Tuesday, October 18, 2022

संत कवि रामानंद : रामानुज परंपरा के श्रेष्ठ आचार्य


"जाति पाति पूछे ना कोई,

हरि को भजै सो हरि का होई।"

उपर्युक्त पंक्तियाँ वैसे तो कबीर जी की हैं, पर संत रामानंद का नाम उनके प्रसिद्ध शिष्य कबीर जी के उल्लेख बिना अधूरा सा है। कबीर १५वीं सदी के उन संत कवियों में से हैं जिन्होंने निर्गुण रूप से ईश्वर की उपासना की। हिंदी साहित्य का भक्ति आंदोलन दक्षिण भारत से शुरु हुआ और उत्तर भारत में इसे प्रसारित करने का श्रेय संत रामानंद को प्राप्त है। रामानंद के जाति विरोध का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उनके बारह शिष्यों में सभी जातियों के शिष्य शामिल हैं। ये हैं, कबीर, रैदास, धन्ना, सेना, पीपा, भावानंद, अनंतानंद, सुखानंद, सुसुरानंद, नरहर्यानंद, पद्मावती और सुरसुरी (सुरसुरानंद की पत्नी)। इन्हें द्वादश महाभागवत के नाम से जाना जाता है।

१३०० ईस्वी में उत्तर प्रदेश के एक नगर प्रयागराज में जन्मे स्वामी रामानंद एक ब्राह्मण परिवार से थे। प्रयागराज हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों के लिए एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। मुगलकाल के दौरान मुगल सम्राट अकबर ने एक नगर को 'इलासबास' (अल्लाह का शहर) घोषित किया जो कि बाद में 'इलाहाबाद' के नाम से प्रचलित हो गया। पंरतु अब इसे बदलकर पुनः प्रयागराज कर दिया गया है।

स्वामी रामानंद की माता का नाम सुशीला देवी और पिता का नाम पुण्य सदन था। इनका परिवार बहुत ही धार्मिक विचारों वाला रहा और इसी के चलते बालक रामानंद को शिक्षा प्राप्त करने के लिए काशी के स्वामी राघवानंद के पास श्रीमठ भेज दिया गया। वहाँ शिक्षा प्राप्त करते हुए उन्होंने हिंदू धर्म के वेद, पुराण, शास्त्र पढ़े तो वहीं दूसरे धर्मग्रंथों का भी विस्तृत अध्ययन किया। कहते है पंचगंगा घाट जो कि पूरी तरह से पत्थरों से निर्मित और उत्तर-पश्चिम में पंचगंगा नदी पर निर्मित एक प्रसिद्ध घाट है, यहाँ पर बालक रामानंद ने कठोर साधना से लोगों के बीच अपना श्रेष्ठ नाम बना लिया था। पंचगंगा घाट के आस-पास कई कोठरियाँ हैं, जो बरसात के मौसम में पानी में डूबी रहती हैं। इनमें से कुछ में शिवलिंग हैं तो कुछ में भगवान विष्णु की मूर्तियाँ स्थापित हैं। कुछ खाली भी हैं जिनका इस्तेमाल ध्यान और योग करने हेतु आज भी किया जाता है।

स्वामी रामानंद ने श्री संप्रदाय की स्थापना की, जिसे रामानंदी संप्रदाय के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय समाज में विष्णु के उपासक ब्राह्मणों को वैष्णव या बैरागी कहा जाता है। वैष्णव संप्रदाय के समस्त प्राचीन मंदिरों की अर्चना वैष्णव-ब्राह्मणों (बैरागी) द्वारा ही की जाती है। वैष्णवीय आध्यात्मिक मार्ग में परंपरानुसार इन्हें गुरु पद प्राप्त है। वैष्णवीय परंपरा कर्मकांड पर ज़ोर ना देते हुए भक्तिमार्ग पर अधिक ज़ोर देती है। अतः वैष्णव ब्राह्मण मंदिरों में भगवान की पूजा अर्चना करते है। रामानंद संप्रदाय के दार्शनिक सिद्धांत हैं, ब्रह्म राम, जीव, बद्ध जीव,  मुक्त जीव, प्रकृति, मोक्ष और साकेत। रामानंद ने जहाँ भक्ति को सभी के लिए सुलभ बनाया वहीं विरक्त संन्यासी के लिए कठोर नियम भी बनाए ताकी गृहस्थों में वर्णसंकरता सी ना फैले। स्वामी रामानंद के गुरुत्व में सगुण और निर्गुण दोनों तरह के संत-उपासक विश्राम पाते थे। उन्होंने "सर्वे प्रपत्तेधिकारिणों मताः" का शंखनाद करते हुए भक्ति का मार्ग सभी के लिए खोल दिया। इसमें समाज के सभी वर्गों के लोग और महिलाएँ सभी शामिल हुए। 

