Saturday, June 4, 2022

कथाकार पद्मश्री मालती जोशी: वाचिक परम्परा की मशाल-वाहक



कोमल हृदय, मृदुभाषी, भारतीयता से सराबोर, बेहद सहज–सरल ‘पद्मश्री’ मालती जोशी करोड़ों घरेलू महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं। एक बेटी, बहू, पत्नी, माँ, सास और दादी के रूप में अपने कर्तव्यपालन करते हुए हिन्दी साहित्य जगत् में उन्होंने जो मुकाम हासिल किया वह निःसंदेह प्रशंसनीय भी है और अनुकरणीय भी। आज के दौर में जहाँ घर-बाहर की दोहरी ज़िम्मेदारियों में पिसती महिलाएँ अक्सर अपने अस्तित्व पर सवाल उठाती हैं, वहीं फ़ेमिनिज़्म और नारीवाद का झंडा ऊँचा किये बग़ैर यथार्थ का दामन थामे अपने पाठकों के दिलों में उतरने वाली मालती जोशी की जितनी भी सराहना की जाए, कम है। वे एक ऐसी प्रबुद्ध घरेलु महिला हैं जिनके सान्निध्य में चार पल गुज़ारने से ही वर्षों के अनुभवों और तजुर्बों का ख़ज़ाना हाथ लग जाता है। न न! वे प्रवचन और नसीहतें नहीं देतीं, बल्कि किस्सों का ऐसा संसार दिखा देती हैं कि बात दिल की गहराइयों तक उतर जाए और इंसान स्वयं जागृत हो उठे। तो क्यों न अपने व्यस्त जीवन के कुछ पल उनके सृजन संसार की सैर में बिताएँ और किस्सागोई का आनन्द लें!

जीवन कथा:

