अमर गोस्वामी ने परीकथाएँ लिखीं, ऐसी परीकथाएँ जो आज के बदलते समय के अनुसार ढली हैं । ऐसी परीकथाएँ जिनसे हमें सीखना चाहिए कि हमें बच्चों के लिए किस तरह की परीकथाएँ लिखनी चाहिए, जिनमें परीकथाओं वाली मोहिनी भी हो और एक नई सोच भी। लेकिन वह बाल-साहित्य लेखन की मोहिनी से इतर और भी बहुत कुछ थे- वे एक प्रतिष्ठित पत्रकार थे, प्राध्यापक थे, दो महाविद्यालयों में अध्यापक रहे और अपने लेखन के माध्यम से उन्होंने सामाजिक बुराइयों को प्रतिबिंबित करके साहित्य में नए युग की शुरुआत की। उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर, तस्लीमा नसरीन, ताराशंकर बंदोपाध्याय, रामनाथ रे, विभूतिभूषण बंदोपाध्याय, नज़रूल इस्लाम, सत्यजीत रे और कई अन्य प्रमुख लेखकों की 70 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद किया। उनका मानना था कि "पाठकों को भाषा की कमी के कारण महान कृतियों को पढ़ने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए और वे बंगाली लेखकों की कुछ रचनाओं का हिंदी में अनुवाद करके अपने हिस्से का योगदान दे रहे हैं । ” वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाश मनु ने अमर गोस्वामी के व्यक्तित्व के संबंध में लिखा है – वे एक विलक्षण अनुवादक थे और स्वस्थ साहित्यिक-समाज चाहते थे । साहित्यकारों से मिलने का बहुत शौक था उन्हें । वह चाहते थे कि सिर्फ साहित्यकार ही नहीं, उनके परिवार भी आपस में मिलें । बहुत चाव से साहित्यकारों से मिलते, उन्हें अपने निवास पर आमंत्रित करते, उनके चित्र खींचते ।
अमर गोस्वामी ने साहित्यिक सभाओं के आयोजन के उद्देश्य से इलाहाबाद में साहित्यिक संस्था ‘वैचारिकी’ की स्थापना की । इसके साथ ही वे मनोरमा, गंगा, संडे ऑब्ज़र्वर, कथांतर, विकल्प, आगामीकल, अक्षर भारत, भारतीय ज्ञानपीठ जैसी देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के संपादन से लंबे समय तक जुड़े रहे ।
अविभाजित भारत के मुलतान शहर में २८ नवम्बर, १९४५ को बांगला भाषी ब्राह्मण परिवार में श्री पंचानन गोस्वामी व श्रीमती आशारानी गोस्वामी के घर जन्मे अमर गोस्वामी वह विलक्षण प्रतिभा थे जिन्होंने सदा ‘पर-सुखाय’ लिखा, स्वांतः सुखाय नहीं । उनकी लेखनी में स्याही बाल्यकाल में ही भर गई थी। अमर गोस्वामी मात्र दो वर्ष के थे, तब उनका परिवार देश के बंटवारे के दौरान मुल्तान से उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर नगर में आकर बस गया। बाल्यकाल मिर्जापुर में ही बीता जहाँ अपने पैतृक घर में उन्हें सरस्वती पत्रिका के विभिन्न अंकों का एक ज़खीरा मिला जिसने उनके लिए साहित्य की दुनिया का गवाक्ष खोल दिया। सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित साहित्यिक आलेखों से वह बहुत प्रभावित हुए और संभवतः इसी का प्रभाव था कि बहुत कम उम्र में ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। स्कूल की वाद-विवाद टीम के नियमित सदस्यों में वह हमेशा शामिल रहे और कई वाद-विवाद एवं लेखन प्रतियोगिताएँ जीतीं। किशोरावस्था से आरंभ हुए कविता लेखन को रोटरी क्लब, मिर्जापुर द्वारा आयोजित सामूहिक सभा में कविता प्रस्तुति से बल मिला।
