जीवन कथा:
मालती जोशी का जन्म तत्कालीन हैदराबाद रियासत के औरंगाबाद शहर (जो आजकल महाराष्ट्र के अंतर्गत एक ज़िला है) में ४ जून १९३४ को हुआ। उनके पिता श्री कृष्णराव दिघे पुरानी ग्वालियर रियासत में जज थे। स्थानांतरणों के कारण छोटे-छोटे कस्बों में बचपन बीता। एक जगह टिक कर नहीं रह पाने का खामियाज़ा यह रहा कि विधिवत् किसी एक विद्यालय में पढ़ना न हो सका – कभी स्कूल, कभी प्राइवेट करते हुए दसवीं ऐसे ही निकल गई। किन्तु इन तबादलों से बच्चों (चार बहनें और तीन भाई) की पढ़ाई बाधित न हो, इस बात का ख़ास ख़याल रखा गया। एक महाराष्ट्रियन ब्राह्मण परिवार, उसपर पिता संस्कृत, अंग्रेज़ी और मराठी के विद्वान् – शिक्षा और संस्कार तो स्वाभाविक रूप से जीवन में शामिल था। सुदूर देहातों में रहने के बावजूद घर पर पत्र-पत्रिकाओं का आगमन सुनिश्चित था। उस ज़माने में भी माँ सरला देवी के लिए मराठी की पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं। माता-पिता का पुस्तक प्रेम बच्चों में आना स्वाभाविक था, सो बड़ी छोटी उम्र से मालती को पुस्तकों से प्रेम हो गया। हिन्दी प्रान्त में रहते हुए वे स्वतः ही हिन्दी में सहज होती गयीं और अपने मन के भाव कविताओं और गीतों के रूप में काग़ज़ों पर सजाने लगीं। उनकी लेखनी में कुछ ख़ास बात है, इस बात का एहसास उन्हें स्कूल के ज़माने से ही था जब उनके लिखे निबन्धों को मानक बताकर शिक्षक स्वयं पूरी कक्षा के सामने उनका पाठ करते थे। १९४८ में गाँधी की हत्या से आहत मालती ने कई कविताएँ लिखीं जिन्हें उनकी छोटी उम्र को देखते हुए काफ़ी सराहना मिली। स्कूल में मिला यह प्रोत्साहन कॉलेज में पल्लवित हुआ और वे कवि-सम्मेलनों में अपनी कविताओं और गीतों का पाठ करने लगीं। अबतक यह परिवार इंदौर में स्थायी रूप से बस चुका था। इंदौर के गवर्नमेंट होल्कर कॉलेज से हिन्दी, अंग्रेज़ी और इतिहास से बीए करने के बाद वे अंग्रेज़ी से एम.ए. के लिए इच्छुक थीं जब ‘शिवमंगल सिंह सुमन’ उनके कॉलेज में हिन्दी पढ़ाने आए और उनसे पढ़ने की लालसा में मालती ने अंग्रेज़ी का मोह त्याग हिन्दी साहित्य ले लिया। यह उनके जीवन का एक निर्णायक मोड़ था। यह वो दौर था जब उनके मन के भाव गीत बनकर होठों पर आ जाते थे। एक कवि-सम्मेलन में उनका गीत “मैं मीरा मतवाली सी हूँ, तुम मेरे मनमोहन प्रियतम” सुनकर शिवमंगल सिंह सुमन ने उन्हें ‘मालवा की मीरा’ से संबोधित किया और तब से यह उनकी पहचान का हिस्सा बन गया। यह उनके कवि-रूप को मिला पहला पुरस्कार था। ‘मालवा की मीरा’ इंदौर के कवि-सम्मेलनों की जान बन गयीं थीं। मधुर आवाज़ से कोमल मन के उद्गार सभी को मोहित कर देते थे। किन्तु, मालती की यात्रा तो अभी आरम्भ भी नहीं हुई थी... यह तो ट्रेलर मात्र था, जिसने साहित्यिक खेमे में उनकी उपस्थिति दर्ज करा दी थी। जीवन उन्हें विवाह और घर-परिवार के बन्धनों में बाँध रहा था और नियति उनके लिए अलग योजनाएँ तय कर रही थी। पारिवारिक परिवेश उनके जीवन में अनेक परिवर्तन लेकर आया था। कविता छूट चुकी थी और गद्य आज़माया नहीं था।
अवचेतन मन की चैतन्य प्रस्तुति:
