Thursday, August 11, 2022

राहत इंदौरी : बेख़ौफ़, बेबाक और ख़ुद्दार शायर

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शाख़ों से टूट जाएँ
वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे
कि औक़ात में रहे।

अपने अल्फ़ाज़ से चिराग़ों को रौशनी देने वाले शायर राहत इंदौरी जब व्यवस्था को धता बताकर अपने दम का ऐलान करते हैं, तो तमाम सुनने वाले उनके अल्फ़ाज़ की ताक़त को अपने हृदय की गहराइयों में महसूस करते हैं।

बहुत ग़ुरूर है दरिया को
अपने होने पर...
जो मेरी प्यास से उलझे
तो धज्जियाँ उड़ जाएँ!

एक नई धार की ग़ज़ल को अभिव्यक्ति का आधार बनाकर अपनी बात कहने वाले बेहतरीन शायर राहत इंदौरी की सी बेबाकी, जोश और तेवर सबके बस की बात नहीं। अपने ख़ास अंदाज़ में ग़ज़लें और शेर कहने की उनकी अदायगी उन्हें अन्य शायरों से एक अलग ही मुक़ाम देती थी। "हमसे पूछो कि ग़ज़ल माँगती है कितना लहू
सब समझते हैं ये धंधा बड़े आराम का है", कहकर लेखन के प्रति अपना पूर्ण समर्पण प्रकट करने वाले शायर राहत इंदौरी के जज़्बात की बेबाकी का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने दुनिया भर में अपनी स्पष्टवादिता से सबका दिल जीता है। बिना लाग-लपेट के अपनी बात कहना और सामयिक मुद्दों पर तबीयत से अपनी राय दे पाना सबके लिए कहाँ मुमकिन हो पाता है। मगर उनकी शायरी का एक दिलचस्प आयाम यह भी है कि राहत इंदौरी के शेर जहाँ एक तरफ़ व्यवस्था को आईना दिखा पाने में सक्षम हैं, वहीं दूसरी तरफ़ उनके अल्फ़ाज़ मोहब्बत की एक नई दुनिया का आग़ाज़ करते हैं। एक ऐसी दुनिया, जिसमें इश्क़ ज़िंदगी की ख़ूबसूरती की बयानगी बनकर उभरता है,
फूलों की दुकानें खोलो, ख़ुशबू का व्यापार करो
इश्क़ ख़ता है तो, ये ख़ता एक बार नहीं, सौ बार करो।

राहत का जन्म इंदौर में १ जनवरी १९५० में कपड़ा मिल के कर्मचारी रिफ़अत उल्लाह क़ुरैशी और मक़बूल उन निसा बेगम के यहाँ हुआ। शुरुआत में उनका नाम कामिल रखा गया था, जिसे बाद में बदल कर राहत कर दिया गया। वे उन दोनों की चौथी संतान थे। राहत की दो बड़ी बहनें थीं जिनके नाम तहज़ीब और तक़रीब थे, एक बड़े भाई अकील और फिर एक छोटे भाई आदिल रहे। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और राहत को शुरुआती दिनों में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। इंदौर उस समय कपड़ा मिलों के लिए जाना जाता था। दौर ऐसा आया कि उस वक़्त यहाँ कई मिलें बंद हो गईं या बड़ी संख्या में कामगारों की छँटनी हो गई। रिफ़अत उल्लाह ऐसे कामगारों में थे, जिनकी भी नौकरी चली गई। मुफ़लिसी का दौर उनके जीवन में शुरू हो चुका था। वे ऑटो चलाने लग गए थे। उस समय राहत नयापुरा स्थित सरकारी स्कूल में पढ़ते थे और ख़र्चा-पानी के लिए मज़दूरी किया करते थे। पैसा उनके परिजनों की ज़रूरत थी और वे कमाने की जुगत में लगे रहते थे। उन्होंने अपने ही शहर में एक साइनबोर्ड-चित्रकार के रूप में दस साल से कम की उम्र में काम करना शुरू कर दिया था। मालवा मिल के पास उन्होंने पेंटिंग की एक दुकान खोल ली और ट्रक के पीछे पेंट कर कमाने का हुनर साधने लगे। चित्रकारी उनकी रुचि के क्षेत्रों में से एक थी और बहुत जल्द ही उन्होंने बहुत नाम अर्जित किया था। वस्त्र भंडार, भोजनालय, किराना स्टोर आदि छोटी बड़ी दुकानों और शोरूम आदि  के साइन बोर्ड लिख कर वे अपना ख़र्च चलाने लगे। उनकी प्रतिभा, असाधारण डिज़ाइन कौशल, शानदार रंग भावना आदि के कारण उन्हें और उनके काम को बहुत सराहा जाने लगा और कुछ ही समय में न सिर्फ़ राहत इस क्षेत्र में एक जाना-माना नाम बन गए बल्कि जल्दी ही वे इंदौर के व्यस्ततम साइनबोर्ड चित्रकार कहे जाने लगे। वे उस समय राहत पेंटर के नाम से मशहूर थे और उनकी दुकान 'पेंटर वाली दुकान' के नाम से उस इलाक़े में पहचान पाने लगी थी। वे मोटरसाइकिल और स्कूटरों की नंबर प्लेट भी पेंट करने लगे। यह भी एक दौर था कि ग्राहकों को राहत द्वारा चित्रित बोर्डों को पाने के लिए महीनों का इंतज़ार करना भी स्वीकार था। इंदौर की दुकानों के लिए उनके द्वारा पेंट किए गए कई साइनबोर्ड्स आज भी उन दुकानों की शोभा बढ़ाते हैं और राहत इंदौरी के उस दौर की कहानी बयाँ करते हैं।  