मालती जोशी का जन्म तत्कालीन हैदराबाद रियासत के औरंगाबाद शहर (जो आजकल महाराष्ट्र के अंतर्गत एक ज़िला है) में ४ जून १९३४ को हुआ। उनके पिता श्री कृष्णराव दिघे पुरानी ग्वालियर रियासत में जज थे। स्थानांतरणों के कारण छोटे-छोटे कस्बों में बचपन बीता। एक जगह टिक कर नहीं रह पाने का खामियाज़ा यह रहा कि विधिवत् किसी एक विद्यालय में पढ़ना न हो सका – कभी स्कूल, कभी प्राइवेट करते हुए दसवीं ऐसे ही निकल गई। किन्तु इन तबादलों से बच्चों (चार बहनें और तीन भाई) की पढ़ाई बाधित न हो, इस बात का ख़ास ख़याल रखा गया। एक महाराष्ट्रियन ब्राह्मण परिवार, उसपर पिता संस्कृत, अंग्रेज़ी और मराठी के विद्वान् – शिक्षा और संस्कार तो स्वाभाविक रूप से जीवन में शामिल था। सुदूर देहातों में रहने के बावजूद घर पर पत्र-पत्रिकाओं का आगमन सुनिश्चित था। उस ज़माने में भी माँ सरला देवी के लिए मराठी की पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं। माता-पिता का पुस्तक प्रेम बच्चों में आना स्वाभाविक था, सो बड़ी छोटी उम्र से मालती को पुस्तकों से प्रेम हो गया। हिन्दी प्रान्त में रहते हुए वे स्वतः ही हिन्दी में सहज होती गयीं और अपने मन के भाव कविताओं और गीतों के रूप में काग़ज़ों पर सजाने लगीं। उनकी लेखनी में कुछ ख़ास बात है, इस बात का एहसास उन्हें स्कूल के ज़माने से ही था जब उनके लिखे निबन्धों को मानक बताकर शिक्षक स्वयं पूरी कक्षा के सामने उनका पाठ करते थे। १९४८ में गाँधी की हत्या से आहत मालती ने कई कविताएँ लिखीं जिन्हें उनकी छोटी उम्र को देखते हुए काफ़ी सराहना मिली। स्कूल में मिला यह प्रोत्साहन कॉलेज में पल्लवित हुआ और वे कवि-सम्मेलनों में अपनी कविताओं और गीतों का पाठ करने लगीं। अबतक यह परिवार इंदौर में स्थायी रूप से बस चुका था। इंदौर के गवर्नमेंट होल्कर कॉलेज से हिन्दी, अंग्रेज़ी और इतिहास से बीए करने के बाद वे अंग्रेज़ी से एम.ए. के लिए इच्छुक थीं जब ‘शिवमंगल सिंह सुमन’ उनके कॉलेज में हिन्दी पढ़ाने आए और उनसे पढ़ने की लालसा में मालती ने अंग्रेज़ी का मोह त्याग हिन्दी साहित्य ले लिया। यह उनके जीवन का एक निर्णायक मोड़ था। यह वो दौर था जब उनके मन के भाव गीत बनकर होठों पर आ जाते थे। एक कवि-सम्मेलन में उनका गीत “मैं मीरा मतवाली सी हूँ, तुम मेरे मनमोहन प्रियतम” सुनकर शिवमंगल सिंह सुमन ने उन्हें ‘मालवा की मीरा’ से संबोधित किया और तब से यह उनकी पहचान का हिस्सा बन गया। यह उनके कवि-रूप को मिला पहला पुरस्कार था। ‘मालवा की मीरा’ इंदौर के कवि-सम्मेलनों की जान बन गयीं थीं। मधुर आवाज़ से कोमल मन के उद्गार सभी को मोहित कर देते थे। किन्तु, मालती की यात्रा तो अभी आरम्भ भी नहीं हुई थी... यह तो ट्रेलर मात्र था, जिसने साहित्यिक खेमे में उनकी उपस्थिति दर्ज करा दी थी। जीवन उन्हें विवाह और घर-परिवार के बन्धनों में बाँध रहा था और नियति उनके लिए अलग योजनाएँ तय कर रही थी। पारिवारिक परिवेश उनके जीवन में अनेक परिवर्तन लेकर आया था। कविता छूट चुकी थी और गद्य आज़माया नहीं था। 

कविता से कहानियों तक पहुँचते-पहुँचते उन्होंने अनेक विधाओं के स्वाद चखे – व्यंग्य-वार्ताएँ, बाल-कथाएँ, रेडियो के लिए झलकियाँ। उनकी कलम की साधना कुछ ऐसी कि हर विधा में अपनी छाप छोड़ती गयीं। कविता को पूर्ण विराम देकर गद्य की ओर रुख़ करने की घटना को मालती जी कुछ इस तरह बयाँ करती हैं – “जीवन के बसन्त में कल्पनाओं का पौध आया हुआ था, वो कब झड़ गया पता ही नहीं चला।” उनके लिए कविता कल्पना की उड़ान थी और कहानियाँ यथार्थ का धरातल – और उन्होंने इसी धरातल पर पैर जमाकर उपलब्धियों की उड़ान भरी और घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए अपना आकाश तराशा। 

