“शिक्षक साधारण नहीं होता; प्रलय और निर्माण दोनों उसकी गोद में खेलते हैं।”
- चाणक्य
भारतवर्ष की पावन धरा पर
आज से लगभग दो हज़ार चार सौ वर्ष पहले एक ब्राह्मण शिक्षक ने अपने ज्ञान, आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प के दम पर अखंड भारत का ऐसा स्वर्णिम इतिहास गढ़ा, जिसकी गौरवगाथा संपूर्ण विश्व के लिए एक
मिसाल बन गई। उस युगपुरुष का ओज ऐसा था कि सदियों बाद आज भी उसकी उज्ज्वल कीर्ति हज़ारों, लाखों और करोड़ों लोगों का मार्ग प्रशस्त कर रही है। भारतवर्ष की गौरवशाली
ज्ञान परंपरा में जन्मे इस महामात्य ने अपनी प्रबल बुद्धि के प्रताप से एक ऐसे
ग्रंथ का निर्माण किया जिसके दम पर विशाल साम्राज्यों और विराट सम्राटों का
निर्माण किया जा सके। ऐसे अर्थशास्त्री, कूटनीतिज्ञ,
राजनीतिज्ञ महाविद्वान आचार्य विष्णुगुप्त का संपूर्ण जीवन राष्ट्रप्रेम और
ज्ञान-साधना का पर्याय है। विष्णुगुप्त चाणक्य और कौटिल्य नामों से भी विश्वविख्यात
हैं।
जन्म : एक पहेली
चाणक्य का जन्म अनुमानतः
३७६ ईसा पूर्व बताया जाता है तथापि इनके जन्मस्थान को लेकर अनेक मत हैं। कुछ
इन्हें पंजाब या तक्षशिला में जन्मा मानते हैं तो कई मगध के आस-पास का; कुछ तो दक्षिण भारत के कांचीपुरम और केरल को
भी कौटिल्य का जन्मस्थान कहते हैं। लगभग २४०० साल पहले जन्मे चाणक्य की कहानियाँ
सातवीं से बारहवीं सदी के बीच लिखे बौद्ध, संस्कृत और जैन
ग्रंथों में मिलती हैं। बृहत्-कथा-मंजरी (क्षेमेंद्र कृत), कथासरित्सागर (सोमदेव कृत), वायु पुराण, मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण, बौद्ध ग्रंथ ‘महावंश’ (पाली में),
जैन ग्रंथ ‘परिशिष्ट पर्व’ (हेमचंद्र कृत) तथा संस्कृत
नाटक ‘मुद्राराक्षस’ (विशाखदत्त कृत) में चाणक्य का उल्लेख मिलता है। प्राचीन जैन
ग्रंथ ‘परिशिष्ट पर्व’ के मुताबिक चाणक्य का जन्म ‘गोल्य’ नामक एक जनपद में हुआ था। पिता चणक और माता चनेश्वरी के घर जन्मे इस
अद्भुत बालक के मुख में जन्म से ही एक दंत था। घर पर जैन मुनियों और संन्यासियों
का आना-जाना सामान्य बात थी। जैन समुदाय से आकर्षित माता-पिता पुत्र को भी एक
जैन मुनि और विद्वान ब्राह्मण बनाना चाहते थे, किंतु एक जैन संन्यासी ने
भविष्यवाणी करते हुए कहा कि यह बालक महान राजा बनेगा। पिता ने जब अपनी इच्छा ज़ाहिर की तब
संन्यासी ने कहा कि यदि इसका दंत निकाल दिया जाए तब ही यह संभव हो सकेगा कि वह राजा न बने। पिता ने
संन्यासी के आदेश का पालन किया और बड़ा होकर चाणक्य एक महान विद्वान बना जिसने
महा प्रतापी सम्राट ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ का निर्माण किया।
एक अन्य प्रचलित कहानी
जिसका ज़िक्र प्राचीन संस्कृत ग्रंथों विशेषकर ‘मुद्राराक्षस’ में तो मिलता ही है, दूरदर्शन पर प्रसारित डॉ. चंद्र प्रकाश
द्विवेदी के धारावाहिक ‘चाणक्य’ के अनुसार कौटिल्य का जन्म
मगध के सीमावर्ती नगर में एक साधारण ब्राह्मण आचार्य चणक के घर हुआ था। चणक का
