उनके पूर्वज उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद के अन्तर्गत मगरायर गांव के निवासी थे। वहीं उनका जन्म ४ सितम्बर १९०६ ई.को हुआ था। उनके पिता गोवर्धन लाल वाजपेयी जीविकोपार्जन की दृष्टि से हजारीबाग चले गए थे। वहीं वाजपेयी जी की प्रारम्भिक शिक्षा हुई। माता का नाम जनक दुलारी था। जो वैष्णवी विचारों की महिला थीं।
वाजपेयी जी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे। बाल्यकाल में ही उनके पिता ने उनको पाणिनि की 'अष्टाध्यायी' कंठस्थ करा दिए थे। फिर 'अमरकोश' के मुख्य अंश भी कंठस्थ करा दिया। स्कूली शिक्षा के लिए हजारीबाग के मिशन हाई स्कूल में प्रवेश लिया और पन्द्रह वर्ष की आयु में मैट्रिकुलेशन की परीक्षा अव्वल अंकों से उत्तीर्ण की। १९२२ ई.में हजारीबाग के ही सेंट कोलम्बस स्कूल में विज्ञान के विद्यार्थी के रूप में प्रवेश लिया परन्तु विज्ञान में अरुचि के कारण शीघ्र ही कला-विषयों को समन्वित कर लिया। १९२५ में १२वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से १९२७ में बी.ए. और १९२९ में एम.ए.उत्तीर्ण की। प्रखर प्रतिभा-सम्पन्न वाजपेयी जी बाल्यकाल में कविता लिखने लगे थे।
कार्यक्षेत्र
कुछ समय तक उन्होंने गीताप्रेस गोरखपुर में रहकर राम-चरितमानस के सम्पादन कार्य में अपनी अभूत प्रज्ञा-प्रमा का परिचय दिया। वे १९३०-३२ में दो वर्षों तक इलाहाबाद से निकलने वाले 'भारत' समाचारपत्र का सम्पादन करते हुए अपने लेखों में जिस तेजस्विता, प्रखरता और पैनी दृष्टि का परिचय दिया, वह कालान्तर में सन्तुलित लेखन में बदल गया। काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित होने वाले 'सूरसागर' का भी उन्होंने सफल सम्पादन किया।
वरिष्ठ साहित्यकार आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी का व्यक्तित्व बहुत विराट और सृजन बहुआयामी था। वे कवि, पत्रकार, सम्पादक, निबन्धकार, मीमांसक, आलोचक और प्रशासक रहे। इस प्रकार साहित्य की हर विधा में उनका अप्रतिम योगदान है। उन्होंने आचार्य शुक्ल की सीमाओं को न केवल उद्घाटित किया बल्कि छायावादी काव्य के सन्दर्भ में उनके दृष्टिकोण को भी नवीन साहित्यिक-संवेदना के न मानकर उसकी नयी स्थापना की। अतः छायावादी कविता के शीर्षस्थ आलोचक के रूप में जहां उन्हें मान्यता प्राप्त है वहां मध्यकालीन साहित्य में भी अभूतपूर्व कार्य के लिए जाने जाते हैं। उनकी समीक्षा-दृष्टि के निर्माण में छायावादी काव्य का विशेष
योगदान है। उनकी नूतन कल्पना छवियों, भावों और भाषा-शिल्प की ओर वे विशिष्ट आकृष्ट हुए। महावीर
प्रसाद द्ववेदी के भाषा-परिष्कार सम्बन्धी दृष्टिकोण का महत्त्व मानते हुए उन्होंने प्रेमचन्द के आदर्शवाद को भी
प्रशंस्य कहा। उनका सर्वाधिक महत्व आधुनिक साहित्य के मूल्यांकन के लिए दृष्टि में नवोन्मेष के कारण माना जाता है।
आचार्य शुल के बाद नन्ददुलारे वाजपेयी हिन्दी के समर्थ आलोचक हैं। उन्होंने लिखा है, 'साहित्य का प्रतिमान अनुभूति है।' वे साहित्य-सृजन में अनुभूति की प्रेरणा स्वीकारते हैं। उनके शब्दों में, 'अभिव्यंजना काव्य नहीं है। काव्य अभिव्यंजना से उच्चतर तत्त्व है इसका सीधा सम्बन्ध मानव जगत से है और मानस-वृत्तियों से है,जबकि अभिव्यंजना का सम्बन्ध केवल सौन्दर्यपूर्ण प्रकाशन से है।'
वे आलोचना के संक्रान्ति काल के सेतु थे। उन्होंने संरचनात्मक आलोचना या नयी आलोचना की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। दरअसल उन्हें नयी आलोचना की तलाश थी जिसके संधान वे निरन्तर लीन रहे और 'हिन्दी -साहित्य: बीसवीं शताब्दी', 'आधुनिक साहित्य' तथा 'नया साहित्य, नये प्रश्न' अपनी आलोचनात्मक कृतियों में उन्होंने नयी स्थापनाएँ की हैं। प्रसाद, निराला, पन्त को हिन्दी कवियों की वृहत्त्रयी के रूप में प्रतिष्ठित किया है जो सदैव भावी पीढ़ी को नयी दिशा-दृष्टि देती रहेगी।अस्तु।
संक्षिप्त जीवनवृत्त |
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नाम |
आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी |
जन्म-तिथि |