स्वामी रामानंद ने भक्ति मार्ग का प्रचार करने के लिए देश भर की यात्राएँ की। वे पश्चिम और दक्षिण भारत के कई धर्मस्थानों पर गए और रामभक्ति का प्रचार किया। उन्हें स्वामी रामानुजाचार्य की परंपरा का आचार्य माना जाता है। लेकिन उन्होंने अपनी उपासना पद्धति में राम और सीता को सबसे ऊपर की वरीयता दी। राम भक्ति के पावन भक्ति भाव को समाज में फैले जात-पात के वर्गीकरण और ऊँच-नीच की विभन्नताओं से हटाकर जन-जन तक पहुँचाया। वे भक्ति मार्ग के ऐसे सोपान थे जिन्होंने भक्ति साधना को नया आयाम दिया। उनकी पवित्र चरण पादुकाएँ आज भी श्रीमठ, काशी में सुरक्षित हैं, जो करोड़ों रामानंदियों की आस्था का केंद्र है। स्वामीजी ने भक्ति के प्रचार में संस्कृत की जगह लोकभाषा को प्राथमिकता दी। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिसमें आनंद भाष्य पर टीका भी शामिल है। वैष्णवमताब्ज भास्कर और श्रीरामार्चन पद्धति उनकी प्रमाणिक रचनाएँ है। 

बताया जाता है कि स्वामी रामानंद ने तत्कालीन समाज में विभिन्न मत-पंथ संप्रदायों में घोर वैमनस्यता और कटुता को दूर कर हिंदू समाज को एक सूत्र में बांधने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उनकी शिष्य मंडली में उस काल के महान संत कबीरदास, रैदास, सेना जैसे निर्गुणवादी संत थे तो दूसरे पक्ष में अवतारवाद के पूर्ण समर्थक मूर्तिपूजा करने वाले स्वामी अनंतानंद, भावानंद, सुरसुरानंद और नरहर्यानंद जैसे वैष्णव ब्राह्मण सगुणोपासक आचार्य भक्त भी थे। गागरौनगढ़ नरेश 'पीपाजी' जैसे क्षत्रिय, सगुणोपासक भक्त भी उनके शिष्य थे। आचार्य रामानंद के बारे में प्रसिद्ध है कि तारक राममंत्र का उपदेश उन्होंने पेड़ पर चढ़कर दिया था ताकि सब जाति के लोगों के कान में पड़े और अधिक से अधिक लोगों का कल्याण हो सके। 

स्वामी रामानंद की महत्ता मध्ययुगीन धर्म साधना के केंद्र में एक प्रकाश ज्योति सी है। उन्होंने अभूतपूर्व सामाजिक क्रांति का श्रीगणेश करते हुए बड़ी जीवटता से समाज और संस्कृति की रक्षा की। उन्हीं के चलते उत्तरभारत में तीर्थ क्षेत्रों की रक्षा और वहाँ सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना संभव हो सकी। कहते है कि उस युग की परिस्थितियों के अनुसार, वैरागी साधुओं को अस्त्र-शस्त्र से सज्जित अनी के रूप में संगठित कर तीर्थ-व्रत की रक्षा के लिए, धर्म का सक्रिय मूर्तिमान स्वरूप खड़ा किया। तीर्थस्थानों से लेकर गाँव-गाँव में वैरागी साधुओं ने अखाड़े स्थापित किए। कुछ तथ्य बताते है कि मूल्य ह्रास की इस विषम अवस्था में भी संपूर्ण संसार में रामानंद संप्रदाय के सर्वाधित मठ, संत, रामगुणगान, अखंड रामनाथ संकीर्तन आज भी व्यवस्थित हैं और सर्वत्र आध्यामिक आलोक प्रसारित कर रहे हैं। 

