Tuesday, August 16, 2022

सुभद्रा कुमारी चौहान: राष्ट्रीय चेतना की कवयित्री


 

सिंहासन हिल उठे

राजवंशों ने भृकुटी तानी थी

बूढ़े भारत में भी आई

फिर से नई जवानी थी

गुमी हुई आजादी की

कीमत सबने पहचानी थी

दूर फिरंगी को करने की

सबने मन में ठानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुँह

हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वो तो

झांसी वाली रानी थी

देश के बच्चे बच्चे के जुबान पर चढ़ी यह कविता आधुनिक हिंदी कविता में शायद एक ऐसा अकेला वीरगाथा काव्य है जो लोकगीत के समान लोक मानस का अंग बन गया है। यह कविता है हिंदी की सुप्रसिद्ध लेखिका और राष्ट्रीय चेतना की सजग कवयित्री  श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान की। सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में ठाकुर रामनाथ सिंह के घर हुआ। दिन था नागपंचमी का और तारीख थी १६ अगस्त १९०४। उनकी चार बहनें और दो भाई थे। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा प्रेमी थे और उन्हीं की देखरेख में सुभद्रा जी के प्रारंभिक शिक्षा हुई इलाहाबाद के ही  क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल में। छायावाद की प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा इस स्कूल में उनकी जूनियर और सहेली थी। सुभद्रा कुमारी अपनी शिक्षा केवल नवीं कक्षा तक ही प्राप्त कर पाई थीं। १९१९ में उनका विवाह ठाकुर लक्ष्मण सिंह से हो गया था।

वर्ष १९११-१२ की बात है, निहालपुर में ठाकुर रामनाथ सिंह के मकान की छत पर स्त्रियों की एक सभा हो रही थी। ठाकुर साहब की अपनी चार बेटियाँ, दो भतीजे और आसपास की लड़कियाँ मिलाजुला कर कुल १०-१२ लोग थे। बहुत जोशीला भाषण था। स्त्रियों की सजा दशा सुधारने के लिए प्राचीन भारतीय नारियों की गौरवशाली गाथाएँ सुनाई जा रही थीं। सब मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे। सुभद्रा कुमारी चौहान भी उनमें से थीं, ९ वर्ष की बालिका का मन ये सब संजो रहा था। वे भी कहना चाहती थीं कि हम लड़कियां भी पर्दे में न रहना और नीम के पेड़ पर झूलना चाहती हैं। नौ वर्ष की आयु में सुभद्रा जी ने खेल- खेल में नीम के पेड़ पर एक कविता लिखी थी जो बहुत प्रसिद्ध हुई और उनके स्कूल में उनकी प्रसिद्धि का कारण बनी। सन् १९१३ में यह कविता, प्रयाग से निकलने वाली प्रतिष्ठित पत्रिका मर्यादा में 'सुभद्राकुंवरि' के नाम से छपी थी।

जब तक नभ में चंद्रमा तारे

और सूर्य का प्रकाश है ,

हे नीम,

तब तक हमारे देश में

तुम सर्वदा फूलो फलो,

निज वायु शीतल से

पथिक जन का हृदय

शीतल करो।

यह थे मात्र ९ साल की नन्ही सी बालिका के उद्गार। सुभद्रा जी के बड़े भाई राम प्रसाद सिंह और राजबहादुर सिंह, प्यार से जिन्हें वह रज्जू भैया कहती थीं, सुभद्रा जी को प्रतिदिन स्कूल तक छोड़ने जाते थे। उन दिनों बच्चों में सद्गुण विकसित करने और उन्हें अनुशासित करने के लिए उन्हें एक काल्पनिक चरित्र राक्षस गोगा के नाम से डराया जाता था। जैसे झूठ बोलना पाप है, झूठ बोलने से गोगा राक्षस पकड़ लेगा इत्यादि। गोगा राक्षस के अस्तित्व को न ढूंढ पाने के कारण उनका बाल मन बेचैन हो उठा, तब सुभद्रा जी ने एक छोटी सी तुकबंदी कर डाली -