पुत्र होने के नाते उन्हें चाणक्य कहा गया, जबकि पिता ने
उनका नाम ‘कौटिल्य’ रखा था। चणक मगध के राजा धनानंद से
असंतुष्ट थे और अपने अमात्य (मंत्री) मित्र शकटार की सहायता से मगध को इस विलासी
राजा से मुक्त करा कर विदेशी आक्रांताओं से इसकी रक्षा करना चाहते थे। इससे पहले कि चणक अपनी योजना में सफल होते, तत्कालीन महामात्य (प्रधानमंत्री) राक्षस और
अमात्य कात्यायन को इस योजना का पता चल गया और उन्होंने सम्राट धनानंद को इसकी
सूचना दी। क्रोध से आग-बबूला धनानंद ने तत्काल चणक को बंदी बनाने का आदेश दिया और
राजद्रोह के अपराध में एक आचार्य ब्राह्मण का सिर धड़ से अलग कर राजधानी पाटलिपुत्र
के चौराहे पर टांग दिया गया। चणक के चौदह वर्षीय पुत्र कौटिल्य ने रात के अँधेरे
में पिता के शीश को ससम्मान नीचे उतारा, और अकेले ही उनका दाह-संस्कार किया।
धनानंद के अन्याय और अनैतिक कर्मों की यह कोई पहली घटना नहीं थी। दुख और संताप ने
कौटिल्य के मन में धनानंद के प्रति घोर वितृष्णा भर दी! मगध के काले भविष्य
की परछाई उसके किशोर मन को विह्वल कर रही थी। पिता की मृत्यु से आहत कौटिल्य ने
अपना नाम ‘विष्णुगुप्त’ रख लिया और एक विद्वान पंडित राधामोहन की सहायता से वह
तत्कालीन विद्या के सर्वश्रेष्ठ गढ़ तक्षशिला (आज का रावलपिंडी, पाकिस्तान) जा पहुँचा। अपनी सूझ-बूझ और तीव्र बुद्धि के बल पर विष्णुगुप्त
शीघ्र ही तक्षशिला विश्वविद्यालय का सबसे लोकप्रिय नाम बन कर विद्यार्थियों, कुलपति व अन्य विद्वानों का पसंदीदा बन गया। अपनी शिक्षा पूरी कर चाणक्य वहीं आचार्य बन गया और अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, समाजशास्त्र आदि का अध्यापन करने लगा।
विष्णुगुप्त की विस्तृत
सोच का पार पाना अत्यंत कठिन था। विद्यार्थियों की हर जिज्ञासा का सुलभ और सटीक
उत्तर उसके पास होता था। राजा कैसा होना चाहिए, उसके धर्म और कर्तव्य क्या होने चाहिए, राज्य कैसे
चलाना चाहिए, शासन का सही मानदंड क्या होना चाहिए और राज्य
की शासन व्यवस्था कैसी होनी चाहिए – इन सब विषयों पर मंथन करते हुए उसने एक ऐसे
ग्रंथ की रचना की जो आज की व्यवस्था में भी सटीक बैठती है। अखंड भारत और राष्ट्र
के संविधान की कल्पना करने वाला वह प्रथम व्यक्ति था।
जिन दिनों आचार्य विष्णुगुप्त अपने विद्यार्थियों को अखंड भारत का स्वप्न दिखा रहे थे, उन्हीं दिनों मेसेडोनिया का सम्राट सिकंदर तृतीय (अलेक्जेंडर द ग्रेट या अलक्षेंद्र) समूचे ग्रीस, कई यूरोपीय देश, मिस्र, फ़ारस (ईरान) पर आधिपत्य स्थापित करता हुआ भारत की सीमा में प्रवेश की तैयारियों में जुटा था। पिता चणक की आशंका अब सत्य होने वाली थी। विश्वविजय की महत्वाकांक्षा लिए सिकंदर ने गांधार को सबसे पहला निशाना बनाया। गांधार नरेश आंभीक सिकंदर के भय से युद्ध किए बिना ही उसकी दासता स्वीकार कर ली। कौटिल्य को इस बात का गहरा आघात लगा। गांधार के बाद अब पंजाब की बारी थी जहाँ का शासक पुरु (पोरस) एक निडर और राष्ट्रभक्त शासक था। पुरु ने बहुत बहादुरी से सिकंदर का सामना किया किंतु सिकंदर की विशाल सेना के आगे उसकी सेना अधिक दिनों तक टिक न सकी और अंततः पुरु की हार हुई। किंतु पुरु के पराक्रम और उसके कर्तव्यनिष्ठ सैनिकों से अनेक बार युद्ध ने सिकंदर का हौसला डगमगा दिया।