किवंदति यह भी है कि अपने पहले संबोधन में ही जगदगुरू रामानंदाचार्य ने हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को दूर करने तथा परस्पर आत्मीयता एवं स्नेहपूर्ण व्यवहार के बदौलत धर्म रक्षार्थ विराट संगठित शक्ति खड़ा करने के संकल्प लिया। स्वामी रामानंद ने मध्यकालीन भक्ति आंदोलन में रामभक्ति धारा को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुँचाया।  

इसी के चलते एक घटना बहुत प्रचलित है कि संत कबीर जी, जो एक जुलाहा जाति से थे, अपनी युवावस्था में स्वामी रामानंद  को अपना गुरु बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने कई बार स्वामी रामानंद  जी से मिलने का प्रयत्न किया पर स्वामी रामानंद के आस-पास रहने वाले लोगों ने संत कबीर जी को कभी उनसे मिलने का मौका नहीं दिया। कबीर जी ने कई आग्रह किए परंतु हर और निराशा ही हाथ लगी। लेकिन कबीर जी स्वामी रामानंद जी से मिलने को इतने आतुर थे कि उन्होंने एक उपाय निकाला। उपाय था कि दिन के पहले पहर में ही, उजाला होने से पहले, जब स्वामी रामानंद जी गंगा घाट पर स्नान करने पत्थर की पोड़ियों से गुजरेंगे तो उनसे मिला जा सकता है। और फिर धीरे-धीरे मिलने की ये योजना उनके मन में उछाल लेने लगी। अतः एक सुबह, तड़के- तड़के कबीर जी अंधेरे में मुहँ छिपाए स्वामी रामानंद  जी का पीछा करते-करते गंगा घाट तक आ गए। उधर स्वामी रामानंद  पानी में उतरे और इधर घाट की पोड़ियों का रास्ता घेरने के लिए कबीर जी ने स्वामी रामानंद  जी की खड़ाऊ से लेकर ऊपर तक की कुछ पोड़ियों तक बाड़ लगा दी और आखिर में स्वयं लेट गए। अंधेरा रहते-रहते जब स्वामी रामानंद  जी ने अपना स्नान समाप्त किया और अपनी खड़ाऊ पहन कर ऊपर पोड़ियों से आगे की ओर बढ़े तब अचानक कबीर जी के शरीर से ठोकर खा बैठे। उनके मुहँ से राम नाम का जाप निकला। कबीर जी को लगा कि उनको स्वामी रामानंद  जी अपना आशीर्वाद दे रहे हैं। और तभी से कबीर जी ने लोगों को बताना शुरु कर दिया कि स्वामी रामानंद  जी ने उनको शिष्य जानकर आशीर्वाद दिया और स्वामी रामानंद  ही उनके गुरु है। 

कुछ अरसे बाद संत कबीर जी ने अपनी पहचान लोगों में बना ली। उनके शिष्य रहे संत रविदास जी की वाणी बखान करती है कि कबीर जी को स्वामी रामानंद  जी ने बहुत प्रभावित किया। कहते है,

रामानंद मोहि गुरु मिल्यौ, पाया ब्रह्म विसास।

रामनाम अमी रस पियौ, रविदास हि भयौ षलास॥

संत रामानंद : जीवन परिचय

जन्म

१२९९ ई०, प्रयाग, उत्तरप्रदेश

निधन

१४११ ई०

पिता 

श्री पुण्य सदन

माता 

श्रीमती सुशीला देवी

गुरु 

स्वामी राघवानंद

शिक्षा व कार्य-क्षेत्र

शिक्षा 

स्वामी राघवानंद के पास श्रीमठ से उनकी शिक्षा आरंभ हुई 

कार्यक्षेत्र 

भक्ति का प्रचार 

साहित्यिक रचनाएँ

प्रमाणिक रचनाएँ (संस्कृत में)

  • वैष्णवमताब्ज भास्कर

  • श्रीरामार्चनपद्धति


उनकी रचना के रूप में प्रसिद्ध (हिंदी में)

  • रामरक्षास्तोत्र

  • सिद्धान्तपटल

  • ज्ञानलीला 

  • ज्ञानतिलक

  • योगचिन्तामणि

  • सतनामी पन्थ


संदर्भ


लेखक परिचय :

गीता घिलोरिया

शिक्षा : मास्टरस इन कंप्यूटर एप्लिकेशन (MCA)

प्रकाशित : हिन्दी चेतना, गर्भनाल , साँझा संसार , साहित्य सुधा , विभोर स्वर, हिंदुस्तान टाइम्स, कॉलेज पत्रिका, केंद्रीय विद्यालय पत्रिका,

कार्य : Working with Duke Energy Corporation/ डयुक एनर्जी में कार्यरत - शारलेट/शार्लेट/ शेर्लोट, अमेरिका

6 comments:

  1. बहुत बढ़िया आलेख एक महान संत पर जिन्होंने भक्ति की अलख उत्तर भारत के कोने कोने में जगाई। महान संत को शत शत नमन।गीता जी को बधाई👍🏻🙏🏻🥰 अच्छे आलेख के लिए

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया मीनाक्षी जी !

