Sunday, October 16, 2022

मृदुला गर्ग : स्त्री विमर्श की सजग प्रहरी

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"यह मैं हूँ या त्रासदी की प्रतिमूर्तियह चित्र क्या है - टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों से बना एक जाल और उसके भीतर से झाँकती दो आँखें। तमाम माहौल को डसती बड़ी-बड़ी दो आँखें। आँसुओं से भीगीयंत्रणाओं से बोझिलसंत्रास से विस्फोटित। फिर भी उदासीन। काल के हाथोंपिटी-हारी एक दुखी बुढ़िया की तस्वीर।"

'यह मैं हूँकी सरला कालरा तथा उस जैसी समाज में बहुप्रशंसित मगर वास्तविक जीवन में थकी-हारीउपेक्षित और अंतर्द्वंद्व में उलझी अनेक आधुनिक स्त्रियों की आंतरिक पीड़ा और आवेश को अपनी लेखनी का आश्रय देतीअभिव्यक्ति का वृहद संसार सौंपने में सक्षम लेखिका मृदुला गर्ग की प्रसिद्धि परंपरागत ढंग से अलग हटकर किए गए लेखन के लिए अधिक है। विवाहेतर संबंधों पर लिखी रचनाएँ होंया दमित-शोषित वर्ग की घुटी चीखें, पर्यावरण जनित चिंताएँ होंया फिर इंडिया टुडे के स्तंभ 'कटाक्षके तीखे व्यंग्य - उनके विषयों की नवीनता और कथानक की विविधता ने उन्हें हिंदी साहित्य जगत में एक अलग पहचान दी। साहित्य के प्रति मृदुला गर्ग का रुझान बचपन से ही रहा। उन्होंने स्वयं कहा है,

"साहित्य पठन से मेरा लंबा लगाव रहा। बचपन से ही साहित्य मेरा एकमात्र आसरा था। वह मेरे दिलो-दिमाग का हिस्सा बन गया। चूँकि उसने मेरे जीवन में बहुत जल्दी प्रवेश कर लिया था इसलिए बड़े नामों से मुझे डर नहीं लगता था।

२५ अक्तूबर १९३८ में कलकत्ता (अब कोलकाता) में जन्मी मृदुला गर्ग जब तीन वर्ष की थीं तब उनके पिता का तबादला दिल्ली हो गया था। उनकी शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में ही हुई। उनकी माँ रविकांता जैन साहित्य प्रेमी व सुसंस्कृत महिला थीं। उन्हें हिंदीअँग्रेज़ी उर्दू का अच्छा ज्ञान था। प्रायः वे बीमार रहतीं और बचपन से ही मृदुला उनकी सेवा टहल किया करतीं। माँ से ही इनमें साहित्य के प्रति रुझान जागृत हुआ। मृदुला गर्ग के पिता बीपीजैन ने स्वयं भी अर्थशास्त्र में एमतथा एलएलबीकिया था। पिता का मृदुला गर्ग के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा। पिता की उदारतावैचारिकता और स्नेहिल व्यवहार की छाप उनमें निरंतर बनी रही है। मृदुला गर्ग के पिता साहित्य प्रेमी भी थे। इनका परिचय जैनेंद्रशेक्सपियर और दोस्तोवस्की से उन्होंने ही करवाया। मृदुला गर्ग की मौलिक प्रतिभा को पल्लवित करने में उनकी बड़ी भूमिका रही। पिता से प्रेरित मृदुला ने उच्च शिक्षा के लिए अर्थशास्त्र विषय चुना और दिल्ली विश्वविद्यालय से सन १९६० में अर्थशास्त्र में एम० ए० करने के बाद दिल्ली के ही इंद्रप्रस्थ कॉलेज जानकी देवी महाविद्यालय में सन १९६० से १९६३ तक अध्यापन कार्य किया।

सन १९६३ में आनंद प्रकाश गर्ग से उनका विवाह हुआ और विवाह के बाद पारिवारिक जीवन को प्राथमिकता देते हुए मृदुला गर्ग ने नौकरी छोड़ दी। विवाहोपरांत वे दिल्ली का महानगरीय जीवन छोड़ बिहार के डालमिया नगरबंगाल के दुर्गापुर और फिर कर्नाटक के बागलकोट कस्बे में रहीं। १९७४ में वे दिल्ली वापस लौटीं। इसी वर्ष में उनके पहले उपन्यास 'उसके हिस्से की धूपका प्रकाशन भी हुआ। इस उपन्यास को बहुत सराहना मिली और साथ ही उन्हें इसके लिए साहित्य परिषदमध्यप्रदेश द्वारा 'महाराजा वीर सिंह पुरस्कारभी प्राप्त हुआ। यही नहींइस उपन्यास पर दूरदर्शन द्वारा एक शृंखला भी बनाई गई। इनकी कहानी 'तुम लौट आओपर एक फिल्म का निर्माण भी किया गया।

