विवेकी राय की प्रारंभिक शिक्षा गाँव सोनवानी, ज़िला गाज़ीपुर, उत्तरप्रदेश में हुई। मिडिल कक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के साथ ही पढ़ाई छोड़ पुश्तैनी खेती-बाड़ी के काम में लग गए। गाँव में आगे की पढ़ाई की कोई सुविधा न थी और न ही उच्च-शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने वाला कोई व्यक्ति। ग्रामीण जीवन की विषम परिस्थितियों के कारण उपजी अंत:प्रेरणा ने स्वाध्याय के लिए प्रेरित किया और उनके मन में पढ़ने की ऐसी ललक जगी कि पारिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते हुए ज़िले के सभी पुस्तकालयों की पुस्तकें गंभीरता और गहनता से पढ़ने लगे। इस पठन-प्रक्रिया ने जहाँ एक ओर उनके ह्रदय के भावों को संबल और विस्तृत आकाश में विचरण करने का मौक़ा दिया, वहीं दूसरी ओर शिक्षा के महत्व को आत्मसात करने की प्रेरणा भी दी। सन १९४२ विवेकी राय के जीवन का परिवर्तनकारी वर्ष रहा। उन्हें गाँव के लोअर प्राइमरी स्कूल में अध्यापक की नौकरी मिली, साथ ही वे राष्ट्रव्यापी जनांदोलनों से भी सक्रिय रूप से जुड़े। बाद में उन्होंने इंटर कॉलेज, स्नातकोत्तर कॉलेज, गाज़ीपुर के हिंदी विभाग में सेवाएँ प्रदान कीं।
अभिनव इमरोज़ पत्रिका में प्रकाशित साक्षात्कार में विवेकी राय जी एक प्रश्न के उत्तर में डॉ. जगदीश भगत से कहते हैं- "लिखने की प्रेरणा मुझे किसी व्यक्ति विशेष से नहीं मिली। वह लिखित-साहित्य से मिली। बचपन में ही पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों से प्रेम हो गया था। यह प्रेम कैसे हुआ नहीं मालूम। पर जैसे भी हो, कहीं से भी हो, मैं खोज-खोज कर पठनीय चीजें पढ़ा करता था, विशेषकर 'कहानियों' को। यही लेखन के प्रेरणा स्रोत रहे।" (अभिनव इमरोज़ पत्रिका, अंक २५ जून, २०२०) विवेकी राय की लेखनी का प्रमाणिक प्रारंभ १९४५ में वाराणसी के दैनिक ‘आज’ में प्रकाशित ‘पाकिस्तानी’ नामक कहानी से माना जाता है। ‘आज’ में लिखने का क्रम १९४५ से १९७० तक अबाध गति से चला और कविता, कहानी, निबंध, रेखाचित्र, रिपोर्ताज़ आदि विधाओं में रचनाओं का प्रकाशन हुआ। उनका साप्ताहिक स्तंभ ‘मनबोध मास्टर की डायरी’ अत्यंत लोकप्रिय और चर्चित रहा। देश की प्रतिष्ठित हिंदी पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, सारिका, नवनीत, समीक्षा, प्रकर, ज्ञानोदय, कल्पना, कहानी, आज, रविवार, ज्योत्सना, शिखरवार्ता, जनसत्ता आदि में उनकी साहित्यिक रचनाएँ नियमित रूप से प्रकाशित होती रहीं, जिनसे विवेकी राय हिंदी साहित्य में सजग लेखक के रूप में स्थापित हुए।
डॉ. विवेकी राय को प्रेमचंद और रेणु की परंपरा का कथाकार कहा जाता है। उनका संपूर्ण साहित्य गाँव और किसानों को केंद्र में रखकर लिखा गया है। ग्रामीण अंचल में जीवन जीने के कारण उनका भावबोध गहराई से स्थानीय सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनैतिक-आर्थिक परिदृश्यों से जुड़ा है। डॉ. रामदरश मिश्र के शब्दों में “विवेकी राय किसान लेखक हैं। उनके लेखन में अपनी गँवई धरती बोलती है, जन-सामान्य की भूख प्यास बोलती है, उनके उत्कर्ष की चिंता बोलती है, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पाखण्ड के विरुद्ध प्रतिवाद बोलता है, यानी समग्रत: उसमें मनुष्यता बोलती है।” (सहचर है समय – रामदरश मिश्र, परमेश्वरी प्रकाशन, दिल्ली, पृष्ठ ५१४)
