बुढ़ापे में जो हो जाए उसे हम प्यार कहते हैं
जवानी की मुहब्बत को फ़क़त व्यापार कहते हैं
जो सस्ती है मिले हर ओर उसका नाम महँगाई
न महँगाई मिटा पाए उसे सरकार कहते हैं
यह पंक्तियाँ उस हास्य सम्राट रचनाकार, साहित्यकार की है, जिसे उसके चहेते हास्यरसावतार भी कहते हैं। वे हिंदी साहित्य जगत में हास्य दुनिया की अद्भुत विभूति माने जाते है। वह एक ज़बरदस्त आयोजक होने के साथ-साथ महान संगठनकर्ता और व्यंग्यकार भी है। उन्हें कोई हिंदी का मर्मज्ञ साहित्यकार कहता है, तो कोई ब्रज भारती की महत्त्वपूर्ण उपाधि से नवाज़ता है। जी हाँ! हम बात कर रहे है, असंख्य उपमाओं से प्रसिद्ध हुए महान हिंदी सेवी तथा समर्पित पत्रकार आदरणीय हास्यकवि पंडित गोपालप्रसाद व्यास की।
भूमिका और व्यंग्य-विनोद
व्यास समिति के संस्थापक महामंत्री गोपालप्रसाद जी का जन्म १३ फरवरी १९१५ को मथुरा, उत्तर प्रदेश जनपद के कस्बे गोवर्धन में हुआ था। आपके पिता का नाम ब्रज किशोर शास्त्री एवं माता का नाम चमेली देवी था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा परासौली के निकट भवनपूरा में हुई व उसके पश्चात मथुरा में। आप केवल कक्षा सात तक ही अध्ययन कर पाए। आपने स्वर्गीय नवनीत चतुर्वेदी जी से पिंगल ज्ञान अर्जित किया और सेठ कन्हैयालाल पोद्दार से अलंकार व रससिद्धांत की शिक्षा ग्रहण की। डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल जी के सान्निध्य से आपने मूर्तिकला तथा चित्रकला में भी महारत हासिल की। साहित्यरत्न का अध्ययन और साहित्य की पराकाष्ठा को आपने डॉ० सत्येंद्र से पाया। सन १९३१ में आप श्रीमती अशर्फी देवी के साथ विवाह बंधन में बंधे, जो हिंडौन राजस्थान के निवासी प्रजापति की पौत्री थी। तीन पुत्र और तीन पुत्रियों के साथ ही आप पौत्र-पौत्रियों एवं दौहित्र-दौहित्रियों की प्यारी सी पारिवारिक संपदा से संपन्न हैं।
पंडित जी हिंदी भाषाशैली में व्यंग्य-विनोद की नई धारा के जनक माने जाते हैं। पत्नीवाद के प्रवर्तक के रूप में गोपाल जी विशेष ख्याति प्राप्त कर चुके है।
'गुपाल' से बहुमुखी व्यक्तित्व
पंडित गोपाल प्रसाद व्यास का बचपन का नाम 'गुपाल' था, जो बाद में महात्मा गांधी जी ने बदलकर 'गोपाल' रख दिया था। व्यास जी ऐसे इतिहास पुरुष है, जिन्होंने कभी गोपाल को गुपाल पर हावी होने नहीं दिया। उन्होंने अपनी कविताओं, रचनाओं, पत्रकारिता और व्यंग्य लेखन के नियमित स्तंभों से साहित्य को ही समृद्ध नहीं किया, बल्कि राष्ट्रभाषा हिंदी को जन-जन तक पहुँचाने का सार्थक अभियान भी रचा है। पंडित जी ने सिर्फ़ हास्यकवि के रूप में ही अपनी पहचान नहीं बनाई अपितु अपनी रचनाओं के माध्यम से हास्य कविता को एक नई पहचान भी दी। आज भी जब पंडित जी के साहित्य की परिगणना की जाती