व्योम के उर में
अपार भरा हुआ है
जो अंधेरा
और जिसने विश्व को
दो बार क्या
सौ बार घेरा
उस तिमिर का नाश
करने के लिए
मैं अटल प्रण हूँ।
एक दीपक किरण हूँ।
हिंदी-साहित्य के इस जाज्ज्वल्यवान नक्षत्र का साहित्य की सभी विधाओं पर समान अधिकार है। डॉ० रामकुमार वर्मा आधुनिक हिंदी-साहित्य में 'एकांकी सम्राट' के रूप में जाने जाते हैं। वे हिंदी-भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, व्यंग्यकार और हास्य कवि हैं। डॉ० वर्मा की हास्य और व्यंग्य दोनों विधाओं में समान रूप से पकड़ है। एक नाटककार और कवि के साथ-साथ उन्होंने समीक्षक, अध्यापक तथा हिंदी-साहित्य के इतिहास-लेखक के रूप में भी हिंदी साहित्य सर्जन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
महान मनीषी डॉ० रामकुमार वर्मा मध्यप्रदेश के सागर जिले में १५ सितंबर १९०५ को पैदा हुए थे। इनके पिता लक्ष्मीप्रसाद वर्मा डिप्टी कलेक्टर थे। इन्हें प्रारंभिक शिक्षा माता श्रीमती राजरानी देवी द्वारा घर पर ही दी गई। इनकी माता विदुषी महिला होने के साथ-साथ हिंदी कवयित्रियों में विशिष्ट स्थान रखती थीं। रामकुमार वर्मा जी को बचपन में 'कुमार' नाम से पुकारा जाता था। वे बचपन से ही प्रतिभाशाली थे और अपनी कक्षा में प्रथम आया करते थे। अध्ययन के अतिरिक्त उनकी अनेक विधाओं में रुचि थी। फिल्मों में अभिनेता बनने की उनके अंदर प्रबल उत्कंठा रही। उन्होंने अपने विद्यार्थी जीवन में अनेक नाटकों में सफल अभिनेता के रूप में कार्य किया। रामकुमार वर्मा वर्ष १९२२ में जब दसवीं कक्षा में पहुँचे, तभी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गाँधी जी के द्वारा ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध असहयोग का आह्वान किया गया। उसी समय रामकुमार वर्मा राष्ट्र-सेवा में कूद पड़े और एक राष्ट्रीय कार्यकर्त्ता के रूप में अपनी छवि स्थापित की।
तत्पश्चात रामकुमार वर्मा जी ने पुनः अध्ययन प्रारंभ किया। सभी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करते हुए हरबर्ट बटलर तकनीकी विश्वविद्यालय, कानपुर से तकनीकी शिक्षा प्राप्त की तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य से स्नातकोत्तर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से 'हिंदी-साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' पर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। अनेक वर्षों तक रामकुमार वर्मा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी-विभाग में प्राध्यापक और फिर अध्यक्ष रहे। अपनी १७ वर्ष की उम्र में इन्होंने एक कविता 'देश सेवा' प्रतियोगिता के लिए ५१ रुपए का कानपुर के श्री बेनीमाधव खन्ना पुरस्कार जीता। यहीं से इनकी साहित्यिक यात्रा प्रारंभ हुई।
डॉ० रामकुमार वर्मा जी आधुनिक हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि, एकांकीकार और आलोचक हैं। इन्हें काव्य-संग्रह 'चित्ररेखा' के लिए हिंदी का सर्वश्रेष्ठ 'देव पुरस्कार', 'सप्तकिरण' एकांकी-संग्रह पर अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन पुरस्कार, 'विजय-पर्व' नाटक पर मध्यप्रदेश शासन परिषद की ओर से 'प्रथम पुरस्कार' मिला। वर्ष १९६३ में हिंदी-साहित्य में अमूल्य योगदान को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार ने इन्हें साहित्य और शिक्षा पर पद्मभूषण से अलंकृत किया।
हिंदी-एकांकी के जनक रामकुमार वर्मा ने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और साहित्यिक विषयों पर लगभग १५० से भी ज्यादा नाटक लिखे। इन्हें कविता, संगीत कलाओं में गहरी रुचि थी। इन्होंने अनेक कविता व कहानी-संग्रहों की रचना की। वर्ष १९५७ में रूसी सरकार के आमंत्रण पर वे मास्को गए तथा एक वर्ष तक मास्को विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे। वर्ष १९६३ में इन्हें नेपाल के 'त्रिभुवन विश्वविद्यालय' में शिक्षा सहायक के रूप में आमंत्रित किया और वर्ष १९६७ में श्रीलंका में भारतीय भाषा-विभाग के अध्यक्ष के रूप में भेजे गए।
हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान भगवतीचरण वर्मा ने इनके विषय में कहा था, "डॉ० रामकुमार वर्मा रहस्यवाद के पंडित हैं। उन्होंने रहस्यवाद के हर पहलू का अध्ययन किया है। उस पर मनन किया है। उसको समझना हो और उसका वास्तविक और वैज्ञानिक रूप देखना हो तो उसके लिए श्री वर्मा की 'चित्ररेखा' सर्वश्रेष्ठ काव्य-ग्रंथ होगा।"
डॉ० रामकुमार वर्मा की रहस्यवाद से परिपूर्ण कविताओं के अंश दृष्टव्य हैं,
मार्ग से परिचय नहीं है, किंतु परिचित शक्ति तो है
दूर हो आराध्य चाहें, प्राण में अनुरक्ति तो है।
जो प्रतीक्षा में पली वह रात क्या तुम जानते हो?