४ सितम्बर १९०६ ई |
जन्म-स्थान |
गांव-मगरायर,उन्नाव (उ. प्र.) |
पिता |
गोवर्धन लाल वाजपेयी |
माता |
जनक दुलारी |
स्मृति-शेष |
२१ अगस्त १९६७ ई. |
प्रकाशित कृतियाँ |
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जयशंकर प्रसाद (१९३९), हिन्दी साहित्य: बीसवीं शताब्दी (१९४२), आधुनिक हिन्दी-साहित्य (१९५०), महा-कवि सूरदास (१९५३), प्रेमचन्द: साहित्य विवेचन (१९५४), नया साहित्य! : नये प्रश्न (१९५५), राष्ट्रभाषा की कुछ समस्याएं (१९६१), कवि निराला (१९६५), राष्ट्रीय साहित्य नया अन्य निबन्ध (१९६५), प्रकीर्णिका (१९६५), हिन्दी-साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, आधुनिक काव्य: रचना और विचार, नयी कविता (१९७६), कवि सुमित्रानंदन पन्त (१९७६), रस -सिद्धांत: नये सन्दर्भ (१९७७), आधुनिक साहित्य: सृजन और समीक्षा (१९७८), हिन्दी-साहित्य का आधुनिक युग (१९७९), रीति और शैली(१९७९), हिन्दी भाषा का उद्गम और विकास, हिन्दी-साहित्य के विकास की रूपरेखा, हिन्दी मूल और शाखा सम्पादित के अलावा वीर-काव्यकबीर-साहित्य की परख |
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वाजपेयी जी पर केन्द्रित कृति |
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1- नन्ददुलारे वाजपेयी रचनावली-८ खण्ड सम्पा. विजयेंद्र सिंह (२००८) |
2. हिन्दी- साहित्य का इतिहास, सम्पा. डॉ.नगेन्द संस्करण १९७८ नेशनल पब्लि. हाउस, नई दिल्ली
3. बीसवीं सदी: हिन्दी के मानक निबन्ध/ सम्पा. डॉ.राहुल, भावना प्रकाशन, २०९-ए, पटपड़गंज
दिल्ली- ९१
4. सारस्वत साहित्यकार:डॉ.सुन्दरलाल कथूरिया, सम्पा. डॉ.राहुल,गुजरात प्रान्त राष्ट्रभाषा प्रचार
समिति,अहमदाबाद
5. जयशंकर प्रसाद,श्री नन्द दुलारे वाजपेयी, भारती भंडार, इलाहाबाद
6. नया साहित्य और नये प्रश्न, नन्ददुलारे वाजपेयी
अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त; अब तक ७० से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उत्तर रामकथा पर आधारित 'युगांक' (प्रबंधकाव्य) का लोकार्पिण करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ० शंकरदयाल शर्मा ने कहा था- “यह बीसवीं सदी की एक महत्वपूर्ण काव्य-कृति है। इससे भारतीय संस्कृति की पुनर्प्रतिष्ठा होती है और सामाजिक-राष्ट्रीय एकता को बल मिलेगा।”
कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, आलोचना आदि विधाओं में इन्होंने महत्वपूर्ण सृजन किया है।
राहुल जी नमस्ते। आपने आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी जी पर बहुत समृद्ध लेख लिखा है। लेख उनके साहित्यिक योगदान का परिचय बखूबी देता है। आपने उनके सृजन की विशेषता को रोचक ढँग से प्रस्तुत किया है। आपको इस शोधपूर्ण लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सार गर्भित लेख अद्भुत लेखन शैली के साथ प्रस्तुत किया। विशिष्ट छाप आलेख से लग रही कि व्यक्तित्व की गरिमा कितनी ऊँची होगी। प्रेरणास्पद लेखन 👍🏻बधाई हो सर
ReplyDeleteराहुल जी, नमस्ते। आचार्य नंद दुलारे वाजपेयीजी का परिचय और उनके रचना-कर्म को जानकर ज्ञान वृद्धि तो हुई ही और एक बार फिर इस अनूभूति से विस्मित हो गयी कि हमारे साहित्यकार विभिन्न क्षेत्रों में कितनी लगन से कितना सार्थक काम कर गए हैं! वैसे आपका हर आलेख किसी ऐसे आलोचक, निबंधकार को लेकर आता है जिस से हम जैसे हिंदी के छात्र न रहे लोगों की जानकारी में इज़ाफ़ा होता है। आपको इस लेख के लिए बधाई और आभार।
ReplyDeleteराहुल जी आपने आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी जी पर बहुत जानकारीपरक और शोधपूर्ण लेख लिखा है। प्रस्तुत लेख से उनके साहित्यिक योगदान, जीवन वृतांत और सृजनात्मक विशेषताओं को आपने समग्रता के साथ हम पाठक से परिचित कराया है। आपको इस समृद लेख के लिए हार्दिक बधाई।🙏🏻
ReplyDeleteआदरणीय राहुल जी,
ReplyDeleteबहुत समृद्ध और सारगर्भित लेख के द्वारा आपने नंद दुलारे वाजपेई जी के साहित्यिक योगदान और नई आलोचना के विषय में उनके महत्वपूर्ण कार्यों का वर्णन किया है। बधाई और शुभकामनाएँ।