राहत की प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल, इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज, इंदौर से साल १९७३ में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और साल १९७५ में बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में स्वर्ण पदक के साथ स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। आगे वे यह निर्णय नहीं ले पा रहे थे कि जीवन में क्या किया जाए। हालांकि, अपने दोस्तों से प्रोत्साहन पाकर वर्ष १९८५ में उन्होंने मध्य प्रदेश के भोज विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की व 'उर्दू मुख्य मुशायरा' नामक उनकी थीसिस के लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया था। राहत ने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर में उर्दू साहित्य के प्रोफ़ेसर के रूप में लगभग १६ वर्षों तक शिक्षण किया। उनके मार्गदर्शन में कई छात्रों ने पीएचडी की। अपने स्कूल के समय से ही वे बहुत प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे, साथ ही वे खेलकूद में भी काफ़ी प्रवीण थे। स्कूल तथा कॉलेज स्तर पर फ़ुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान रहने वाले राहत की लेखन में आरंभ से ही रुचि रही। उन्होंने केवल १९ वर्ष की उम्र में अपने कॉलेज में अपनी पहली शायरी सुनाई थी। सार्वजनिक रूप से दी गई यह उनकी पहली प्रस्तुति थी। फिर आगे चल‌कर तो उन्होंने मुशायरों में शिरकत करनी शुरू कर दी, जहाँ अपनी प्रतिभा के कारण उन्हें जल्दी ही ख्याति प्राप्त हुई। कुछ ही समय में वे उर्दू साहित्य के प्रसिद्ध शायर बन गए। 

दरअसल शायर बनने की उनकी शुरुआत बहुत ही रोचक रही। लिखने का शौक़ तो राहत को बचपन से ही था, पर आरंभ में वे सकुचाते बहुत थे। नूतन स्कूल के दिनों की बात है, शायद तब वे नवीं कक्षा में पढ़ते थे। स्कूल में एक मुशायरा आयोजित किया गया था, जिसमें राहत की ज़िम्मेदारी आमंत्रित शायरों की ख़िदमत करने की थी। उसी मुशायरे में राहत की भेंट हुई जाँ निसार अख़्तर साहब से। फ़ौरन आगे बढ़कर राहत ने जाँ निसार अख़्तर का ऑटोग्राफ़ माँग लिया और साथ ही पूछ लिया कि "मैं भी बड़ा होकर शायर बनना चाहता हूँ; इसके लिए मुझे क्या करना होगा?" जाँ निसार अख़्तर बच्चे की बात सुनकर मुस्कुराए और बोले, "पहले कम से कम पाँच हज़ार शेर याद कर लो। फिर आगे शेर पढ़ना।" यह सुनकर राहत ने जवाब दिया, "पाँच हज़ार शेर तो मुझे अभी ही याद हैं।" यह सुनकर जाँ निसार अख़्तर साहब ने काग़ज़ पर एक शेर लिखकर कहा, "इसे पूरा करो"
काग़ज़ पर अख़्तर साहब ने लिखा था,
"हमसे भागा न करो दूर ग़ज़ालों की तरह,"
राहत इंदौरी ने उसे पूरा करते हुए लिखा,
"हमने चाहा है तुझे चाहने वालों की तरह"