उनकी कलम प्रकाशन का स्वाद चख चुकी थी और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के बीच भी छूट-पुट लेखन हमेशा चलता रहा। उनकी बाल-कथाएँ एवं लघु-कथाएँ क्रमशः पराग, कादम्बिनी, निहारिका, मुक्ता, लहर आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहतीं। मध्य प्रदेश के दैनिक समाचारों के रविवारीय परिशिष्ठ में भी उनकी कहानियाँ लोकप्रिय हो रही थीं। हालाँकि एक साक्षात्कार में अपने संघर्ष की बात बताते हुए मालती जी कहती हैं कि शुरू-शुरू में पाँच कहानियाँ भेजती तो एक छपती थी और चार लौट आती थी, किन्तु न इन्होंने कहानियाँ भेजना रोका, और न प्रकाशकों ने छापना। लोकप्रियता बढ़ी तो नवम्बर १९७१ में धर्मयुग में स्थान मिला और उन्हें एक कथाकार के रूप में अखिल भारतीय पहचान मिली। धर्मयुग में छपी कहानी ‘टूटने से जुड़ने तक’ ने उन्हें सम्पूर्ण देश से जोड़ दिया। फिर साप्ताहिक हिन्दुस्तान और धर्मयुग ने नियमित रूप से उनकी कहानियाँ प्रकाशित करना शुरू कर दिया और देखते-ही-देखते मालती जोशी एक कहानीकार के रूप में प्रतिष्ठित हो गयीं। मनोरमा, सरिता, कादम्बिनी आदि में अब नियमित रूप से उनकी कहानियाँ छपने लगी थीं। कहानियाँ अब उनके जीवन का अटूट हिस्सा हो चुकी थीं और उनका जीवन इन्हीं के सृजन-संकलन में बीतने लगा। लेखन की आभा कब वाणी बनकर किस्सागोई की शक्ल लेने लगा, इसका अंदाज़ा स्वयं मालती जी को भी नहीं है। शायद बच्चों को कहानी सुनाने के क्रम में कहानियाँ उनकी ज़ुबान से निकलने लगी होंगी और मुँह-ज़बानी कहानियाँ सुनाने का सिलसिला शुरू हुआ होगा। उनकी कहानियों की विशेषताओं पर आने से पहले एक बेहद दिलचस्प और हैरतअंगेज़ करने वाली बात यह है कि अब तक हजारों कहानियाँ लिख चुकीं मालती जोशी को अपनी अधिकतर कहानियाँ मुँह-ज़बानी याद हैं और वे बिना रुके, बिना थमे बड़ी सहजता के साथ अपनी कहानियाँ ऐसे सुनती हैं मानो वो उनकी ही आपबीती हों। ऐसी विलक्षण विदुषी के सामने सर स्वयं ही श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है। पिछले पाँच दशकों से मालती जोशी लगातार लेखन कर रही हैं और आज, उम्र के ८६वें पड़ाव पर, भी कलम थामे नए सृजन में डूबी रहती हैं।

अवचेतन मन की चैतन्य प्रस्तुति:

मालती जोशी की कहानियाँ घर-घर की कहानियाँ हैं – कहानियाँ जो यथार्थ के अनुभवों को कल्पना के ज़मीन पर कुछ इस कदर सजाती हैं कि आमजन उसे अपने ही घर की बात समझ बैठता है। मध्यम-वर्गीय या निम्न-मध्यम-वर्गीय परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती उनकी कहानियाँ पाठकों को कभी अपनी कहानी लगती है तो कभी अपने पड़ोसी की, कभी अपने मन की बात लगती है तो कभी अपनों के मन की बात – दरअसल परिवार, समाज और स्त्री-मन की भावनाओं का जीवंत चित्रण मिलता है इन कहानियों में। मालती जोशी की कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे मन पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती हैं। विभिन्न पारिवारिक समस्याओं, मन के द्वंदों और जीवन की जटिलताओं के बीच ये कहानियाँ उन्हें समझने की चेतना और उनका सामना करने की सीख ऐसे सहज अंदाज़ में दे जाती है कि पाठक उनसे उबरने के उपाय स्वयं तलाश सकता है। विवाह सम्बन्ध और उससे जुड़ी बातें मालती जोशी की कहानियों के मुख्य आधार रहे हैं। अपनी कहानियों के विषय में वे बताती हैं, “मेरी कहानियाँ घर की चारदीवारों तक ही सीमित रहीं, जिसका मुझपर आरोप भी लगता रहा। किन्तु मेरे अनुभवों का संसार यहीं तक था। उधार के अनुभवों को आधार बनाकर लिखती भी तो न्याय नहीं कर पाती। कभी कोई चेहरा मन को बाँध लेता है, कोई घटना चेतना पर छा जाती है, फिर सब मन में गड्ड–मड्ड होते रहते हैं, कुछ समय बाद कहानी बनकर काग़ज़ पर उतर जाते हैं, मैं उन्हें एक सूत्र में पिरो देती हूँ - मेरा श्रेय सिर्फ इतना ही है।”

