साहित्य, संस्कृति और कला को समर्पित बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ० अशोक चक्रधर ने साहित्य की कई विधाओं में लिखा है, लेकिन उनकी प्रसिद्धि हास्य-व्यंग्य के मंचीय कवि के रूप में अधिक है। कविता उनके अंदर किलकारियाँ मारती है, कहानी महमहाती है, हास्य कहकहाता है, तो व्यंग्य तिलमिलाता है और गीत गमकता है।
लेखन के बीज इन्हें अपने दादा-दादी, माँ-पिताजी से विरासत में मिले। इनके पिता अध्यापक, कवि, बाल साहित्यकार और संपादक थे। अशोक जी के लेखन में खाद-पानी का काम पिता के कवि मित्रों ने किया, जो अक्सर इनके घर आया-जाया करते थे। इसके अलावा संयुक्त परिवार और गली-मोहल्ले के वातावरण का भी बड़ा महत्त्व रहा। जब से नन्हें अशोक की ज़बान पर भाषा आई, तब से वे तुक बनाने के कौशल करने लगे। इन्हें दूध पीना बहुत पसंद था। देखिए दूध कैसे माँगते थे -
चाँदी के गिलाछ में ख़ूब उछालके
हम तो दूध पीएँगे चीनी दालके।
दस साल की उम्र में लाल किले से एक बाल कवि के रूप में कविता पाठ करके सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इसके बाद और ५-७ साल कवि सम्मेलनों में भाग लेने के बाद, यह सोचकर कि साहित्य को गंभीरता से पढ़ने की आवश्यकता है, कवि सम्मेलनों में जाना छोड़ दिया और ख़ूब साहित्य पढ़ा। इन्होंने सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की डिग्री हासिल की है। मुक्तिबोध के लेखन को समझना बहुत मुश्किल माना जाता है। अशोक जी ने उन पर 'मुक्तिबोध की काव्य-प्रक्रिया' पुस्तक लिखकर, उनकी रचनाओं की अर्थ प्रक्रिया समझाने में मदद की है। इस पुस्तक को साल १९७५-७६ में जोधपुर विश्वविद्यालय से युवा लेखक द्वारा लिखी गई सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का पुरस्कार मिला है।
हिंदी भाषा के लिए कार्य
अशोक जी को अध्यापन का अच्छा अनुभव है और आप एक अच्छे शिक्षा विशेषज्ञ हैं। प्रौढ़-शिक्षा के क्षेत्र में भी आपका काम सराहनीय है। इन्होंने प्रौढ़ साक्षरता के लिए रोचक हास्य-व्यंग्य शैली में, सचित्र पुस्तक "नई डगर" लिखी है। इनके अनुसार बड़ों को वर्णमाला सीखने में अजीब नहीं लगे, इसलिए पहले उन्हें उनके अक्सर काम में आने वाले कुछ शब्द सिखाकर, बाद में शब्दों के माध्यम से अक्षर ज्ञान देना चाहिए। उदाहरण के लिए - सीधी रेखाओं के जोड़ से एक शब्द 'नाम' सिखाने के बाद तीन अक्षर - न, आ की मात्रा और म सिखाने चाहिए। फिर इन तीन अक्षरों से जोड़-जोड़कर मन, मान, नाना, मामा, मना इत्यादि दूसरे कई शब्द सिखाए जा सकते हैं।
अशोक जी बहुत बड़े प्रयोगकर्ता हैं। बड़ों की साक्षरता के लिए आपने एक सवैया छंद रचा है, जिसमें हिंदी के सारे स्वर और व्यंजन हैं तथा जिसे धीमी गति से भी गाया जा सकता है। यह प्रयोग आपने नज़फगढ़ की कुछ महिलाओं के साथ किया। इसके लिए पहले उन महिलाओं को सवैया कंठस्थ याद करने के लिए कहा। उसके बाद एक-एक खाने में सवैये का एक-एक अक्षर लिखकर एक चार्ट तैयार किया। फिर महिलाओं को धीमी गति से सवैया गाते हुए एक-एक खाने पर उँगली रखते हुए और अक्षर पहचानते हुए आगे बढ़ने को कहा। इस प्रकार बड़ों के लिए खेल-खेल में साक्षर होने का एक रोचक रास्ता खुला।