उधर चाणक्य सिकंदर के
आक्रामक तौर-तरीकों को किसी भी उपाय से रोकना चाहते थे और इस कार्य के लिए
उन्होंने उस काल के सबसे प्रभावशाली साम्राज्य मगध की ओर मुख किया क्योंकि एकमात्र
मगध के पास एक बड़ी सेना, विशाल
साम्राज्य और सिकंदर से लड़ने के लिए उपयुक्त लाव-लश्कर थे। यहाँ यह बताना आवश्यक
हो जाता है कि उस काल में भारतवर्ष सोलह महा-जनपदों में बँटा था, जिसकी सीमाएँ उत्तर
में हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक; पूर्व में
असम से लेकर पश्चिम में गांधार (आज का अफ़गानिस्तान) तक थीं। आज का पटना और गया का भाग तत्कालीन
मगध साम्राज्य था, जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र (पटना) थी। आचार्य विष्णुगुप्त ने
राष्ट्र पर मंडरा रहे संकट सिकंदर नाम के आक्रांता का हवाला देकर धनानंद को भारतवर्ष
की रक्षा के लिए आगे बढ़ने का अनुरोध किया; किंतु रक्षा करना तो दूर, धन और सत्ता के मद में डूबा अहंकारी धनानंद उनका अपमान कर बैठा। उस दिन
धनानंद की राज-सभा में एक ब्राह्मण-शिक्षक के अपमान ने कौटिल्य के क्रोध को ऐसी
हवा दी कि उसने यज्ञोपवीत की अग्नि की सौगंध लेते हुए कहा कि जब तक नंद वंश के
राजा धनानंद को समूल सत्ता से उखाड़ नहीं फेंकेगा, तब तक अपनी
शिखा नहीं बाँधेगा।
अब चाणक्य के पास दो
महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ थीं – पहली, एक ऐसे सम्राट की तलाश जो पराक्रमी, कर्तव्यनिष्ठ और
ऋषितुल्य हो अर्थात जिसकी भुजाओं में बल, मन में उदारता और स्वभाव में सहृदयता हो।
और दूसरी यह कि भारत के छोटे-छोटे राज्यों को एक जुट कर ऐसी संगठित शक्ति का
निर्माण करे कि विदेशी आक्रांता यहाँ नज़र उठा कर देखने की हिम्मत तक न कर सके।
कौटिल्य की तलाश
चंद्रगुप्त मौर्य नामक एक नवयुवक पर ख़त्म हुई जिसकी जाति या वंश का कोई निश्चित
प्रमाण नहीं मिलता है, किंतु उस काल के हिसाब से वह एक कुलहीन अनाथ था जिसकी आँखों में अन्याय के विरुद्ध
ज्वाला और भुजाओं में राजसी सेना से भी भिड़ जाने का साहस था। मगध की सीमा में ही
चाणक्य को चंद्रगुप्त जैसा वीर मिला जिसे तराशकर मगध की राजगद्दी पर बिठाना
आचार्य विष्णुगुप्त का एकमात्र लक्ष्य बन गया। विष्णुगुप्त ने तक्षशिला प्रवास
के दौरान राज्य, राजा, प्रजा और शासन के संबंधों का गहन
अध्ययन कर जो विधान ‘अर्थशास्त्र’ और ‘नीतिशास्त्र’ में लिखा उनसे चंद्रगुप्त मौर्य का शिक्षण-प्रशिक्षण आरंभ हुआ और कौटिल्य
ने शीघ्र ही उसे तराशकर भारतवर्ष के भावी सम्राट के रूप में प्रस्तुत किया। मगध