नारी-प्रधान इन कहानियों में स्त्रियाँ न तो दबी-कुचली अबला चित्रित हुई हैं, न आधुनिकता की चकाचौंध में अंधी पॉवर वीमेन – वो आपके और हमारे बीच की एक सामान्य सी महिला है जो अपने मन के विविध भावों को कभी समग्र वाणी नहीं दे पाती। मालती जोशी उन्हें यही वाणी अपनी कहानियों के ज़रिए सुस्पष्ट शब्दों में बड़ी खूबसूरती से देती हैं। मालती जी की कहानियों के पुरुषों  में भी हमें अपने पिता, भाई, पति या बेटे की छवि दिखाई पड़ सकती है – क्योंकि वे हमारे जैसे घरों के ही पुरुष हैं जो निरंकुश या विराट न होकर एक साधारण-सामान्य मनुष्य हैं जिनकी साधारण-सामान्य समस्याएँ हैं और दैनिक जद्दोजहद हैं। ‘खूबसूरत झूठ’, ‘नो सिम्पैथी प्लीज़’, ‘सज़ा’, ‘महकते रिश्ते’ जैसी कहानियाँ इसका प्रमाण हैं। दहेज़ प्रथा के दुष्परिणाम, प्रेम-विवाह की जटिलताएँ, बेमेल विवाहों के असर, जवान होती बेटी के मन में बूढ़े पिता की चिंता, सास-बहू के सम्बन्ध, एकल व संयुक्त परिवारों के सम्बन्ध आदि ऐसे कई विषय हैं जिनपर मालती जोशी ने अपने अनुभवों और अवचेतन मन के संचित दृष्टान्तों को बड़े संवेदनशील ढंग से कहानियों में उतारा है। इन कहानियों के सभी पात्र हमारे आस-पास के पात्र हैं जिन्हें हम प्रतिदिन किसी-न-किसी रूप में महसूस करते हैं। विचारों का स्पष्ट चित्रण और पात्रों का जीवंत संवाद उनकी कहानियों को हमारे और भी करीब ले आते हैं। 

