ख़ुशामद ही से आमद है,
बड़ी इसलिए ख़ुशामद है।
एक दिन राजाजी उठ बोले
बैंगन बहुत बुरा है,
मैंने भी कह दिया इसी से
बेगुन नाम पड़ा है,
फ़ायदा इसमें बेहद है,
बड़ी इसलिए ख़ुशामद है।
दूसरे दिन हुज़ूर कह बैठे,
बैंगन खूब खरा है,
मैने भी झट कहा,
इसी से उस पे ताज धरा है,
नहीं होती इसमें भद है,
बड़ी इसलिए ख़ुशामद है।
यदि राजाजी दिवस कहें तो
दिनकर हम दमका दें,
जो वे रात बतावें तो फिर
चन्दा भी चमका दें
इसी से हँडिया खदबद है
बड़ी इसलिए ख़ुशामद है।
रूढ़िवादी सामाज की कुरीतियों और समस्याओं पर गहरी चोट करने वाले हरिशंकर शर्मा जी का जन्म १९ अगस्त, सन् १८९१ को उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ जनपद के हरदुआगंज कस्बे में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित नाथूराम शंकर शर्मा था। वे भी हिन्दी के प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। इसी वज़ह से शर्मा जी को बालपन से ही साहित्यिक चर्चा का माहौल मिला, जिसके कारण उनकी रुचि साहित्य में दिन-पर-दिन बढ़ती गई। जल्दी ही उनकी गिनती उच्च कोटि के साहित्यकारों के मध्य होने लगी, हालाँकि उनकी शिक्षा किसी स्कूल या कॉलेज में न होकर घर पर ही हुई, जहाँ उन्हें उर्दू, फ़ारसी, गुजराती, मराठी का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त हुआ। हरिशंकर शर्मा के बारे में प्रसिद्ध निबन्धकार बाबू गुलाबराय ने लिखा था-
“समाज का कोई प्राणी अहम् से मुक्त नहीं है। शिक्षित समाज के भी निन्यानवे प्रतिशत जनों का अहम् दम्भ की सीमाओं में जकड़ा है। पंडित जी का सरल, सौम्य, स्वाभिमानी व्यक्तित्व उन सीमाओं से मुक्त है। उनका अहम् अपने लिए न होकर अपने साहित्य स्रष्टा वर्ग के लिए है। विनत के सामने वे स्वंय विनम्र हैं। हाथ जोड़कर अभिवादन करने वाले उन्हें पाँव छूकर प्रणाम करने वालों से कम प्रिय नहीं हैं।”
प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर तो उनको सरलता की प्रतिमूर्ति मानते थे। उनके अनुसार- “पंडित हरिशंकर शर्मा उस खेमे के व्यक्ति थे, जो परस्पर के संबध को सबसे अधिक महत्त्व देते थे। उनके भरे हुए चेहरे पर सौम्यता बिखरी रहती थी और उनके नयन एक उल्लास से चमकते रहते थे। वे हँसना ख़ूब जानते थे। वे हिन्दी के गिने-चुने हास्य लेखकों में से एक थे। नहीं जानता कि रचनाओं को पढ़कर वे कितना हँसते हैं, पर यह अवश्य जानता हूँ कि कुछ समय उनके पास बैठने पर विषाद, दुःख, चिन्ता पास नहीं फटकती थी।"
प्रसिद्ध नेता और पत्रकार पंडित कृष्णदत्त पालीवाल के विचार में-
"प्रकांड पंडित, सहज सहृदयता और सज्जनता, विचारों की उदारता और स्वतंत्रता के साथ-साथ पंडित जी की निष्काम देशभक्ति भी सर्वथा सराहनीय है। वे कभी किसी कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारी नहीं बने, लेकिन सभी स्वाधीनता संग्रामों में उन्होंने सक्रिय सहायता की। यहाँ तक कि १९४२ की जनक्रान्ति के समय वे जेल जाने से भी नहीं चूके। उनका घर सदैव बलिदानी स्वाधीनता संग्राम के सैनिकों का अड्डा और आश्रय-स्थल रहा। स्वाधीनता संग्राम के सच्चे और सुपात्र सैनिक होते हुए भी उन्होंने न कभी कोई पद चाहा, न ही यश और न साहाय्य या राज्यश्रय चाहा।"
साहित्यिक सफ़र
