Wednesday, November 24, 2021

परवीन शाकिर – ‘हँसती थी और काजल भीगता था साथ-साथ’

बचपन और युवा होने के ठीक बीचों-बीच के पड़ाव में, मैं तैर रहा था। यह वो दौर था कि आँखों में गुलाबी-गुलाबी से ख़्वाब और होंठों के कोनों पर रह-रह कर बेसाख़्ता  मुस्कराहट रहती थी। ज़िन्दगी के सबसे लताफ़त भरे दिनों में, मैं किताबों के हर किरदार को आस-पास या ख़ुद में तलाशने की कोशिश करता था। इसी बीच एक किताब की दुकान पर उँगलियाँ एक वक़्फ़े को थमीं और हाथों में 'ख़ुशबू’ फ़ैल गयी। यह बेहद ख़ुशशक्ल चेहरे वाली परवीन शाकिर की किताब 'ख़ुशबू’ थी। पता नहीं उस चेहरे में कशिश थी, किताब के उन्वान में या अंदर के पेज पर लिखी ग़ज़ल में.. 


'वो तो ख़ुशबू है, हवाओं में बिखर जाएगा     

मसअला फूल का है, फूल किधर जाएगा

हम तो समझे थे, एक ज़ख़्म है, भर जाएगा 

क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा


शायद इन तीनों का मिला जुला प्रभाव यह था कि अब उँगलियों ने उस किताब से न हटने की ज़िद्द पकड़ ली थी। इत्तेफ़ाक़ से अगले दिन इतवार था और मैं देर रात तक किताब के हर पन्ने पर इश्क़, तड़प, दर्द, वफ़ा, जफ़ा बिखरने की दास्ताँ पढ़ रहा था। अलहदा तरीके से इश्क़ और इंतज़ार तकरीबन हर पन्ने पर बिखरा पड़ा था। दर्द कहीं ऐसे सुलग रहा था जैसे सफ़ेद राख ने आग के नारंगी बदन को छिपा लिया हो लेकिन उसकी ऊष्मा, अभी भी राख से आ रही हो। किसी शायरा की सोच का इतना लताफ़त भरा, दिलफ़रेब, दिल अफ़्शाँ इज़हार पढ़ने से मेरे दिल का सबसे गहरा हिस्सा इश्क़ के रोमानी रंग से गुलाबी हो गया था। इश्क़ के लतीफ़ चेहरे के साथ जो चीज़ दिल को छू रही थी वह थी उनकी, औरतों के हक़-हुक़ूक़ में खड़ी पुरज़ोर आवाज़’। सच कहूँ तो सिर्फ एक किताब, चंद गज़लें और एक रात में मैं उस शायरा का मुरीद हो गया, जिसे दुनिया परवीन शाकिर के नाम से जानती है।  


परवीन शाकिर 'बीना’ उपनाम से तमाम अख़बारों में आर्टिकल, ग़ज़ल लिखती थीं। कुछ ही सालों में पकिस्तान में उनके ख़ुद बयानी के किस्से मशहूर और मक़बूल हो गए। २४ साल की उम्र में उनकी पहली किताब 'ख़ुशबू' पाकिस्तान के हर अदब पसंद इंसान तक पहुँच गई। 'ख़ुशबू' में इश्क़िया दास्ताँ इस कदर मुलामियत से परोसी गयी थी कि हर ग़ज़ल आँखों को गीला करती, होंठों पे तबस्सुम बिखेरती, दिल की सबसे गहरी रग में ख़ामोशी के साथ ऐसे बैठ जाती कि फिर कोई ग़ज़ल, उस स्थान को नहीं ले पाती। वे हर शेर में ऐसी बयानी पेश करतीं कि शेर ख़त्म होते-होते दिल की ज़मीन पर उनका ठप्पा लगा चुका होता। ऐसे ही कुछ शेर.. 


मेरी तलब था एक शख़्स, वो जो नहीं मिला तो फिर 

हाथ दुआ से यूँ गिरा, भूल गया सवाल भी 


उसकी सुख़न-तराज़ियाँ, मेरे लिए भी ढाल थीं  

उस की हँसी में छुप गया, अपने ग़मों का हाल भी 


इश्क़ के न मिलने का रिसता हुआ दर्द पलकों की तासीर को कड़वा सा कर देता है पाकीज़ा और बेपनाह मोहब्बत का एक दीनी नज़रिया और रुख़ भी होता है। परवीन शाकिर ने कई बार अपने आम से लगते शेरों  में इस कदर, सूफ़ीयाना अंदाज़ भरा के दो बार शेर पढ़ते-पढ़ते आप हक़ीक़ी दुनिया से दीनी दुनिया का सफर तय कर लेते हैं। उनके  कुछ शेर इसी लहजे का मोजज़ा हैं.. 


कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी  

मैं अपने हाथ से उसकी दुल्हन सजाऊँगी 


सुपुर्द करके उसे चाँदनी  के हाथों में 

मैं अपने घर के अँधेरों  में लौट आऊँगी


इन शेरों में इश्क़ के बलिदान की पराकाष्ठा नहीं बल्कि मोहब्बत में मोक्ष पाने जैसी फ़ितरत है। यहाँ प्रेम में ईश्वर होने जैसा उरूज है, इश्क़ में ख़ुदाई की छिपी ख़्वाहिश है, आसमानी होने का तकाज़ा है। इसी लहजे का उनका एक और शेर बेहद दिल फरेब है..


मैं उसकी दस्तरस में हूँ मगर 

वो मुझे मेरी रज़ा से माँगता है


परवीन शाकिर में इश्क़ की हर परत के नीचे छुपे अहसास को समझने की ग़ज़ब की सलाहियत थी । वो अपने शेर दर शेर में एक नयी परत को लातीं और उसमें वाबस्ता ख़्याल को हौले से आपकी नज़्र कर देतीं। मोहब्बत के ज़ख्म का मुस्तक़्बिल क्या होता है और उसके ज़ख्म की तक़्दीर में हमेशा के लिए हरापन, सदा के लिए शादाबी ही होती है- इस बात को परवीन इतनी हुनरमंदी से ज़ाहिर करती कि उनकी समझ पर इतराने का दिल करता है उनके शेर इश्क़ के ज़ख्म की तासीर इस शिद्दत से पेश करते कि लगता है इश्क़ और मोहब्बत को समझने के लिए, उन्होंने न जाने कितनी मोहब्बत की होगी.. 


बिछड़ा है जो एक बार तो मिलते नहीं देखा 

इस ज़ख़्म को हमने कभी सिलते नहीं देखा। 

यक-लख़्त गिरा है तो जड़ें तक निकल आईं   

जिस पेड़ को आँधी में भी हिलते नहीं देखा। 


परवीन के ज़ख़्म जब ज़्यादा हरे हो जाते और जफ़ा की रह-रह के लहर उठती तो वे कुछ ऐसा तंज़ो मिज़ाह में लिखतीं कि दर्द की उठती हुई लहर आपके बदन से टकराती सी लगती। उनके ग़ज़ल के कुछ शेर देखिए..


तराश कर मिरे बाज़ू उड़ान छोड़ गया

हवा के पास बरहना कमान छोड़ गया

 

जो बादलों से भी मुझ को छुपाए रखता था

बढ़ी है धूप तो बे-साएबान छोड़ गया

 

न जाने कौन सा आसेब दिल में बस्ता है

कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया


औरतों के हालात की परतें नोचती यह नज़्म मर्दों की दुनिया में औरतों की स्थिति का बरहना चित्रण है। यह औरतों को देवी और मरियम बुलाने वाली दुनिया का स्याह सच है जिसे परवीन ने बेबाकी और बेरहम तरीक़े से ज़ाहिर किया है। परवीन जब लड़कियों के दिली मंज़र का आकाश खोलती हैं तो यूँ कहानी बयान होती है.. 


लड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब

हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ साथ


कम उम्र में मशहूर शायरा, तमाम बच्चों की ज़िन्दगी और मुस्तक़बिल को बेहतर करती टीचर, पाकिस्तान सिविल सर्विस में सेलेक्ट होकर बड़ी कस्टम अफसर, हर तरह की दुनियावी कामयाबी पाने वाली परवीन की ज़ाती ज़िन्दगी के कई पन्ने कोरे ही रह गए।  वो  ग़ज़लों में धनक और इंद्रधनुष का जैसे जैसे ज़िक्र करती, उनकी ज़िन्दगी का एक रंग, स्याह हो जाता। परवीन ने किताबें तो लिखी लेकिन उससे भी ज़्यादा, ज़िन्दगी, दर्द, जुदाई, औरतों के हालत को समझा। अपनी जिन किताबों में उन्होंने अपनी रूह निकाल कर रख दी वो किताबें ‘खुशबू’, ‘सद–बर्ग’, ‘खुद-क़लामी’, ‘इंकार’, ‘माह-ए–तमाम’, ‘कैफ-ए–आइना’ और ‘गोशा-ए-चश्म’ प्रमुख हैं महज़ ४२ बसंत देखकर परवीन इस दुनिया से उस दुनिया के  सफर पर निकल गई लेकिन उर्दू अदब के बीच अपनी जगह गहरी और पुख़्ता बना गई। परवीन की दिल-अफ्शां शायरी, नज़्म और ख़ातूनों के हक़ूक़ में उनकी लड़ाई को सेलिब्रेट करने के लिए इस्लामाबाद में 'परवीन शाकिर उर्दू लिटरेचर फेस्टिवल' मनाया जाता है।