सवैया -
घर के छः लोग निरक्षर थे
ऐसे ही पड़े रहते ठलुआ
ऊदल, ओमी, इंदल, चौबे
धनभूषण और वंशी की भुआ
फिर कैसे पढ़ें, पत्र कैसे लिखें
तब अंत में एक उपाय किया
जादू की तरह यह कविता आई
रट ली झट अक्षर ज्ञान हुआ।
अशोक जी वाचिक परंपरा के पहले कवि हैं, जिन्होंने भाषा और साहित्य को तकनीक से जोड़ा। इनका कहना है कि हमें नए युग का रस लेने के लिए ई- साक्षर बनना पड़ेगा। साहित्य को तकनीक से जोड़ने के इनके प्रयासों पर, भाषा और तकनीक पर कार्यरत अशोक जी के मित्र बालेंदु शर्मा दाधीच ने कहा है, "एक विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान अशोक जी ने ICCR की पत्रिका 'गगनांचल' का एक अंक बनाया था। सबसे बड़ी बात यह है कि इन्होंने लगातार ७२ घंटे यूनिकोड में काम करके दिखाया कि किस तरह एक प्रकाशन यूनिकोड में लाना संभव है।" हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने में अशोक जी का बड़ा योगदान है। इन्होंने हिंदी को विकास, प्रौद्योगिकी और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की भाषा बताया है।
साल १९७८ में अशोक जी पुनः कवि सम्मेलनों से जुड़े और फ़ौरन श्रोताओं के चहेते बन गए। उसके बाद यह सिलसिला कभी नहीं थमा। व्यंग्य के शिखर कवि शरद जोशी ने इस तथ्य की पुष्टि कुछ यूँ की है, "मैंने उन हज़ारों मोहित श्रोताओं को देखा है, जो अशोक चक्रधर के कविता-पाठ के समय एक सहज मुस्कान के साथ ठहाका लगाते हैं और उनकी कविता के दर्द को अपने अंतर में गहराई से अनुभव करते हैं, उसे जीते हैं। मैं कई बार मंच पर बैठा अशोक चक्रधर के गहरे प्रभाव का कारण तलाशता रहा हूँ। मुझे लगता है, रचना में आम आदमी की पक्षधरता के अतिरिक्त क्या कारण हो सकता है?"
जीवन जगत के विश्लेषक अशोक जी एक गंभीर साहित्यकार हैं। आप सहज-सरल, तीखे और पैने व्यंग्य से गंभीर विषय पाठकों तक पहुँचाते हैं। आपकी रचनाओं के विषय होते हैं - कमज़ोर आदमी, समाज में चल रही विसंगतियाँ, सामाजिक, राजनीतिक षड्यंत्रों का शिकार आम आदमी। आप बहुत अच्छे मनोवैज्ञानिक हैं - आपकी आँखों में सामने वाले की आँखो का दुख पढ़ने की क्षमता है। कविताओं में रंग भी जमता है और हास्य भी दिखता है। प्रायः कविता की शुरुआत हास्य से करके, गंभीर विषय श्रोताओं तक ले जाते हैं। उन्मुक्त हँसी से दर्शकों का स्वागत करना आपकी विशिष्ट शैली है। आप अपने पिता, मुक्तिबोध और चार्ली चैपलिन को गुरु मानते हैं। मुक्तिबोध से जीवन का ज्ञान लिया और चार्ली चैपलिन से हास्य-बोध। आइए, अशोक जी की काव्य-यात्रा को उनकी कविताओं से जानें -
सरलता से गूढ़ बात कहना आपका हुनर है।
आवाज़ देकर
रिक्शेवाले को बुलाया।
वो कुछ लँगड़ाता हुआ आया।
मैंने पूछा -
यार पहले ये तो बताओगे,
पैर में चोट है कैसे चलाओगे?