मृदुला गर्ग के रचना संसार का प्रारंभ हुआ कर्नाटक के एक छोटे से कस्बे बागलकोट से। उनकी कहानियाँ सारिकाकहानीकल्पनासंवादधर्मयुगसाप्ताहिक हिंदुस्ताननटरंग आदि पत्रिकाओं में खूब प्रकाशित हुईं और पाठकों ने भी उन्हें बहुत सराहा। एक सशक्त लेखिका के रूप में उभरी मृदुला गर्ग ने अपनी रचनाधर्मिता के माध्यम से नारी की अस्मिता को पहचान देने का प्रयास किया है। एक ओर नारी की चेतनाउसकी गहनतम पीड़ाउसकी उदार मानसिकता और उसकी भावनाओं को मृदुला गर्ग ने अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रखर स्वर दिया है। वहीं दूसरी ओरआधुनिक युग में भौतिक संपन्नता से परिपूर्ण नारी के संघर्षसमझौतेसमर्पण की विवशता और अंतर्द्वंद्व को भी उन्होंने बखूबी चित्रित किया है। बहुमुखी प्रतिभा की धनी मृदुला गर्ग ने अनेक विधाओं जैसे कहानीउपन्यासनिबंधनाटकयात्रा संस्मरण आदि में साहित्य रचना की।

मृदुला गर्ग की लेखनी का पैनापन उनकी रचनाओं विचारों को विशिष्ट बनाता रहा है। अपने उपन्यास चित्तकोबरा में उन्होंने लिखा,

"अगर समाज में रहने वाले हर पति को अपनी पत्नी से प्यार होगा और हर पत्नी को पति सेतो समाज की भला कौन परवाह करेगाहमारा समाज सूझ-बूझ वाला है। अपनी सुरक्षा का कितना बढ़िया उपाय ढूँढ निकाला है। तयशुदा ब्याह।"

अपनी निर्भीक रचना शैली और बेबाक लेखन के लिए मृदुला गर्ग को इस पुरुष प्रधान समाज में कड़ी आलोचना भी झेलनी पड़ी। इतना ही नहींमृदुला गर्ग को १९७९ में प्रकाशित अपने बहुचर्चित उपन्यास 'चित्तकोबरापर अश्लीलता के आरोप में मुकदमा तक झेलना पड़ा। इस उपन्यास की हज़ारों प्रतियों को भी ज़ब्त कर लिया गया। मगर इन आलोचनाओं या मुक़दमे के भय ने इनकी लेखनी को रुकने नहीं दियाबल्कि और अधिक पैनापन और मजबूती प्रदान की।

मृदुला गर्ग के उपन्यास सामाजिकता और वैयक्तिक नैतिकता के मध्य रास्ता तलाशते चलते हैं। आधुनिकता के बदलते मानदंडों के मध्य उनके उपन्यासों में नैतिक मान्यताओं में परिवर्तन और यौन संबंधों में स्वच्छंदता के अंश भी उभरकर आए हैं। नारी जीवन के संदर्भों का बेलौस वर्णन तथा जीवन की प्रवृत्तियों का कलात्मक रूप-चित्रण इनके साहित्य की विशेषता रही है।

उनका उपन्यास 'कठगुलाबस्त्रियों के उत्पीड़नसंघर्ष और उनके चेतनावादी दृष्टिकोण का दस्तावेज़ है। पुरुष प्रधान समाज में प्रताड़ितशोषित और संघर्षरत स्त्रियों के विद्रोह प्रतिशोध की भावना दर्शाता यह उपन्यास अंतर्मन को झकझोर कर रख देता है।

मृदुला गर्ग की रचनाओं की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि यह भी है कि उनमें हताशनिराशकुचला बुझा हुआ शोषित वर्ग भी विद्रोह की अग्नि से सुलगता हैछटपटाता है। 'उसका विद्रोहकहानी में नौकर, साहब के व्यवहार से क्षुब्ध हैमगर अपनी निर्धनता से त्रस्त भी।

"काम से क्यामोटी तनख्वाह सेपूरे पचहत्तर रुपये माहवारबढ़िया मुफ्त खाने सेएक तरीदार एक सूखी सब्ज़ी और जितनी चाहे रोटियाँऔर बढ़िया पक्के घर सेएक पूरा आठ फुट चौड़ा कमरा और अलग गुसलखाना। इन सबकी खातिर मन मारकर वह उनकी बेढंगी से बेढंगी ताकीद भी मान लिया करता है। पर आज वह तैश में है और चाहता हैकोई ऐसा काम करे जिससे सब जान जाएँ कि उसे बेबात इधर से उधर नहीं खदेड़ा जा सकता।"