उपलब्धियाँ एवं पुरस्कार कलम की सच्ची साधक मालती जोशी की सबसे बड़ी उपलब्धि उनका भरा-पूरा परिवार और उनके पाठकों का उनके प्रति सम्मान और स्नेह है। यों तो उन्हें समर्पित पुरस्कारों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त है, और समय-समय पर उनके कार्यों की भरपूर सराहना होती रही है; किन्तु वे स्वयं कहती हैं कि उनके पाठकों का प्रेम ही उनका सबसे बड़ा पुरस्कार है। आज उनकी ५० से अधिक पुस्तकें हिन्दी में, १२ पुस्तकें मराठी में तथा कई पुस्तकें अनेकों भारतीय भाषाओं में अनूदित हो प्रकाशित हो चुकी हैं। सामान्यतः लम्बी कहानियाँ और लघु कथाएँ लिखने वाली मालती जोशी ने कुछ उपन्यास भी लिखे हैं। उनकी कुछ पुस्तकों को प्रकाशक उपन्यासिका कहते हैं। उनकी कुछ कहानियाँ दूरदर्शन पर भी प्रसारित की गई, जिनमें जया बच्चन द्वारा बनाए धारावाहिक ‘सात फेरे’ में सात कहानियाँ, गुलज़ार निर्देशित धारावाहिक ‘क़िरदार’ में दो कहानियाँ तथा मंजू सिंह निर्देशित धारावाहिक ‘भावना’ शामिल हैं। वे कहती हैं, “मैंने कभी अपने लेखक होने की सज़ा अपने परिवार को नहीं दी। परिवार की ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ लेखन-धर्म निभाया – ना रात को जागकर लिखा, न सुबह-सुबह कलम चलाई। जो लिखा – दिन के उजाले में दोपहर के वक्त लिखा - जब घर के काम-काज से फ़ारिग हो पति-बच्चों को दफ़्तर-स्कूल भेज देती थी। उपन्यास न लिखने का कारण भी यही रहा। पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ मेरी प्राथमिकता रही, आज भी है।” बहुत कुछ पाने की महत्वाकांक्षा मालती जोशी पर कभी हावी नहीं हुई। शायद यही वजह है कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन्हें लिखने की प्रेरणा देता रहा और पति-बच्चों ने सदैव उन्हें प्रोत्साहित किया। पति बहुत सामाजिक प्राणी थे जिस कारण घर पर सदैव लोगों का आना-जाना लगा रहता था। अतिथियों की आवभगत में कभी कोई कमी नहीं होती थी इसीलिए पति के दोस्त उन्हें ‘अन्नपूर्णा’ बुलाते थे। उनके नजदीकी लोगों को हमेशा इस बात से आश्चर्य होता रहा कि घरेलू  काम-काज में व्यस्त रहते हुए वे लिखने का समय कैसे निकालती होंगी। वर्ष २०१८ में राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री सम्मान पाना इसका जीता-जागता प्रमाण है कि सच्ची लगन और ईमानदारी से किया कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता। अपने दो पुत्रों और उनके बच्चों के भरे-पूरे परिवार के साथ मालती जोशी आज भी लेखन में सक्रिय हैं। उनकी कहानियाँ आज भी नवनीत, कथाबिम्ब, मधुरिमा, और समावर्तन में प्रकाशित हो रही हैं। ईश्वर उन्हें दीर्घायु करें और स्वस्थ रखें। माँ सरस्वती की कृपा उनपर सदैव बनी रहे!

पद्मश्री मालती जोशी: एक संक्षिप्त परिचय

पूरा नाम

सुश्री मालती कृष्णराव दिघे/ श्रीमती मालती जोशी (विवाहोपरांत)

जन्म

४ जून, १९३४ औरंगाबाद (महाराष्ट्र)

पिता

श्री कृष्णराव दिघे

माता

श्रीमती सरला देवी

पति

सोमनाथ जोशी, (अधीक्षण यंत्री, सिंचाई विभाग, भोपाल, मध्य प्रदेश)

(विवाह: १९५९; मृत्यु: २००१)

संतान

पुत्र १: ऋषिकेश जोशी (मुम्बई)

पुत्र २: सच्चिदानन्द जोशी (दिल्ली)


शिक्षा

दसवीं – मालव कन्या विद्यालय, इंदौर

इन्टर – प्राइवेट

बीए – होल्कर कॉलेज, इंदौर (हिन्दी, अंग्रेज़ी, इतिहास)

एम. ए. – होल्कर कॉलेज, इंदौर (हिन्दी)

साहित्यिक योगदान

कहानी संग्रह

पाषाण युग, एक घर सपनों का, दर्द का रिश्ता, बाबुल का घर, महकते रिश्ते, पूजा के फूल, एक और देवदास, विश्वास गाथा, मन न भये दस बीस, आनंदी, न ज़मीं अपनी - न फलक अपना, मालती जोशी की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ, एक सार्थक दिन, विरासत, जीने की राह, अंतिम संक्षेप, शापित शैशव, मोरी रंग दी चुनरिया, हादसे और हौसले, औरत एक रात है, परख, मेरे साक्षात्कार, ऑनर किलिंग तथा अन्य कहानियाँ, 10 प्रतिनिधि कहानियाँ, वो तेरा घर ये मेरा घर, पिया पीर न जानी, रहिमन धागा प्रेम का, स्नेहबंध तथा अन्य कहानियाँ, मिलियन डॉलर नोट तथा अन्य कहानियाँ, बोल री कठपुतली, छोटा सा मन बड़ा सा दुःख, मालती जोशी की लोकप्रिय कहानियाँ, कौन ठगवा नगरिया लूटल हो, ये तो होना ही था, मालती जोशी(संचयिका), व्यंग्य– हार्ले स्ट्रीट, गीत संग्रह- मेरा छोटा सा अपनापन।