उसे पढ़कर जाँ निसार अख़्तर ने राहत को गले लगा लिया और कहा, "तुम तो पहले से ही शायर हो। देर किस बात की है, अब स्टेज संभाला करो।" और फिर जो शुरूआत हुई शायरी की, उसके बाद राहत ने मुड़कर कभी न देखा। अपने आसपास के तमाम इलाक़ों में मुशायरों की जान बन गए राहत इंदौरी। धीरे धीरे उनकी प्रसिद्धि इतनी बढ़ती चली गई कि उनके शेर और ग़ज़ल लोगों की ज़ुबाँ पर छाने लगे।   

राहत इंदौरी लगभग १६ वर्षों तक अध्यापन कार्य में रत रहे। इस बीच उन्होंने एक त्रैमासिक पत्रिका 'शाख़ें' का संपादन भी किया। साथ ही शेर लिखना जारी रहा। यह कहा जाना मुनासिब होगा कि देश विदेश में मुशायरों के सबसे जीवंत शायरों में से एक थे राहत इंदौरी, जिनका शेर कहने का अपना अलग ही अंदाज़ रहा, और यही इनकी ख़ास पहचान भी रही। 
 
प्रसिद्धि के इसी दौर में इन्होंने रुख़ किया बॉलीवुड का। मुंबई में उन्होंने व्यावसायिक तौर पर पेंटिंग करना, बॉलीवुड की फिल्मों के पोस्टर व बैनर डिज़ाइन करना और पुस्तकों के कवर डिज़ाइन करना भी प्रारंभ कर दिया। उनकी शायरी के प्रभाव से बॉलीवुड भी अछूता नहीं रहा। उन्होंने ११ से अधिक हिंदी फ़िल्मों के लिए गीत लिखे, जिनमें मुन्ना भाई एमबीबीएस, मीनाक्षी, मिशन कश्मीर, क़रीब, ख़ुद्दार, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी, जुर्म, मर्डर, हमेशा, जानम आदि शामिल हैं। उनके गीतों की शैली और सरलता ने उन्हें इस क्षेत्र में भी अपार सफलता दिलवाई। गीतकार राहत इंदौरी की संगीतकार अनु मलिक के साथ जोड़ी ख़ूब जमी। दोनों ने साथ मिलकर अनेक हिट गीत बनाए। मगर इतनी सफलता हासिल करने पर भी राहत का दिल मुंबई की मायानगरी में रम नहीं पाया। उनके भीतर का शायर अपने स्वतंत्र गायन के लिए बेक़रार रहा और राहत मुंबई से कुछ ही वर्षों में वापस इंदौर लौट आए। यहाँ आकर वे पूरी तरह शायरी के लिए समर्पित हो गए।  

एक शायर के तौर पर राहत इंदौरी को देश-विदेश में भरपूर सम्मान और प्रसिद्धि मिली। उन्होंने न सिर्फ़ भारत के लगभग हर शहर के कवि सम्मेलनों और मुशायरों में शिरकत की है, बल्कि अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा, सिंगापुर, मॉरीशसकुवैत, बहरीन, ओमान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल आदि तमाम देशों में भी अपनी शायरी का जादू बिखराया है। 