विवेकी राय ने बचपन में ही कविताएँ लिखनी शुरू कर दी थीं। उनकी कविता का उत्स उनकी निजी संवेदना है। ‘अर्गला’ संग्रह की कविताओं में देश और समाज में व्याप्त असंगतियों का मार्मिक चित्रण है; ‘रजनीगंधा’ में संकलित कविताएँ देश-प्रेम, कृषक जीवन एवं छायावादी मानसिकता की उपज है; ‘जनता का पोखरा’ उनकी समृद्ध भोजपुरी संस्कृति का परिचायक हैं; ‘यह जो गायत्री’ की कविताएँ अंचल की माटी की प्राकृतिक खुशबू और सौंदर्य को प्रतिबिंबित करती हैं। विवेकी राय जी के काव्य-वैभव पर आचार्य नंददुलारे वाजपेयी लिखते हैं– “यद्यपि विवेकी राय के पद्यों की शैली और छंद नए नहीं हैं; पर इनकी भावधारा में नवीन जीवन शक्ति है, प्रकृति के अपूर्व जागरण में मानव के जागृत होने और मानव को जागृत करने के बलशाली संकेत हैं, कवि के इन प्राकृतिक सौंदर्य-चित्रणों में उसकी मानवीय संवेदना समायी हुई है- वैसी ही भावना जैसी अंग्रेजी कवि वर्ड्सवर्थ की थी।... उनकी कविताओं में एक ओर प्रकृति है, थकी हुई चिड़िया है; तो दूसरी ओर दर्शन, शृंगार, रहस्य और राष्ट्रीय बोध भी है।” (विवेकी राय और उनका रचना संसार- संपादक- डॉ मान्धाता राय, विश्वविद्यालय प्रकाशन वाराणसी) उनके दार्शनिक चिंतन का आकलन ‘दीक्षा’ में संकलित कविताओं में समाया है।
निबंध और ललित निबंध के क्षेत्र में डॉ. विवेकी राय ने अभूतपूर्व योगदान दिया है। उन्होंने अपने निबंधों में समाज के अनाचारों, कुरीतियों, अंधविश्वासों तथा भ्रष्टाचारी कुव्यवस्था का मार्मिक चित्रण किया है। इनमें तत्कालीन नई कृषि नीति के दुष्परिणाम तथा गरीब किसानों की बेबाक अभिव्यक्ति मौजूद है। उन्होंने ग्रामीण जीवन, संस्कृति और सभ्यता एवं अंचल को दूषित करने वाली विविध समस्याओं को निबंधों का विषय बनाया है और तटस्थता से उनका नीर-क्षीर विश्लेषण भी किया है। विवेकी राय के निबंधों के गांभीर्य चिंतन के संबंध में समीक्षक डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ की यह टिप्पणी सटीक है, “जिन निबंधकारों ने मुख्यतः लोकजीवन और लोकसंस्कृति का सृजनात्मक दोहन करते हुए अपने निबंधों की वैचारिकता और अभिव्यंजना को प्रखर और ललित बनाया है उनमें विवेकी राय प्रमुख हैं।” (इक्कीसवीं शताब्दी पूर्व अर्धशती सृजनयात्रा, संपादक - डॉ. अनिल कुमार, पृष्ठ २४)
डॉ. विवेकी राय ने अपने लेखन के वैशिष्टय से साहित्य जगत में स्थायी पहचान बनाई है। उन्होंने साहित्य की विविध विधाओं में अपने आत्मानुभूत भावों और संवेदनाओं को यथार्थ रूप में अभिव्यक्त किया। लोकमानस के प्रति आकर्षण ही उनकी साहित्यिक यात्रा को लोकोन्मुखी बनाता है।
संदर्भ :
नवनिकष पत्रिका, विवेकी राय विशेषांक – पृष्ठ ७
अभिनव इमरोज़ पत्रिका, अंक २५ जून, २०२०
सहचर है समय- रामदरश मिश्र, परमेश्वरी प्रकाशन, दिल्ली, पृष्ठ ५१४
विवेकी राय और उनका रचना संसार- संपादक- डॉ मान्धाता राय, विश्वविद्यालय प्रकाशन वाराणसी
इक्कीसवीं शताब्दी पूर्व अर्धशती सृजनयात्रा, संपादक-डॉ अनिल कुमार पृष्ठ २४
लेखक परिचय :
डॉ. दीपक पाण्डेय वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय में सहायक निदेशक पद पर कार्यरत हैं। २०१५ से २०१९ तक त्रिनिडाड एवं टोबैगो में राजनयिक के पद पर पदस्थ रहे। प्रवासी साहित्य में आपकी विशेष रुचि है।
मोबाइल - +91 8929408999
Email – dkp410@gmail.com
साहित्य साधक विवेकी राय जी पर रोचक एवं शोधपूर्ण लेख के लिए दीपक जी को बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteहिंदी से प्यार रखने वालों के लिए यह खजाना है। बधाइयाँ
Deleteसक्षिप्त, सटीक, सार्थक;अत्युत्तम लेख। दीपक जी, विवेकी राय जी के इतने सुन्दर परिचय के लिए आभार।
ReplyDeleteविवेकी राय जी पर दीपक पांडेय जी का यह लेख सारगर्भित और सटीक है। विवेकी राय जी के समृद्ध कार्य को पाठकों के बीच लाने के लिए दीपक जी का साधुवाद।
ReplyDelete