उपन्यास

पटाक्षेप, सहचारिणी, शोभा यात्रा, राग विराग, ज्वालामुखी के गर्भ में, समर्पण का सुख, चाँद अमावस का, गोपनीय

बाल कथाएँ

दादी की घड़ी, रिश्वत एक प्यारी सी, सच्चा सिंगार(कथा-संग्रह), रंग बदलते खरबूजे, स्नेह के स्वर(कथा-संग्रह) परीक्षा और पुरस्कार, बेचैन, सफ़ेद जहर, सी.आई.डी., और वह ख़ुश था

मराठी साहित्य

पाषाण, परत फ़ेड, ऋणानुबंध, हद्द पार, कथा मालती, कन्यादान, शुभमंगल, शोभायात्रा, कळत नकळत, पारख, रानात हरवला सूर, आपुले मरण पाहिले म्यां डोळा 

पुरस्कार एवं उपलब्धियाँ

१९८३

रचना संस्था ने पाँच हज़ार रूपये का पुरस्कार देकर यथोचित सम्मान दिया। उस समय उक्त संस्था द्वारा पुरस्कृत होने वाली वह पहली महिला साहित्यकार थीं।

१९८४

मराठी कहानी संग्रह ‘पाषाण’ को महाराष्ट्र सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया जो उनके द्वारा रचित  हिन्दी लघु उपन्यास ‘पाषाणयुग’ का अनुवाद है।

१९९९

मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा भवभूति अलंकरण सम्मान

२००६

साहित्य शिखर सम्मान, मध्य प्रदेश सरकार

२००९

प्रभाकर माचवे सम्मान

२०११

दुष्यंत कुमार साहित्य साधना सम्मान, ओजस्विनी सम्मान

२०१३

मप्र राजभाषा प्रचार समिति द्वारा सम्मान

२०१३-१४

राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, राजस्थान सरकार

२०१६

कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार

२०१७

वनमाली कथा सम्मान

२०१८

साहित्य में योगदान हेतु भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से सम्मानित

हिन्दी सेवी सम्मान, महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय

सन्दर्भ:

लेखक परिचय :

मास्टर ऑफ़ जर्नलिज़्म में स्वर्ण पदक प्राप्त दीपा लाभ विभिन्न मीडिया संस्थानों के अनुभवों के साथ पिछले १२ वर्षों से अध्यापन कार्य से जुड़ी हैं। आप हिंदी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में समान रूप से सहज हैं तथा दोनों भाषाओं में लेख व संवाद प्रकाशित करती रहती हैं। हिंदी व अंग्रेज़ी भाषा में क्रियात्मकता से जुड़े कुछ लोकप्रिय पाठ्यक्रम चला रही हैं। इन दिनों ‘हिंदी से प्यार है’ की सक्रिय सदस्या हैं और ‘साहित्यकार तिथिवार’ का परिचालन कर रही हैं।
 
ईमेल - journalistdeepa@gmail.com
व्हाट्सएप - +91 8095809095

 

 

 


8 comments:

  1. सुंदर आलेख है, दीपा जी। बधाई। जैसा सहज मालती जी का लेखन है, वैसा ही सहज वर्णन आपने उनके जीवन और लेखन का किया है।
    मुझे उनकी कहानियों का परिचय धर्मयुग के माध्यम से ही मिला था।
    उनके जीवन से हम यह सीख ले सकते हैं कि यह आवश्यक नहीं कि हम सब जीवन में कुछ बहुत-बड़ा , महान कर गुज़रें।हमारा जीवन काल कुछ दशकों तक सीमित है। यदि इस समय में अपना कर्तव्य पालन कर हँसते-खेलते एक सुव्यवस्थित जीवन जी पाएँ और कुछ रचनात्मक कर पाएँ तो संतोष की प्राप्ति होती है। एक पौधा रोज़ लगाने से बहुत बड़ा, महकता उपवन तैयार हो सकता है।
    मालती जी को स्वस्थ, प्रसन्न जीवन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।💐💐

    ReplyDelete
  2. मालवा की मीरा, मराठी हिंदी की सशक्त कथाकार मालती जोशी जी का उत्कृष्ट परिचय,हार्दिक बधाई,दीपा जी 👌💐


    मुझे याद है कि 20 वर्ष पूर्व हमारे अहमदनगर दूरसंचार विभाग के हिंदी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में उनको सुनने का सौभाग्य मिला था। घर परिवार की बड़ी दीदी के समान स्नेहपूर्ण बर्ताव,अपनापन महसूस किया था।
    उन्होंने मुझे हस्ताक्षर करके बाल कथा संग्रह का मराठी अनुवाद हेतु पुस्तक भी प्रदान किया था।
    आज उनके व्यक्तित्व के बारे में पढ़कर बहुत आनंद हुआ।🙏

    ReplyDelete
  3. दीपा जी नमस्ते। आपका लिखा एक और उम्दा लेख। आपने पद्मश्री मालती जोशी जी के जीवन एवं साहित्य को विस्तार पूर्वक इस लेख में वर्णित किया। आदरणीय मालती जी का मानना था कि स्वंय के अनुभवों के आधार पर लिखना ही सही है उनका कथन जो आपके लेख में भी है, 'उधार के अनुभवों को आधार बनाकर लिखती भी तो न्याय नहीं कर पाती', उनके जीवन में अनुभवों की वरीयता को दर्शाता है। आपको इस समृद्ध लेख के लिए हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  4. मालती जोशी जी के व्यक्तित्व और उनकी लेखन-यात्रा का क्या समृद्ध खाका खींचा है दीपा जी आपने। मज़ा आया इसे पढ़ने में। इसके लिए आपको धन्यवाद और बहुत-बहुत बधाई। जन्मदिन पर मालती जी तथा उनके चाहने वालों के लिए उत्कृष्ट तोहफा है यह तो! यूट्यूब पर ‘कथा साहित्य’ में इनकी बहुत सारी कहानियाँ बड़ी आसानी से सुनी जा सकती हैं।

    ReplyDelete
  5. दीपा जी आपके एक और लेख ने प्रभावित किया। उत्कृष्ट लेखन और समृद्ध लेख। मालती जोशी जी की कहानी बहुत अपने आस पास की स्थितियों, परिस्थितियों का आभास देती हैं। आपके लेख के माध्यम से मालती जी की जीवन यात्रा और उनके साहित्य से परिचित होने का अवसर मिला। बहुत बहुत बधाई आपको।

    ReplyDelete
  6. दीपा, मालती जोशी जी से यह परिचय स्वयं एक सरस कहानी-सा है, पाठक पढ़ते-पढ़ते पूरी तरह से मालती जी के संसार में डूब जाता है, उनके निजी जीवन और सृजन संसार के बीच सप्रसन्नता गोते खाता है। मालती जी की कलम यूँ ही चलती रहे, उन्हें वह सक्रिय और स्वस्थ रखे। इस धाराप्रवाह और दिलचस्प आलेख के लिए तुम्हें बधाई और आभार।

    ReplyDelete
  7. दीपा, मालती जोशी मेरी प्रिय कथाकार हैं। उनकी रचनाओं की सहजता अत्यंत मनभावन है जो सीधे पाठकों के हृदय में सेंध लगाती है और पाठक उन कहानियों में खुद को शामिल महसूस करने लगता है।
    उनके संपूर्ण व्यक्तित्व को इतनी सादगी से आपने शब्दों में समेटा है कि जान पड़ता है स्वयं उन्हीं की लिखी कोई रचना है।
    आपकी लेखनी के कौशल और आपकी सहृदय चेतना को सलाम!