मालती जोशी की कहानियाँ घर-घर की कहानियाँ हैं – कहानियाँ जो यथार्थ के अनुभवों को कल्पना के ज़मीन पर कुछ इस कदर सजाती हैं कि आमजन उसे अपने ही घर की बात समझ बैठता है। मध्यम-वर्गीय या निम्न-मध्यम-वर्गीय परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती उनकी कहानियाँ पाठकों को कभी अपनी कहानी लगती है तो कभी अपने पड़ोसी की, कभी अपने मन की बात लगती है तो कभी अपनों के मन की बात – दरअसल परिवार, समाज और स्त्री-मन की भावनाओं का जीवंत चित्रण मिलता है इन कहानियों में। मालती जोशी की कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे मन पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती हैं। विभिन्न पारिवारिक समस्याओं, मन के द्वंदों और जीवन की जटिलताओं के बीच ये कहानियाँ उन्हें समझने की चेतना और उनका सामना करने की सीख ऐसे सहज अंदाज़ में दे जाती है कि पाठक उनसे उबरने के उपाय स्वयं तलाश सकता है। विवाह सम्बन्ध और उससे जुड़ी बातें मालती जोशी की कहानियों के मुख्य आधार रहे हैं। अपनी कहानियों के विषय में वे बताती हैं, “मेरी कहानियाँ घर की चारदीवारों तक ही सीमित रहीं, जिसका मुझपर आरोप भी लगता रहा। किन्तु मेरे अनुभवों का संसार यहीं तक था। उधार के अनुभवों को आधार बनाकर लिखती भी तो न्याय नहीं कर पाती। कभी कोई चेहरा मन को बाँध लेता है, कोई घटना चेतना पर छा जाती है, फिर सब मन में गड्ड–मड्ड होते रहते हैं, कुछ समय बाद कहानी बनकर काग़ज़ पर उतर जाते हैं, मैं उन्हें एक सूत्र में पिरो देती हूँ - मेरा श्रेय सिर्फ इतना ही है।”
पद्मश्री
मालती जोशी: एक संक्षिप्त परिचय |
|
पूरा नाम |
सुश्री मालती कृष्णराव दिघे/ श्रीमती
मालती जोशी (विवाहोपरांत) |
जन्म |
४ जून, १९३४ औरंगाबाद (महाराष्ट्र) |
पिता |
श्री कृष्णराव दिघे |
माता |
श्रीमती सरला देवी |
पति |
सोमनाथ जोशी, (अधीक्षण यंत्री, सिंचाई विभाग, भोपाल, मध्य प्रदेश) (विवाह: १९५९; मृत्यु: २००१) |
संतान |
पुत्र १: ऋषिकेश जोशी (मुम्बई) पुत्र २: सच्चिदानन्द जोशी (दिल्ली) |
|
दसवीं – मालव कन्या विद्यालय, इंदौर इन्टर – प्राइवेट बीए – होल्कर कॉलेज, इंदौर (हिन्दी, अंग्रेज़ी, इतिहास) एम. ए. – होल्कर कॉलेज, इंदौर (हिन्दी) |
साहित्यिक
योगदान |
|
कहानी संग्रह |
पाषाण युग, एक
घर सपनों का, दर्द का रिश्ता, बाबुल का घर, महकते रिश्ते, पूजा के फूल, एक और देवदास, विश्वास गाथा, मन न भये दस बीस, आनंदी, न ज़मीं अपनी - न फलक अपना, मालती जोशी की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ, एक
सार्थक दिन, विरासत, जीने की राह, अंतिम संक्षेप, शापित शैशव, मोरी रंग दी चुनरिया, हादसे और हौसले, औरत एक रात है, परख, मेरे साक्षात्कार, ऑनर किलिंग तथा अन्य कहानियाँ, 10 प्रतिनिधि कहानियाँ, वो
तेरा घर ये मेरा घर, पिया पीर न जानी, रहिमन धागा प्रेम का, स्नेहबंध तथा अन्य कहानियाँ, मिलियन डॉलर नोट तथा अन्य कहानियाँ, बोल
री कठपुतली, छोटा सा मन बड़ा सा दुःख, मालती जोशी की लोकप्रिय कहानियाँ, कौन
ठगवा नगरिया लूटल हो, ये तो होना ही था, मालती जोशी(संचयिका), व्यंग्य– हार्ले स्ट्रीट, गीत संग्रह- मेरा छोटा सा अपनापन। |
उपन्यास |
पटाक्षेप, सहचारिणी, शोभा यात्रा, राग
विराग, ज्वालामुखी के गर्भ में, समर्पण का सुख, चाँद अमावस का, गोपनीय |
बाल कथाएँ |
दादी की घड़ी, रिश्वत एक प्यारी सी, सच्चा