तुम बिन तड़पत सब लोगा

तुम तो हो इस देश के गोगा

इस तरह की तुकबंदियाँ सुभद्रा जी स्कूल से घर जाते समय रिक्शा में बैठकर ही कर लिया करते थीं। उस समय लेखिकाएँ अपने नाम के साथ अपने पति का नाम लगाती थीं जो शायद उन्हें आदर देने का एक तरीका था। सुभद्रा जी के अनुसार उन बड़े नामों में कहीं उनका छोटा सा नाम सुभद्रा गुम न हो जाए, उन्होंने अपने नाम के साथ अपने बड़े भाई का नाम जोड़ते हुए लिखा 'सुभद्रा कुमारी धर्मपत्नी ठाकुर राजबहादुर सिंह' और कॉपी छुपा दी। मगर वह कॉपी मिलने पर यह इन सबके बीच हँसी-ठट्ठा का विषय बन गया। बचपन से ही अन्याय के प्रति विद्रोह और दीन दुखियों के लिए मन में करुणासुभद्रा जी की कविताओं और कहानियों में पल्लवित हुई है। पढ़ाई के अलावा सुभद्रा जी बोलती बहुत अच्छा थीं। वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में अपने स्कूल की तरफ से भाग लेती थीं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कन्वोकेशन के समय क्रॉस्थवेट स्कूल से सिनेटहॉल में एक समारोह हुआ, जिसमें दो ही लोगों का भाषण हुआ, एक प्रिंसिपल साहिबा का और दूसरा सुभद्रा कुमारी चौहान का।

विवाह सन् १९१६ में सुभद्रा जी का विवाह उनके भाई राजप्रसाद सिंह उर्फ रज्जू भैया ने अपने दोस्त और सहपाठी लक्ष्मण सिंह से करवाया, जिनका स्वभाव उन्हें अपनई विद्रोहिणी बहन के तेजस्वी स्वभाव के अनुरूप लगा। लक्ष्मण सिंह के पिता की असमय मृत्यु के कारण उनकी माँ उन्हें उच्च शिक्षा नहीं दिला पाईं। किंतु उनकी पढ़ने की अदम्य लालसा को देखते हुए उनके अभिभावक स्वरूप माखनलाल चतुर्वेदी के कहने से वे आगरा पहुँचे। वहाँ कभी ट्यूशन करके, कभी गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र प्रताप के लिए लिखकर अपना खर्च चलाते थे। आगे की पढ़ाई के लिए वे इलाहाबाद गए। लक्ष्मण सिंह में देशभक्ति और साहित्य प्रेम के भरपूर गुण थे। १९१६ में हुई इस शादी में नववधु सुभद्रा ने पर्दा नहीं किया था। नवविवाहित सुभद्रा का यह कदम उस समय के लिए एक अत्यंत विद्रोही किंतु विकासशील कदम था।  शादी के बाद लक्ष्मण सिंह सुभद्रा को लेकर जब खंडवा आए तो उनके जेठ डंडा लेके द्वार पर खड़े हो गए कि बहू पर्दा करेगी तभी अंदर जाएगी। नव वधू के रूप में छोटी सी सुभद्रा ने नए घर में इस अद्भुत स्वागत के साथ प्रवेश किया लेकिन पति के रूप में लक्ष्मणसिंह अत्यंत उदार विचारों वाले थे। दोनों अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहते थे, लेकिन गांधीजी के आह्वान पर १९२०-२१ में अपने आप को उन्होंने देश को समर्पित कर दिया।