लेखक परिचय:

अविनाश त्रिपाठी भारत के प्रख्यात कवि, लेखक, फिल्मकार और गीतकार है। दूरदर्शन के न्यूज़ एंकर के रूप में करियर की शुरुआत करके कई प्राइवेट चैनल्स में बतौर एग्ज़ीक्यूटिव प्रोड्यूसर रहे| उनके लिखे गीतों को प्रसिद्द बॉलीवुड गायक शान, कविता कृष्णमूर्ति, अन्वेषा, कविता सेठ, अभिषेक रे, अनुपमा राग सरीखे गायकों ने अपनी आवाज़ दी है| आप कई अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों के एडवाइज़र और ज्यूरी मेंबर भी रहे हैं| आप इंटरनेशनल आर्ट, कल्चर एंड सिनेमा फेस्टिवल के फाउंडर डायरेक्टर हैं| आपको अपनी रचनात्मक क्षमता के लिए ४० से ज़्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं।

24 comments:

  1. दिल को छू लेने वाले अल्फ़ाज़ों में बयां की है। आपने परवीन शाकिर की दास्ताँ अविनाश जी। कलम को सलाम

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका बहुत आभार हर्षा जी

      Delete
  2. बहुत अच्छा लिखा है। परवीन शाकिर के जीवन को तो बताता ही है टिप्पणी लेखक की रचनात्मकता का प्रमाण भी है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. परवीन शाकिर मेरे उगते हुए दिनों में मेरी उंगलियों में उलझ गई थी, आज भी उनकी किताब *खुशबू* की लम्स मेरी उंगलियों मे बसी है। आपका बहुत आभार रेखा जी

      Delete
  3. उम्दा लेख के लिये अविनाश जी को बधाई। परवीन शाकिर एक ऐसी शायरा जिनको पढ़ने पर इंसान बहुत जुड़ाव महसूस करता है। कम उम्र में ही वो उर्दू अदब में अपनी अलग जगह बना गई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत आभार दीपक जी

      Delete
  4. बेहतरीन आलेख , अविनाश जी । परवीन शाकिर ने बहुत खूब लिखा पर उनके लिखे को गहराई से समझने और बयान करने की आपकी क़ाबिलियत कुछ कम नहीं । वह आज होतीं तो यह लेख पढ़ कर बहुत खुश होतीं । मुझे दुष्यंत कुमार का शेर याद आ गया :

    हाथों में अंगारों को लिए सोच रहा था ,
    कोई मुझे अंगारों की तासीर बताए ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका बहुत शुक्रिया हरप्रीत जी, आप लफ़्जों से होते हुए रूह तक चले जाते हैं। आपका खास शुक्रिया , लेख को इतना मानी देने के लिए। 🙏🙏🌹🌹

      Delete
  5. अविनाश जी, उम्दा लेख के लिए बधाई क़ुबूल करें। यह लेख परवीन शाकिर के प्रति आपके रुझान और लगाव को बख़ूबी दिखाता है और शायरा के क़लम से ख़ूब मिलवाता है। इसे पढ़कर उनकी ज़िन्दगी को क़रीब से जानने को जी करता है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरी किशोरावस्था मै परवीन शाकिर और मजाज लखनवी ने रहबर बन कर , मुझे जिंदगी की थोड़ी समझ देने की कोशिश की, हालांकि मैं कामयाब नहीं हो पाया 🙏। आपका बहुत शुक्रिया प्रगति जी

      Delete
  6. परवीन शाकिर पर उत्तम आलेख पढ़कर मज़ा आ गया।अविनाश त्रिपाठी व पूरी टीम को बधाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका बहुत आभार सरोज जी

      Delete
  7. ‘हँसती थी और काजल भीगता था साथ-साथ’यही तो सच है...