है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि पिछले दो दशकों में उन्होंने अपनी अनुपलब्ध पुस्तकों को एकीकृत कर दिया है। आपने स्तंभ साहित्य के माध्यम से पाठक मन को उत्साहित कर मनोरंजन प्रदान किया है। आपने काव्य को हास्यसौगात के रूप में उमंग भरी इठलाती लहरों में तैरने के लिए छोड़ दिया है। यहाँ तक की अपनी आत्मकथा को भी संस्मरणात्मक शैली देकर इतना रोचक और ज्ञानवर्धक बना दिया है कि उनके व्यक्तित्व का एक-एक बीता क्षण उसमें समा गया है।
हिंदी भाषा और साहित्य के पुरोधा
कुछ लोग उन्हें असाधारण व्यक्तित्व के धनी के रूप में पहचानते हैं, तो कुछ उनके असाधारण संघर्ष और परिश्रम की बात करते हैं। कुछ लोग उन्हें उन्मुक्त और अनासक्त मस्ती का पर्याय समझते हैं, तो कुछ उनकी ठिठोली और कहकहों की चर्चा करते हैं। कुछ कहते हैं 'हिंदी भवन' का निर्माण करवाकर व्यास जी हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए, तो शेष का मानना है कि ४५ वर्षों तक लगातार 'नारदजी खबर लाए हैं' लिखकर उन्होंने संभवतः विश्व में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। कुछ लोगों के मन में वे अपनी संबंध-रस से भरी 'पत्नी को परमेश्वर मानो' , 'साला-साली' और 'ससुराल चलो' जैसी कविताओं के साथ हमेशा जीवित रहेंगे तो वहीं कुछ 'कदम-कदम बढ़ाए जा' की कविताओं विशेषकर 'वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं' के कारण उन्हें कभी भूल नहीं पाऐंगे।
श्री गोपालप्रसाद व्यास देश के उन सपूतों में से एक थे, जिन्होंने राष्ट्र और राष्ट्रभाषा की सेवा को अपना जीवन-धर्म मान लिया। उनका जीवन और साहित्य राष्ट्रीयता के रंग में रंगा हुआ था। राष्ट्रभाषा के कार्य को उन्होंने देश-रचना के लिए ही स्वीकार किया। इसीलिए वह हिंदी के आंदोलनकारी नेता नहीं, सदैव रचनात्मक कार्यकर्ता ही अधिक रहे।
हिंदी जगत के प्राण - खूनी हस्ताक्षर
व्यास जी ने प्रारंभ से ही पत्रकारिता के माध्यम से हिंदी-जगत की सेवा की है। आगरा से निकलने वाले हिंदी मासिक 'साहित्य संदेश' के प्रकाशन में उनका प्रमुख योगदान रहा है। व्यास जी प्रारंभ से ही एकनिष्ठ कांग्रेसवादी रहे थे। स्वतंत्र आंदोलन के दिनों में उन्होंने अंग्रेज़ों से उनके साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष करते हुए, अपनी वीररस-पूर्ण कविता 'कदम-कदम बढ़ाए जा' से राष्ट्र को प्रेरणा दी थी, आज भी उनकी अनेक राष्ट्रीय रचनाएँ नवयुवकों को देशभक्ति और देशसेवा के लिए प्रेरित करती हैं।
हास्य क्षेत्र में योगदान
