अली सरदार जाफ़री, अपनी धुन के पक्के व्यक्ति थे| उनके साहित्य ने ज़िंदगी भर कमज़ोर और ग़रीबों केआँसू पोंछे और उनके चेहरों पर मुस्कान लाने की कोशिश की। प्रगतिशील लेखकआंदोलन के संस्थापकों में से एक, सरदार जाफ़री ने शायरी के ज़रिये नए शब्दों और नए विचारों को लोगों के सामने रखा। अपने इन्क़िलाबी विचारों की वजह से बार-बार जेल गए, बहुत मुश्किलों का सामना किया, लेकिन सदा अपने मन की सुनी। अली सरदार जाफ़री संवेदनशील कवि, नाटककार, कहानीकार, फिल्म निर्माता, क्रांतिकारी, चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ बेहतरीन आलोचक और अनुवादक भी थे।
अली सरदार जाफ़री ने बलरामपुर में स्कूली शिक्षा प्राप्त की और फिर आगे की पढ़ाई के लिए १९३३ में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी गए । यहाँ रहते हुए उनपर कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रभाव पड़ा और उसी के चलते १९३६ में उन्हें यूनिवर्सिटी से निष्कासित कर दिया गया। उन्होंने १९३८ में दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में दाख़िला लिया और स्नातक की उपाधि प्राप्त की । फिर इंग्लिश लिटरेचर में स्नातकोत्तर पढ़ाई के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। यहीं १९३९ में उनकी मुलाक़ात राजनीति विज्ञान से एम ए कर रहीं सुल्ताना से हुई, जिनसे उन्हें प्रेम हुआ और बाद में १९४८ में शादी हुई। वर्ष १९४०-४१ के दौरान युद्ध-विरोधी कविताएँ लिखने और राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए उन्हें गिरफ़्तार भी किया गया। उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस की सियासी सरगर्मियों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया । एम ए फाइनल की परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं मिल सकी और गिरफ़्तार करके जेल भेज दिए गए । चाहे आज़ादी का आंदोलन हो, कामगार-मज़दूरों के धरने-प्रदर्शन, स्टूडेंट्स मूवमेंट हो या फिर अदीबों का आंदोलन- अली सरदार जाफरी इन सभी आंदोलनों में हमेशा उपस्थित रहते थे। उनका मानना था कि हर अच्छी कविता में कवि के दिल का लहू घुल-मिल जाता है। मुंबई में १ अगस्त सन २००० में, ८६ वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया।
लेखन
जाफ़री ने केवल पंद्रह वर्ष की उम्र में लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने लघु कथाएँ लिखनी १७ साल की उम्र में शुरू की थीं। १९३८ में जाफ़री की लघु कहानियों की पहली किताब ‘मंज़िल' प्रकाशित हुई। उनका पहला कविता संग्रह परवाज़ (उड़ान) १९४४ में प्रकाशित हुआ था। वर्ष १९३९ में वे प्रगतिशील लेखक के आंदोलन को समर्पित साहित्यिक पत्रिका, नया अदब, के सह-संपादक बने, जो १९४९ तक प्रकाशित होती रही। उन्होंने शेक्सपियर की कुछ रचनाओं का सफलतापूर्वक अनुवाद भी किया। उन्होंने एक ही किताब में एक साथ दोनों भाषाओं के चार शास्त्रीय कवियों, यानी, ‘ग़ालिब’, ‘मीर, कबीर और मीरा’ की रचनाओं को प्रकाशित करके उर्दू और हिंदी के बीच की खाई को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह ९९ शायरी के संकलनों के शायर भी थे। इप्टा के लिए जाफ़री ने दो नाटक लिखने के अलावा एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'कबीर, इक़बाल और आज़ादी' बनाई। उनकी रचनाओं में कई काव्य-विधाएँ जैसे मसनवी, ग़ज़ल, नज़्म, कविताएँ आदि शामिल हैं। 'पैकर' उनवान से नाटक भी लिखा। 'लखनऊ की पाँच रातें' नाम से एक 'यात्रा वृतांत' की किताब भी मंज़र-ए-आम पर आई, उनकी किताबों में १९४४ में आई 'परवाज़' के आलावा 'जम्हूर' (१९४६), 'नई दुनिया को सलाम' (१९४७), 'ख़ून की लकीर' (१९४९), 'अम्न का सितारा' (१९५०), 'एशिया जाग उठा' (१९५०), 'पत्थर की दीवार' (१९५३), 'एक ख़्वाब और' (१९६५), 'पैराहने शरर' (१९६६), 'लहू पुकारता है' (१९७८), 'मेरा सफ़र' (१९९९) आदि मुख्य हैं। इसके अलावा 'अवध की ख़ाक-ए-हसीन', 'सुब्हे फ़र्दा' और आख़िरी कृति 'सरहद' (१९९९) भी बहुत अहमियत रखती हैं।
सम्मान और पुरस्कार
सरदार अली जाफ़री को कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया| इनमें १९६५ में सोवियत लैंड नेहरु अवार्ड, १९६७ में पद्मश्री, १९७८ में पाकिस्तान सरकार द्वारा इक़बाल गोल्ड मैडल सम्मान, १९७९ में उत्तरप्रदेश उर्दू अकादमी अवार्ड, १९८३ में 'एशिया जाग उठा' के लिए कुमारन आसन अवार्ड, १९८६ में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी द्वारा डी.लिट., १९८६ में अंतर्राष्ट्रीय उर्दू अवार्ड और इक़बाल सम्मान, १९९७ में ज्ञानपीठ अवार्ड, १९९९ में हॉवर्ड यूनिवर्सिटी अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार आदि प्रमुख हैं।