स्वतंत्रता संग्राम - सन् १९२१ में ही दोनों ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। १९२२ का 'जबलपुर झंडा सत्याग्रह' देश का पहला सत्याग्रह था और सुभद्रा देश की प्रथम महिला के तौर पर इसमें शामिल थीं। लक्ष्मण सिंह चौहान और माखनलाल चतुर्वेदी उनके पथ प्रदर्शक थे। वे सत्याग्रह में गिरफ्तार होकर जेल जाने वाली पहली महिला थीं। जिस समय  स्त्रियों को घर से निकलने की पूरी आजादी भी नहीं थी, सुभद्रा जी ने स्वतंत्रता के लिए जेल जाकर देश की महिलाओं के सामने एक मिसाल कायम की थी। १९२०-२१ में सुभद्रा और लक्ष्मण सिंह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने। उन्होंने नागपुर कांग्रेस में भाग लिया और घर-घर कांग्रेस का संदेश पहुंचाया। सुभद्रा जी सादगी पसंद थीं और सफेद खादी की बिना किनारे वाली धोती पहनती थी। गहनों और कपड़ों का बहुत शौक होते हुए भी वे चूड़ी और बिंदी का प्रयोग नहीं करते थीं। उनकी सादी भेषभूषा देखकर एक बार बापू ने सुभद्रा जी से पूछा - "बेन, तुम्हारा ब्याह हो गया?"

सुभद्रा ने कहा "हाँ" और बताया कि मेरे पति भी साथ में हैं।

यह सुनकर बापू ने उन्हें प्यार से डाँटा, "तो तुम्हारे माथे पर सिंदूर क्यों नहीं है और चूड़ियाँ क्यों नहीं पहनी हैं ? जाओ, कल किनारे वाली साड़ी पहन कर आना।"

सुभद्रा जी का सहज प्रेम और निश्छल स्वभाव सब पर जादू कर देता था।सबको आत्मीय बनाना उनका विशेष गुण था। महादेवी वर्मा ने, जो उनकी जूनियर थीं, अपने प्रसंग में लिखा है कि जब भी कभी यात्रा करते समय सुभद्रा इलाहाबाद जातीं, तो एक आध दिन के लिए ही सही, महादेवी वर्मा के घर अवश्य जाती थीं। यदि महादेवी जी वहाँ नहीं भी होतीं, तो भी सुभद्रा आराम से बैठकर उनके घर में काम करने वाली भक्तिन से बातें करती रहतीं। ऐसी आत्मीयता थी उनके भीतर। महादेवी को सुभद्रा जी की ये सरलता मोह लेती किंतु सुभद्रा जी के लिए एक आम बात थी। अपने समकालीन कवियों में सुभद्रा निराला जी के फक्कड़पन को अच्छी तरह जानती थीं। निराला जयंती पर एक बार आयोजकों ने जब निरालाजी को बेशकीमती कपड़े उपहार दिए तो सुभद्रा जी का कहना था कि इससे अच्छा होता कि दो चार जोड़ी बनवा देते। और ये बात सच्ची हुई क्योंकि कुछ दिन बाद निराला फिर से बिना कुर्ते और चप्पल के घूमने लगे थे। उनसे जो कुछ माँगता था, वे उसे दे देते थे।माखनलालचतुर्वेदी और बालकृष्ण शर्मा नवीन के साथ उनका बहन का संबंध था। सुभद्रा जी की आत्मीयता केवल परिवार या दोस्तों तक सीमित नहीं थी, घर के नौकर चाकर ,गरीब बच्चों सभी से उनका लगाव था और यथासंभव वे सब की मदद भी करती थीं।

सुभद्रा जी साहित्य और राजनीति दोनों में सक्रिय रहीं और दोनों में ही उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। वे अखिल भारतीय कांग्रेस की सदस्या और मध्य भारत विधानसभा की एमएलए भी रहीं।