अपनी मजबूरी के कारण वह भले ही परंपरागत विद्रोह कर पाएअपने आक्रोश को व्यक्त करने के तरीके वह ढूँढ ही लेता है। कहानी के अंत में वह उद्दंड और गुस्ताख बन कर मोटी भौन्डी आवाज़ में स्नान करते समय ज़ोर से गाना गाता है और अपने अंतर की वेदना को मानो स्वर दे देता है।

मृदुला गर्ग की 'मेराकहानी की नायिका मीता अकेले ही अपनी आने वाली संतान के लिए परिवार का विरोध सहने को तैयार है। वह उन्नति की राह पर आगे बढ़ते अपने पति महेंद्र की राह का रोड़ा नहीं बनना चाहती और ही अपनी माँ से सहानुभूति मिलने पर विकल होती है। गर्भस्थ शिशु के प्रति मातृत्व की हिलोर उसमें स्वतंत्र निर्णय ले पाने और समाज में अडिग खड़ी रहने का संकल्प उत्पन्न कर देती है। 

"उसका चेहरा बिल्कुल शांत हैउसकी आवाज़ की तरह। पर उस शांति में निष्क्रियता नहींनिर्णय झलक रहा है। सृष्टि का ऐसा भाव है वहाँ जो पर्वतारोही के मुख पर दुर्गम चोटी पर पहुँच जाने पर खिल आता होगा।"

मृदुला गर्ग की रचनाओं में पीढ़ियों के संघर्ष से अकेलेपन के संत्रास तकप्रेम के दैहिक स्वरूप से लेकर संस्कारों के अंतर्द्वंद्व तक और टूटते दांपत्य से लेकर बिखरते जीवन मूल्यों तक हर सामाजिक पहलू की छुअन दृष्टिगत होती है। आधुनिक जीवन शैली की जटिलताओं और परस्पर खोखले संबंधों का तनाव उनके कथा संसार में उभर कर आता है। असफल दांपत्य जीवन की कथाओं के लिए स्वयं उनका मानना है कि,

"असफल दांपत्य के मूल में पति का 'खलस्वरूपउसमें संवेदना की कमीपति पत्नी के बीच अहम की लड़ाईयौन असंतुष्टि प्रेमी के आगमन की समस्या ही रही है।"

 मृदुला गर्ग की रचनाओं में निरंतर नए प्रयोग हैं। उनके स्त्री चरित्र परंपरागत नारी की छवि से अलग मगर दृढ़ व्यक्तित्व रखते हैं। मृदुला गर्ग के बहुआयामी व्यक्तित्व को उद्भासित करते हुए योगेश गुप्त ने लिखा"मृदुला गर्ग के व्यक्तित्व में एक बहुत सूक्ष्म पर पारदर्शी वेदना-धारा बहती हुई दिखती हैजो कभी हँसी के नीचे झलकती है तो कभी शुद्ध त्रासदी के रूप में।"

स्वातंत्र्योत्तर साहित्य में मृदुला गर्ग की लेखनी का बड़ा विशिष्ट स्थान है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से उन्होंने लेखन किया है। उनके लेख और स्तंभ बेहद चर्चित रहे हैं। उनकी कहानियों उपन्यासों का अनेक विदेशी भाषाओं जैसे अँग्रेज़ीजर्मनचेकरूसी आदि में अनुवाद हो चुका है।

मृदुला गर्ग को अपनी लेखनी की सशक्तता के लिए अनेक बार पुरस्कृत किया गया है। १९८८ में हिंदी अकादमी द्वारा साहित्यकार सम्मान, 'जादू का कालीननाटक के लिए १९९३ ,में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद द्वारा सम्मानउत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा १९९९ में साहित्य भूषण सम्मानसूरीनाम में वर्ष २००३ में आयोजित विश्व हिंदी सम्मलेन में साहित्य सेवा सम्मान२००४ में अपनी रचना 'कठगुलाबके लिए व्यास सम्मान २०१३ में उनके उपन्यास 'मिलजुल मनको साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि मृदुला गर्ग की रचनाधर्मिता की सफलता के पर्याय हैं। 

अपने लेखन के द्वारा समाज की यथार्थ तस्वीर उकेरने वाली मृदुला गर्ग की सृजनशीलता नित नवीन आयाम स्थापित करती रहे और समाज की बंधी-बंधाई परंपरा को चुनौती देती रहेउनके प्रत्येक पाठक को उनसे यही अपेक्षा है। 