रिक्शेवाला कहता है -
बाबूजी,
रिक्शा पैर से नहीं
पेट से चलता है।
सामाजिक विषय पर इनकी एक बहुत प्रसिद्ध और लंबी रचना है। उसमें जामा मस्ज़िद के इलाके की तंग गलियों, गलियों में तेज़ रफ़्तार से बह रही ज़िंदगियों का बड़ा मार्मिक चित्रण है। वे गलियाँ ही वहाँ के बच्चों के जीवन का स्कूल होती हैं। तरह-तरह के व्यवसायों में लगे बच्चे बड़ी जल्दी बूढ़े हो जाते हैं। ये बड़ों की तरह समझदार होते हैं और उनकी काम करने की क्षमता भी उनके बराबर होती है। यह कविता बाल-श्रमिकों पर ध्यान न देने वाले लोगों पर तीखा व्यंग्य है।
'बूढ़े-बच्चे'
गलियों से गले मिलती गलियाँ हैं…
गलियों में महकती हुई
पूरी एक दुनिया है।
गलियों में बच्चे हैं
बच्चे ही बच्चे हैं
बच्चे दर बच्चे हैं,
तथाकथित बच्चों से कटे हुए बच्चे हैं। ….
अगली कविता भारत में आम आदमी की रोज़मर्रा की समस्या की ओर इंगित करती है, जिसका मुकाबला वह रोज़ करता है। रोज़ फँसता है, रोज़ जूझता है, लेकिन टूटता बिलकुल नहीं है, बल्कि आनंद लेता है।
बस में थी भीड़
और धक्के ही धक्के,
यात्री थे अनुभवी…
कंडक्टर बोला
टिकट तो ले जा!
बौड़म जी बोले
मैं बिना टिकिट के
भला हूँ,
सारे रास्ते तो
पैदल ही चला हूँ।
'कटे हाथ' कविता में एक नौजवान पंद्रह वर्ष तक कोई काम न मिलने से परेशान होकर रेलवे लाइन पर ट्रेन से अपने हाथ कटवा लेता है। एक सिपाही वे कटे हुए हाथ लेकर थाने जाता है तथा थानेदार और सिपाही के बीच किस्सागोई के रूप में बात होती है। कवि ने बड़े व्यंग्यात्मक तरीके से देश की बेरोज़गारी की तरफ ध्यान आकर्षित कराया है। सच्ची घटना पर आधारित इस कविता की एक बड़ी ख़ूबी यह है कि इसमें कविता के शृंगार, शांत, वीर, करुणा, अद्भुत, रौद्र तथा बाकि सारे रस मौज़ूद हैं।
'कटे हाथ'
....उस पोटली से निकले
किसी जवान के
दो कटे हुए हाथ
....रोज़ी-रोटी का इंतज़ाम दो
हमें काम दो
हमें काम दो।
वास्तव में अशोक चक्रधर व्यंग्य के सिरमौर कवि हैं, जिनका हास्य गुदगुदाता है और चार्ली चैपलिन की फ़िल्मों की तरह करुणा का भाव भी पैदा करता है।
दुनिया में
लोग होते हैं
दो तरह के -
पहले वे
जो जीवन जीते है
पसीना बहा के!
दूसरे वे
जो पहले वालों को बेचते हैं-
रूमाल
शीतल पेय
पंखे
और...
ठहाके।
अशोक जी महज़ हँसाते ही नहीं हैं, बल्कि अपनी कविताओं से जनता को चेताते हैं, जगाते हैं, सच्चा हाल बताते हैं।
आज़ादी हमको मिली
जब थी आधी रात
हुआ सवेरा ही नहीं
क्या अचरज की बात।
सिसक रही इंसानियत
नाच रहे हैं नाग
ज़हरीली फुफकार से
लगी हर तरफ आग।
अपनी कविताओं से वे गागर में सागर भर देते है - एक बानगी देखिए -
बात होनी चाहिए
सारगर्भित
और छोटी
जैसे कि पहलवान की लंगोटी।
अशोक जी की बहुत पहले लिखी गई और हमेशा प्रासंगिक कविता 'डेमोक्रेसी' के कुछ अंश।
पार्क के कोने में,
घास के बिछौने पर लेटे-लेटे
हम अपनी प्रेयसी से पूछ बैठे -
क्यों डियर!