मिर्जापुर से स्कूली शिक्षा पूरी कर उच्चतर शिक्षा के लिए वे इलाहाबाद चले गए और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वाणिज्य की शिक्षा ग्रहण की। इलाहाबाद को उस समय भारत की साहित्यिक राजधानी माना जाता था। अमर गोस्वामी इलाहबाद में सुमित्रानंदन पंत, शैलेश मटियानी, नरेश मेहता, महादेवी वर्मा, इलाचंद जोशी और हिंदी साहित्य के कई अन्य दिग्गजों से जुड़े और देखते ही देखते साहित्यिक गोष्ठियों की जान बन गए । उस समय के दौरान उन्होंने कई कहानियाँ लिखीं, जो ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित हुईं और पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं । उन्होंने एक शाब्दिक पत्रिका "कथांतर" भी प्रकाशित की और विकल्प (स्वर्गीय श्री शैलेश मटियानी की एक पत्रिका), आगामीकाल (स्वर्गीय श्री नरेश मेहता की एक पत्रिका) मनोरमा (मित्र प्रकाशन) और संपा (बच्चों की पत्रिका) से जुड़े।
इलाहबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा पूरी होने के पश्चात अमर गोस्वामी जी ने भरवारी और शाहडोल के कॉलेजों में सहायक प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। इसके बाद उन्होंने 'मनोरमा' में बतौर सहायक संपादक कार्य किया। उन दिनों कथाकार अमरकांत इस पत्रिका के संपादक थे। लगभग 6 वर्ष तक मनोरमा का संपादन करने के बाद अमर गोस्वामी नोएडा आ गए। नोएडा आकर वह कमलेश्वर जी की पत्रिका ‘गंगा’ के उप-संपादक बने। दिल्ली राज्यक्षेत्र में आने के बाद उन्होंने अपनी लेखन शैली में बदलाव किया और महानगर में आम आदमी और मध्यम वर्ग के समाज का जीवन, समस्याएँ और संघर्ष पर कलम चलाई । उन्होंने आम आदमी के संघर्ष को उजागर करने के लिए अपनी मेधा का इस्तेमाल किया और कुछ उत्कृष्ट कृतियों जैसे कलाकर, हरप राम गडप, बूजो बहादुर, जूता, अपना उत्सव, गोविंद गाथा की रचना की।
उनकी लघुकथाओं का पहला संग्रह ‘हिमायती’ 1986 में प्रकाशित हुआ था, इसके बाद उनकी 25 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें लघु कथाओं का संग्रह, उपन्यास, बच्चों की किताबें और विशेष रूप से प्रौढ़ शिक्षा पर राष्ट्रीय पुस्तक ट्रस्ट अभियान के लिए लिखी गई पुस्तकें शामिल हैं। अमर गोस्वामी पाठ्यक्रम तैयार करने और हिंदी विषय के लिए कहानियों के चयन पर आयोजित एनसीईआरटी कार्यशालाओं के विशेषज्ञ पैनल का भी हिस्सा रहे । उनकी कई कहानियाँ बच्चों की पाठ्यपुस्तकों में भी शामिल हैं।
अमर गोस्वामी जी व्यंग्य लिखने में निपुण थे और आस-पास होने वाली कुछ सामान्य घटनाओं पर प्रकाश डालते रहे। उनके व्यंग्य खूब धारदार हैं । “दलपतित का सौभाग्य लाभ” नामक व्यंग्य में वह कहते हैं - अपने देश की शस्य-श्यामला माटी में आजादी का यूरिया पड़ते ही जो तीन चीजें खूब फलने-फूलने लगी हैं, वे हैं, गुंडे, दलाल और नेता ।” वर्षों पहले लिखी गई ये पंक्तियाँ आज के समाज की सच्चाई हैं। उनका लेखन आम आदमी की समस्याओं, महानगरों के सुपर-फास्ट जीवन, मानव संबंध, भ्रष्टाचार, सामाजिक भेदभाव, गरीबी और सरकारी नीतियों पर केंद्रित है और उन्होंने मानव की प्रकृति के विभिन्न पहलुओं पर भी ध्यान केंद्रित किया । वह अपने लेखन से लोगों को जोड़ने में सक्षम थे।