से नंदवंश का नाश और चंद्रगुप्त को सत्तारूढ़ करने के लिए कौटिल्य ने कई
कूटनीतियों का सहारा लिया – सबसे पहले मगध के मित्र और शत्रु राज्यों को
विष्णुगुप्त की विजय-पताका के अंतर्गत लाना उसकी योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
पुरु को पराजित कर थकी-हारी सिकंदर की सेना का सामना करने के लिए भी चंद्रगुप्त
मौर्य को तैयार किया गया। चाणक्य की निगरानी में चंद्रगुप्त मौर्य ने पंजाब से
जीत का सिलसिला शुरू किया। इस जीत से पहले कुछ जैन और ग्रीक साहित्य चंद्रगुप्त
और अलक्षेंद्र के बीच मुलाक़ात का भी ज़िक्र करते हैं। खैर,
पंजाब के बाद मौर्य ने पूरब का रुख़ किया। कौटिल्य के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त
ने बड़ी चतुराई से लोगों का समर्थन और विश्वास जीता। चाणक्य के पिता के पुराने साथी
शकटार ने उन्हें मगध की जनता का धनानंद के प्रति आक्रोश और धनानंद के विरुद्ध खड़े
अमात्यों (मंत्रियों) से परिचित कराया; गुप्तचरों और प्रजा
की सहायता से मगध के भीतर अपना समर्थन बढ़ाया और बाहर से आक्रमण कर चंद्रगुप्त ने धनानंद को
परास्त किया और मगध का विशाल साम्राज्य अपने नाम किया। आस-पास के क्षेत्रों को तो
वह पहले ही जीत चुका था। इस जीत के साथ ही पहली बार भारतवर्ष में एक बड़े साम्राज्य
की स्थापना हुई। मगध साम्राज्य का विस्तार पूर्व में असम से लेकर उत्तर-पश्चिम
में गांधार और दक्षिण में गोदावरी तक था। मगध साम्राज्य का क्षेत्रफल आज के भारत
के क्षेत्रफल से भी बहुत विशाल था। यह अखंड भारत कौटिल्य की कल्पना का चक्रवर्ती-क्षेत्र
था, जिसे उसने अपने दृढ़ निश्चय, त्याग और योजनाबद्ध प्रयत्नों ने साकार कर दिखाया था।
चंद्रगुप्त मौर्य वंश
का पहला राजा बना और विष्णुगुप्त उसके पहले महामात्य बने। इतने बड़े साम्राज्य के
प्रधानमंत्री होने के बावजूद चाणक्य ने भोग-विलास और धन से निश्चित दूरी रखी और एक
छोटी कुटिया में ही रहते रहे। चंद्रगुप्त के बाद उनके पुत्र बिंदुसार ने
राजगद्दी संभाली और इस राज्य में भी कौटिल्य ही महामात्य के पद पर रहे। किंतु आजीवन
नीतिगत मार्ग पर चलने वाले कौटिल्य स्वयं एक षड्यंत्र का शिकार हो गए और मगध का
त्याग कर वानप्रस्थ को चले गए। हालाँकि जब षड्यंत्रकर्ता अमात्य सुबंधु और महाराज
बिंदुसार को सच्चाई का पता चला तब वे क्षमा माँगने और चाणक्य को ससम्मान उनका पद
सौंपने के इरादे से जंगल में रह रहे चाणक्य से मिलने आए। चाणक्य ने उन्हें माफ़ तो
कर दिया किंतु मगध वापस लौटने का अनुरोध स्वीकार न कर सके। कहते हैं यहीं
वानप्रस्थ के दौरान ही लगभग २८३ ईसा पूर्व उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। वैसे
उनकी मृत्यु को लेकर भी विभिन्न संदर्भों में अलग-अलग कहानियाँ प्रचलित हैं। कुछ
कथाओं के अनुसार बिंदुसार की पत्नी ने धोखे से ज़हर देकर उनकी हत्या करवा दी। उनकी
मृत्यु का सच जो कुछ भी हो, उनका
जीवन और उस जीवन में किए गए उनके कर्मों का सच आज भी उसी रूप में विद्यमान है।