साहित्य- सुभद्रा कुमारी चौहान एक विकासकालीन लेखिका थीं। उन्होंने लगभग ८८ कविताएँ और ४६ लघु कहानियाँ लिखीं। उनकी कविताओं में राष्ट्रीयता का स्वर प्रखरता के साथ गूँजता था और स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार कारावास की यातना सहने के बाद उन्होंने अपनी अनुभूतियों को कहानियों में भी व्यक्त किया है जो उनकी रचनात्मकता को समग्रता प्रदान करती हैं। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय आंदोलन, स्त्रियों की स्वाधीनता, जातियों का उत्थान, रुढ़िवादिता का विरोध आदि का वर्णन है। अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाना उनकी कहानियों के माध्यम से दिखता है। उनका मानना था कि जब तक नारी अपने कर्तव्यों के साथ-साथ अपने अधिकारों के प्रति भी सचेत नहीं होती, समाज आगे नहीं बढ़ेगा। नारियों को शिक्षित होना चाहिए। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी नारियों को आगे आने के लिए उद्बोधित किया।सबल पुरुष यदि भीरु बने,

तो हमको दे वरदान सखी

अबलाएं उठ पड़ें देश में,

करें युद्ध घमासान सखी

पंद्रह कोटि असहयोगिनियॉं,

दहला दे ब्रह्मांड सखी

भारत लक्ष्मी लौटाने को,

रच दे लंका कांड सखी

झांसी की रानी कविता हिंदी साहित्य में सबसे ज्यादा पढ़ी और गाई जाने वाली कविताओं में से एक है। इसमें १८५७ की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई की भागीदारी के बारे में बताया गया है कैसे उन्होंने अंग्रेजों से मुकाबला किया ।

रानी गयी सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी

मिला तेज से तेज

तेज की बस सच्ची अधिकारी थी

अभी उम्र कुल तेईस की थी

मनुज नहीं अवतारी थी

हम को जीवित करने आई

बन स्वतंत्रता नारी थी

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी।

जलियांवाला बाग १९१८ के नृशंस हत्याकांड के बाद उन्होंने जलियांवाला बाग में बसंत नामक की कविता लिखी -

परिमल हीन पराग दाग़ सा बना पड़ा है

हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है

ओ प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना

यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना

अहिंसा का आदर्श और अनुशासन का बंधन मन को उत्साह को मर्यादित रखता था। सुभद्रा जी अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकें इसलिए मातृभाषा का प्रयोग करती थीं।

तू होगी आधार देश की

पार्लियामेंट बन जाने में

तू होगी सुख सार देश के

उजड़े क्षेत्र बसाने में

 उनकी कविताओं में देशभक्ति के अलावा वात्सल्य भाव, शैशव, प्रेम भाव सभी समाहित थे

मैंने पूछा यह क्या लाई बोल उठीं-'माँ काओ'

हुआ प्रफुल्लित ह्रदय खुशी से मैंने कहा –‘तुम्हीं खाओ

 कविताओं के अलावा सुभद्रा जी को कहानियों में भी महारथ हासिल थी। उन्होंने करीब १५  कहानियाँ लिखीं जो कि विभिन्न विषयों जैसे नारी जीवन की विभिन्न समस्याओं, मानव स्वभाव के विभिन्न आयामों और देश प्रेम पर आधारित थीं। अधिकतर कहानियों में नारियों के विभिन्न रूपों को  अंकित किया है। सबसे पहले नारी का पवित्र मांगलिक रूप रखा है । माँ उदारमना है, बेटी वात्सल्यमयी है, प्रेमिका के रूप में नारी अपने पति/प्रेमी के लिए पथप्रदर्शिका है। इनकी कहानियाँ अधिकतर मध्यम वर्गीय परिवार का चित्रण हैं। समाज के कुरीतियों के प्रति भी सुभद्रा जी का व्यवहार, कथनी और करनी एक सा ही था। जैसा वे लिखती थी वैसा वे करती भी थीं। जातिवाद और ऊँच नीच के भेदभाव को न मानने वाली सुभद्रा  जब एमएलए बनीं तो वे अपने साथ के हरिजन एमएलए को घर आने पर बड़े प्रेम से आग्रह करके भोजन खिलाती थीं। लोग उनके प्रेम भरे व्यवहार से गदगद होकर नतमस्तक हो जाते थे।