हिंदी संसार में पंडित गोपालप्रसाद व्यास हास्य-रस के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं और साहित्य के इतिहास में उनका स्थान इसी रूप में कायम रहेगा। उनकी कविताएँ सरल, सुबोध, उक्ति-लाघव से युक्त और हृदय को गुदगुदाने वाली होती हैं। कवि-सम्मेलनों के वे शृंगार थे। जब सम्मेलनों में थकावट या ऊब की मुद्रा उभरती, तो संचालक मंडल श्री गोपालप्रसाद व्यास के नाम की घोषणा करते और व्यास जी के खड़े होते ही पहले तो तालियाँ बजती, फिर जनता उनकी पंक्तियों पर लोट-पोट होने को तैयार हो जाती। इस प्रकार जिस सम्मेलन में व्यास जी बुलाए जाते थे, उसकी सफलता निश्चित हो जाती थी।
उनका हिंदी-प्रेम पंडित मदनमोहन मालवीय और राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की परंपरा का था और उन दोनों महापुरुषों के प्रति व्यास जी की भक्ति अनुपम रही। राजर्षि के अभिनंदन का आयोजन व्यास जी के ही परिश्रम से प्रयाग में किया गया था और उन्हे भेंट किया जाने वाला ग्रंथ भी मुख्यतः व्यास जी के ही परिश्रम से तैयार हुआ था। उनकी भाषा शैली सरल, मुहावरेदार और चुभती हुई होती है। हास्य इसीलिए लिखा जाता है कि तुरंत पाठक या श्रोता के हृदय में घर कर ले। यदि कविता के व्यंग्य को समझने के लिए सोचना पड़े तब तो हास्य की कविता हो चुकी। उनकी कविताओं में व्यंग्य भरा पड़ा है। बस यही कहना चाहता हूँ कि लोग उनकी पुस्तकें लेकर पढ़े और उनके हास्य व्यंग्य का आनंद लें।
नियति से भी न हारा हुआ साहित्य
दिल्ली में हिंदी भाषा और साहित्य का प्रभाव बढ़ाने के उद्देश्य से यदाकदा धार्मिक अवसरों पर कवि-गोष्ठियाँ हो जाया करती थीं। सन १९४५ में व्यास जी के सुझाव पर दिल्ली में अखिल भारतीय ब्रज साहित्य मंडल का वार्षिक अधिवेशन बड़े भव्य रूप में आयोजित किया गया था। इस अधिवेशन में विशेष रूप से महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला उपस्थित हुए थे। इस अवसर पर लगातार दो दिन कवि-सम्मेलन हुआ था। इस सफल अधिवेशन के पीछे व्यास जी की प्रेरणा और सूझबूझ थी।
कदाचित १९३७-३८ की बात है, उन दिनों श्री जैनेंद्र जी ने दिल्ली में एक साहित्य-परिषद का आयोजन किया था। व्यास जी उन दिनों आगरा से निकलने वाले 'साहित्य संदेश' में संपादन-कार्य करते थे और उस परिषद में वे भी शामिल थे। शायद उन्हीं दिनों इन दोनों के बीच यह समझौता हुआ था कि साथ लिखेंगे और आमदनी भी मिलकर बाँट लिया करेंगे। लेकिन जैनेंद्रजी के अपने आदर्शों और व्यास जी के तथाकथित व्यावहारिक सूत्रों के कारण दोनों में अधिक दिन नहीं पटी। जैनेंद्रजी से अलग होने पर अपनी पत्नी को लेकर व्यास जी ने जो हास्य-रस की कविताएँ लिखनी शुरू कीं, वे 'अजी सुनो' के नाम से संगृहीत हैं।
