ज्यों शीतल मंद बयार ज्येष्ठ के आतप से व्यथित सभी के शरीर को अह्लादित करती हुई बहती है, त्यों ही मैत्रेयी जी की रचनाधर्मिता साहित्य प्रेमियों को प्रफुल्लित करती हुई बढ़ती है। उनके शब्द पुष्प अपनी सुगंध बिखेरते हुए, हिंदी साहित्य को सुगंधित करते हुए एक अलग ही आभा बिखेरते हैं। वर्तमान में मैत्रेयी जी मूर्धन्य साहित्यकारों में सुशोभित हैं।
३० नवम्बर १९४४, के दिन अलीगढ़ के सिकुर्रा गाँव की गोदी में एक अबोध बालिका ने जन्म लिया, जिसे आज दुनिया मैत्रेयी पुष्पा के नाम से जानती है। उनकी माता कस्तूरी तथा पिता श्री हीरा लाल पांडेय थे। पिता की मृत्यु के बाद माता की देख-रेख में उनका बचपन बीता। माँ ने उनकी शिक्षा के लिए अथक परिश्रम किया। आरंभिक शिक्षा गाँव से होने के उपरांत बुंदेलखंड कॉलेज से हिंदी में परास्नातक की शिक्षा प्राप्त की। माँ की इच्छा अनुसार उनका विवाह डॉ. रमेश चन्द्र शर्मा से हुआ। कुछ समय अलीगढ़ में रहने के बाद उन्हें गाँव से निकल कर दिल्ली में रहने का अवसर मिला।
लेखन के लिए उनके बच्चों ने उन्हें प्रेरित किया। जिसके फलस्वरूप उनकी पहली कृति १९९० में ‘स्मृति दंस’ के नाम से प्रकाशित हुई। उनके साहित्य को गति राजेंद्र यादव और हंस पत्रिका के द्वारा मिली।
दलित और स्त्री विमर्श, ग्रामीण अंचल, बुंदेली ताना-बाना उनकी रचनाओं का आधार है। स्त्री को पग-पग पर उपेक्षित और प्रताड़ित होने की दास्ताँ ही उनकी रचनाओं का मूल स्रोत है। उनकी रचनाओं में विचारों की विविधता है।
'इदन्नमम’ जैसी कालजयी रचना उनके रचनात्मक कार्य का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। 'मंदा’ के बहाने वो एक नया कैनवास तैयार करती हैं। मंदा नारी शक्ति का प्रतिबिंब बनकर उभरी है। एक साधारण सी स्त्री भी जीवन के हर क्षेत्र में क्रांति ला सकती है।
मैत्रेयी जी ने जिस बेबाकी से अपने शब्दों को धार दी है, वो बिरले ही मिलती है। यथार्थ को ज्यों का त्यों काग़ज पर उतार देना बड़े साहस का कार्य होता है, जिसे उन्होंने बड़ी कुशलता से किया है। गाँव की स्त्री कब, किस तरह और किन-किन पड़ावों से गुजरती है, उसका बड़ा विशद चित्रण अपनी रचनाओं के माध्यम से किया है। नारी शोषण, दासता और लाचारी से उपर उठ कर उनके पात्र अपना विद्रोह दर्ज कराते हुए दृष्टिगोचर हुए हैं।
अपनी रचनाओं में मैत्रेयी पुष्पा एक ओर परंपरागत रीति-रिवाजों और शोषण से उबरने की बात करती हैं, वहीं दूसरी ओर आत्मनिर्भरता और स्वावलंबी चेतना का प्रबल समर्थन भी करती हैं। आत्मकथा के माध्यम से मैत्रेयी पुष्पा विवाह संबंधी परंपरागत रूढ़ियों को तोड़ने की पुरज़ोर कोशिश करती हैं। पति-पत्नी के बीच असमानता की खाई को समाप्त कर समान अधिकार और समान कर्तव्यों के हक़ के लिए लेखिका समाज की पुरुषवादी मानसिकता से लड़ने का साहस भी करती है।
बिंदास लेखन शैली के कारण उन्होंने साहित्य में एक अलग स्थान प्राप्त कर लिया है। अपनी रचनाओं में मैत्रेयी जातिव्यवस्था के प्रश्न को भी उठाती हैं। शिक्षा, विवाह और कविता लेखन संबंधी प्रसंग समाज में व्याप्त असमानता, छुआछूत संबंधी प्रश्नों को उभारते हैं। मैत्रेयी पुष्पा की आत्मकथा में जो महत्वपूर्ण बात देखने को मिलती है, वह यह है कि लेखिका पुरानी परंपराओं को तोड़कर निर्माण की आकांक्षा नहीं करती। उनकी नज़र में तो परंपरा पुरानी भी हो सकती है और नई भी; बशर्ते पुरानी परंपरा में नई बातें, नई विधियाँ - प्रविधियाँ शामिल हों। परंपरा में नया रूप जोड़कर उसे सर्वथा नूतन और नवीन रूप प्रदान करना ही लेखिका का उद्देश्य रहा है।
साहित्य के उत्थान हेतु वो सतत् प्रयास कर रही हैं। अकादमी की पत्रिका ‘इंद्रप्रस्थ भारती’ में सुधार उनकी दूरदर्शिता का प्रतीक है। 'भाषा दर्पण’ जैसी प्रतियोगिता का आयोजन भावी पीढ़ियों को साहित्य में लाने का एक अदभुत प्रयास है।
वे बुंदेली मिट्टी की विद्रोही लेखिका के तौर पर विख्यात हैं। वर्षोँ से साहित्य सेवा में जुटी मैत्रेयी जी आज भी उसी जीवटता के साथ साहित्य सेवा में अनवरत लगी हैं। नारी समस्या को आधार बनाकर उन्होंने खुली खिड़कियाँ, सुनो मालिक सुनो, चर्चा हमारी, आवाज़ और तब्दील निगाहें जैसी अनुपम कृतियाँ हिन्दी साहित्य को दी हैं। साहित्य बिना संवेदना के शून्य हो जाता है। यही दुःख दर्द साहित्य के कई सोपानों को समेटे उनकी रचनाओं में दृष्टिगोचर होता है। लोकतांत्रिक मूल्यों की भाँति वो स्त्री स्वाभिमान की चर्चा अपनी कृतियों में करती हैं।
कई उपन्यास, कहानियाँ, आलेख, नाटक, कविताओं का विपुल साहित्य, हिंदी की समृद्ध धरोहर है। अनेकानेक सम्मान उनकी उपलब्धि में चार चाँद लगाते हैं। स्त्री विमर्श, दलित साहित्य, ग्रामीण पृष्ठभूमि, सहज- सरल भाषा शैली और खुले विचारों की शानदार अभिव्यक्ति मैत्रेयी पुष्पा जी की एक विलक्षण प्रतिभा है, जिसके दम पर वे आज हिंदी साहित्य के आसमान में एक दैदीप्यमान नक्षत्र के रूप में सुशोभित हैं।
संदर्भ:-
इदन्नमम
www.wikipedia.org
www.livehindustan.com
www.aajtak.in
गुनाह-बेगुनाह
विज़न
चाक
हंस पत्रिका
www.shabadankan.com
परिचय: मनीष कुमार श्रीवास्तव
अध्यापक और साहित्यकार, भिटारी, रायबरेली प्रकाशित कृतियां:- एकल संग्रह :-प्रकाश एक द्युति (हाइकु क्षितिज) २०२० में प्रकाशित। अनेक साझा संग्रह व कई पत्र पत्रिकाओं में तथा सोशल मीडिया पर हाइकु कविता, कहानी और आलेख प्रकाशित।
एक महत्वपूर्ण साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा जी पर मनीष जी का यह शोधपरख लेख बहुत अच्छा बना है। मनीष जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमैत्रेयी पुष्पा जी से सुंदर और भाव-सुरभित परिचय कराने के लिए मनीष जी आपका हार्दिक आभार और बधाई। अत्यंत ही सधा हुआ और धाराप्रवाह शैली में लिखा लेख।
ReplyDeleteहमारे समय की महत्वपूर्ण साहित्यकार मैत्रयी पुष्पा जी पर बहुत सारगर्भित और शोधपरक लेख के लिए मनीष जी को बहुत बधाई। मैत्रयी जी को कुछ और क़रीब से जानने का अवसर मिला। बहुत आभार।
ReplyDeleteसारगर्भित जीवन परिचय। बचपन से पढ़ती आई हूं। आज ज्बयादा करीब से जानने का मौका मिला। बहुत बहुत आभार।
ReplyDeleteमैत्रेयी पुष्पा जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचित कराने के लिए आपका आभार मनीष जी । सुंदर और रोचक आलेख के लिए बधाई ।
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