हरिशंकर शर्मा जी का हिन्दी साहित्य का ज्ञान विस्तृत है । शास्त्रीय मतों का संग्रह, उनका विवेचन और उनको रखने की शैली तो लाजवाब है। इन्होंने अपने प्रदेय से हिन्दी साहित्य को पर्याप्त रूप से समृद्ध किया है तथा अपनी कृतियों में विभिन्न महत्त्वपूर्ण विचार भी दिए हैं। इन्होंने अपना स्पष्ट मत देने में कभी संकोच नहीं किया। शर्मा जी का दृष्टिकोण विशाल और उदार है। वे किसी वाद से बद्ध न होने के कारन भिन्न-भिन्न मतों को स्वतन्त्रता पूर्वक प्रस्तुत करते हैं। हिन्दी साहित्य इन्हीं साहित्य-सेवियों से पोषित रहा है और उनकी तपस्या ही सब प्रकार से उपेक्षित हिन्दी को पल्लवित और कुसुमित किये हुए है। उन्होंने ‘आर्यमित्र', 'भाग्योदय', 'आर्य संदेश', 'निराला', 'साधना', 'प्रभाकर', 'सैनिक', 'कर्मयोग', 'ज्ञानगंगा' तथा 'दैनिक दिग्विजय' आदि कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन बड़ी कुशलता के साथ किया, जिनमें वे हास्य-व्यंग्य की रचनाएँ भी प्रकाशित करते रहते थे। जहाँ अधिकतर हास्य-व्यंग्य की रचनाएँ केवल मंनोरंजन के उद्देश्य से फूहड़पन, अश्लीलता तथा निम्न कोटि की होती थीं, वहीं पंडित जी की रचनाओं में स्वस्थ मनोरंजन तो होता ही था, उनमें समाज की कुरीतियों पर भी करारी चोट होती थी। इनकी भाषा विशिष्ट भाषा-शैली तथा भाव-भंगिमा लिए होती थी।
आइए, देखते है उनका यह व्यंग- "लीडर एक ख़ास क़िस्म का समझदार जंतु होता है, जो हर मुल्क और मिल्लत में पाया जाता है। उसे क़ौम के सर पर सवार होना और सभा-सोसाइटियों के मैदान में दौड़ना बहुत पसंद है। उसकी शक्ल-ओ-सूरत हज़रत इंसान से बिल्कुल मिलती-जुलती है। वह गर्मियों में अक्सर पहाड़ों पर किलोल करता मगर जाड़ों में नीचे उतर आता है। देखने में लीडर सादा-सा दिखाई देता है, पर हक़ीक़त में वह वैसा नहीं है। खाने की चीज़ों में उसे सेब, संतरा, अंगूर, केले, अनार वगैरह क़ीमती फल ज़्यादा पसंद हैं। मौका पड़ने पर गल्ले के पूड़ी-पकवान भी गले में उतार लेता है, मगर बहुत ख़ुशी से नहीं!"
'आर्यमित्र' के सम्पादन के दिनों में सर्वश्री बनारसीदास चतुर्वेदी, डॉ.सत्येन्द्र तथा रामचन्द्र श्रीवास्तव जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों का सहयोग उन्हें प्राप्त हुआ था।
‘रस रत्नावली’ नामक ग्रंथ हिन्दी रसों और नायिका-भेदों का विश्वकोश है, किन्तु यह केवल संग्रह मात्र नहीं है। इसमें गम्भीर विवेचना, स्पष्ट विश्लेषण और युक्तियुक्त समन्वय भी है। भिन्न-भिन्न आचार्यों के मर्तो को देकर ही शर्मा जी ने संतोष नहीं कर लिया, बल्कि बुद्धिसंगत तर्कों से उनका कड़ा परीक्षण करके ही उन्हें ग्राह्य या अग्राह्य किया है। प्रत्येक विषय पर भिन्न-भिन्न आचार्यों का मत संग्रह करना ही बड़े अन्वेषण, परिश्रम और अध्यवसाय का काम है।
शर्मा जी रसवादी हैं। वे पाश्चात्य साहित्य से इतने प्रभावित नहीं हुए कि रस को भूल जाएँ या उसके महत्त्व को भुला दें। प्रत्येक रस के प्रारम्भ में उन्होंने जो मंतव्य प्रकट किये हैं, वे सभी प्रशंसनीय एवं माननीय हैं। इतने सुन्दर और काव्यमय उदाहरणों की खोज में शर्मा जी को न मालूम कितने ग्रंथों के पन्ने उलटने पड़े होंगे।
‘हिन्दी साहित्य परिचय’ में उस समय के सभी साहित्यकारों
का विवरण है। हिन्दी साहित्य का इतिहास भारतवर्ष के उत्कृष्ट दिलों और दिमाग़ों का निचोड़ है। साहित्य मनीषियों ने अपनी अनुभूति, चिन्ता, और जो कुछ सोचा, समझा और अनुभव किया, उसे सत्य, शिव और सुन्दर की कसौटी पर कस कर कंचन बनाकर प्रदान किया । इसी कंचन के परख-परिचय का विवरण इस पुस्तक में है ।
‘स्मृतियों का अलाव - एक आम भारतीय की आत्मकथा’