आज के संदर्भ में
हज़ारों वर्ष पहले लिखा
चाणक्य का दस्तावेज़ आज भी अपनी पूर्णता के साथ प्रासंगिक है। अक्सर कहा जाता है कि
आज भारत में जो शासन व्यवस्था है वह अँग्रेज़ों की देन है; उससे पहले मुग़लों की शासन व्यवस्था थी और
उससे पहले तो भारत में अपनी कोई व्यवस्था ही नहीं थी। किंतु चाणक्य ने
अर्थशास्त्र में अँग्रेज़ों और मुग़लों से भी सैकड़ों वर्ष पहले राजा और मंत्री पद से
लेकर सड़क पर चुंगी वसूलने के लिए अधिकारी रखने की बात कही है। उस ग्रंथ में शासन
चलाने के लिए राजा से लेकर गाँव के मुखिया तक की बात कही गई है।
‘अर्थशास्त्र’ की
व्याख्या करते हुए चाणक्य ने कहा था – “मनुष्य की जीविका को अर्थ कहते हैं तथा
मनुष्य युक्त भूमि को भी अर्थ कहते हैं। इस भूमि को प्राप्त करने और इसकी रक्षा
करने के उपायों का निरूपण करने वाले शास्त्र को अर्थशास्त्र कहते हैं।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र
में उल्लिखित ‘सप्तांग’ राज्य-व्यवस्था का पहला भारतीय प्रारूप (मॉडल) कहा
जा सकता है।
अर्थशास्त्र |
आज की व्यवस्था |
१. स्वामी/ राजा |
१. राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री |
२. अमात्य (विभिन्न विभागों के) |
२. मंत्री (विभिन्न विभागों के) |
३. जनपद (प्रजा) |
३. नागरिक |
४. कोष |
४. टैक्स/कर-व्यवस्था |
५. दंड |
५. सेना/पुलिस |
६. मित्र देश |
६. मित्र देश |
७. दुर्ग (सुरक्षित क़िला) |
७. विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा |
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में प्रशासनिक पदाधिकारियों की बहुत विस्तृत और बृहद सूची थी जिससे पता चलता है कि उनकी समझ कितनी अधिक विकसित होगी। ‘संस्थाध्यक्ष’ एक ऐसा अधिकारी था जिसका कार्य था लोगों को व्यापारियों के जाल-फ़रेब से बचाना – बिल्कुल हमारे आज के ‘जागो-ग्राहक-जागो’ यानी उपभोक्ता आयोग जैसा।
नदियों में नावों की
आवाजाही को नियंत्रित करने और उनसे कर वसूलने के लिए ‘नावाध्यक्ष’ होते थे –
बिल्कुल हमारे आज के ट्रैफ़िक पुलिस और टोल टैक्स कलेक्टर के जैसे।
भ्रष्टाचार भी कौटिल्य
के अर्थशास्त्र में प्रमुखता से उल्लिखित था। उसमें हेरा-फेरी, गबन और चोरी के कई
रूपों की चर्चा की गई है। गबन के चालीस तरीकों का उल्लेख अर्थशास्त्र में मिलता
है। भ्रष्टाचार को रोकने और प्रशासन में एकात्मता लाने के लिए चाणक्य ने कई उपाय
भी सुझाए जैसे, अधिकारियों को एक ही
विभाग में न रखकर उनके तबादले किए जाएँ ताकि उनके निहित स्वार्थ की पूर्ति को रोका
जा सके। यह 'जॉब रोटेशन' जैसा है। एक व्यवस्था यह भी की गई जिसकी तुलना आज के ‘ऑडिटिंग सिस्टम’ से की जा सकती है, जिसके अंतर्गत आषाढ़ पूर्णमासी के दिन सभी महामात्यों की
बंद कमरे में एक बैठक होती थी जिसमें विगत मासों के विभिन्न विभागों के लेखा-जोखा
को मिलाया जाता था तथा अनियमितता पाए जाने पर उचित कार्यवाही का प्रावधान था।