आँख की पुतली बनी वह रात क्या तुम जानते हो!
डॉ० रामकुमार वर्मा को प्रकृति में भी रहस्यवाद के दर्शन हो जाते हैं,
तू नव बसन्त मैं श्री बसन्त
तरुओं के तन की तू उमंग
मैं पल्लव का परिधान वृन्त।
"रहस्यवाद जीवात्मा की उस अंतर्निहित प्रवृत्ति का प्रकाशन है, जिससे वह दिव्य और अलौकिक शक्ति से अपना शांत और निश्चल संबंध जोड़ना चाहता है।" - रामकुमार वर्मा
डॉ० रामकुमार वर्मा का रहस्यवाद कबीर के रहस्यवाद से अनुप्राणित है। उन्होंने अपने शोध-ग्रंथ 'कबीर का रहस्यवाद' में इस पर विस्तृत प्रकाश डाला है। डॉ० रामकुमार वर्मा के शब्दों में कहा जाए तो, "यह रहस्यानुभूति इतनी अलौकिक होती है कि संसार के शब्दों में उसका स्पष्टीकरण असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। यह एक ऐसा गुलाब है जो किसी बाग़ में नहीं लगाया जा सकता, केवल उसकी सुगंध ही पाई जा सकती है। वह एक ऐसी सरिता है जिसे किसी गहन वन में नहीं देख सकते, वरन् कल-कल नाद करते हुए सुन सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि संसार की भाषा इतनी ओछी है कि उसमें हम पूर्ण रूप से रहस्यवाद की अनुभूति प्रकट नहीं कर सकते।"
डॉ० रामकुमार वर्मा का कवि-व्यक्तित्व द्विवेदीयुगीन प्रवृत्तियों से उदित होकर छायावादी क्षेत्र में मूल्यवान उपलब्धि सिद्ध हुआ। इनकी कविताओं में कल्पनावृत्ति, संगीतात्मकता, रहस्यमय सौंदर्य-दृष्टि का स्थान अनन्य है। छायावादकाल की कविताएँ इनकी कवि प्रतिभा का सुंदर प्रतिनिधित्त्व करती हैं।
इनकी कविता के इस अंश में छायावाद की दृष्टि प्रर्दशित होती है,
इस सोते संसार बीच,
जग कर, सज कर
रजनी बाले।
कहाँ बेचने ले जाती हो,
ये गजरे तारों वाले?
मोल करेगा कौन,
सो रही हैं उत्सुक
आंखें सारी।
मत कुम्हलाने दो,
सूनेपन में अपनी
निधियाँ न्यारी।।
डॉ० रामकुमार वर्मा की अमूल्य कृति 'चित्ररेखा' जो छायावाद और रहस्यवाद को अपने में समाहित किए प्रसिद्ध काव्य-रचना है, उसकी कविता का यह अंश दृष्टव्य है,
यह तुम्हारा हास आया।
इन फटे से बादलों में कौन-सा मधुमास आया?
यह तुम्हारा हास आया।
आंख से नीरव व्यथा के
दो बड़े आंसू बहे हैं,
सिसकियों में वेदना के
व्यूह यह कैसे रहे हैं!
एक उज्ज्वल तीर-सा रवि-रश्मि का उल्लास आया।
यह तुम्हारा हास आया।
आह, वह कोकिल न जाने
क्यों हृदय को चीर रोई,
एक प्रतिध्वनि-सी हृदय में
क्षीण हो हाय, सोई।
किन्तु इससे आज मैं कितने तुम्हारे पास आया!
यह तुम्हारा हास आया।
फूल-सी हो फूलवाली।
किस सुमन की सांस तुमने
आज अनजाने चुरा ली!