सफल लोगों की कहानियाँ पढ़ने पर पता लगता है कि किस तरह गुलज़ार को गैरेज से निकालकर बिमल राय अपने साथ यह कह कर ले गए थे कि यह तुम्हारी जगह नहीं है। किस तरह प्रकाश मेहरा ने अमिताभ बच्चन को स्टेशन से लौटा दिया था। काश, हमारे साथ भी यही हुआ होता ! किसी ने हमारा भी हाथ पकड़ा होता। पर नियति के निष्ठुर हाथ हम तक नही पँहुचे। यह सबकी कहानी है। एक आम आदमी की बात है, जो संघर्ष करता आ रहा है, लेकिन निराश नहीं हुआ है। हार कर उसने अपने जीवन को समाप्त करने का प्रयास नही किया है। शिद्दत के साथ लड़ा और लड़ता जा रहा है- अपने जीवन में और बेहतरी लाने के लिए। यह एक आम भारतीय की कहानी है।
‘हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यासों में नारी’
यह एक शोध प्रबंध मौलिक कृति है, जिसमें शर्मा जी ने हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यासों में चित्रित नारी पात्रों का विस्तृत और पूर्ण अध्ययन प्रस्तुत किया है।
जिसके अंचल की छाया में
बना ब्रज जैसा कोमल तन
कर जिसका पयपान हो गया
पंचानन सा निडर हरिण मन
जिसकी गरिमा का,महिमा का
रोम-रोम करता नित अर्चन
जननी जशोदा जी को मेरा
यह लघु ग्रंथ-समर्पण
प्रत्येक विषय पर गहनता से छानबीन करना, उसकी रूपरेखा का निर्माण करना और अंत में अपने चिंतन का शाब्दीकरण हरिशंकर शर्मा के लेखन का मूल उत्स रहा है। इनके आलेख कहीं भी अपनी रसमयता को नहीं छोड़ते हैं, बल्कि एक धारा में निर्विवाद बहते हुए महसूस होते हैँ। जब हम उन असंख्य समीचीन उदाहरणों को पढ़ते हैं, जो उन्होंने प्राचीन और अर्वाचीन हिन्दी काव्यों से दिये हैं, तो हम शर्माजी की विद्वत्ता ही नहीं, किन्तु उनके हिन्दी साहित्य के विस्तृत ज्ञान को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। उनसे हमें उनकी सहृदयता और सुरुचि का भी पूर्ण परिचय प्राप्त हो जाता है। उनका निधन ९ मार्च, सन् १९६८ को हुआ।
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सम्मान
हरिशंकर शर्मा को उनके रचना कार्य ‘घास पात’ पर जहाँ 'देव पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था, वहीं उनकी साहित्य सेवाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु 'आगरा विश्वविद्यालय' ने उनको 'डी.लिट.' की मानद उपाधि से विभूषित किया। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कर कमलों से 'पद्मश्री' से अलंकृत हुए।
सन्दर्भ:
https://jivanihindi.com/harishankar-sharma/
https://bharatdiscovery.org/india/
https://poshampa.org/leader-lala/
https://www.goodreads.com/book/show/57722769
लेखक का परिचय:
संतोष भाऊवाला की कविता-कहानियाँ कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं, जिनमें से कई पुरस्कृत भी हैं। वे कविता, कहानी, गज़ल, दोहे लिखती हैं।
ईमेल: santosh.bhauwala@gmail.com , व्हाट्सप्प : ९८८६५१४५२६
संतोष जी, पंडित हरिशंकर शर्मा का नाम तक नहीं सुना था। इनके व्यक्तित्व और कृतित्व से सहज, रोचक, ज्ञानवर्धक और पठनीय आलेख के माध्यम से परिचय कराने के लिए आपको धन्यवाद और बधाई।
ReplyDeleteसंतोष जी नमस्ते। आपने पंडित हरिशंकर शर्मा जी पर अच्छा लेख लिखा है। लेख से उनके जीवन एवं सृजन को जानने का अवसर मिला। आपको इस जानकारी भरे लेख के लिये हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसंतोष जी, खुशामद ही से आमद है से ले कर ज्ञान से मुक्ति धाम जाएँ के बीच आपने हरिशंकर शर्मा जी का जो रेखाचित्र खींचा है, वह अनुपम है। हास्य में बातों को कह देना, अहम् से दूर रहना, मुखरता, सरलता जिनके गुण रहे और जिन्होंने गहन शोध के बाद महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखे, ऐसे हरिशंकर जी को नमन। आपको एक और अच्छे लेख की हार्दिक बधाई और आभार।
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