"राम शब्द निर्वाण है, सकल काल को काल।
जन दरिया भज लीजिये, पूरण ब्रम्ह नेह काल।।
दरिया दीपक राम का, गगन मंडल में जोय।
तीन लोक चौदह भवन, सहज उजाला होय।।"
राजस्थान के जन-मानस में बसी उक्त 'वाणी' के प्रणेता 'रामस्नेही संप्रदाय' के प्रवर्तक निर्गुण संत दरिया महाराज का नाम संत प्रवर दादू दयाल, रैदास और कबीर के समान ही राजस्थान में ही नहीं अपितु पूरे भारत में श्रद्धा से लिया जाता है। दरिया महाराज ने भी दादू जैसे अन्य कई संतों की तरह अपनी कर्म-स्थली के लिए संत-भूमि नागौर को चुना। जन सामान्य के लिए कबीर की भाँति लोक-भाषा में आध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को सहज ही साखी और दोहों के रूप में कहा, जो कालांतर में दरिया-वाणी के रूप में प्रसिद्ध हुए।
मध्यकालीन निर्गुण संत दरिया महाराज का जन्म सन १६७६ में राजस्थान के पाली ज़िले के जैतारण में हुआ था। कबीर और दादू की भाँति ही इनके जन्म और जाति को लेकर भाषाविद और हिंदी साहित्य के इतिहासकार मतैक्य नहीं हैं। एक मतानुसार वे माता गीगा के गर्भ से जन्मे थे। दरिया महाराज की जन्म मरण परची के अनुसार,
"मुरधर देस भरतखंड मांई, जैतारण एक नाम कहाई।"
एक अन्य साक्ष्य के अनुसार-
"पिता मानसा सही, माता गीगा सो कहिये।
बण सुत को घर बुदम जात धुणियाँ जो लहिये।"
एक और मान्यता के अनुसार दरिया साहब दरिया की लहरों पर मिले थे इसलिए इनके पिता मानसा ने इनका नाम दरियाव रखा। (ये दरिया और दरियाव दोनों नामों से जाने जाते हैं) रामस्नेही संप्रदाय और अन्य दरिया जीवन आधारित शोध ग्रंथों के आधार पर यह मान्यता प्रचलित हो गई कि वे मानसा और गीगा के पुत्र थे और धुनिया जाति के थे।
संत जय राम और आत्मा राम ने दरिया साहब पर लिखी 'लावणी' में आचार्य क्षितिमोहन, डॉ० राम कुमार वर्मा, पं० परशुराम चतुर्वेदी, मोतीलाल मेनारिया, डॉ० राधिका प्रसाद त्रिपाठी आदि ने दरिया का जन्म सन १६७६ में होने की पुष्टि की है। लेकिन माता-पिता और जाति के संबंध में ये विद्वान एक मत नहीं हैं। रेण संप्रदाय के संत भावनादास, हरि नारायण शास्त्री, राम किशोर शास्त्री, संत आत्मा राम आदि द्वारिका में दरिया में शिशु रूप में तैरते मिलने के दावे करते हैं, जिन्हें आधुनिक विचारक काल्पनिक कहानी बताते हैं। डॉ० राधिका प्रसाद त्रिपाठी इस संबंध में असहमति जताते हुए लिखते हैं, "कहने की आवश्यकता नहीं कि यह कल्पना सांप्रदायिक प्रवृत्ति के अतिवाद से प्रेरित है।"
बचपन में पिता के देहांत के कारण दरिया का पालन-पोषण नाना किशन द्वारा रेण में हुआ। नाना का जबरन धर्मांतरण मुस्लिम धर्म में कर दिया था; उनके बचपन का नाम 'कमीश' था। इसलिए भ्रमवश इनके दोयते दरिया को मुस्लिम माना गया। पुस्तक 'दरिया साहब की बानी' में आचार्य पीतांबर दत्त बडथ्वाल, डॉ० राम कुमार वर्मा, वियोगी हरि, डॉ० पूर्ण दास आदि विद्वानों ने उन्हें धुनिया जाति का मुसलमान बताया है। लेकिन बड़े होकर नमाज़ न पढ़ कर 'राम' नाम सुमिरन से उनके हिंदू होने के संकेत मिले। उनके खत्री हिंदू होने की पुष्टि डॉ० मोतीलाल मेनारिया, डॉ० मदन कुमार जानी, बलराम दास शास्त्री, हरि नारायण शास्त्री आदि ने की है।
दरिया महाराज के शिष्यों तथा उनकी प्राप्त रचनाओं के आधार पर उनके हिंदू होने की पुष्टि होती है। उनकी वाणियों में कहीं भी मुस्लिम धर्म-दर्शन के समाहित होने के संकेत नहीं मिलते। दरिया के माता-पिता और पुत्रों के हिंदू नाम थे। जोधपुर के शासक बखत सिंह और विजय सिंह का दरिया के शिष्य होना तथा राज दरबार में उनके सत्संग में होना दरिया के हिंदू होने के प्रमाण हैं।
शिक्षा
बालक दरिया नाना के सान्निध्य में रेण में रह रहा था। जब वह सात वर्ष का था तब उसकी तेजस्विता से प्रभावित होकर काशी के दो पंडित स्वरूपा नंद और शिव प्रसाद उसकी माता गीगा व नाना की अनुमति से उसे अपने साथ काशी ले गए। वहाँ से व्याकरण, दर्शन, वेद, गीता, उपनिषद, संस्कृत, कुरान, फ़ारसी आदि शास्त्रों का अध्ययन करके वह रेण लौटा। इसके प्रमाण रामस्नेही संप्रदाय के साहित्य में मिलते हैं। रामस्नेही संप्रदाय के प्रकाशित साहित्य 'श्री रामस्नेही संत वाणी एवं भजन संग्रह' और 'रामस्नेही अनुभव आलोक' में दरिया साहब को आजीवन अविवाहित माना जबकि पदूम दास, साहेब राम, सुख सारण, उमा राम जी ने इन्हें गृहस्थ बताया। बलदेव वंशी ने अपने शोध ग्रंथ 'भारतीय संत परंपरा' और डॉ० वसुदेव सिंह ने अपने शोध ग्रंथ 'हिंदी संत काव्य समाज शास्त्रीय अध्ययन' में दरिया साहेब के गृहस्थी होने और उनके तीन पुत्र कुसाल, संमन व हंसराज के होने के प्रमाण दिए। दरिया महाराज ने गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए भगवद्प्राप्ति के लिए सहज नाम सुमिरन को महत्त्व दिया। वे संसार में रहते हुए एक विरक्त संत थे। आचार्य परशुराम चतुर्वेदी और डॉ० राधिका प्रसाद त्रिपाठी ने उनकी विद्वत्ता की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। डॉ० ओमकार नाथ चतुर्वेदी ने उन्हें फ़ारसी, संस्कृत और हिंदी का ज्ञाता माना है।
दीक्षा
काशी से शिक्षा ग्रहण करके रेण आने पर वेद-उपनिषद का अध्ययन करते समय उन्हें गुरु ज्ञान की महिमा का बोध हुआ और वे सच्चे गुरु की तलाश में निकल गए। उनकी भेंट प्रेमदास जी महाराज से हुई; दरिया ने उनसे गुरु बनने के लिए निवेदन किया। डॉ० सतीश कुमार ने अपने शोध ग्रंथ 'रामस्नेही संत- काव्य परंपरा एवं मूल्यांकन' में हस्त लिखित साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध किया कि प्रेमदास जी ने दरिया को शिष्य मान दीक्षा दी थी।
दरिया की अपने गुरु के प्रति परमात्मा जैसी अगाध श्रद्धा थी। इसका वर्णन दादू पंथी ब्रह्मदास ने भी किया है। युवावस्था में राम-नाम जप और योग साधना करते हुए दरिया ने आध्यात्मिक सिद्धियाँ प्राप्त कीं। इन्होंने आत्मज्ञान के लिए गुरु की संगत को अनिवार्य बताया।
"दरिया साधू किरपा करे, तो तारे संसार।
तारनहारा राम है, जा में न फेर न सार।।"
प्रेमदास जी से दीक्षित होकर दरिया ने रेण गाँव को ही तपोस्थली बनाया, जहाँ नित्य सत्संग में इनके अनुयायी और शिष्य आया करते थे। उनके ७२ शिष्यों में से किसनदास टांकला, सुखराम मेड़ता, पूरणदास रेण, नानकदास कुचेरा, चतुरदास रेण, हरखाराम नागौर, टेमदास डीडवाना, मनसाराम सांजू, ये ८ प्रमुख थे। शिष्य सुखराम मेड़ता से १० मील पैदल चलकर १२ वर्ष तक सत्संग सुनने आता रहा था। इसलिए दरिया साहेब ने शिष्य-प्रेम के कारण रेण और मेड़ता के बीच खेजड़ी वृक्ष को सत्संग हेतु चुना; वहाँ पेड़ के नीचे बैठ प्रवचन देते थे। कालांतर में वह स्थान 'खेजड़ा' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मारवाड़ नरेश उनके शिष्य सुखराम के अनुरोध से ही दरिया की शरण में आकर रोग मुक्त हुए थे। जोधपुर नरेश विजय सिंह जी भी दरिया की शरण में आए थे। उनकी अलौकिक और दिव्य शक्ति को पहचान कर दरिया साहब को दोनों ने गुरु मान दीक्षा ली थी।
दरिया ने अपने शिष्य राजाओं से जनता के सारे लाग बाग (लगान कर) माफ़ करवा दिए थे। उनके लोक कल्याणकारी चमत्कार से लोगों ने उन्हें ईश्वरीय रूप में मानना शुरू कर दिया था। दरिया के दिव्य रूप और कार्यों का बखान जय राम जी और आत्मा राम जी कृत 'लावणी' में मिलता है।
आत्मज्ञानी संत दरिया सहज ही लोगों के दुख दूर और रोग ठीक कर देते थे। वे मूर्ति पूजा, जीव हत्या, छुआछूत को धार्मिक आडंबर मान इनका विरोध करते थे। उन्होंने परमात्मा के नाम सुमिरन को सर्व सुलभ बताया। उनका 'राम' दशरथ नंदन राम न होकर निर्गुण निराकार ब्रह्म है। उनका 'राम' हिंदू धर्म के राम के 'रा' और मुस्लिम धर्म के मुहम्मद के 'म' से मिलकर बना है, जो सभी द्वंद्वों से परे और सर्व धर्म समन्वयकारी है।
"दरिया सुमिरै राम को, आत्म को आधार।
काया काची कांच सी, कंचन होत न बार।।"
दरिया महाराज को पूर्वाभास हो गया था कि कलयुगी लोगों को उनकी 'वाणियों' पर विश्वास नहीं होगा। इसलिए अपने लिखे १०००० से ज्यादा पदों, साखियों और दोहों के संग्रह को नदी में बहा दिया था। उनके शिष्यों को उनके जितने पद, साखी और दोहे कंठस्थ थे, बाद में 'दरिया बानी और जीवन-चरित्र' नाम से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुए। संत महाराज की दूसरी पुस्तक 'गुरु महिमा' नामक ग्रंथ का रचना काल वि० सं० १७९० माना जाता है।
"संवत १७ साल में वर्ष ९० वे जाण।
राम सागर के तीर महिमा करी बखान।।"
संत दरिया की वाणियाँ - श्री रामस्नेही संत वाणी और भजन संग्रह, रामस्नेही अनुभव आलोक, रामस्नेही अनुभव वाणी, श्री दरियाव दिव्य वाणी आदि पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हुईं। डॉ० सतीश कुमार ने अपने शोध ग्रंथ में दरिया रचित दो ग्रंथों 'भगत माल' और 'ब्रह्म ध्यान' के अलावा ७३ अन्य नए पदों और २१ कुंडलियों का उल्लेख किया है। डॉ० सतीश ने साक्ष्यों के आधार पर स्पष्ट किया कि वि० सं० १८०० में दरिया महाराज ने 'भगतमाल' की रचना कुचेरा नामक स्थान पर की थी। उसके बाद 'ब्रह्म ध्यान' की भी रचना की थी।
वर्ष १७५८ में रेण गाँव में ही उनकी मृत्यु हुई। दरिया साहेब के निर्वाण के बाद भी उनकी शिष्य परंपरा व अनुयायियों में वृद्धि होती गई। इसके परिणाम स्वरूप राजस्थान के अंदर और बाहर कई शहरों में रामद्वारे स्थापित किए गए। रेण में हर वर्ष चैत्र सुदी पूर्णिमा को मेला लगता है। उन्हें चाहने वाले बड़ी श्रद्धा और भक्तिभाव से उनके समाधि स्थल पर और मेला देखने जाते हैं।
दादू और कबीर की तरह दरिया महाराज भी समाज सुधारक थे। इसके अलावा उन्होंने ध्यान योग के जरिए लोगों के कष्ट और रोग भी दूर किए, समाज में स्त्रियों को सम्मानजनक स्थान दिलाया, कुरीतियों और धार्मिक पाखंडों का विरोध किया। उन्होंने 'आत्मा राम सकल घट भीतर' कहकर जाति और धर्म भेद को निर्मूल कर दिया। सभी धर्मों और वर्गों के लोग उनके अनुयायी थे। धर्म को सहज स्नेह भाव में अपने घट के भीतर ब्रह्म स्वरूप राम स्थित बताया। वे अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अक्रोध, अपरिग्रह, दुष्ट और व्यसन संग त्याग, नाम सुमिरन, आत्मानुसंधान, गुरु भक्ति आदि के उपदेश देकर सर्वहित और जन-कल्याण के लिए आजीवन सत्संग करते रहे, जिससे अनगिनत लोगों का कल्याण हुआ। ऐसे आत्मतत्त्व ज्ञाता संत दरिया को शत शत नमन।
संदर्भ
दरिया महाराज- कविता कोश
दरिया महाराज -विकिपीड़िया
Hindawi
दरिया वाणी - biography
Indira Gandhi national centre - रामस्नेही संप्रदाय के संत दरिया महाराज
भारतकोश
पृथ्वीराज रासो - यूट्यूब
लेखक परिचय
मीनाक्षी कुमावत मीरा
रोहिडा, सिरोही, राजस्थान
शिक्षा - एम०ए०, बी०एड०, नेट (हिंदी साहित्य)
राजकीय विद्यालय में अध्यापन कार्य
कृतियाँ - गुरु आराधनावली (भजन संग्रह), हाइकु कोश, आगाज़ (ग़ज़ल संग्रह) व १५ अन्य साझा संकलन, देश के कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित; साहित्यकार तिथिवार समूह व कविता की पाठशाला के ग़ज़ल समूह के लेखन कार्य में साझेदारी और अन्य साहित्यिक समूहों में लेखन कार्य।
वाह मीनाक्षी, भक्ति कवियों पर तुम बढ़िया-बढ़िया आलेख लिख रही हो। संत कवि दरिया पर भी उम्दा आलेख प्रस्तुत किया है। तुम्हें इसके लिए बधाई और धन्यवाद। दरिया जीवन भर गाँव में रहकर साधना करते रहे, धार्मिक और सामाजिक सुधारों में जुटे रहे। संत कवि दरिया को और उनकी साधना को नमन।
ReplyDeleteप्रिय सरोज दी, बहुत बहुत आभार। इस लेख को संपादित करने में आपका
Deleteपूर्ण योगदान रहा।आपने मेरे तीन आलेख संपादित किये। इसी संदर्भ में आपका व्यवहार बहुत मैत्री पूर्ण और सहयोगात्मक रहा, वो हमेशा स्मरणीय रहेगा। पुनः हार्दिक आभार
मीनाक्षी जी नमस्ते। संत दरिया महाराज जी पर आपका लेख अच्छा लगा। मेरे लिए तो बिल्कुल नई जानकारी थी। आपको इस जानकारी भरे लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteनमस्ते सर, बहुत आभार कि आपने लेख पढ़ा और आपको दरिया साहब की जानकारी अच्छी लगी, उसके लिए पुनः आभार
Deletenyc 👌👌 bahut acha dariya maharaj ji ka lekh 👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत आभार
DeleteBahut khoob दरिया महाराज जैसे संत के बारे में कुछ खास नहीं पता था तूने उनकी जीवनी पर प्रकाश डाला बहुत बढ़िया लेख ,,👌👌👌👍👍
ReplyDeleteप्रिय बहन, आपका स्नेह मेरी ऊर्जा। बहुत आभार कि लेख आपको पसंद आया।
Delete"एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा एक राम का सकल पसारा,एक राम त्रिभुवन से न्यारा . तीन राम को सब कोई धयावे, चतुर्थ राम को मर्म न पावे। चौथा छाड़ि जो पंचम धयावे, कहे कबीर सो हम को पावे।" अब इसके आगे की दास्तां आपने सुना दी।सच में परमेश्वर के नाम का इतना सूक्ष्म वर्णन पहली बार पढ़ा,वैसे तो भारत भूमि संतों की भूमि रही है लेकिन दरिया साहब का दर्शन अन्य संतों से कुछ इतर है । इतना सुन्दर और आध्यात्मिक लेख लिखने पर आपको बहुत बहुत बधाई 💐💐।आप यूं ही लिखती रहें ऐसी शुभकामनाएं 🙏💐
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार वेद जी, इतनी विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।
Deleteदरिया साहब के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी देने के लिये, मीनाक्षी जी का आभार. शब्द शब्द पठनीय. साहित्य और भक्ति का अद्भुत संगम.
ReplyDeleteदरिया साहब के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी देने के लिये, मीनाक्षी जी का आभार. शब्द शब्द पठनीय. साहित्य और भक्ति का अद्भुत संगम. @ अनिल कुलश्रेष्ठ
ReplyDeleteप्रणाम सर, आपको अच्छा तो मेरा लेखन सार्थक रहा। आभार
Deleteप्रिय मीनाक्षी आपका आलेख पढ़ा। संत दरिया महाराज पर गहन शोधपूर्ण जानकारी।
ReplyDeleteसाहित्य के प्रति आपके योगदान हेतु हार्दिक बधाई और साधुवाद ।
नमस्कार प्रिय दीदी, आपकी टिप्पणी हमेशा उत्साहित करने वाली होती, इसके लिए बहुत आभार। स्नेह पूर्ण मार्ग दर्शन मिलता रहे।
Delete