प्रेम की छाया हो या रिश्तों की चमक, दोस्ती की अनुकूलता हो या धाराओं की प्रतिकूलता, राहत इंदौरी की कलम ने जीवन के हरेक पहलू पर अपना वार किया। यह जो उनके जज़्बात का तूफ़ान रहा, जिसने उन्हें धारा के विपरीत जाकर अपनी बात सामने रखने का हौसला दिया, बस उसी ने राहत को मानो जीने का अरमान दिया। राहत ने व्यवस्था के विरुद्ध लिखा है,
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो, जान थोड़ी है 
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है 
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में 
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है 
मैं जानता हूँ कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन 
हमारी तरह हथेली पर जान थोड़ी है 
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है 
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है 
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे 
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
 सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में 
किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़ी है 
 
किसी भी शायर की सबसे बड़ी ख़ूबी उसके शब्दों की मारक चोट में निहित रहती है। असल में ग़ज़लकार जब इशारों में अपनी बात कहता है, तो उसके लफ़्ज़ ख़ुदबख़ुद एक शोर बनकर ज़हन पर छा जाते हैं। इशारों में कहने की यही क़ाबिलियत राहत इंदौरी को केवल अव्वल दर्ज़े का शायर ही नहीं बनाती, बल्कि उन्हें जन-जन की आवाज़ बनने का रुतबा भी दे देती है। राहत इंदौरी ने लिखा,
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो 
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो

सुप्रसिद्ध चित्रकार एम एफ़ हुसैन के साथ भी राहत की गहरी दोस्ती रही। यहाँ तक कि राहत इंदौरी के मुंबई आने पर हुसैन साहब ने ही उनके रहने के ठिकाने का बंदोबस्त किया था। इसका भी एक रोचक क़िस्सा है। राहत से जब हुसैन साहब ने पूछा कि बंदोबस्त सही लगा? तो राहत ने जवाब में कहा, "घर तो ठीक है, फ़र्नीचर भी काफ़ी है। बस दीवारें सूनी हैं।" इशारा समझ कर हुसैन ने अपना बनाया एक चित्र दीवार सजाने के लिए राहत को दिया। आज भी राहत इंदौरी के इंदौर वाले घर की दीवार पर हुसैन का वह चित्र सुशोभित है।  

राहत इंदौरी बड़े ख़ुद्दार क़िस्म के शायर रहे। उनकी ख़ुद्दारी उनके व्यवहार और आचरण में ही नहीं, उनकी शायरी में भी झलकती रही। उन्होंने लिखा भी है,
बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए 
हमने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से

समाज की कथा-व्यथा को अभिव्यक्त करने में उनकी क़लम कभी भी ठिठकी या ठहरी नहीं। यही वजह रही कि चाहे बेरोज़गारी की मार हो या शिक्षा व्यवस्था की चूक, राहत इंदौरी ने निर्भीक आवाज़ उठाई,
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए 
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है

राहत इंदौरी की शायरी की सबसे बड़ी ख़ासियत यही रही कि उन्होंने अपनी बात हमेशा बेख़ौफ़ कही। सत्ता के दबदबे से उनकी क़लम कभी डरी नहीं, और राजनीति में बढ़ता अपराधीकरण उनके अंतःकरण को इस क़दर कचोटता रहा, कि अपनी लेखनी में उन्होंने बिंदास जोड़ा,
बनके एक हादसा बाज़ार में आ जाएगा
जो नहीं होगा वह अख़बार में आ जाएगा 
चोर उचक्कों की करो क़द्र कि मालूम नहीं 
कौन कब कौन सी सरकार में आ जाएगा

बिना किसी लाग लपेट के अपनी बात सामने रखने वाले राहत इंदौरी अपने वतन को ही अपना सब कुछ मानते थे। शायर की इस ख़्वाहिश में अपनी मिट्टी के लिए भरपूर चाहत ही तो दृष्टव्य है,
मैं जब मर जाऊँ तो मेरी अलग पहचान लिख देना 
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना 