डेमोक्रेसी क्या होती है?
वो बोली -
तुम्हारे वादों जैसी होती है।
इंतज़ार में बहुत तड़पाती है,
झूठ बोलती है,
सताती है,
तुम तो आ भी जाते हो,
ये कभी नहीं आती है।
बिहार के दशरथ माँझी और ओडिशा के दाना माँझी की कारुणिक कहानियाँ कौन नहीं जानता। देखिए, कवि की संवेदना, बुद्धि और कल्पना के सामंजस्य से दोनों माँझियों की कहानी एक कालजयी रचना बन गई है तथा अपनी वाचन शैली से इसे अशोक जी ने और अधिक रसमय तथा दमदार कर दिया है। एक रचना में अनेक कहानियाँ पिरो दी हैं तथा ग़रीबी, स्वास्थ्य-सेवा, मीडिया, स्त्री-पीड़ा, प्यार और कई दूसरे विषयों की तरफ़ हम सबका ऐसा ध्यान आकर्षित कराया है कि इसे सुनते वक़्त आँखे नम हो जाती हैं।
'दशरथ माँझी और दाना माँझी'
ओ रे माँझी, ओ रे माँझी
ओ रे दाना माँझी……
ओ मेरे दाना, तू मत हार ….
आई थी पालकी में
अब जा रही हूँ काँधे पर
कंधा है एक काफ़ी
मैं तो न चाहूँ काँधे चार
इंसान पर न रोना
इंसानियत पे रो लेना।
इस भुखमरी में करना
माटी से मेरा हर सिंगार।
अशोक जी! आपका नाम याद करते ही आपकी उन्मुक्त मुस्कुराहट और चश्मे के पीछे से हँसती आँखे दिखाई देती हैं। आपके ७१-वें जन्मदिन पर हम आपकी यह मुस्कुराहट और रचनात्मक सक्रियता हमेशा बनी रहने की कामना करते हैं।
अशोक चक्रधर - जीवन परिचय |
जन्म | ८ फरवरी, १९५१, खुर्जा (बुलंद शहर, उत्तर प्रदेश) |
माता | श्रीमती कुसुम 'प्रगल्भ' |
पिता | डॉ० राधेश्याम 'प्रगल्भ' |
पत्नी | बागेश्री चक्रधर |
पुत्र | अनुराग |
पुत्री | स्नेहा |
व्यवसाय | लेखन, अध्यापन, अनुवाद |
भाषा | हिंदी |
कर्मभूमि | भारत |
शिक्षा एवं शोध |
बीए, एमए - मथुरा, उत्तर प्रदेश। पीएचडी, गजानन माधव मुक्तिबोध।
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साहित्यिक रचनाएँ |
काव्य-संकलन |
बूढ़े बच्चे सो तो है भोलेभाले तमाशा चुटपुटकुले हंसो और मर जाओ देश धन्या पंच कन्या ए जी सुनिए इसलिए बौड़म जी इसलिए खिड़कियाँ बोल-गप्पे
| जाने क्या टपके चुनी चुनाई सोची समझी जो करे सो जोकर मसलाराम हास्य धमाल मराठी सब मिलती रहना डाल पर खिली तितली बैस्ट ऑफ़ अशोक चक्रधर तू समझ गयी ना! गई दुनिया नई दुनिया
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समीक्षा |
| मुक्तिबोध की समीक्षाई कुछ भूमि का कुछ गगन का
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प्रौढ़ एवं नवसाक्षर साहित्य |
नई डगर अपाहिज कौन हमने मुहीम चलाई भई बहुत अच्छे बदल जाएगी रेखा ताउम्र का आराम घड़े ऊपर हंडिया तो क्या होता जी ऐसे होती है शादी
| रोती ये धरती देखो कब तलक सहती रहें अपना हक़ अपनी जमीन कहानी जो आँखों से बही और पुलिस पर भी मज़दूरी की राह जुगत करो जीने की और कितने दिन
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निबंध संग्रह (संस्मरण एवं व्यंग्य) |
मंच मचान यूँ ही कुछ कर न चम्पू चम्पू कोई बयान नहीं देगा चम्पू को अचरज भारी
| चक्रधर चमन में जिंदगी की बात कर चम्पू चम्पू का अंतर्लोकपाल चम्पू की छठी चम्पू की खपरैल खोपड़ी
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नाटक |
