मध्यकालीन हिंदी साहित्य की सगुण भक्ति काव्यधारा में नरोत्तमदास का महत्त्वपूर्ण स्थान है। नरोत्तमदास कृष्ण भक्ति काव्य परंपरा के प्रमुख कवियों में से एक माने जाते हैं। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के वाड़ी नामक कस्बे में सन १४९३ ई० में हुआ था। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। वैसे तो नरोत्तमदास के नाम से तीन-चार रचनाएँ प्राप्त होती है, लेकिन सुदामाचरित खंडकाव्य उनकी लिखी एकमात्र रचना है, जिसकी प्रामाणिकता असंदिग्ध है।
कवि की लेखनी में बहुत शक्ति होती है। वह अपनी कल्पना के द्वारा शब्दों को ऐसे संजोता है कि रचना सजीवता का भान कराती है। सहृदय व्यक्ति अनायास ही उसकी तरफ आकृष्ट हो जाते हैं। किसी महान कथा या घटना को यदि जीवित रखना है, तो कविता में व्यक्त कर देना चाहिए। गोस्वामी तुलसीदास जैसे महान कवि यदि रामकथा को काव्यात्मक रूप में व्यक्त न करते तो आज राम का मर्यादा पुरुषोत्तम रूप हमारे सामने न होता। वास्तविकता तो यह है कि कवि अपनी मौलिकता की वजह से स्वयं तो जीवित रहता ही है, साथ ही अपने चरित-नायक को भी अमर कर देता है। नरोत्तमदास इसी श्रेणी के कवियों में से एक है।
नरोत्तमदास की रचना सुदामाचरित उन्हें हिंदी साहित्य में ख्यातिपूर्ण स्थान दिलाती है। यह ब्रजभाषा में लिखी गई रचना है। इसकी रचना संवत १६०५ के आस-पास मानी जाती है। इस खंडकाव्य के माध्यम से नरोत्तमदास जी ने निर्धन ब्राह्मण सुदामा की कथा को वर्णित किया है जो श्रीकृष्ण के परम प्रिय मित्र एवं भक्त थे। सुदामा कृष्ण के बाल सखा भी रहे। सुदामा-कृष्ण मित्रता की कथा हमें श्रीमदभागवत पुराण में मिलती है। सुदामा चरित के विषय में अपने इतिहास ग्रंथ में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है, "यद्यपि यह छोटा है पर इसकी रचना बहुत सरल और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है। भाषा भी बहुत परिमार्जित है और व्यवस्थित भी। बहुतेरे कवियों के समान अरबी के शब्द और वाक्य इसमें नहीं है।"
सुदामाचरित में नरोत्तमदास ने सुदामा की दीनता एवं गरीबी का बहुत ही यथार्थ एवं मार्मिक चित्रण किया है। सुदामा एक दिन अपनी पत्नी को कृष्ण और अपनी मित्रता की बात बताते हैं। यह सुन सुदामा की पत्नी बड़ी उम्मीद से आग्रह करती हैं कि सुदामा कृष्ण से मिलने जाएँ, लेकिन सुदामा का आत्मसम्मान इसकी अनुमति नहीं देता। सुदामा की पत्नी बार-बार पति से निवेदन करती है, उसे पता है कि यदि सुदामा कृष्ण से मिलने जाऐंगे तो कृष्ण अवश्य हमारी निर्धनता दूर करेंगे। पत्नी के बार-बार आग्रह करने पर सुदामा कृष्ण से मिलने का निश्चय करते हैं। मित्र के प्रति कृष्ण एवं सुदामा की आतुरता देखते ही बनती है। दो परम प्रिय मित्रों का मिलना और उनके हृदय की कोमलता का जैसा जीवंत चित्रण नरोत्तमदास ने किया है, वह अद्वितीय है। भाव की गहनता एवं विकलता इतनी गहरी है कि कोई भी भावुक हो सकता है, ऐसा भाव जो पत्थर को भी पिघला दे। शांत एवं करुण रस से ओत-प्रोत यह खंडकाव्य हिंदी की अमूल्य धरोहर है। नरोत्तमदास जी ने अपनी इस रचना में एक ओर तो कृष्ण के सहृदयपूर्ण स्नेह को दिखाया है तो दूसरी तरफ सुदामा की गरीबी का यथार्थ चित्रण किया है,
छोरत सकुचत गांठ को प्रभु हेरत तेहि ओर।
झीन पटा छोरत भयौ बिथरि गए तेहि ठौर।।
कथा के अनुसार सुदामा की पत्नी कहती है, दोस्त के घर जा रहे हो तो कुछ लेकर जाओ, खाली हाथ जाना ठीक नहीं है। जब घर में तो कुछ भी नहीं पाती तो आस-पड़ोस से माँग कर कुछ मुट्ठी चावल लाती है और उसे एक कपड़े में बाँध कर देती है। जो स्थिति उस कपड़े की है, वही स्थिति सुदामा के जीवन की भी है। कपड़ा ऐसा कि जैसे ही श्री कृष्णजी ने उसकी गाँठ खोली वह फट गया और सब चावल बिखर गया। इससे ज्यादा दरिद्रता, गरीबी का यथार्थ चित्रण शायद ही और कहीं हो।
सुदामा चरित अत्यंत सहज, स्वाभाविक, सरल एवं भक्ति की भावना से ओत-प्रोत एक रोचक रचना है। इसी एकमात्र रचना ने नरोत्तमदास को हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। सुदामा चरित के द्वारा कवि का उद्देश्य केवल गरीबी का चित्रण करना नहीं था बल्कि मित्रता एवं विनय के मूल्य की प्रतिष्ठा करना एवं मित्रता की मिसाल देना तथा पाठक के मन को द्रवीभूत करना था। १२१ छंदों का यह एक छोटा सा ग्रंथ है जो बहुत ही सरल, सहज एवं हृदयग्राही है।