 मृदुला गर्ग : जीवन परिचय 

जन्म

२५ अक्तुबर १९३८, कोलकाता

माता

रविकांता जैन

पिता

बी० पी० जैन

पति

आनंद प्रकाश गर्ग

शिक्षा

एम० ए० - अर्थशास्त्र

कार्यक्षेत्र

लेखन

साहित्यिक रचनाएँ

उपन्यास

  • उसके हिस्से की धूप

  • वंशज

  • चित्तकोबरा

  • अनित्य 

  • मैं और मैं

  • कठगुलाब

  • मिलजुल मन

  • वसु का कुटुम

कहानी संग्रह

  • कितनी कैदें

  • टुकड़ा टुकड़ा आदमी

  • डैफ़ोडिल जल रहे हैं

  • ग्लेशियर से

  • उर्फ सैम

  • शहर के नाम

  • चर्चित कहानियाँ

  • समागम

  • मेरे देश की मिट्टी अहा

  • संगति विसंगति

  • जूते का जोड़ गोभी का तोड़

व्यंग्य संग्रह

  • कर लेंगे सब हज़म

  • खेद नहीं है

निबंध संग्रह

  • रंग ढंग

  • चुकते नहीं सवाल

  • कृति और कृतिकार

नाटक

  • एक और अजनबी 

  • जादू का कालीन

  • तीन कैदें

  • साम दाम दंड भेद

यात्रा संस्मरण

  • कुछ अटके कुछ भटके

पुरस्कार व सम्मान

  • उसके हिस्से की धूप के लिए १९७४ में साहित्य परिषदमध्यप्रदेश द्वारा 'महाराजा वीर सिंह पुरस्कार'
  • १९८८ में हिंदी अकादमी द्वारा साहित्यकार सम्मान
  • जादू का कालीन नाटक के लिए १९९३ में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद द्वारा सम्मान 
  • उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा १९९९ में साहित्य भूषण सम्मान 
  • सूरीनाम में वर्ष २००३ में आयोजित विश्व हिंदी सम्मलेन में साहित्य सेवा सम्मान
  •  २००४ में अपनी रचना 'कठगुलाबके लिए व्यास सम्मान
  • २०१३ में उनके उपन्यास 'मिला जुला मनको साहित्य अकादमी पुरस्कार


संदर्भ

  • साहित्य के पन्नों से - निशा डागर 

  • महिला उपन्यासकार - मधु संधु

  • मृदुला गर्ग - विकिपिडिया

  • मृदुला गर्ग - साहित्य सृजन डॉट कॉम

  • मृदुला गर्ग - भारतकोश

  • उसके हिस्से की धूप  - मृदुला गर्ग

  • चित्तकोबरा - मृदुला गर्ग

  • कठगुलाब  - मृदुला गर्ग

  • डैफ़ोडिल जल रहे हैं  - मृदुला गर्ग

  • चर्चित कहानियाँ - मृदुला गर्ग

लेखक परिचय

विनीता काम्बीरी  
शिक्षा निदेशालयदिल्ली प्रशासन में हिंदी प्रवक्ता हैं तथा आकाशवाणी दिल्ली के एफ० एम० रेनबो चैनल में हिंदी प्रस्तोता हैं। आपकी कर्मठता और हिंदी शिक्षण के प्रति समर्पण भाव के कारण आपको अनेक सम्मान पुरस्कार प्रदत्त किए गए हैंजिनमें यूनाइटेड नेशन्स के अंतर्राष्ट्रीय विश्व शान्ति प्रबोधक, महासंघ द्वारा सहस्राब्दी हिंदी सेवी सम्मान,  पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालयभारत सरकार द्वारा नेशनल वुमन एक्सीलेंस अवार्ड और शिक्षा निदेशालयदिल्ली सरकार द्वारा राज्य शिक्षक सम्मान प्रमुख हैं। मिनिएचर-पेंटिंग करनेकहानियाँ और कविताएँ लिखने में रुचि है।
ईमेल : vinitakambiri@gmail.com

4 comments:


  1. विनीता जी, आपके अन्य आलेखों की तरह मृदुला गर्ग के जीवन और कार्य से परिचय कराता यह आलेख भी रोचक, ज्ञानवर्धक, सटीक और प्रवाहमय है। आपको आलेख के लिए बधाई और धन्यवाद। मृदुलाजी की लम्बी उम्र और रचनात्मक सक्रियता की कामना करती हूँ।

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  2. विनीता जी नमस्ते। आपने एक और अच्छा लेख हम पाठकों को पढ़ने को उपलब्ध कराया। आपके लेख के माध्यम से मृदुला गर्ग जी के सृजन के विस्तार को जानने का अवसर मिला। आपको इस जानकारी भरे लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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  3. सारगर्भित लेख।अभिनंदन।

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  4. विनीता, मृदुला गर्ग ने अपनी लेखनी को बेखौफ़ चलाकर समाज के अँधियारों पर से परतें हटाने की जीवन पर्यंत जो कोशिश की है, उसका एक उत्तम चित्रण इस लेख में हुआ है। मृदुला जी की कलम यूँ ही चलती रहे और अँधेरों से लड़ती रहे! इस उत्तम भेंट के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया और बधाई।

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