उत्तर प्रदेश के सबसे पूर्वी ज़िले बलिया की रसड़ा तहसील में एक सुपरिचित गाँव है, भगमलपुर। भगमलपुर गाँव तीन टोलों में बँटा है। उत्तर दिशा की तरफ का टोला यादवों (अहीरों) का टोला है, तो दक्षिण में दलितों का टोला। इन दोनों टोलों के ठीक बीच में कायस्थों के तीन परिवार हैं। ये तीनों घर एक ही कायस्थ पूर्वज से संबद्ध है, जो कालांतर में तीन टुकड़ों में विभक्त होकर वहीं रह रहे हैं। इन्हीं कायस्थ परिवारों में से एक परिवार है, सीताराम वर्मा व अनंती देवी का। इन्हीं के पुत्र के रूप में १ जुलाई १९२५ को अमरकांत का जन्म हुआ। अमरकांत का नाम श्रीराम रखा गया। इनके खानदान में लोग अपने नाम के साथ 'लाल' लगाते थे। अतः अमरकांत का भी नाम 'श्रीराम लाल' हो गया। बचपन में ही किसी साधु-महात्मा द्वारा अमरकांत का एक और नाम रखा गया था। वह नाम था - 'अमरनाथ'। यह नाम अधिक प्रचलित तो न हो सका, किंतु स्वयं श्रीराम लाल को इस नाम के प्रति आसक्ति हो गई। इसलिए उन्होंने कुछ परिवर्तन करके अपना नाम 'अमरकांत' रख लिया और उनकी साहित्यिक कृतियाँ इसी नाम से प्रसिद्ध हुई।
सन १९४६ ई० में अमरकांत ने बलिया के सतीशचंद्र इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी कर, बी० ए० इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया। बी० ए० पास करने के बाद अमरकांत ने पढ़ाई बंद कर नौकरी की तलाश शुरू कर दी। बी० ए० पास करने के बाद कोई सरकारी नौकरी करने के बदले उन्होंने पत्रकार बनने का निश्चय कर लिया था। उनके अंदर यह विश्वास बैठ गया था कि 'हिंदी सेवा', 'देश सेवा' का पर्याय है। वैसे अमरकांत के मन में राजनीति के प्रति एक तरह की निराशा का भाव भी आ गया था, जिसकी वजह से अमरकांत पत्रकारिता की तरफ मुड़े। अमरकांत के चाचा उन दिनों आगरा में रहते थे। उन्हीं के प्रयास से दैनिक 'सैनिक' में अमरकांत को नौकरी मिल गई। इस तरह अमरकांत के शिक्षा ग्रहण करने का क्रम समाप्त हुआ और नौकरी का क्रम प्रारंभ हुआ।
समाजवाद, स्वतंत्रता, आर्थिक स्वतंत्रता जैसी बातों को आत्मसात करते हुए अमरकांत बड़े हो रहे थे। अपनी कल्पनाओं में अमरकांत अपने आप को सबसे आगे पाते। बड़े-बड़े महान कार्य करने के लिए तत्पर रहते। अमरकांत की इन कल्पनाओं और स्वप्नों में दो चीजें अनिवार्य रूप से रहती। पहली 'लड़की' और दूसरी 'रोमांटिसिज़्म'। अमरकांत के ऊपर शरदचंद्र का काफी प्रभाव रहा। उन्होंने शरदचंद्र की ही तर्ज़ पर प्रेम और करुणा से भरी कहानियाँ लिखनी प्रारंभ की। इन दिनों अमरकांत की अपनी मानसिक स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं थी, कारण यह था कि वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर उन्हें क्या करना है? मन कभी निराशा से भर जाता, तो कभी काल्पनिक प्रेम में डूब जाता। जब ये बातें हास्यास्पद लगने लगती, तो उन्हें देश की चिंता होने लगती। एक अजीब मानसिक द्वंद्व से अमरकांत जूझ रहे थे। वे यह निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें जाना किस दिशा में है? साहित्य सेवा की बात थोड़ी स्पष्ट ज़रूर थी, पर वह भी किस रूप में करनी है? इस बात को लेकर अमरकांत उन दिनों असमंजस की स्थिति में रहे।