चार किस्से चौपाल के रंग जमा लो बिटिया की सिसकी जब रहा न कोई चारा
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बाल साहित्य |
कहानियाँ हीरों की चोरी कोयल का सितार एक बगिया में स्नेहा का सपना
| उपन्यास गुलाम के बेटे का बेटा मनौती
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संपादन |
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अनुवाद | |
अन्य उपलब्धियाँ |
धारावाहिक लेखक टेलीफ़िल्म लेखक वृत्तचित्र लेखक निर्देशक संचालक
| कलाकार अभिनेता गीतकार मीडियाकर्मी
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जामिया मिलिया इस्लामिया विश्व विद्यालय में लगभग ३० वर्ष अध्यापन, अनेक वर्ष विभागाध्यक्ष रहे देश में पहली बार किसी हिंदी विभाग को मीडिया अध्ययन से जोड़ा जननाट्य मंच के संस्थापक सदस्य केंद्रीय हिंदी संस्थान तथा हिंदी अकादमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष रहे। देश-विदेश में भाषा, साहित्य और संस्कृति को समर्पित अनेक अधिवेशनों, उत्सवों और महोत्सवों में भाग लिया।
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पुरस्कार और सम्मान |
पद्म श्री पुरस्कार बाल साहित्य पुरस्कार निराला श्री पुरस्कार
| आउटस्टैंडिंग परसन अवार्ड शान-ए-हिन्द अवार्ड हास्य-रत्न उपाधि
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संदर्भ
लेखक परिचय
डॉ सरोज शर्मा
भाषा विज्ञान (रूसी भाषा) में एमए, पीएचडी।
रूसी भाषा पढ़ाने और रूसी से हिंदी में अनुवाद का अनुभव।
वर्तमान में हिंदी-रूसी मुहावरा कोश और हिंदी मुहावरा कोश पर कार्यरत पाँच सदस्यों की एक टीम का हिस्सा।
कपिल कुमार
कपिलजी को हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा कई यूरोपीय भाषाएँ आती है।
आपकी ग़ज़लों की कुछ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, साथ ही आपको बेल्जियम सिटी मेयर से सम्मान प्राप्त हुआ है।
बहुत सुंदर आलेख। अशोक चक्रधर की कविता 1980 के आसपास सुनी थी चक्कलस नाम से चौपाटी पर कवि सम्मेलन हुआ करता था उसमें , एक ठंडी ठंडी बियर पीना चाहता हूं। व्यंग्य में आज ही नही बल्कि यसज तक के श्रेष्ठ कवि हैं इनकी एम नाट्य सृंखला मेरी चबाती बहन के वैतरणा में प्रदर्शित किया गया था। जक्त हाथरसी के दामाद हैं यह बाद में पता चला। शुभकामनाएं मेरे हम उम्र हसि अतं नमन ही करता हूँ।
ReplyDeleteसरोज जी,बहुत आभार आपका कि इतना रुचिकर लेख आपने प्रस्तुत किया , माननीय अशोक चक्रधर को पढ़ना या सुनना ही अपनेआप में बहुत आनंदायी कार्य है। हार्दिक बधाई आपको।
ReplyDeleteसरोज जी, आपने अशोक जी पर सुंदर आलेख दिया है । बधाई।आपने उनके काव्य का भी वर्णन किया और अब तक की जीवन यात्रा का भी। मेरी अशोक जी से दोस्ती बहुत साल पहले हो गई थी, बिना उनसे मिले हुए ही। कारण : मन की मस्ती। मुझे भी बचपन से हँसना - खेलना , मस्त रहना पसंद है।अशोक जी के काव्य ने, मस्त अंदाज़ ने दोस्ती पक्की कर दी। अशोक जी टैलीविजन पर एक हास्य कवि समेकन प्रस्तुत किया करते थे । पता नहीं क्यों बंद कर दिया। हमारे सारे परिवार का प्रिय कार्यक्रम था। अशोक जी की कविताएँ तो याद आती ही हैं , अन्य कवियों की भी मस्त कविताएँ जैसे : ताज्जुब है , ताज्जुब है , देश हमारा ताज्जुब है । अशोक जी , आपको ७१ वें जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ । आपके शतक में २९ रन और बनाने हैं । आप जैसे धुआँधार बल्लेबाज़ तो चौके-छक्के लगाते मज़े से शतक पार करते हैं ।