सिंगार(कथा-संग्रह), रंग बदलते खरबूजे, स्नेह के स्वर(कथा-संग्रह) परीक्षा और पुरस्कार, बेचैन,
सफ़ेद जहर, सी.आई.डी., और वह ख़ुश था |
मराठी साहित्य |
पाषाण, परत फ़ेड, ऋणानुबंध, हद्द पार, कथा मालती, कन्यादान, शुभमंगल, शोभायात्रा, कळत
नकळत, पारख, रानात हरवला सूर, आपुले मरण पाहिले म्यां डोळा |
पुरस्कार
एवं उपलब्धियाँ |
|
१९८३ |
रचना संस्था ने पाँच हज़ार रूपये का
पुरस्कार देकर यथोचित सम्मान दिया। उस समय उक्त संस्था द्वारा पुरस्कृत होने
वाली वह पहली महिला साहित्यकार थीं। |
१९८४ |
मराठी कहानी संग्रह ‘पाषाण’ को
महाराष्ट्र सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया जो उनके द्वारा रचित हिन्दी लघु उपन्यास ‘पाषाणयुग’ का अनुवाद है। |
१९९९ |
मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन
द्वारा भवभूति अलंकरण सम्मान |
२००६ |
साहित्य शिखर सम्मान, मध्य प्रदेश सरकार |
२००९ |
प्रभाकर माचवे सम्मान |
२०११ |
दुष्यंत कुमार साहित्य साधना सम्मान, ओजस्विनी
सम्मान |
२०१३ |
मप्र राजभाषा प्रचार समिति द्वारा
सम्मान |
२०१३-१४ |
राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, राजस्थान सरकार |
२०१६ |
कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार |
२०१७ |
वनमाली कथा सम्मान |
२०१८ |
साहित्य में योगदान हेतु भारत के
राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से सम्मानित हिन्दी सेवी सम्मान, महात्मा गाँधी
अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय |
सन्दर्भ:
- https://www.youtube.com/watch?v=ouhv7DG5Ogg
- https://www.youtube.com/watch?v=_M90yuO3Vs4
- https://www.aajtak.in/literature/story/malti-joshi-interview-with-sahitya-aajtak-on-her-birthday-660466-2019-06-04
- https://www.youtube.com/watch?v=3dCfapO0tHk
- https://www.youtube.com/watch?v=Rb0KqUy_BHY
- https://www.youtube.com/watch?v=ZuBwxIyiqFw
- मालती जोशी के साहित्य
में नारी चेतना, p-I SSN: 2348 -6848 e-I SSN: 2348-795X Volume
03 Issue 18 DECEMBER 2016
- https://www.swayamsiddha.co/मालती-जोशी/
- http://www.abhivyakti-hindi.org/lekhak/m/malti_joshi.html
- https://qanswer.in/maalatee-joshee-ka-saahityik-parichay-deejie-give-a-literary-introduction-to-malti-joshi/
लेखक परिचय :
मास्टर ऑफ़ जर्नलिज़्म में स्वर्ण पदक प्राप्त दीपा लाभ विभिन्न मीडिया संस्थानों के अनुभवों के साथ पिछले १२ वर्षों से अध्यापन कार्य से जुड़ी हैं। आप हिंदी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में समान रूप से सहज हैं तथा दोनों भाषाओं में लेख व संवाद प्रकाशित करती रहती हैं। हिंदी व अंग्रेज़ी भाषा में क्रियात्मकता से जुड़े कुछ लोकप्रिय पाठ्यक्रम चला रही हैं। इन दिनों ‘हिंदी से प्यार है’ की सक्रिय सदस्या हैं और ‘साहित्यकार तिथिवार’ का परिचालन कर रही हैं।
सुंदर आलेख है, दीपा जी। बधाई। जैसा सहज मालती जी का लेखन है, वैसा ही सहज वर्णन आपने उनके जीवन और लेखन का किया है।
ReplyDeleteमुझे उनकी कहानियों का परिचय धर्मयुग के माध्यम से ही मिला था।