      Delete
  2. गीता जी नमस्ते। आपने संत कवि रामानन्द जी पर अच्छा लेख लिखा है। लेख के माध्यम से उनके बारे में विस्तृत जानकारी मिली। रामरक्षा स्त्रोत के रचयिता भी रामानन्द जी थे, मुझे आज ही पता चला। आपको इस जानकारी भरे लेख के लिए हार्दिक आभार।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया दीपक जी!

      Delete
  3. कवि रामानंद भक्ति परंपरा का रोचक परिचय, हार्दिक बधाई गीता जी🙏💐👏

    ReplyDelete
  4. शुक्रिया विजय जी !

    ReplyDelete

आलेख पढ़ने के लिए चित्र पर क्लिक करें।

कलेंडर जनवरी

Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat
            1वह आदमी उतर गया हृदय में मनुष्य की तरह - विनोद कुमार शुक्ल
2अंतः जगत के शब्द-शिल्पी : जैनेंद्र कुमार 3हिंदी साहित्य के सूर्य - सूरदास 4“कल जिस राह चलेगा जग मैं उसका पहला प्रात हूँ” - गोपालदास नीरज 5काशीनाथ सिंह : काशी का अस्सी या अस्सी का काशी 6पौराणिकता के आधुनिक चितेरे : नरेंद्र कोहली 7समाज की विडंबनाओं का साहित्यकार : उदय प्रकाश 8भारतीय कथा साहित्य का जगमगाता नक्षत्र : आशापूर्णा देवी
9ऐतिहासिक कथाओं के चितेरे लेखक - श्री वृंदावनलाल वर्मा 10आलोचना के लोचन – मधुरेश 11आधुनिक खड़ीबोली के प्रथम कवि और प्रवर्तक : पं० श्रीधर पाठक 12यथार्थवाद के अविस्मरणीय हस्ताक्षर : दूधनाथ सिंह 13बहुत नाम हैं, एक शमशेर भी है 14एक लहर, एक चट्टान, एक आंदोलन : महाश्वेता देवी 15सामाजिक सरोकारों का शायर - कैफ़ी आज़मी
16अभी मृत्यु से दाँव लगाकर समय जीत जाने का क्षण है - अशोक वाजपेयी 17लेखन सम्राट : रांगेय राघव 18हिंदी बालसाहित्य के लोकप्रिय कवि निरंकार देव सेवक 19कोश कला के आचार्य - रामचंद्र वर्मा 20अल्फ़ाज़ के तानों-बानों से ख़्वाब बुनने वाला फ़नकार: जावेद अख़्तर 21हिंदी साहित्य के पितामह - आचार्य शिवपूजन सहाय 22आदि गुरु शंकराचार्य - केरल की कलाड़ी से केदार तक
23हिंदी साहित्य के गौरव स्तंभ : पं० लोचन प्रसाद पांडेय 24हिंदी के देवव्रत - आचार्य चंद्रबलि पांडेय 25काल चिंतन के चिंतक - राजेंद्र अवस्थी 26डाकू से कविवर बनने की अद्भुत गाथा : आदिकवि वाल्मीकि 27कमलेश्वर : हिंदी  साहित्य के दमकते सितारे  28डॉ० विद्यानिवास मिश्र-एक साहित्यिक युग पुरुष 29ममता कालिया : एक साँस में लिखने की आदत!
30साहित्य के अमर दीपस्तंभ : श्री जयशंकर प्रसाद 31ग्रामीण संस्कृति के चितेरे अद्भुत कहानीकार : मिथिलेश्वर          

आचार्य नरेंद्रदेव : भारत में समाजवाद के पितामह

"समाजवाद का सवाल केवल रोटी का सवाल नहीं है। समाजवाद मानव स्वतंत्रता की कुंजी है। समाजवाद ही एक सुखी समाज में संपूर्ण स्वतंत्र मनुष्यत्व...