नरोत्तमदास की यह रचना अपनी सहजता, सरलता एवं धार्मिकता के कारण हिंदी साहित्य में अपना विशेष स्थान बनाती है। नरोत्तमदास जी ने न केवल अपने समकालीन बल्कि अपने बाद की पीढ़ी का भी पथ-प्रदर्शन किया है। नरोत्तमदास जी की कृष्ण भक्ति अमूल्य निधियों में से एक है। कृष्ण की विह्वलता और करुणा का मनोरम चित्रण नरोत्तमदास जी ने किया है,
देखि सुदामा की दीन दशा करुणा करिकै करुणानिधि रोए
पानी परात को हाथ छुयो नहिं नैनन के जल सों पग धोए
नरोत्तमदास जी ने लिखा है कि जब कृष्ण और सुदामा आमने-सामने हुए तो सुदामा की दीनता एवं गरीबी को देखकर करुणा के सागर श्रीकृष्ण द्रवित हो गए। उनकी आँखों से अश्रुधारा कुछ ऐसे बहने लगी कि उसी से सुदामा के चरण धोए जा सकते थे। जो पानी उन्होंने मँगवाया था, अपने मित्र का चरण धोने के लिए, उसे छुने की आवश्यकता ही नहीं थी। यह कृष्ण की व्याकुलता एवं मित्र के प्रति अगाध प्रेम को दर्शाता है।
मित्रता के आदर्श को यदि समझना हो तो उसके स्वरूप को समझना जरूरी होता है। संसार में सबसे बड़ा भाव जो है वह है स्नेह। जिसके हृदय में स्नेह न हो उसे हृदयहीन समझना चाहिए। वह किसी भी रस का अनुभव नहीं कर सकता। आज के इस आधुनिकतावादी युग में मित्रता का अर्थ स्वार्थ ने ले लिया है। सुदामाचरित से जो हमें शिक्षा मिलती है, उसमें सबसे महत्वपूर्ण है - मित्रता का निर्वाह, आपत्ति में मित्र का साथ देना, उससे सहानुभूति रखना। कृष्ण एवं सुदामा की स्थिति में जमीन एवं आसमान का अंतर है, किंतु उनका सखा भाव एक जैसा है वह आज भी हमारे मन को आनंद प्रदान करता है। सच्ची मित्रता का आदर्श रूप यही है। नरोत्तमदास ने कृष्ण एवं सुदामा की मित्रता का उच्चतम आदर्श प्रस्तुत किया है।
नरोत्तमदास जी की भाषा सीधी, सरल एवं प्रभावपूर्ण है। उनकी भाषा की विशेषता है कि उसमें भावुकता है। सुदामा एवं उनकी पत्नी के अंतर्मन में नरोत्तमदास जी ने प्रवेश करके उनके मनोभावों का चित्रण बहुत ही सीधी एवं स्पष्ट भाषा में किया है। सुदामा बहुत ही सहज स्वभाव के संतोषी व्यक्ति थे। उनका मानना था कि सांसारिक भोगों में कुछ नहीं रखा है, सब निराधार है। इनसे दूर रहना ही हितकर है। वे कहते हैं,
कह्यौ सुदामा बान सुनु और वृथा सब भोग।
सत्य भजन भगवान को सहित धर्म जप जोग।।
हिंदी साहित्य के इतिहास में अनेकानेक कवि हुए, जिन्होंने सुदामा चरित लिखा है लेकिन जो ख्याति, जो सम्मान नरोत्तमदास जी को मिला है वह और किसी भी अन्य कवि को नहीं मिला है। कृष्ण एवं सुदामा की मित्रता की मिसालें दी जाती है। यह कथा ही मर्मस्पर्शी है। उस पर नरोत्तमदास ने अपनी ललित कल्पना से उसे और भी मनमोहक बना दिया है। सुदामाचरित में कवि ने दोहा, कवित्त, सवैया और कुंडलिया इन चार छंदों का प्रयोग किया है। डॉ० नगेंद्र ने अपने ग्रंथ रीतिकालीन कवियों में सबसे पहले सवैया का प्रयोग करने वाले कवियों की श्रेणी में नरोत्तमदास जी को रखा है।
संदर्भ
हिंदी साहित्य का इतिहास, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी।
लेखक परिचय
डॉ० सुमिता त्रिपाठी
सहायक आचार्य, दयालसिंह सांध्य महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय
मोबाइल 9968043067
इस सारगर्भित आलेख की प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई !
ReplyDeleteऐसे कवियों को जानना आवश्यक है .
बहुत सुंदर लेख, भावों की स्याही से लिखा हुआ-सा। सुमित्रा जी इस भेंट के लिए बहुत-बहुत बधाई और आभार।
ReplyDeleteसुमिता जी नमस्ते। आपने नरोत्तमदास जी पर अच्छा लेख लिखा है। उनके द्वारा रचित सुदामाचरित को पढ़ कर मन भाव विभोर हो जाता है। आपने उनके सृजन को सुंदर रूप में प्रस्तुत किया। आपको इस रोचक लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुमिता जी, नरोत्तमदास के व्यक्तित्व और कृतित्व से इतने सुन्दर शब्दों में परिचय कराने के लिए धन्यवाद। कृष्ण और सुदामा की दोस्ती और आत्मीयता के किस्से-कहानियाँ बहुत सुने-पढ़े थे। आपके इस हृदयग्राही आलेख से वे पुनः याद आने लगे।
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