ReplyDeleteमन की मस्ती के साथ हमारी अनंत शुभकामनाएँ। 🙏🌹💐
सुधार: कवि सम्मेलन
Deleteअशोक जी, आपको जन्मदिन की बधाई तथा सदा स्वस्थ, व्यस्त और मस्त रहने की शुभकामनाएँ। आप की कविताएँ गुदगुदाती भी हैं और सोचने का सबब भी बनती हैं। सरोज और कपिल जी ने संयुक्त प्रयासों से बेहद जानकारीपूर्ण और दिलचस्प लेख प्रस्तुत किया है। दोनों को उस के लिए बहुत-बहुत बधाई और आभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार्थक आलेख अशोक चक्रधर जी पर
ReplyDeleteआदरणीया डॉ सरोज और मेरे प्यारे भाई कपिल जी आप दोनों ने बड़ा ही रोचक और गुदगुदाता आलेख प्रस्तुत किया है। आप दोनों की लेखनी ने आदरणीय अशोक जी के अवतरण दिवस पर सबसे खूबसूरत तोहफ़ा उन्हें प्रदान किया है। आप दोनों को खूब खूब बधाई और पद्मश्री अशोक जी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमेशा अपनी लेखनी से हम सबको हँसाते गुदगुदाते रहें, स्वस्थ रहें और दीर्घायुष्य हो।
ReplyDeleteसप्टेंबर 2016 में आदरणीय अशोक जी से प्रत्यक्ष मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था जब वह हमारे यहां दार ए सलाम, तंजानिया पधारे थे। मुझे उनके समक्ष अपनी स्वरचित कविता प्रस्तुत करने का और उनके साथ मंच साझा करने का संयोग मिला था। इसे अपनी जिंदगी का मंगलप्रद समय समझता हूं कि मुझें हिंदी साहित्य के बहुमुखी प्रतिभा के धनी के साथ कुछ समय बिताने का भाग्य मिला।
सरोज जी एवं कपिल जी आपने डॉ. अशोक चक्रधर जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा। लेख बहुत रोचक है। पढ़ने में आनन्द आया। लेख के लिये आप दोनों लेखकों को बधाई। डॉ. अशोक चक्रधर जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteअशोक चक्रधर जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसरोज जी और कपिल जी को सार्थक और सुंदर आलेख के लिए बहुत बधाई।
सरोज जी और कपिल जी आपने स्नेह की डोरी से कस कर बांध लिया है मुझे। कभी बंधन-मुक्त नहीं होना चाहता। मुझे हिंदी से प्यार है, आपके और अन्य मित्रों के माध्यम से पता चला कि हिंदी भी मुझे प्यार करती है। अनूप जी का हर अभियान सफल हो।
ReplyDeleteअशोक जी, अभिभूत हूँ आपकी टिप्पणी पढ़कर। कामना करती हूँ कि आपके और हमारे समूह के बीच स्नेह और प्रगाढ़ होता जाए तथा आप अपनी सर्जनात्मक उपस्थिति से हम सबको प्रेरित करते रहें।
Deleteअशोक जी, अभिभूत हूँ आपकी टिप्पणी पढ़कर। कामना करती हूँ कि आपके और हमारे समूह के बीच स्नेह और प्रगाढ़ होता जाए तथा आप अपनी सर्जनात्मक उपस्थिति से हम सबको प्रेरित करते रहें।
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