अमर गोस्वामी की कहानियाँ एक अलग जायके की कहानियाँ हैं। प्रसिद्ध लेखक व चित्रकार अशोक भौमिक का कहना है कि अमर जी की कहानियाँ बार-बार पाठक को एक अनहद ऊँचाई पर ले जाती हैं जहाँ पहुँचकर त्रासदी और कौतुक के बीच का फेंस टूटकर बिखर जाता है और दर्द की चुभन से पाठक ठहाका लगाकर हँसते नजर आते हैं। सिर्फ कहानी में ही नहीं, किसी भी कला विधा में ऐसे शिल्प को पाना अत्यंत कठिन काम है। कथाकार का यह शिल्प न केवल उन्हें विशिष्ट बनाता है, बल्कि अपने युग के कथाकार होने की सार्थकता को भी चिह्णित करता है । रवींद्रनाथ त्यागी जी कहते हैं कि अमर गोस्वामी को मनुष्य के मन को परत-दर-परत पढ़ने की शक्ति प्राप्त है और उनकी कलम कभी-कभी जादूगर का डंडा हो जाती है। वे कहानी कहते जाते हैं और आप उनके साथ बहते जाते हैं । वास्तव में अमर गोस्वामी की कहानियों में कहानी के पात्र नहीं, कथाकार का अनुभव बोलता है, जो हमारे समाज का ही अनुभव है । आलोचक राकेश मिश्र अमर गोस्वामी की कहानियों के वैशिष्ट्य को रेखांकित करते हुए लिखते हैं- इन कहानियों को पढ़कर हम चौंकते नहीं, एक गहरा उच्छ्वास भर लेते हैं और होंठ जबरन तिरछे हो जाते हैं। हम अपनी मुस्कान को लेखक की कटाक्ष भरी मुस्कान से मिलाए रहते हैं और खत्म होने पर बुदबुदाते हैं— 'मान गए गुरु, कहानी ऐसे भी लिखी जा सकती है ।’ प्रकाश मनु के अनुसार अमर गोस्वामी समकालीन दौर के उन चंद कहानीकारों में से हैं, जिन्होंने अपना मुहावरा पा लिया है। हिंदी कहानी में जो सहज रूप से बहनेवाली किंचित् लोकप्रिय धारा है, उसमें अमर गोस्वामी का भी योगदान है।
अमर गोस्वामी ने दो उपन्यास भी लिखे जिनमें से सिर्फ ‘क्या दौर में हमसफ़र’ ही प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास कई पात्रों को कास्ट करता है और सभी पात्रों को खूबसूरती से विकसित करता है। इस उपन्यास का सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली चरित्र अनन्या है जो चमकते भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक है। बाल साहित्य के अंतर्गत आपकी कहानियों की कुल सोलह पुस्तकें प्रकाशित हुईं जिनमें से अधिकांश के अनुवाद अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में हुए हैं । उनके बाल साहित्य की विशद समीक्षा करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाश मनु जी लिखते हैं – “उनकी ज्यादातर बाल कहानियों में संवेदनशीलता और नई सोच है तो साथ ही हास्य की ऐसी मीठी गुदगुदी भी कि अकेले पढ़ते-पढ़ते भी आप हँसने लगते हैं । छोटे बच्चों के लिए अमर जी ने भोलेपन और नन्हीं –नन्हीं शरारतों से गुदगुदाती शिशुकथाएँ लिखीं । शिशुओं के लिए खिलंदड़ेपन के साथ एकदम नए, दिलचस्प अंदाज में कहानियाँ लिखकर अमर जी ने बाल साहित्य को एक ऊँचाई पर पहुँचाया । 'भालू का बच्चा’ और 'नाव चली’ अमर गोस्वामी की दो ऐसी छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये नन्हें -मुन्ने शिशुओं के लिए लिखी नटखटपन से सराबोर कर देने वाली कहानियाँ है जिनमें हलकी-सी, प्यारी-सी सीख भी है । उनकी परीकथाएँ, पारंपरिक परीकथाओं की लीक से हटकर अपने लिए एक नई ही जमीन खोजती हैं, इसीलिए बाल-पाठकों को खासा रिझाती हैं । ये सुनी-सुनाई परीकथाओं से एकदम अलग ढंग की परीकथाएँ हैं, जिनमें नए समय की दस्तकें हैं और आधुनिकता का स्पर्श है। उन्होंने बहुत-सी कहानियाँ पशु-पक्षियों को लेकर लिखीं, वे अपनी कहानियों के पात्रों को, चाहे वह कोई मामूली-सी चिड़िया या मछली ही क्यों न हो, एक ऐसा व्यक्तित्व दे देते हैं कि हर बच्चे को उसकी बोली और कार्यकलापों में अपनी चंचलता, अपनी तस्वीर नजर आने लगती है । बाल उपन्यास 'शाबाश मुन्नू’ अनोखा है जो मनोरम कल्पना, कौतुक और फंतासी से भरपूर है, जिसे पढ़ते हुए कदम-कदम पर लेखक की उस्तादाना कला के स्पर्श को महसूस किया जा सकता है। अमर गोस्वामी की कथा-शैली में हास्य-विनोद की मनोरम छटाएँ बीच-बीच में खासा मनोरंजन करती चलती हैं । इस उपन्यास में लोककथाओं वाली शैली को ही एक नया अंदाज देकर अपनाया गया है।