राहत इंदौरी के लेखन की ख़ूबसूरती इस बात में थी कि वे किसी एक विचारधारा के पीछे नहीं चले, वे तो जन-जन के शायर थे। उनकी तमाम शायरी अपने आसपास बिखरी परिस्थितियों की बयानगी रही। १० अगस्त २०२० को राहत इंदौरी कोरोना वायरस से ग्रस्त हो गए और अगले ही दिन ११ अगस्त २०२० को हृदयाघात से उनका देहांत हो गया। राहत इंदौरी का न रहना शायरी की दुनिया में कभी न ख़त्म होने वाला अंतराल छोड़ गया है।  
उनके बाद उनकी शख़्सियत का यही फ़साना बाक़ी है,
अब न मैं हूँ, न बाकी हैं ज़माने मेरे 
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे

राहत इंदौरी : जीवन परिचय

जन्म / मृत्यु

१ जनवरी १९५०, इंदौर, मध्य प्रदेश / ११ अगस्त २०२०

पिता

रिफ़अत उल्लाह क़ुरैशी

माता

मक़बूल उन निसा बेगम

शिक्षा

उर्दू साहित्य में पीएचडी, भोज विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश

साहित्यिक रचनाएँ

ग़ज़ल संग्रह

  • नाराज़ 

  • दो क़दम और सही 

  • मेरे बाद 

  • चाँद पागल है 

  • मौजूद 

  • रुत 

  • धूप बहुत है

  • आँसुओं का तर्जुमा 

  • लम्हे लम्हे 

संदर्भ

  • राहत इंदौरी भारत 

  • राहत इंदौरी हिंदी कविता 

  • लगेगी आग तो आएँगे रेख़्ता 

  • राहत इंदौरी विकिपीडिया 

  • बीबीसी हिंदी यूट्यूब 

  • Rahat Indori.com the official website

लेखक परिचय

विनीता काम्बीरी

शिक्षा निदेशालय, दिल्ली प्रशासन में हिंदी प्रवक्ता हैं तथा आकाशवाणी दिल्ली के एफएम रेनबो चैनल में हिंदी प्रस्तोता हैं।

आपकी कर्मठता और हिंदी शिक्षण के प्रति समर्पण भाव के कारण अनेक सम्मान व पुरस्कार आपको प्रदत्त किए गए हैं जिनमें यूनाइटेड नेशंस के अंतर्राष्ट्रीय विश्व शांति प्रबोधक महासंघ द्वारा सहस्राब्दी हिंदी सेवी सम्मानपूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा नेशनल वुमन एक्सीलेंस अवार्ड और शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार द्वारा राज्य शिक्षक सम्मान प्रमुख हैं। मिनिएचर-पेंटिंग करने, कहानियाँ और कविताएँ लिखने में रुचि है।

ईमेल : vinitakambiri@gmail.com

4 comments:

  1. राहत इन्दौरी का मतलब होता है ~ एक मुकम्मल मुशायरा।
    राहत इन्दौरी की कमी हमेशा ही अखरती रहेगी।
    इस लेख ने उनको फिर से जीवित कर दिया।
    आपका अभिनन्दन !

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  2. विनीता जी नमस्ते। आपका लिखा एक और उम्दा लेख पढ़ने को मिला। आपने राहत इंदौरी पर बहुत अच्छा रोचक लेख लिखा है। लेख में शामिल अशआर भी अच्छे हैं। आपको बढ़िया लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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  3. विनीता जी, राहत इंदौरी की शख़्सियत और शायरी दोनों के कितने ही मुरीद हैं, हम भी। लेकिन मंच की छवि और उनके अल्फ़ाज़ के जादू से ज़्यादा हम नहीं जानने थे, आपके आलेख की जानकारी से हम बहुत समृद्ध हुए हैं। आपको इस भेंट के लिए बहुत आभार और बधाई।

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  4. विनीता जी , जिनकी शायरी को सुन कर , पढ़कर हम वाह-वाह करते रहे, आज आपके इस लेख के माध्यम से उन्हीं शायर के बारे में विस्तार से जानकर बहुत अच्छा लगा। राहत इंदौरी पर आपकी समृद्ध लेखनी से निकला बेहद सुंदर और प्रभावी लेख। बहुत बहुत बधाई विनीता जी।

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