दिल्ली विश्वविद्यालय
में राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक रह चुके डॉ. एम.पी. सिंह कहते हैं, “कौटिल्य प्राचीन भारत में पहला ऐसा
चिंतक हुआ जिसने कहा कि परंपरा के कानून के अतिरिक्त राज्य अपना न्याय भी बना
सकता है। शास्त्र के न्याय और राज्य के धर्म-न्याय में विरोधाभास हो तो राज्य का
धर्म-न्याय प्रभावी होगा।”
इतिहासकार प्रोफ़ेसर
मक्खन लाल कहते हैं, “अर्थशास्त्र
कोई इकॉनोमिक्स की किताब नहीं है। यह राज्य शासन चलाने की किताब है जिसमें राजनीति
भी है, अर्थ भी है, समाज भी है, शासन-व्यवस्था भी है, विदेशों से संबंध की बात है, सेना की बात भी है।”
‘चाणक्याज़ सेवेन सीक्रेट ऑफ़ लीडरशिप’ के लेखक एवं पूर्व पुलिस-कमिश्नर डी. शिवानंद कहते हैं, “चाणक्य ने जिस साम, दाम, दंड, भेद – इन चार तरीकों से स्थिति पर काबू पाने का जो मंत्र दिया था, आज के संदर्भ में उसका अर्थ है :
– साम : समाज या व्यक्ति को विवेकपूर्ण ढंग से समझाओ।
– दाम (दान) : काबिलों को पुरस्कृत करो।
– दंड : अपराधियों को
सज़ा दो।
– भेद : विरोधियों में
फूट डालो।”
विजयी होने के लिए इसी साम, दाम, दंड, भेद का सही प्रयोग कौटिल्य ने चंद्रगुप्त को समझाया था।
कौटिल्य भारत के मस्तक पर अंकित वह नाम है जो युग युगांतर तक विश्व को असल राजनीति के पाठ पढ़ाता रहेगा।
चाणक्य : जीवन परिचय |
|
पूरा नाम |
कौटिल्य (पिता का रखा नाम) चाणक्य (चणक के पुत्र होने के कारण) आचार्य विष्णुगुप्त (स्वयं का दिया नाम) |
अन्य नाम |
वात्स्यायन, मलंग, द्रविमल, अंगुल, वारानक, कात्यान |
जीवन काल |
३७५ ई.पू. से २८३ ई. पू. तक |
माता-पिता |
चनेश्वरी - आचार्य चणक |
शिक्षा |
|
व्यवसाय |
शिक्षक, लेखक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ |
कृति |
कौटिल्य अर्थशास्त्र, चाणक्य नीति |
प्रसिद्धि |
|
मगध का साम्राज्य विस्तार |
|
सोलह महाजनपद |
|
चाणक्य की राज्य की अवधारणा |
|
चाणक्य के विचार |
चाणक्य अपने अस्तित्व के ढाई हज़ार वर्ष बाद भी कई महान हस्तियों के प्रेरणास्रोत हैं। उनके सिद्धांतों और कूटनीतियों पर समय-समय पर कई
पुस्तकें लिखी गई हैं और लिखी जाती रहेंगी। |
संदर्भ
- परिशिष्ट पर्व
- कौटिल्य अर्थशास्त्र
- मुद्राराक्षस
- मौर्य साम्राज्य का
इतिहास, सत्यकेतु विद्यालंकार
- https://www.britannica.com/biography/Chanakya
- विकिपीडिया [हिंदी व अँग्रेज़ी पृष्ठ]
- https://web.archive.org/web/20170525213910
- https://www.jagranjosh.com/general-knowledge
- https://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/story-of-acharya-chanakya-in-hindi-120050500026_1.html
- https://cdn.newsnationtv.com/resize/460-/images/2021/03/17/chanakya-03-45.jpg [चित्र]
लेखक परिचय
दीपा लाभ
वाह वाह संक्षेप में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हार्दिक धन्यवाद
ReplyDeleteसादर आभार!