“बच्चों के लिए जो कुछ उन्होंने लिखा, वही खुद में इतना दिलचस्प और जिंदादिली से लबरेज है कि उनके कारण अमर जी को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे और अपनी बाल कहानियों के बीच-बीच में से झाँकते हुए, अपनी महीन मोहिनी मुसकान के साथ बताते रहेंगे कि असल में मनु जी, यह तो वह खेल है जो मैंने मटियानी जी सरीखे बड़े कद के साहित्यकारों के सान्निध्य में रहकर सीखा है। खेल...! यानी खेल-खेल में बड़ी बात कह देना और थोड़े ही शब्दों में रचना को असाधारण और स्मरणीय बना देना। बेशक, इसमें बांग्ला के उन समर्थ महारथियों के आशीर्वाद की छाया भी रही होगी, जिनका अमर जी ने बेहद जिंदादिली से अनुवाद करके एक साथ बांग्ला और हिंदी की सेवा की”।
हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अमर गोस्वामी का योगदान अविस्मरणीय है ।
संदर्भ –
बाल कहानियों का अनोखा जादूगर - अमर गोस्वामी / प्रकाश मनु https://archive.is/20130224073805/http://www.aparajita.org/read_more.php?id=601&position=1&day=5#selection-257.0-324.0
अमर गोस्वामी जी के पुत्र श्री रूप गोस्वामी जी और वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाश मनु जी से चर्चा
लेखक परिचय :
भावना सक्सैना 28 वर्ष से शिक्षण, अनुवाद और लेखन से जुड़ी हैं। चार पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें एक पुस्तक सूरीनाम में हिंदुस्तानी दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम है। एक कहानी संग्रह 'नीली तितली' व एक हाइकु संग्रह 'काँच-सा मन' है। हाल ही में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से 'सूरनामी हिंदी-हिंदी का विश्व फ़लक' प्रकाशित। कई पुस्तकों का सम्पादन भी किया है व अनेक संस्थाओं से सम्मानित हैं। नवंबर 2008 से जून 2012 तक भारत के राजदूतावास, पारामारिबो, सूरीनाम में अताशे पद पर रहकर हिंदी का प्रचार-प्रसार किया। संप्रति भारत सरकार के राजभाषा विभाग में कार्यरत हैं।
ईमेल – bhawnasaxena@hotmail.com
साहित्यकार तिथिवार का हृदय से आभार इस लेख को प्रकाशित करने के लिये। आदरणीय अमर गोस्वामी जी के इतने विशद योगदान के बावजूद काफी कम लिखा गया था उनपर पुस्तकालय जाने व खोजने का समय व अवसर न थे। आदरणीय रूप गोस्वामीजी ( अमर गोस्वामीजी के पुत्र) और वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाश मनु जी की सहायता के बिना यह आलेख सम्भव न हो पाता। मैं इन दोनों की हृदय से आभारी हूँ।
ReplyDeleteसादर नमन सहित
भावना सक्सैना
धन्यवाद भावना जी, आपका आभार मेरे आदरणीय पिताजी अमर गोस्वामी के परिचय को संछिप्त मे प्रस्तुत करने के लिये। रूप गोस्वामी
Deleteसरल, सहज भाषा में आपने अमर गोस्वामी जी का परिचय करवाया । मुझे ऐसा लगता है कि यदि इन साहित्यकारों की जानकारी प्राप्त करने के लिए पुन: जन्म लेना होगा ।
ReplyDeleteभावना जी नमस्ते। आपका लिखा एक और बढ़िया लेख पढ़ने को मिला। लेख जानकारी भरा और रोचक है। आपने अमर गोस्वामी जी के साहित्य से बखूबी परिचित कराया। उनका साहित्य सृजन बहुत विस्तृत है। आपको इस महत्वपूर्ण लेख के लिए हार्दिक बधाई।
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