यहाँ तक कि उन्होंने अपनी बेटी सुधा का भी अंतर्जातीय विवाह कथाकार प्रेमचंद के बेटे अमृतराय से किया। यह उस समय के लिए एक बेहद साहसिक और चुनौतियों भरा कदम था।

सम्मान और पुरस्कार-

१ सेकसरिया पारितोषिक अवॉर्ड (५००रुपए)१९३१ में मुकुल कविता संग्रह के लिए

२ सेकसरिया पारितोषिकअवॉर्ड  १९३२ में बिखरे मोती कहानी संग्रह के लिए

३ १९७६ में भारतीय डाक ने २५ पैसे का डाक टिकट उनके नाम से जारी किया

४ भारतीय तटरक्षक सेना ने २८ अप्रैल २००६ में नवीन नियुक्त तट रक्षक जहाज को उनका नाम दिया

वे कविता लिखती नहीं, जीती थीं। १९४७ में देश स्वाधीन हो गया था  परंतु स्वाधीनता कितना बड़ा उत्तरदायित्व लाती है यह न तो  राजनेताओं ने समझा ना जनता ने। देश विभाजित हो गया। सुभद्रा जी और लक्ष्मण सिंह विस्थापित लोगों के पुनर्वास में अपना भरपूर सहयोग दे रहे थे ।

गिरते स्वास्थ्य के कारण या अपने खंडित सपनों की या देश की विक्षुब्ध दशा देखकर या सब मिलाकर अंतिम दिनों में एक नई चीज़ सामने आई थी,वो थी कभी कभी निराशा की बातें करना। हो सकता है यह निराशा उनके जीवन के अवसान का पूर्वाभास हो। १५ फरवरी १९४८ में मात्र ४३ वर्ष की आयु में एक कार दुर्घटना में उनका आकस्मिक निधन हो गया। उनकी मृत्यु पर माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा कि सुभद्रा जी का चल बसना प्रकृति के पृष्ठ पर ऐसा लगता है मानो नर्मदा की धारा के बिना तट के पुण्य तीर्थों के सारे घाट अपना अर्थ और उपयोग खो बैठे हैं।

जबलपुर में साहित्यिक पत्रिका प्रहरी ने उनकी मृत्यु पर लोगों से चंदा इकट्ठा करके  मुख्य चौराहे पर उनकी मूर्ति स्थापित की और उसे अनावृत किया महादेवी वर्मा ने।महादेवी ने कहा ,'इस प्रकार का व्यक्तित्व बहुत कम इस संसार में जन्म लेता है जो केवल अपने लिए नहीं अपने समाज के लिए जीता है।'

सुभद्रा कुमारी चौहान का संक्षिप्त जीवन परिचय

जन्म

१६अगस्त १९०४, इलाहाबाद

नागपंचमी का दिन

मृत्यु

१५फरवरी १९४८,सिवनी

बसंत पंचमी

कार्यक्षेत्र

राष्ट्रीय चेतना की कवयित्री,लेखिका, स्वतंत्रता सेनानी

 

पिता

ठाकुर रामनाथ सिंह चौहान

 

पति

ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौहान

देशभक्त साहित्य प्रेमी, स्वतंत्रता सेनानी

संतान

सुधाचौहान

अशोक चौहान

अजय चौहान

ममता चौहान

विजय चौहान

 

साहित्य संकलन

कविता संग्रह

-मुकुल

-त्रिधारा

 

कहानी संग्रह

-बिखरे मोती

-उन्मादिनी

-सीधे-साधे चित्र

 

बाल साहित्य

-झांसी की रानी

-कदंब का पेड़

-सभा का खेल

 

अन्य रचनाएं

-अनोखा दान

-आराधना

-जलियांवालाबाग में बसंत

-कोयल

-उपेक्षा

-ठुकरा दो या प्यार करो इत्यादि

 

 