व्यास जी जो हिंदी भाषा के प्राण थे, मुख्यतः व्यंग्य भाषा के। इन्होंने ओज की रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। इन रचनाओं में एक खंडकाव्य ही है। इसका नाम है - 'कदम-कदम बढ़ाए जा' , जिसमें नेताजी सुभाषचंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज की वीरता की झांकियाँ पद्यबद्ध की गई हैं। इस पुस्तक की कविताएँ क्रमशः दैनिक हिंदुस्तान में रोज़ धारावाहिक रूप में छापी जाती थीं। दिल्ली के तत्कालीन अँग्रेज़ कमिश्नर ने संचालकों से इन रचनाओं को न छापने का आदेश दिया पर रचनाएँ क्रमशः छपती रहीं। आज भी उन कविताओं को पढ़कर और सुनकर जनता के मन में देशप्रेम की भावनाएँ जाग्रत हो जाती है। श्री व्यास जी के 'नेताजी का तुलादान' नामक प्रसंग का पाठ सुनते ही हज़ारों की संख्या में लोग भाव विभोर हो जाते थे। 'हिंदुस्तान हमारा है' शीर्षक अध्याय एक तरह से भारत का वंदना है।
ब्रज रंग में व्यास माधुरी
ब्रज में जन्मे और राधे का नाम जपते-जपते व्यासजी दिल्ली के स्थाई निवासी हो गए थे। स्थाई निवासी भी ऐसे कि दिल्ली का कोई भी साहित्यिक या सांस्कृतिक कार्यक्रम हो, या फिर राजनीतिक काम हो या महामूर्ख सम्मेलन ही क्यों न हो, व्यास जी की व्यंग्य रचना की चर्चा हमेशा होती थी।
अपने आप में पंडित गोपालप्रसाद व्यास एक व्यक्ति नहीं, संस्था थे। मूलतः वे ब्रजभाषा के कवि रहे हैं। खूब दूध-रबड़ी खाना, मथुरा के अखाड़ों में दंड-बैठकें लगाना, कुश्तियाँ लड़ना और नियमित भंग छानकर 'राधे-गोविंद' का गुणगान करना व्यासजी का अपना अतीत रहा है। दैनिक हिंदुस्तान के प्रसिद्ध कॉलम 'नारदजी खबर लाए हैं' और 'यत्र-तत्र-सर्वत्र' को व्यास जी महाराज तो न जाने कब से लिख रहे थे।
ब्रज-मंडल में जन्म लेकर यदि मनुष्य रसिक न हुआ, तो उसका जीवन व्यर्थ ही है। 'ब्रज' शब्द के साथ माखन, मिसरी, पेड़े जुड़े हुए हैं और अबीर-गुलाल, पंचरंग चूनर पर पड़ती हुई पिचकारी की केसरिया फुहार। दिल्ली ने और फिर पूरे हिंदुस्तान ने व्यास जी के रूप को जाना, सम्मान की बाढ़ आई और उसकी लहरें राष्ट्रपति भवन की सीढ़ियों तक पहुँच गईं। लेकिन, क्या लोग इस बात को जानते हैं कि महाकवि जगन्नाथदास 'रत्नाकर' के इस गुरुभाई, गोपालप्रसाद व्यास की हास्य-धारा के पीछे इससे कहीं अधिक सशक्त एवं रसवंती ब्रज-माधुरी की स्रोतस्विनी प्रवाहित हो रही थी। जब व्यासजी के कवि-मन का प्रादुर्भाव हुआ था, उस समय कवियों में पढ़ंत और समस्या-पूर्ति की परंपरा थी। उस समय व्यासजी देश के ऐसे दो-तीन कवियों में एक थे, जिन्हें सहस्रों सवैये और कवित्त कंठस्थ थे। उनके द्वारा लगभग छह सौ रचनाएँ ब्रजभाषा में ही रची जा चुकी हैं। जिनमें से कुछ कविताएँ 'रंग-जंग और व्यंग्य' नामक संग्रह में आ गई हैं। उनकी प्रतिभा केवल लोकोत्तर साहित्य के सर्जन में ही सक्रिय नहीं रही, वरन उन्होंने होली की तानें, रसिए, चौबोले तथा ख्याल आदि भी बहुत लिखे, जो ब्रज-जनपद में आज भी गाए जाते हैं।
व्यास एक वृंदावनी व्यक्तित्व