Deleteबढ़िया। यूँ तो भारत की शासन व्यवस्था सर्वप्रथम मनुस्मृति में है। जिसे चाणकय ने संसोधित किया। चाणक्य पर्याय है आज नीतिकार का।
ReplyDeleteनमस्ते सुरेश जी, पुर्णतः सहमत हूँ| आपने समय निकल कर पढ़ा, आपका बहुत धन्यवाद!
Deleteआचार्य चाणक्य के बारे में संतुलित और सारगर्भित विवेचना है। अत्यंत रोचक लेख है। ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रम में इस लेख को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
ReplyDeleteनमस्ते मुक्तिचक्र जी, आपकी इस बात ने मेरे परिश्रम का मान रख लिया| इससे अच्छा क्या होगा कि यह लेख किसी पाठ्यपुस्तक या संग्रह का हिस्सा बन सके| आपका हृदय ताल से आभार!
Deleteवाह! दीपा, एक सुंदर और दमदार कहानी के रूप में तुमने चाणक्य पर विस्तृत, शोधपरक, पठनीय और रुचिकर आलेख प्रस्तुत किया है। आलेख के अंत में ‘आज के सन्दर्भ में’ तुलना के साथ दिए गए उदाहरणों से इसकी सार्थकता और बढ़ गई है। एक और सुन्दर आलेख पटल पर लाने के लिए तुम्हें हार्दिक बधाई और धन्यवाद। भविष्य में लेखन के लिए शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteआभार सरोज जी! कोई भी इतिहास यदि वर्तमान में भी प्रासंगिक हो तो उसकी उपयोगिता बढ़ जाती है| चाणक्य की नीतियाँ और चाणक्य के पाठ शाश्वत हैं| हर भारतीय को इसकी जानकारी होनी चाहिए|
Deleteसुन्दर लेख है।
ReplyDeleteआभार!
Deleteबहुत सुंदर, दीपा जी। आपने चाणक्य की कथा बहुत रोचक ढंग से प्रस्तुत की है। सीमित शब्दावली में विस्तृत वर्णन देता यह आलेख इसलिए भी संग्रहणीय है क्योंकि यह तत्कालीन भौगोलिक, राजनैतिक और भू-राजनैतिक स्थिति का स्पष्ट ब्यौरा प्रस्तुत करता है। यह आलेख किसी भी विद्यार्थी पाठ्यक्रम के लिए उपयुक्त है और चाणक्य के लिए एक संदर्भ सामग्री की तरह उपयोगी है। आपको ऐसे ज्ञानवर्धक लेख के लिए धन्यवाद, बधाई। 💐💐
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद हरप्रीत जी| शब्दों की सीमा तो वास्तव में एक चुनौती है, किन्तु इस कला में भी आनन्द है| इस आलेख का सन्दर्भ सामग्री के रूप में प्रयोग होना तो मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी| एक बार पुनः आपका अभिनन्दन!
Deleteप्रिय दीपा जी , अत्यंत शोधपरक आलेख लिखा है आपने। चाणक्य के वृहद जीवनवृत्त और कृतित्व को बहुत ही सुन्दरता और कुशलता के साथ इस छोटे से आलेख में समेटना आपकी लेखन क्षमता को दर्शाता है। कोई भी इस आलेख को पढ़कर चाणक्य के विषय में एक समग्र जानकारी प्राप्त कर सकता है। यह आलेख निःसंदेह अपने उद्देश्यों को सौ प्रतिशत पूरा करता है।
ReplyDeleteढेरों सराहना !
