपका

  • मुड़िया पहाड़ बोल उठा

  • शब्द-भंग

कहानी-संग्रह

  • खामोशी के चीत्कार

  • इंसान और मशीन

  • वह बीच का आदमी

  • एक थाली समंदर

  • बवंडर बाहर-भीतर

  • अब कल आएगा यमराज

  • अभिमन्यु अनत की आरंभिक कहानियाँ

  • मातमपुरसी

नाटक

  • विरोध

  • तीन दृश्य

  • गूँगा इतिहास

  • रोक दो कान्हा

  • देख कबीरा हाँसी

कविता-संग्रह

  • नागफनी

  • कैक्टस के दाँत

  • एक डायरी बयान

  • गुलमोहर खौल उठा

जीवनी

  • जन आंदोलन के प्रेरणा

  • मज़दूर नेता रामनारायण

  • Cane-field to Parliament

आत्मकथा

  • यादों का पहला पहर

सम्मान व पुरस्कार

  • प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन, नागपुर १९७५ में सम्मानित 

  • लखनऊ सीटिजन संस्था द्वारा १९७८ में सम्मानित 

  • राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर द्वारा १९७९ में सम्मानित 

  • इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा १९८० में सम्मानित 

  • प्रेस कम्युनिटी ऑफ बनारस द्वारा १९८२ में सम्मानित 

  • के० के० बिड़ला फाउंडेशन, नई दिल्ली द्वारा १९९४ में सम्मानित 

  • हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा १९९४ में सम्मानित 

  • भारत-भवन, भोपाल द्वारा १९९५ में सम्मानित 

  • पाँचवें विश्व-हिंदी-सम्मेलन, १९९६ के दौरान वेस्टइंडीज विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित 

  • गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा १९९७ में सम्मानित 

  • राष्ट्रपति डॉ० शंकर दयाल शर्मा द्वारा दिया गया राजीव गांधी मेमोरियल अवार्ड, १९९७ 

  • केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा द्वारा १९९९ में सम्मानित 

  • केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा का जॉर्ज ग्रियर्सन अवॉर्ड,  २०००, राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्वारा दिया गया 

  • हिंदी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद द्वारा ‘साहित्य महोपाध्याय’ से सम्मानित 

  • उत्तर-प्रदेश-सरकार-द्वारा ‘लाल पसीना’ उपन्यास के लिए सम्मानित 

  • उत्तर-प्रदेश-हिंदी-संस्थान-द्वारा ‘शेफाली’ उपन्यास के लिए पुरस्कृत 

  • प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा उत्तर-प्रदेश-हिंदी-संस्थान का ‘साहित्य-भूषण’ सम्मान 

  • कर्नाटक-सरकार-द्वारा बेंगलुरू  में २००४ में कुंभ-साहित्य-अवार्ड प्रदत्त 

  • महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी-विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र का सम्मान 

  • हिंदुस्तानी प्रचार-सभा, मुंबई, फरवरी २०१० का सम्मान 

  •  साहित्य अकादमी, भारत द्वारा २०१४ में साहित्य अकादमी पुरस्कार 


संदर्भ

लेखक परिचय

डॉ० अंजलि चिंतामणि 

वरिष्ठ व्याख्याता, अध्यक्ष हिंदी विभाग, महात्मा गाँधी संस्थान, मॉरीशस। 

पिछले बीस वर्षों से हिंदी शिक्षण एवं पाठ्यचर्या निर्माण में संलग्न। कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में प्रतिभागिता एवं शोध लेख प्रकाशित।

7 comments:

  1. आदरणीय डॉ अंजलि चिंतामणि जी, दिवंगत आदरणीय अभिमन्यु अनत जी के साहित्य समालोचना बहुत ही सुंदर और रोचक तथ्यों से अवगत कराया और इससे वाकई हम भावविभोर हो गए हैं । वर्ष 2004 में कर्नाटक सरकार बैंगलुरू द्वारा भाषा कुंभ साहित्य पुरस्कार से सम्मानित करते समय हम भी वहां प्रतिभागि थे और शायद इस भाषा कुंभ साहित्य पुरस्कार समारोह बैंगलुरू में आदरणीय डॉ रत्नाकर पाण्डेय, पूर्व सांसद सदस्य और मैसूर हिंदी प्रचार परिषद सदस्य और मैसूर हिंदी प्रचार परिषद के प्रधान सचिव डॉ बी रामसंजीवय्या आदि हिंदी दिग्गज साहित्यकार उपस्थित थे । - डॉ महादेव एस कोलूर, सेवा निवृत्त सहायक निदेशक (राजभाषा) भासंनिलि विजयपुर एवं सदस्य सचिव नराकास बागलकोट कर्नाटक । ईमेल msk6009@gmail.com

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  2. अभिमन्यु अनत जी मेरे प्रिय प्रवासी लेखक रहे हैं। उनकी रचनाएँ या कोई आलेख जहाँ कहीं मिला तल्लीनता से पढ़ा।आप हिंदी साहित्य के मूर्धन्य रचनाकार हैं। इनकी रचनाओं से प्रभावित होकर उनकी पुस्तकों के कुछ नाम समेटकर 'गांधी जी बोले थे' एक नवगीत भी मैंने लिखा है ।

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  3. डॉ अंजलि जी आपने अनत जी के बारे में बहुत ही सुंदर, सुदृढ और प्रांजल भाषा में बताया है। उनके समग्र साहित्य का परिचय दिया है। इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद और उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई
    सत्येंद्र सिंह, पूर्व वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी मध्य रेल पुणे महाराष्ट्र भारत। मो 9922993647

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  4. अंजलि जी नमस्ते। आपने अभिमन्यु अंनत जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा। लेख के माध्यम से उनके साहित्य एवं जीवन यात्रा को जानने का अवसर मिला। आपको इस जानकारी भरे लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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  5. अंजलि जी, अभिमन्यु अनत जी के रचनाकर्म और व्यक्तित्व को आपका आलेख संतुलित और सटीक तरीक़े से प्रस्तुत करता है। मारिशस में रहने के कारण उनकी बयानी में आपकी क़लम की अद्भुत रवानी दिखती है। सुंदर लेखन के लिए आपको आभार और बधाई।

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  6. अभिमन्यु अनत जी के पुस्तक को मुफ्त में पीडीऍफ़ के रूप में डाउनलोड करने के लिए पधारे - KahaniKiDduniya.in

    This is very nice blog & amazing content writing of post each words. This is really good.

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