'मेरे प्यारे सुकुमार गधे' पुस्तक के रचियता पंडित व्यास जी का रहन सहन एकदम सादगी भरा था। गाँधी टोपी के मुकुट से मंडित, तन्वंगी, सुललिता, सरला वंशकुमारी वेदवती के साथ खिलवाड़ करते, धोती-कुरते की शुभ्र छटा से पश्चिमी सभ्यता पर वज्र गिराते, किसी छैले की-सी, गबरूई रंगीली चाल चलते हुए एक ऐनकधारी अल्हड़ के अधरों पर बिखरी तांबूल-लालिमा, ऐसा उनका आच्छादन था।
औटपाई गोपाल
जीवन जीने की पंडित व्यास जी की अपनी अलग शैली, अलग अदांज, अलग तरीका था। होली के दिन वे भागीरथ पैलेस के अपने घर से 'मूर्ख महासम्मेलन' निकाला करते थे। आज की पीढ़ी को यह बात शायद समझ न आए कि मूर्ख महासम्मेलन की इस बारात को देखने लाखों लोग घंटों रामलीला मैदान में इंतजार करते। बड़े-बड़े नेता, अभिनेता और प्रतिष्ठित लोग मूर्ख बने इस जुलूस में चलते। हाथ में डुगडुगी, गले में गोभी-गाजर की माला, सिर पर अजीबो-गरीब मुकुट पहने पंडित व्यास जी के साथ जब ये सवारी घर से निकलती, तो दृश्य देखने योग्य होता था। लोगों के लिए भले ही यह मूर्ख सम्मेलन मोद-विनोद और चुटकियाँ लेने, हँसने-हँसाने का वार्षिक मेला होता होगा, पर पंडित व्यास जी के लिए उनके हाथ की डुगडुगी समाज और राज के बंदरों को आइना दिखाने का साधन थी।
२८ मई, २००५, प्रातः ६ बजे नई दिल्ली में अपने निवास पर पंडित गोपालप्रसाद व्यास जैसा हास्य सितारा अस्त हो गया और अनगिनत आँसुओं भरी आँखों में मुस्कुराते आँसु छोड़ गया। उनकी एक मात्र इच्छा के साथ इस आलेख को समाप्त करना चहता हूँ कि व्यास जी के सारस्वत श्रम को उचित स्थान मिले। उनकी व्यंग्य विनोद प्रतिभा व साहित्यिक योग्यता को समाज से परिचित करवाने के साथ-साथ हिंदी को हिंद का पर्याय बनाने में आप सभी सहयोग दें।
संदर्भ
- https://bharatdarshan.co.nz/
author-profile/77/gopaldas- vyas.html - ttp://kavitakosh.org/kk/%E0%
A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4% BE%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A5%8D% E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0% A4%A6_%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0% A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8 - https://www.amarujala.com/
kavya/hasya/gopl-prasad-vyas- hasya-kavita-hay-na-boodha- mujhe-kaho-tum - https://m.bharatdiscovery.org/
india/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0% A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2_%E0% A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4% B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4% B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE% E0%A4%B8 - http://www.hindisatire.com/
category/gopal-prasad-vyas/ - https://www.