- अजन्ता
प्रिय अजन्ता जी, आपके शब्दों ने मन में प्रसन्नता का संचार कर दिया है| आपके इन जादू भरे शब्दों के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया|
Deleteसंसार के प्रथम अर्थशास्त्री और "भारतवर्ष" के प्रथम स्वप्न द्रष्टा चाणक्य पर यह लेख बहुत सुंदर है और प्रभावित करने वाला है!
ReplyDeleteवो मेरे आदर्शों में से एक हैं!
आदरणीय अशोक जी, चाणक्य निःसंदेह आदर्श के पात्र हैं| उनकी विस्तृत सोच, संसार की समझ, राष्ट्र के प्रति प्रेम और समर्पण, उनकी कर्मठता, उनका जुझारूपन, उनका हठ, दृढ़-संकल्प - उनका सम्पूर्ण जीवन हमारे लिए गुणों का भंडार और मूल्यों से भरा अनमोल धरोहर है| आपने समय निकाल कर आलेख पढ़ा, सराहा, आपका हार्दिक आभार!
Deleteदीपा, आनंद आ गया चाणक्य को तुम्हारी क़लम के माध्यम से जानकर। इतिहास में कुछ पढ़ा था, कुछ पत्र-पत्रिकाओं में। तुमने सर्वत्र से जानकारी एकत्रित कर एक समग्र-सा और रोचक लेख प्रस्तुत किया। सार्थक लेखन करते रहने की शुभकामनाएँ। आज के आलेख के लिए कहूँगी, शाबाश! और तहे दिल से शुक्रिया।
ReplyDeleteदीपा जी नमस्ते। आपने एक और अच्छा लेख हम पाठकों को दिया। आचार्य चाणक्य पर विस्तृत जानकारी भरा लेख है। लेख एक कहानी की तरह बढ़ता चला गया। आपकी मेहनत स्पष्ट दिख रही है। आपको इस रोचक लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteनमस्ते दीपक जी, आपके प्रोत्साहन भरे शब्दों ने मन में नई ऊर्जा का संचार किया है| आपका हार्दिक आभार!
Deleteवाह दीपा जी,
ReplyDeleteअद्भुत। अतिप्रभावी और सुंदर लेख रचा गया है। जिन साहित्यकारों के बारे में जानते हैं उनके बारे में विस्तृत में लिखना बहुत ही कठिन होता है परंतु आज के यह लेख उस बात को गलत ठहराता है। आचार्य चाणक्य जी की कथा और उनके द्वारा रची गयी शास्त्र ग्रंथ वर्तमान भारत की लिए एक उपयुक्त भेंट है यह इस लेख से साबित हो रहीं है। यह लेख वाकई में संग्रहणीय है जिसे भारत के हर मानव को एक बार तो पढ़ना चाहिए। चाणक्य जी के विशाल कृतित्व को इतने कम शब्दों में बांधना बहुत ही कुशलता का काम है। आपको पुनः इस अप्रतिम और ज्ञानवर्धित आलेख राचियेता का मान सौंपते हुए अपने आप को धन्य करते है। आपको हार्दिक शुभकामनाएं और अभिनदंन।
नमस्ते सूर्या जी, बिलकुल सही कहा आपने| लोक में प्रचलित नामों पर लिखना वास्तव में चुनौतियों से भरा काम है| मुझे प्रसन्नता है और उससे ज़्यादा संतोष है कि यह आलेख अपनी गरिमा बनाने में कामयाब रहा| आपके आशीर्वचनों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद|
DeleteBahut pyaari paheli hai ❤️❤️🔥❤️Keep inspiring us and keep progressing ☝️Brilliant one 🙌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर दीपा जी। एक ही लेख में पूरा इतिहास लिख दिया। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDelete