Wednesday, November 3, 2021

समन्वय के विराट लोकनायक - तुलसीदास



भक्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी वह महान विभूति हैं जिन्होंने हिंदी जगत को मानस जैसा कालजयी और अद्वितीय ग्रंथ प्रदान किया है। वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में लिखे आदिकाव्य रामायण को जन-जन तक पहुँचाने और उसे वैश्विक लोकप्रियता के चरम तक ले जाने का श्रेय गोस्वामी तुलसीदास को ही जाता है। लगभग एक दर्जन ग्रंथों के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने भारतीय संस्कृति में विद्यमान उदात्त और अनुकरणीय तत्वों को अपनी समावेशी प्रकृति के माध्यम से साहित्य में इस तरह से प्रस्तुत किया है कि उनका समूचा काव्य साहित्यिक मानदंडों की उत्कृष्टता से युक्त आदर्श जीवन निर्माण का दुर्लभ मेनिफेस्टो बन गया है ।अयोध्या सिंह उपाध्याय ’हरिऔध’ ने तो तुलसी दास के कविकर्म से अभिभूत होकर यहाँ तक लिख दिया है कि– “कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला|”

तुलसीदास जी का जन्म संवत 1554 को उत्तर प्रदेश के राजापुर गाँव में पंडित आत्माराम दुबे के घर हुआ था| तुलसीदास जी का बाल्यकाल बहुत कष्टों में बीता था। किम्वदंती है कि ये बारह महीने तक माता के गर्भ में रहे जिस कारण ये सामान्य बालकों से अलग दीखते थे। जन्म के समय इनके मुख में दाँत थे और रोने के स्थान पर इन्होने राम का नाम लिया, जिस कारण इनका नाम रामबोला पड़ गया। अभुक्त मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण बचपन में ही अनाथ हो जाने के कारण इन्हें माता-पिता के प्रेम से वंचित रहना पड़ा। २९ वर्ष की आयु में भारद्वाज गोत्र की अति सुन्दर कन्या रत्नावली के साथ उनका विवाह हुआ। गौना नहीं होने के कारण रत्नावली अपने मायके में रहती थीं | एक दिन उसके प्रेम में व्याकुल होकर ये अँधेरी रात में उफनती यमुना नदी पार करके रत्नावली के पास जा पहुँचे। रत्नावली इतनी रात गये तुलसी को देखकर आश्चर्यचकित हो गयी और लोक-लाज के भय से उन्हें वापस जाने को कहा। जब तुलसीदास ने उनसे अपने साथ चलने की जिद की तो खीझकर रत्नावली ने इस दोहे में उन्हें शिक्षा दी

अस्थि चर्ममय देह मम , तामें जैसी प्रीत !
ऐसी जो श्रीराम में होत, तो न होति भवभीत |

रत्नावली के उलाहना भरे इस दोहे का तुलसी पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्हें संसार से विरक्ति हो गई और उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन को प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन कर दिया|

तुलसी का आविर्भाव एक ऐसे संक्रांति काल में हुआ था जब मूल्यों और परम्पराओं का ह्रास हो रहा था। नागपंथी योगी निराकार ब्रह्म की महत्ता सिद्ध कर रहे थे वहीं विभिन्न दर्शन और मत-मतांतर अपनी-अपनी श्रेष्ठता प्रदर्शन में लगे हुए थे। तुलसीदास जी समाज के मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझते थे, अतएव उन्होंने तत्कालीन समाज के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त सामजिक, धार्मिक, भाषिक औए सांस्कृतिक विरोधाभासों में सामंजस्य और सहअस्तित्व की भावना को उत्पन्न किया और एक ऐसे साहित्य की रचना की जो स्वान्तः सुखाय होने के बावजूद सर्वहिताय और लोकमंगलकारी था। उनके साहित्य की इसी मूलभूत भावना के कारण ही आचार्य शुक्ल उसे ’विरुद्धों का सांमजस्य’ कहते हैं। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी तुलसी के सम्पूर्ण काव्य को समन्वय की विराट चेष्टा मानते हुए कहते हैं कि - बुद्ध के पश्चात् कदाचित तुलसीदास एकमात्र लोकनायक थे जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व करके समाज, धर्म, संस्कृति को दिशा-बोध कराया। लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके, क्योंकि भारतीय जनता में नाना प्रकार की परस्पर विरोधिनी संस्कृतियाँ, साधनाएँ, जातियाँ, आचार, निष्ठा और विचार पध्दतियाँ प्रचलित हैं। उनका सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है। लोक और शास्त्र का समन्वय, भोग और वैराग्य का समन्वय, भक्ति और ज्ञान का समन्वय, भाषा और संस्कृति का समन्वय, निर्गुण और सगुण का समन्वय, पांडित्य और अपांडित्य का समन्वय है। रामचरितमानस शुरू से अंत तक समन्वय-काव्य है।"

डॉ. राम विलास शर्मा ने तो “तुलसी साहित्य के सामन्त विरोधी मूल्य” तथा “भक्ति आंदोलन और तुलसीदास” शीर्षक निबंधों में कहा है कि- तुलसी साहित्य एक ओर आत्मनिवेदन और विनय का साहित्य है तो दूसरी ओर वह प्रतिरोध का साहित्य भी है।

तुलसीदास ने जनभाषा अवधी में लिखित अपने मानस में भक्त और भगवान के अटूट संबंध के माध्यम से भक्ति की वह पावन धारा प्रवाहित की जिसमें अवगाहन करके भक्त स्वयं को निर्मल बना लेता है। भक्ति की सरलता और समर्पण का ऐसा उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है, तुलसी काव्य-नायक राम हैं - यह राम निर्गुण-निराकार भी हैं और सगुण-साकार भी । वे ‘ब्रह्म’ भी हैं और दशरथ के पुत्र भी। वे मर्यादा पुरुषोत्तम, आदर्श राजा, आज्ञाकारी पुत्र, एक पत्नी व्रती और धीर-गंभीर भी हैं। उनके चरित्र में शील, शक्ति और सौन्दर्य का अनुपम सामंजस्य देखने को मिलता है। तुलसी के राम धर्म, नीति और न्याय पथ पर अविचल रहते हुए धर्म की स्थापना के लिए सतत संघर्षरत रहते हैं, जिस कारण उनके अनुकरणीय और अनुपम चरित्र पर समस्त विश्व सदियों से न्यौछावर होता आया है ।

आचार्य शुक्ल का कहना है- ’’मानव प्रकृति के जितने अधिक रूपों के साथ गोस्वामी जी के हृदय का रागात्मक सामंजस्य हम देखते है, उतना अधिक हिन्दी भाषा के और किसी कवि के हृदय का नहीं। यह एक कवि ही हिंदी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।’’ यह सत्य भी है कि मानव चरित्रों की जितनी विविधता मानस में मिलती है वह किसी अन्य ग्रन्थ में दुर्लभ है। यही कारण है कि उनके काव्य में सभी रसों की सुन्दर उद्भावना देखने को मिलती है। मानस में प्रेम के श्रृंगारिक रूप का मर्यादित चित्रण जैसा तुलसी ने किया है वह अत्यंत ख़ूबसूरत है। विवाह के अवसर पर सीता जी द्वारा अंगूठी के नग में श्रीराम के अप्रतिम सौन्दर्य को निहारना कवि की अनूठी कल्पना है वहीं सीता के वियोग में श्रीराम द्वारा वन के चर-अचर प्राणियों से उनके बारे में पूछना विप्रलम्भ श्रृंगार का परिपाक कहा जा सकता है। लक्ष्मण के शक्ति लगने पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम के मुख से निकले ये वचन किसी को भी विचलित करने में सक्षम है-

मेरो सब पुरुषारथ थाको
विपति बंटावन बंधू – बाहु बिनु करौ भरोसो काको |

भाषा की दृष्टि से भी तुलसीदास का काव्य अनुपम कहा जा सकता है। उनका रामचरितमानस अवधी भाषा में लिखा है जबकि विनय-पत्रिका और कवितावली आदि रचनाएँ ब्रजभाषा में लिखी गई हैं। उन्होंने अपने युग के साथ-साथ वीरगाथा काल में प्रचलित अनेक छन्दों का अपने काव्य में प्रयोग किया है। दोहा, सोरठा, चौपाई, गीतिका, कवित्त, सवैया, छप्पय, बरवै आदि छन्द तुलसी की काव्य-कला में उत्कर्ष तक पहुँचे हैं ।

तुलसीदास जी का साहित्य देश, काल, धर्म, जाति की परिधियों को अतिक्रमित करके सार्वदेशिक और सार्वकालिक हो गया है। यह वह साहित्य है जिसकी प्रासंगिकता, उपयोगिता और लोकप्रियता हर युग में चिरस्थाई रहेगी। महात्मा गाँधी ने तुलसी की रामराज्य की अवधारणा को समस्त विश्व सभ्यता के लिए आवश्यक बताया है, ऐसा रामराज्य जहाँ सभी मनुष्य सुखी हों, जहाँ कोई छोटा या बड़ा न हो –

दैहिक दैविक भौतिक तापा, रामराज नहीं काहुहिं ब्यापा।।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती, चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।

यह गोस्वामी तुलसीदास के व्यक्तित्व और उनके राममय साहित्य का चमत्कार ही कहा जाएगा कि न केवल भारत बल्कि समस्त विश्व उनका मुरीद बना हुआ है। विश्व के विभिन्न देशों की भाषाओं में जहाँ मानस का अनुवाद किया जा रहा है, वहीं विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों में उस पर शोधकार्य भी किए जा रहे हैं। मॉरिशस में तो हिंदी प्रचारिणी संस्था आदि विभिन्न हिंदी संस्थाओं द्वारा तुलसी जयंती पर हिंदी दिवस मनाने की परंपरा रही है। ऐसा करने के पीछे मुख्य भावना यह है कि मॉरिशसवासी इस द्वीप में हिंदी को जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय तुलसी और उनके मानस को देते हैं। रूस के प्रसिद्ध हिंदी विद्वान् वारान्निकोव ने न केवल मानस का रूसी में भावानुवाद किया बल्कि मरने के बाद अपनी कब्र पर मानस की चौपाई को उत्कीर्ण करने की इच्छा भी व्यक्त की। उनकी अंतिम इच्छा के फलस्वरूप ही आज भी उनके गाँव स्थित उनकी कब्र पर उत्कीर्ण तुलसी की यह चौपाई मानस की लोकप्रियता का निनाद करती देखी जा सकती है –

भलो भलाइहि पै लहई, लहई निचाइहि नीचु,
सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिए मीचु |



गोस्वामी तुलसीदास: जीवन परिचय

जन्म

संवत् १५५४ , राजापुर गांव (वर्तमान बांदा जिला) उत्तर प्रदेश

निधन

संवत १६८० ,असीघाट

गुरु 

बाबा नरहरिदास

माता-पिता  

आत्माराम दुबे और हुलसी

कर्मभूमि 

चित्रकूट, काशी और अयोध्या

साहित्यिक रचनाएँ 

श्रीरामचरित मानस महाकाव्य, गीतावली दोहावली, कवितावली, रामाज्ञाप्रश्नावली, विनयपत्रिका, रामलला-नहछू, पार्वतीमंगल, जानकीमंगल, बरवै रामायण,कृष्ण गीतावली और वैराग्य संदीपनी

संदर्भ सूची:
  • डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी – हिंदी साहित्य की भूमिका , पृष्ठ -१०१
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : हिंदी साहित्य का इतिहास , पृष्ठ -११८ संस्करण: २००७
  • रामविलास शर्मा : परंपरा का मूल्यांकन पृष्ठ- ९४ राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली- ११०००२
                            
लेखक परिचय:

लेखन: 
डॉ नूतन पाण्डेय,भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय में सहायक निदेशक पद पर पदस्थ हैं और 2015 से 2019 तक भारतीय उच्चायोग, मॉरीशस में राजनयिक के रूप में पदस्थ रहीं। भाषा विज्ञान, प्रवासी साहित्य में विशेष रूचि है। आपकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं।


शोध:
डॉ. शंभू बाबय प्रभु देसाई: एम. ए., साहित्य रत्नाकर, पी.एच.डी. हिंदी, गोवा विश्वविद्यालय से। कार्यकाल में कुल 37 राष्ट्रीय पुरस्कार (गृहमंत्रालय, राजभाषा विभाग, भारत सरकारसे) प्राप्त।





9 comments:

  1. बहुत अच्छा लेख।
    महाकवि तुलसीदास जी पर रोचक एवं सहज पठनीय लेख के लिए डॉ. नूतन जी को हार्दिक बधाई।

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  2. सुंदर लेख । एक छोटे लेख में तुलसीदासजी के जीवन एवं कृतित्व पर विस्तृत जानकारी दी गई है । बधाई , नूतन जी । 💐

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  3. महाकवि तुलसीदास जी की लोकमंगल की भावना को गागर में सागर भरने का काम किया है। बहुत सफल प्रयास हार्दिक अभिनंदन

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  4. ज्ञानवर्धक और प्रवाहमय आलेख। नूतन जी, बधाई आपको।

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  5. गोस्वामी तुलसीदास पर शोध करना और भक्ति भाव में न बह जाने का साहसिक काम किया है आपने नूतन जी। जिस तरह उन के लेखन पर हुए विवेचन को आपने प्रस्तुत किया है और पहचान निकाला है कि वह विरोधी भावों के समन्वय के महाकवि हैं, वह साहित्यिक दृष्टि प्रशंसनीय है!

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  6. बहुत ही सुंदर और सार्थक पोस्ट

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  7. तुलसी साहित्य के विशाल सागर को एक कलश में समेत कर प्रस्तुत करने के लिए आभार।

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  8. सार्थक लेख
    हर्षबाला शर्मा

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  9. तुलसीदास जैसे साहित्यकार के व्यक्तित्व और कृतित्व को छोटे आलेख में बखूबी पेश करने के लिए बहुत-बहुत बधाई और धन्यवाद। अत्यंत दिलचस्प और जानकारी पूर्ण आलेख।

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