जब प्रभा की रेख दिनकर ने
गगन के बीच खींची।
तब तुम्हीं ने भर मधुर
मुस्कान कलियां सरस सींची,
किन्तु दो दिन के सुमन से,
कौन-सी यह प्रीति पाली?
डॉ० रामकुमार वर्मा का नाटककार व्यक्तित्त्व उनके कवि-व्यक्तित्त्व से अधिक शक्तिशाली और लोकप्रिय सिद्ध हुआ है। उनके नाटकों की विशेष महत्ता है और इस दिशा में वे आधुनिक हिंदी-एकांकी के जनक कहे जाते हैं, जो निर्विवाद सत्य है। प्रारंभिक प्रभाव की दृष्टि से इन पर जार्ज बर्नार्ड शा, इब्सन, मैटरलिंक, चेखव आदि का विशेष प्रभाव पड़ा; लेकिन वे इस क्षेत्र में, विशेषकर मनोवेगों की अभिव्यक्ति और अपने दृष्टिकोण में सदैव मौलिक और भारतीय रहे हैं। 'बादल की मृत्यु' इनका सर्वप्रथम एकांकी नाटक था, जो वर्ष १९३० में 'विश्वामित्र' पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इसके बाद इन्होंने 'दस मिनट', 'पृथ्वीराज की आंखें', 'चम्पक' और 'एक्ट्रेस' आदि एकांकी नाटकों की रचना की तथा इस उदय के बाद एकांकी नाटककार के रूप में आधुनिक हिंदी नाट्य साहित्य जगत में अपना स्थान बनाया। इन्होंने 'रेशमी टाई' के उपरांत अपने नाटकों में एक ऐतिहासिक एकांकी की विशेष धारा विकसित की। जिसमें उन्होंने सांस्कृतिक और साहित्यिक मान्यताओं का सुंदर समन्वय स्थापित किया है।
अपने नाटक 'रेशमी टाई' की भूमिका में डॉ० रामकुमार वर्मा लिखते हैं, "आधुनिक चिंतन में साम्यवाद के जो विचार उठ रहे हैं, उन्होंने ही हमारे साहित्य में प्रगतिशील रचनाओं को प्रोत्साहित किया है और हमारे नवीन लेखकों ने प्रगतिशीलता के नाम पर जो अपनी उच्छृंखलता पृष्ठों पर रख दी है, साहित्यकार हमें साहित्य क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ा सके हैं। उनका चिंतन-पक्ष जितना ही दुर्बल है, साहित्य पक्ष उतना ही निकृष्ट।"
'रेशमी टाई' के लिखने के पश्चात ही डॉ० रामकुमार वर्मा अचानक ऐतिहासिक नाटकों की रचना हेतु अग्रसर हुए। 'कौमुदी-महोत्सव' मौर्य-युगीन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को प्रकाशित करता एक कौतुहलपूर्ण नाटक है; जिसमें आचार्य चाणक्य राजनीतिक चालों व षड्यंत्रों के प्रति नासमझ मगध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य को चेताते हुए उसकी हत्या की साज़िश को नाकाम कर देते हैं। इसी प्रकार सम्राट अशोक महान की विजय पर लिखा उनका प्रसिद्ध नाटक 'विजय-पर्व' है, जिसकी भूमिका में वे लिखते हैं, "नवयुग के जागरण ने हमें नया प्रभात और नई किरण प्रदान की है। हमारे साहित्यिक और सांस्कृतिक वैभव को दृष्टि प्राप्त हुई है। पश्चिम ने हमें सवाक-चित्रपट प्रदान कर एक विशाल रंगमंच दिया है और हमने विश्वविद्यालयों तथा शिक्षा-संस्थाओं में विद्यार्थियों द्वारा एक प्रयोगात्मक रंगमंच एकांकी-नाटकों से प्राप्त किया है। अब ऐसा वातावरण हमें मिल गया है, जिसमें अभिनय और संगीत शिक्षा के उच्च स्तर पर आसीन हुआ है। वह दिन भी दूर नहीं है, जब ललित कलाएँ उच्च से उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में निर्धारित होगी और अभिनय-कला सांस्कृतिक अंग बनकर अपना विकास करेंगी।"
उनके प्रसिद्ध नाटक 'विजय-पर्व' का यह अंश आज के समय के लिए बहुत उपयुक्त है, "उपगुप्त- तो कहता हूँ, देवि! शांत हो! जब तक मनुष्य, आर्य सत्य से परिचित नहीं होता, उसे दु:ख उठाना ही पड़ता है। तथागत ने कहा कि भिक्षुओं! मैं सब बंधनों, लौकिक और अलौकिक से मुक्त हो गया। अनेक के लाभ के लिए विचरण करो, संसार के प्रति करुणा के लिए विचरण करो। 'देवि! मुझे विश्वास है, सम्राट अशोक इस धर्म-शिक्षा को मानकर संसार का कल्याण करेंगे।"
डॉ० रामकुमार वर्मा एक अच्छे कहानीकार भी हैं। इनकी प्रसिद्ध कहानियों में 'सांचे और कला', 'चेरी के पेड़', 'रात की रानी और लाल गुलाब', 'नीलकमल का पलायन' प्रमुख हैं। इनकी कहानी 'सांचे और कला' का यह अंश बहुत मार्मिक है, "इन कुछ क्षणों में ही मैंने बहुत कुछ जान लिया था, जैसे पाणिनि के सूत्रों पर पातंजलि का महाभाष्य पढ़ डाला हो। मेरे घर के चारों ओर बसे ये शिल्पकार-कुम्हार दीवाली के लिए खिलौने तैयार करने में व्यस्त थे। कभी यह तिजा़रत खूब चलती थी, पर आज के विज्ञान के युग में मिट्टी का महत्त्व इस्पात में समा गया है। कला मशीन में सिमट गई है और शिल्पकार के हाथ भी मिट्टी में सौंदर्य और प्राण डालने में अशक्त होते जा रहे हैं। जैसे सब कुछ व्यापार हो गया हो; जैसे सब कुछ का लक्ष्य सिर्फ पैसा और पेट हो।"
हिंदी साहित्य का यह महान मनीषी, नाटककार, कवि, कहानीकार, आलोचक ०५ अक्टूबर १९९० को हमारे मध्य से हमेशा के लिए विलीन हो गया। अब उनके साहित्य की रश्मि-किरणें हिंदी साहित्य के अनवरत पथ को आलोकित कर रही हैं। साहित्यकार कमलेश्वर कहते हैं, "डॉ० वर्मा ने एकांकी विधा का सृजन करके साहित्य में प्रयोगवाद को बढ़ावा दिया। डॉ० धर्मवीर भारती, अजित कुमार, जगदीश गुप्त, मार्कण्डेय, दुष्यंत, राजनारायण, कन्हैयालाल नंदन, रमानाथ अवस्थी, ओंकारनाथ श्रीवास्तव, उमाकांत मालवीय और स्वयं मैं उनका छात्र रहा हूँ।" ऐसा प्रतीत होता है कि जीवन के रंगमंच के नेपथ्य से अब भी उनके स्वर सुनाई देते हैं,
संघं शरणं गच्छामि! धम्मं शरणं गच्छामि!! बुद्धं शरणं गच्छामि!!!
संदर्भ
कबीर का रहस्यवाद
हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास
विजय पर्व
कौमुदी महोत्सव
चित्ररेखा
विकिपीडिया
लेखक परिचय
सुनील कुमार कटियार
शिक्षा - एमए अर्थशास्त्र
संप्रति - उत्तर प्रदेश कोपरेटिव फेडरेशन (सेवानिवृत्त)
सदस्य - जनवादी लेखक संघ (राष्ट्रीय परिषद)
प्रकाशन - स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित
निवास - ६१-अ, भोपतपट्टी, फर्रुखाबाद (उत्तर-प्रदेश) भारत।
मोबाइल - ७९०५२८२६४१, ९४५०९२३६१७
ईमेल - sunilkatiyar57@gmail.com
सुनील जी, आपने कितने उम्दा उद्धरण चुन कर राजकुमार वर्मा के साहित्य-संसार के दर्शन करवाए। कविताओं में रहस्यवाद की झलक और रहस्यवाद को परिभाषित करता उनका कथ्य तथा उनके नाटकों के वाक्य सभी बेहतरीन। सरस शब्दों में एकांकी-जनक का कहानीनुमा परिचय देने के लिए आपको सधन्यवाद बधाई।
ReplyDeleteसुनीलजी, बहुआयामी शख़्सियत डा. रामकुमार वर्मा के जीवन और साहित्य पर बहुत सुंदर, ज्ञानवर्धक, प्रेरक और पठनीय लेख के लिए आपको हार्दिक बधाई और धन्यवाद।
ReplyDeleteसुनील जी नमस्ते। आपने डॉ रामकुमार वर्मा जी पर अच्छा लेख लिखा है। स्कूल के दिनों में ही उनके एकांकी पढ़ने का सुवसर मिला। जिसमें दीपदान आज भी स्मृति में है। आपके लेख के माध्यम से उनके विस्तृत साहित्य सृजन का सुंदर परिचय मिला। लेख में सम्मिलित कविताओं के अंश भी अच्छे हैं। आपको इस रोचक लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteपठनीय,संग्रहणीय, अभिनंदनीय
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