उनके जीवन से हम यह सीख ले सकते हैं कि यह आवश्यक नहीं कि हम सब जीवन में कुछ बहुत-बड़ा , महान कर गुज़रें।हमारा जीवन काल कुछ दशकों तक सीमित है। यदि इस समय में अपना कर्तव्य पालन कर हँसते-खेलते एक सुव्यवस्थित जीवन जी पाएँ और कुछ रचनात्मक कर पाएँ तो संतोष की प्राप्ति होती है। एक पौधा रोज़ लगाने से बहुत बड़ा, महकता उपवन तैयार हो सकता है।
मालती जी को स्वस्थ, प्रसन्न जीवन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।💐💐
मालवा की मीरा, मराठी हिंदी की सशक्त कथाकार मालती जोशी जी का उत्कृष्ट परिचय,हार्दिक बधाई,दीपा जी 👌💐
ReplyDeleteमुझे याद है कि 20 वर्ष पूर्व हमारे अहमदनगर दूरसंचार विभाग के हिंदी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में उनको सुनने का सौभाग्य मिला था। घर परिवार की बड़ी दीदी के समान स्नेहपूर्ण बर्ताव,अपनापन महसूस किया था।
उन्होंने मुझे हस्ताक्षर करके बाल कथा संग्रह का मराठी अनुवाद हेतु पुस्तक भी प्रदान किया था।
आज उनके व्यक्तित्व के बारे में पढ़कर बहुत आनंद हुआ।🙏
दीपा जी नमस्ते। आपका लिखा एक और उम्दा लेख। आपने पद्मश्री मालती जोशी जी के जीवन एवं साहित्य को विस्तार पूर्वक इस लेख में वर्णित किया। आदरणीय मालती जी का मानना था कि स्वंय के अनुभवों के आधार पर लिखना ही सही है उनका कथन जो आपके लेख में भी है, 'उधार के अनुभवों को आधार बनाकर लिखती भी तो न्याय नहीं कर पाती', उनके जीवन में अनुभवों की वरीयता को दर्शाता है। आपको इस समृद्ध लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमालती जोशी जी के व्यक्तित्व और उनकी लेखन-यात्रा का क्या समृद्ध खाका खींचा है दीपा जी आपने। मज़ा आया इसे पढ़ने में। इसके लिए आपको धन्यवाद और बहुत-बहुत बधाई। जन्मदिन पर मालती जी तथा उनके चाहने वालों के लिए उत्कृष्ट तोहफा है यह तो! यूट्यूब पर ‘कथा साहित्य’ में इनकी बहुत सारी कहानियाँ बड़ी आसानी से सुनी जा सकती हैं।
ReplyDeleteदीपा जी आपके एक और लेख ने प्रभावित किया। उत्कृष्ट लेखन और समृद्ध लेख। मालती जोशी जी की कहानी बहुत अपने आस पास की स्थितियों, परिस्थितियों का आभास देती हैं। आपके लेख के माध्यम से मालती जी की जीवन यात्रा और उनके साहित्य से परिचित होने का अवसर मिला। बहुत बहुत बधाई आपको।
ReplyDeleteदीपा, मालती जोशी जी से यह परिचय स्वयं एक सरस कहानी-सा है, पाठक पढ़ते-पढ़ते पूरी तरह से मालती जी के संसार में डूब जाता है, उनके निजी जीवन और सृजन संसार के बीच सप्रसन्नता गोते खाता है। मालती जी की कलम यूँ ही चलती रहे, उन्हें वह सक्रिय और स्वस्थ रखे। इस धाराप्रवाह और दिलचस्प आलेख के लिए तुम्हें बधाई और आभार।
ReplyDeleteदीपा, मालती जोशी मेरी प्रिय कथाकार हैं। उनकी रचनाओं की सहजता अत्यंत मनभावन है जो सीधे पाठकों के हृदय में सेंध लगाती है और पाठक उन कहानियों में खुद को शामिल महसूस करने लगता है।
ReplyDeleteउनके संपूर्ण व्यक्तित्व को इतनी सादगी से आपने शब्दों में समेटा है कि जान पड़ता है स्वयं उन्हीं की लिखी कोई रचना है।
आपकी लेखनी के कौशल और आपकी सहृदय चेतना को सलाम!
मालती जी के लेखनी के विषय में क्या विस्तृत जानकारी तुमने दी है,वाह! मालती जी की कहानियाँ मुझे बहुत पसंद आती हैं | मैं तो तुम्हारी सादगी भरी लेखनी से प्रभावित रहती हूँ,इसे यूँही जारी रखना |
ReplyDelete