जब अमरकांत ने देखा कि आज़ादी के बाद लोग गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हैं, तो उन्हें और कष्ट हुआ। भाषावाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद, जातिवाद, अलगाववाद, फिरकापरस्ती, काला बाजारी, गुटबाजी और भ्रष्टाचार जैसी बातों ने अमरकांत को निराश किया। उनके सामने से रोमांटिसिज़्म के रंगीन पर्दे हटने लगे और अमरकांत का लेखन यथार्थ की तरफ मुड़कर अधिक पैना होने लगा। अमरकांत का रचनात्मक जीवन अपनी पूरी गंभीरता के साथ प्रारंभ हुआ। जिन साहित्यकारों को अब तक वे पढ़ते थे या अपने कल्पना लोक में देखते थे, उन्हीं के बीच स्वयं को पाकर अत्यंत प्रसन्न हुए। पत्र-पत्रिकाओं में नौकरी का क्रम भी प्रारंभ हो गया था। लेकिन सन १९५४ में अमरकांत हृदय रोग के कारण बीमार पड़े और नौकरी छोड़कर लखनऊ चले गए। एक बार फिर निराशा ने उन्हें घेर लिया। अब उन्हें अपने जीवन से कोई उम्मीद नहीं रही। पर लिखने की आग कहीं न कहीं अंदर दबी हुई थी, अत: उन्होंने लिखना प्रारंभ किया।
अमरकांत सदैव ही एक संकोची व्यक्ति रहे। आम जनता से जुड़ी हुई कोई भी बात उन्हें साधारण नहीं लगती थी। देश में होनेवाली हर महत्वपूर्ण घटना पर उनकी बारीक नज़र रहती थी। वे खुद यह कभी भी पसंद नहीं करते थे कि वे चर्चा के केंद्र में रहे। इन सब बातों में उन्हें एक अलग तरह का संकोच होता था। सामान्य जनता, उससे जुड़ी हुई परेशानियाँ, जीवन और साहित्य इन सब में अमरकांत की गहरी संसक्ति थी। अमरकांत न केवल एक अच्छे साहित्यकार थे, बल्कि उतने ही अच्छे व्यक्ति भी थे। उनका व्यक्तित्व बिना किसी बनावट के एकदम साफ और सहज था।
अमरकांत अपने समय और उसमें घटित होने वाले हर महत्वपूर्ण परिवर्तन से जुड़े रहे। उन्होंने जो देखा, समझा और जो सोचा उसी को अपनी कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत किया। उनकी कहानियाँ एक तरह से दायित्वबोध की कहानियाँ कही जा सकती हैं। यह दायित्वबोध ही उन्हें प्रेमचंद की परंपरा से भी जोड़ता है। अमरकांत ने अपने जीवन और वातावरण को जोड़कर ही अपने कथाकार व्यक्तित्व की रचना की है। अमरकांत अपने समकालीन कहानीकारों से अलग होते हुए भी प्रतिभा के मामले में कहीं कम नहीं हैं। उनका व्यक्तित्व किसी भी प्रकार की नकल से नहीं उपजा है। उन्होंने जिन परिस्थितियों में अपना जीवन जिया, उसी से उनका व्यक्तित्व बनता चला गया। और उन्होंने जीवन में जो भी किया, उसी को पूरी ईमानदारी से अपने लेखन के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयत्न भी किया। इसलिए अमरकांत के व्यक्तित्व को निर्मित करने वाले घटक तत्वों पर विचार करने से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उनका व्यक्तित्व आरंभ से लेकर अब तक एक ऊर्ध्वगामी प्रक्रिया का परिणाम है। उन्होंने अपने व्यक्तित्व को किसी निश्चित योजना अथवा आग्रह के आधार पर विकसित न करके जीवन के व्यावहारिक अनुभव द्वारा आकार दिया। सारांशतः उनका व्यक्तित्व अनुभव सिद्ध व्यक्ति का व्यावहारिक संगठन है। यही कारण है कि उनमें आत्मनिर्णय, आत्मविश्वास और आत्माभिमान का चरम उत्कर्ष दिखाई पड़ता है।
अमरकांत : जीवन परिचय |
मूल नाम | श्रीराम वर्मा |
जन्म | १ जुलाई १९२५ |
निधन | १७ फरवरी २०१४ |
माता | अनंती देवी |
पिता | सीताराम वर्मा |
पत्नी | गिरिजा देवी |
शिक्षा |
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कार्यक्षेत्र |
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साहित्यिक रचनाएँ |
कहानी संग्रह | जिंदगी और जोंक देश के लोग मौत का नगर मित्र मिलन