shikshabhartinetwork.com/ dayinhistory.php?eventId=4114
सूर्यकांत सुतार 'सूर्या'
जन्म स्थान और शिक्षा मुंबई से हुई, परंतु पिछले १५+ सालों से दार-ए-सलाम, तंजानिया, इस्ट अफ्रिका में वास्तव हैं। साहित्य से बरसों से जुड़ा होने साथ-साथ कई समाचार पत्रों, पत्रिकाओ एवं पुस्तकों में लेख, कविता, ग़ज़ल, कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका हूँ।
चलभाष : +२५५ ७१२ ४९१ ७७७
ईमेल : surya.4675@gmail.com
हास्य-कवि गोपाल प्रसाद व्यास जी सचमुच में बहुत मस्त व्यक्तित्व के धनी थे। हम भाग्यशाली हैं कि हमने उन्हें जीवंत मंच से सुना। उनकी रचनाएँ श्रोताओं में सहज हास्य उत्पन्न करने में सक्षम होती थीं। सूर्यकांत जी , आपने अपने आलेख में विस्तार से उनके जीवन और कृतित्व की चर्चा की है । धन्यवाद । 💐💐
ReplyDeleteपंडित गोपाल प्रसाद व्यास जी का विस्तृत परिचय दिया गया है। नारद जी खबर लाए है और यत्र-तत्र-सर्वत्र को बहुत वर्षों पहले पढ़ा था। आज उनके महामूर्ख सम्मेलन की याद आयी। सूर्यकांत जी ,हार्दिक बधाई, आपने उनके अनेक पक्षों को सामने रखा है। आप स्वयं एक सशक्त समीक्षक है।आपने व्यास जी का सुंदर परिचय प्रस्तुत किया है।साधुवाद।🙏💐
ReplyDeleteसूर्यकांत जी, आपके आलेख को पढ़ते समय मन में मुख्यतः रही, गोपाल प्रसाद व्यास जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के विभिन्न पक्षों को आपने बख़ूबी इस आलेख में समेटा है। उनकी हास्य कविताओं की गुदगुदाहट की भी अनुभूति मिली और ओजपूर्ण रचनाओं का जोश भी महसूस किया। आपको इस लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई और आभार।
ReplyDelete'हिंदी भाषा शैली में व्यंग्य विनोद की नई धारा के जनक ' माने जाने वाले गोपाल जी का कितना सुंदर आलेख प्रस्तुत किया है आपने सूर्यकांत जी।
ReplyDeleteआपकी एक-एक पंक्ति मानो स्वयं ही रस की धार है।
बहुत बढ़िया।
गोपालप्रसाद व्यास के कृतित्व में बसे व्यंग्य, हास्य और ओज के रंगों को आपने बड़ी ही सहजता से शब्द दिए है सूर्यकांत जी। उनके ब्रज-प्रेम और मुर्ख महासम्मेलन जैसे किस्सों ने इस लेख को रोचक बना दिया।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद और बधाई।
हिन्दी के बड़े सेवक, लोकप्रिय हास्य कवि गोपाल प्रसाद व्यास जी पर सूर्यकांत जी का सहज, रोचक, प्रवाहमय और जानकारी वर्धक आलेख पढ़कर मज़ा आ गया। सूर्यकांत जी, आपने गोपाल प्रसाद जी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को बख़ूबी समेटा है। आपको इसके लिए बहुत-बहुत बधाई! आगे भी ऐसे आलेख हमें पढ़ाते रहिएगा।
ReplyDeleteसूर्यकांत जी,बहुत बढ़िया लेख।
ReplyDeleteआपने हिंदी के प्रमुख साहित्यकार एवं प्रेमी गोपाल प्रसाद व्यास जी की साहित्य यात्रा को बहुत रोचक ढँग से प्रस्तुत किया है। आपको बहुत बहुत बधाई।
पंडित गोपाल प्रसाद व्यास जी व्यक्तित्व और कृतित्व पर सूर्यकांत जी ने बहुत समग्र और विस्तृत जानकारियाँ, इस लेख के माध्यम से उपलब्ध करायीं हैं। गोपाल जी की साहित्यिक यात्रा को पढ़ते हुए आप की लेखन शैली की रोचकता ने बाँधे रखा। साधुवाद आपको।
ReplyDeleteसूर्याजी,
ReplyDeleteपंडित व्यासजी के विषय में जो जानकारी आपने प्रस्तुत की है वह अमूल्य है. मेरे काव्य सृजन के शैशव काल की आपने याद दिला दी जब १९६० के दशक में व्यासजी की अध्यक्षता में भरतपुर (राजस्थान) में हिंदी साहत्य समिति द्वारा आयोजितकवि सम्मलेन में मुझे उनका आशीष प्राप्त हुआ था. सौम्यता और सहृदयता उनकी विशेषता थी. आपको सादर आभार