    ReplyDelete
  8. मालती जी के लेखनी के विषय में क्या विस्तृत जानकारी तुमने दी है,वाह! मालती जी की कहानियाँ मुझे बहुत पसंद आती हैं | मैं तो तुम्हारी सादगी भरी लेखनी से प्रभावित रहती हूँ,इसे यूँही जारी रखना |

    ReplyDelete

आलेख पढ़ने के लिए चित्र पर क्लिक करें।

कलेंडर जनवरी

Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat
            1वह आदमी उतर गया हृदय में मनुष्य की तरह - विनोद कुमार शुक्ल
2अंतः जगत के शब्द-शिल्पी : जैनेंद्र कुमार 3हिंदी साहित्य के सूर्य - सूरदास 4“कल जिस राह चलेगा जग मैं उसका पहला प्रात हूँ” - गोपालदास नीरज 5काशीनाथ सिंह : काशी का अस्सी या अस्सी का काशी 6पौराणिकता के आधुनिक चितेरे : नरेंद्र कोहली 7समाज की विडंबनाओं का साहित्यकार : उदय प्रकाश 8भारतीय कथा साहित्य का जगमगाता नक्षत्र : आशापूर्णा देवी
9ऐतिहासिक कथाओं के चितेरे लेखक - श्री वृंदावनलाल वर्मा 10आलोचना के लोचन – मधुरेश 11आधुनिक खड़ीबोली के प्रथम कवि और प्रवर्तक : पं० श्रीधर पाठक 12यथार्थवाद के अविस्मरणीय हस्ताक्षर : दूधनाथ सिंह 13बहुत नाम हैं, एक शमशेर भी है 14एक लहर, एक चट्टान, एक आंदोलन : महाश्वेता देवी 15सामाजिक सरोकारों का शायर - कैफ़ी आज़मी
16अभी मृत्यु से दाँव लगाकर समय जीत जाने का क्षण है - अशोक वाजपेयी 17लेखन सम्राट : रांगेय राघव 18हिंदी बालसाहित्य के लोकप्रिय कवि निरंकार देव सेवक 19कोश कला के आचार्य - रामचंद्र वर्मा 20अल्फ़ाज़ के तानों-बानों से ख़्वाब बुनने वाला फ़नकार: जावेद अख़्तर 21हिंदी साहित्य के पितामह - आचार्य शिवपूजन सहाय 22आदि गुरु शंकराचार्य - केरल की कलाड़ी से केदार तक
23हिंदी साहित्य के गौरव स्तंभ : पं० लोचन प्रसाद पांडेय 24हिंदी के देवव्रत - आचार्य चंद्रबलि पांडेय 25काल चिंतन के चिंतक - राजेंद्र अवस्थी 26डाकू से कविवर बनने की अद्भुत गाथा : आदिकवि वाल्मीकि 27कमलेश्वर : हिंदी  साहित्य के दमकते सितारे  28डॉ० विद्यानिवास मिश्र-एक साहित्यिक युग पुरुष 29ममता कालिया : एक साँस में लिखने की आदत!
30साहित्य के अमर दीपस्तंभ : श्री जयशंकर प्रसाद 31ग्रामीण संस्कृति के चितेरे अद्भुत कहानीकार : मिथिलेश्वर          

आचार्य नरेंद्रदेव : भारत में समाजवाद के पितामह

"समाजवाद का सवाल केवल रोटी का सवाल नहीं है। समाजवाद मानव स्वतंत्रता की कुंजी है। समाजवाद ही एक सुखी समाज में संपूर्ण स्वतंत्र मनुष्यत्व...