सम्मान और पुरस्कार

सेकसरिया पारितोषिक (१९३१)(५००रुपए) कविता संग्रह-मुकुल 

 

 

सेकसरियापारितोषिक (१९३२) कहानीसंग्रह -बिखरे मोती

 

भारतीय डाक विभाग ने १९७६में सुभद्रा जी केनाम से २५ पैसे का टिकट जारी किया

 

 

भारतीय तटरक्षकसेनाने २८ अप्रैल २००६ में एक नए नियुक्ततटरक्षकजहाजकोसुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया

 

 संदर्भ :

 

·         https://www.hindisarkariresult.com/suhadrakumari-Chauhan

·         https://archive.org/search.php?query=subject%3A%22subhadra+Kumari+chauhan%22

·         https://hi.m.wikipedia.org>wiki

·         https://www.bharatdarshan.co.nz/author-profile-amp/47/subhadrakumari-chauhan.html

·         Consortium for educational communication, New Delhi by Ruchira Dhingra

·         Bhartiya Shahitya ke Nirmata- monograph on Subhadra Kumari Chauhan- Sahitya

 लेखक परिचय : अचला झा

 


कोलकाता से मत्स्यविज्ञान में स्नातकोत्तर हैं, स्वतन्त्र लेखन में संलग्न हैं। कविता की पाठशाला, साहित्यकार तिथिवार से पाठक  रूप में जुड़ी हैं।

 


5 comments:

  1. आदरणीया कवयित्री कीर्तिशेष सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी साहित्य की पहचान हैं। थोड़ी जगह में उनके बारे में इतनी महत्वपूर्ण जानकारियों की प्रविष्टि प्रशंसनीय है। बधाई।

    शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'
    मेरठ

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  2. अचला जी नमस्ते। सुभद्रा कुमारी चौहान जी पर आपका लिखा लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा। हम लोगों ने बचपन से ही पाठ्यक्रम में उनकी कविताओं को खूब पढ़ा है। आपके लेख ने पुनः उनकी कविताओं से जुड़ने का अवसर दिया। लेख में बहुत रोचक ढँग से आपने उनका साहित्य एवं जीवन वर्णित किया। आपको इस रोचक लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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  3. नमस्ते, अचला जी। सुभद्रा कुमारी चौहान पर आपने बढ़िया आलेख लिखा है। उनके जीवन और कृतित्व पर विस्तृत जानकारी को रोचक प्रस्तुति दी है।काव्य उद्धरण सुंदर लगे। बधाई। 💐💐
    सुभद्रा जी का जीवन बड़ा प्रेरक है। उस समय में घूँघट नहीं लेना, कविता रचना, स्वाधीनता संग्राम में भाग लेना, जेल जाना, यह तो नारी स्वातंत्र्य के लिए बहुत बड़े काम हैं। और उनके साहस और मूल्यों के प्रति उनका विश्वास जताते हैं। हम सब हर आयु में “खूब लड़ी मर्दानी” गाते रहे हैं और आज भी गा रहे हैं। आभारी देश की ओर से इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्या होगी। 💐💐

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  4. अचला जी, आप ने सुभद्रा कुमारी चौहान के जीवन और कृतित्व की सुंदर प्रस्तुति दी। बहुत कुछ नया जानने और नए प्रकाश में जानने को मिला। यूँ ही लिखती रहिए, ख़ुद को और हमें समृद्ध करती रहिए। आपको इस भेंट के लिए बधाई और आभार।

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  5. कार्तिक चौहानAugust 18, 2022 at 1:25 PM

    आप का यह लेख पढ़ कर मन बहुत प्रसन्न हुआ। मैं तो इस सब से वाकिफ हूं, पर आप ने यह सब बातें सुभद्रा जी के बारे मैं, और उनके साहित्य को लोगों के बीच में लाने के लिए जो प्रयास किया वो बहुत अच्छा है। मैं यह भी बात दूँ कि वो मेरी सगी दादी थीं ।

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