| कुहासा तूफान कला प्रेमी जाँच और बच्चे
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उपन्यास | सूखा पत्ता आकाश पक्षी काले उजले दिन कँटीली राह के फूल ग्राम सेविका सुखजीवी
| बीच की दीवार सुन्नर पांडे की पतोह लहरें इन्हीं हथियारों से विदा की रात
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बाल साहित्य | | सुग्गी चाची का गाँव झगरूलाल का फैसला
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पुरस्कार व सम्मान |
- सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार
- मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार
- यशपाल पुरस्कार
- जन-संस्कृति सम्मान
- मध्यप्रदेश का 'अमरकांत कीर्ति' सम्मान
- इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का सम्मान
- साहित्य अकादमी सम्मान २००७
- व्यास सम्मान २०१०
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संदर्भ
- विकिपीडिया एवं इंटरनेट पर अमरकांत जी के बारे में उपलब्ध जानकरी से संकलित।
डॉ० मनीष कुमार मिश्रा
के० एम० अग्रवाल महाविद्यालय (मुंबई विद्यापीठ से संबद्ध) कल्याण पश्चिम, महाराष्ट्र, में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।
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मनीष जी , अनरकांत जी के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए धन्यवाद। भविष्य में लेखन के लिए आपको शुभकामनाएँ।💐💐
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ReplyDeleteमनीष जी, अमरकांत जी के जीवन को रेखांकित करता हुआ अच्छा लेख है। लेख के लिए हार्दिक बधाई। भविष्य में अच्छे साहित्यिक लेख लिखने के लिए शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteस्वनामधन्य साहित्यकार अमरकांत की स्मृति को नमन।उनकी प्रारंभिक शिक्षा नगरा में हुई।नगरा,बलिया जिले की रसड़ा तहसील से उत्तर 13किमी पर एक बड़ा गांव,खंड(ब्लॉक)और बाजार है।उनका गांव भगमलपुर,नगरा गांव से सटा हुआ भाग है।नगरा में मुझे भी दसवीं कक्षा तक शिक्षा ग्रहण करने का सौभाग्य मिला।इस साहित्यकार का घर ,द्वार,परिवार और खेत खलिहान मेरी आंखों के सामने है।उनकी दीर्घकालिक साहित्य साधना स्तुत्य है।हम सबके लिए प्रेरणापुंज थे।उनके अंतिम संस्कार का क्षण अविस्मरणीय है। स्मृति को प्रणाम।
ReplyDeleteमनीष जी, आपके लेख के ज़रिये अमरकांत जी के जीवन और व्यक्तित्व के कई पहलुओं की अच्छी जानकारी मिली और साहित्य-सृजन के उनके क्षेत्रों की एक झलक भी। आपको इस लेख के लिए बधाई और आभार।
ReplyDeleteहिंदी साहित्य में श्रद्धेय प्रेमचंद के बाद ज्ञानपीठ पुरस्कार सम्मानित माननीय अमरकांत जी प्रमुख कहानीकार हस्ताक्षर के रूप में जाने जाते थे। यथार्थवादी विचारधारा के रचनाकार मैक्सिस गोर्गी के नाम से भी प्रख्यात है। साधारण जीवन की स्थितियों पर रचना करनेवाले अमरकांत जी मानसिक अन्तर्द्वंदता की यथार्थपरक कहानियाँ लिखते थे। आदरणीय मनीष कुमार जी ने उनके पात्र को चुनकर मुखर अभिव्यक्ति का ज्ञान कराया है। उनके आलेख के द्वारा अमरकांत जी के वास्तविक आदर्शों का परिचय होता है। आलेख की शब्दावली काफ़ी सहज और सरल है जो अमरकांत जी के बोधगम्यता और सादगी के अनुसार वर्णात्मक है। इस सुंदर लेख के लिए मनीष कुमार जी का आभार और अनगिनत शुभकामनाएं।
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