कुछ रोचक किस्से
इस्मत चुगताई और सरदार अली जाफ़री –
३० जनवरी १९४८ को सरदार और सुल्ताना अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन करवाने लोकल बस से रजिस्ट्रार ऑफिस पहुँचे। दूल्हा बने सरदार की जेब में उस वक़्त महज़ ३ रुपए थे। कृशन चंदर, के ए अब्बास और इस्मत चुगताई इसके गवाह बने ।
सरदार की कैफ़ी और शौकत से मित्रता
शादी के बाद ये जोड़ा अंधेरी कम्यून में रहने चला गया, जहाँ कैफ़ी और शौकत आज़मी पहले से रहते थे। दोनों युगलों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हुए, जो जीवन पर्यन्त चलते रहे।
जेल से पत्नी सुल्ताना के नाम पत्र
सरदार जी ने १९४९ में नासिक जेल से पत्नी सुल्ताना के नाम अनेक पत्र लिखे। इन ख़तों में मुहब्बत, जज़्बात, तन्हाई और उम्मीद के कई अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं ।
तुर्की कवि नाज़िम हिकमत पर रखे बेटों के नाम
हैदराबाद में सरदार जाफ़री के बड़े बेटे अली नाज़िम जाफ़री ने भी पिता के बारे में बात करते हुए कहा कि पिताजी तुर्क कवि नाज़िम हिकमत की रचनाओं से भी प्रभावित थे। साथ ही उनके अच्छे दोस्त भी। लिहाज़ा, इसी दीवानगी में उन्होंने मेरा नाम 'नाज़िम' और अपने छोटे भाई का नाम 'हिकमत' रख दिया था।
सरदार अनेक विदेशी लेखकों से भी मिले
उन्होंने अमरीका, कनाड़ा, रूस, फ्रांस, तुर्की आदि देशों का भ्रमण किया तथा इस दौरान वहाँ के क्रांतिकारी कवियों से भी मुलाक़ात की। इन कवियों में पाब्लो नेरुदा, तुर्की के नाज़िम हिकमत, फ्रांस के लुई अरागाँ, एल्या एहरान, रूस के शलाखोव प्रमुख हैं।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ सरदार अली जाफ़री
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ जाफ़री भी पकिस्तान गए थे। तब उन्होंने सरहद पर एक ऑडियो एल्बम भी बनाया। एल्बम का निर्माण स्क्वाड्रन लीडर अनिल सहगल ने किया था और आवाज़ दी थी ‘बुलबुल-ए-कश्मीर’ सीमा सहगल ने।
शबाना आज़मी और अली सरदार जाफ़री
अभिनेत्री शबाना आज़मी ने किसी इंटरव्यू में अली सरदार जाफ़री के बारे में बताते हुए कहा - 'सरदार साहब के बड़े बेटे 'नाज़िम' उन्हें 'डैडी' कहने की कोशिश में 'दोदा' कहते थे। फिर हम भी उन्हें दोदा कह कर बुलाने लगे, जबकि उनकी पत्नी सुल्ताना जी को हम अम्मा कहते थे।
'मॉन्ट ब्लांक' का पेन
शबाना आज़मी ने बताया कि सरदार अली जाफ़री सरल व्यक्ति थे। उनकी कोई बड़ी ख़्वाहिश नहीं थी। लेकिन एक बार उन्होंने इच्छा ज़ाहिर की कि काश मेरे पास 'मॉन्ट ब्लांक' पेन हो। यह बात जब अदाकार फ़ारुख़ शेख़ तक पहुँची, तो उन्होंने 'दोदा' को एक 'मॉन्ट ब्लांक' पेन तोहफे में दे दिया।
निदा फाजली और अली सरदार जाफ़री
निदा फाजली ने अपने एक लेख में अली सरदार जाफ़री के बारे में कहा -
‘जाफ़री नाम से मुसलमान थे, लेकिन अपने काम से सेक्युलर हिंदुस्तानी थे’। जाफ़री का संघर्ष देश की आज़ादी तक ही सीमित नहीं रहा, आज़ादी के बाद उन्होंने एक अलग लड़ाई लड़ी। जो देश में लोकतांत्रिक मूल्यों, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए थी। अली सरदार जाफ़री अब हमारे बीच नहीं हैं पर उनका साहित्य उन्हें सदा अमर रखेगा।
सन्दर्भ : यह लेख विभिन्न वेबसाइटों पर अली सरदार जाफ़री के विषय में उपलब्ध सूचना पर आधारित है।
रेखा राजवंशी का परिचय
कवयित्री और लेखिका रेखा राजवंशी ऑस्ट्रेलिया में हिंदी साहित्य के प्रति समर्पित हैं। उनकी सात पुस्तकें प्रकशित हैं और तीन संपादित हैं। उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें २०२१ का उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का पुरस्कार भी सम्मिलित है।
बेहद रोचक जानकारी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
अली सरदार जाफ़री जी के विषय में महत्पूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध कराता बहुत सार्थक लेख।
ReplyDeleteरेखा जी को बहुत बधाई।
अली सरदार जाफ़री जी पर रेखा जी ने बेहद उम्दा लेख लिखा है। जाफ़री साहब से जुड़े किस्सों ने लेख को और भी रोचक बना दिया है। रेखा जी को बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteरेखा जी ने इस लेख के ज़रिये अली सरदार जाफरी के कलाम और ज़िन्दगी से उम्दा तआरुफ़ कराया और उनकी ज़िन्दगी के कुछ क़िस्सों का ज़िक्र कर उसे और दिलचस्प बना दिया। रेखा जी को बहुत बहुत बधाई।
ReplyDelete