    ReplyDelete
  8. लड़कियों की जिंदगी का यह सच , परवीन शाकिर की कलम का कमाल है

    ReplyDelete
  9. Avinash bhai. Bahut khoob likha hai, jaise gagar mein saagar.Aapne Haq adaa kar diya. Thanks for penning this informative write-up. "suna hai unki tehreer bahut acchii hai, Sochtaa hoon unse apnee taqdeer likhwa loon.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत इनायत अली भाई, परवीन शाकिर की हर लफ्ज़ में बहुत हरारत है, उन पर लिखना , खुद के लफ्जों में रोशनी भरने जैसा है

      Delete
  10. “कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
    उस ने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की”
    यह ख़ुशबू में डूबा हुआ शेर लिखने वाली परवीन शाकिर जी की पुख़्ता कलम यह भी लिखती है,
    “लड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब
    हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ साथ”
    अविनाश जी, परवीन शाकिर साहिबा के जन्मदिन पर उनकी शायरी के इत्र में डूबा हुआ उम्दा आलेख!

    ReplyDelete
  11. आपका बहुत शुक्रिया शरदुला जी

    ReplyDelete
  12. बहुत बढ़िया,अविनाश जी, परवीना की शायरी जितनी पाकिस्तान में मशहूर है,उससे ज्यादा भारतीय सोशल मीडिया पर परवान चढ़ी है। नारी की इतनी कोमल भाव बहुत कम पाएं जाते है।भारतीय नवयुवा पीढ़ी का चर्चित नाम।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत आभार विजय जी

      Delete
  13. बहुत ही बेहतरीन लेख लिखा है आपने 👏👏

    ReplyDelete
  14. बहुत आभार डॉक्टर मीनू जी

    ReplyDelete

आलेख पढ़ने के लिए चित्र पर क्लिक करें।

कलेंडर जनवरी

Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat
            1वह आदमी उतर गया हृदय में मनुष्य की तरह - विनोद कुमार शुक्ल
2अंतः जगत के शब्द-शिल्पी : जैनेंद्र कुमार 3हिंदी साहित्य के सूर्य - सूरदास 4“कल जिस राह चलेगा जग मैं उसका पहला प्रात हूँ” - गोपालदास नीरज 5काशीनाथ सिंह : काशी का अस्सी या अस्सी का काशी 6पौराणिकता के आधुनिक चितेरे : नरेंद्र कोहली 7समाज की विडंबनाओं का साहित्यकार : उदय प्रकाश 8भारतीय कथा साहित्य का जगमगाता नक्षत्र : आशापूर्णा देवी
9ऐतिहासिक कथाओं के चितेरे लेखक - श्री वृंदावनलाल वर्मा 10आलोचना के लोचन – मधुरेश 11आधुनिक खड़ीबोली के प्रथम कवि और प्रवर्तक : पं० श्रीधर पाठक 12यथार्थवाद के अविस्मरणीय हस्ताक्षर : दूधनाथ सिंह 13बहुत नाम हैं, एक शमशेर भी है 14एक लहर, एक चट्टान, एक आंदोलन : महाश्वेता देवी 15सामाजिक सरोकारों का शायर - कैफ़ी आज़मी
16अभी मृत्यु से दाँव लगाकर समय जीत जाने का क्षण है - अशोक वाजपेयी 17लेखन सम्राट : रांगेय राघव 18हिंदी बालसाहित्य के लोकप्रिय कवि निरंकार देव सेवक 19कोश कला के आचार्य - रामचंद्र वर्मा 20अल्फ़ाज़ के तानों-बानों से ख़्वाब बुनने वाला फ़नकार: जावेद अख़्तर 21हिंदी साहित्य के पितामह - आचार्य शिवपूजन सहाय 22आदि गुरु शंकराचार्य - केरल की कलाड़ी से केदार तक
23हिंदी साहित्य के गौरव स्तंभ : पं० लोचन प्रसाद पांडेय 24हिंदी के देवव्रत - आचार्य चंद्रबलि पांडेय 25काल चिंतन के चिंतक - राजेंद्र अवस्थी 26डाकू से कविवर बनने की अद्भुत गाथा : आदिकवि वाल्मीकि 27कमलेश्वर : हिंदी  साहित्य के दमकते सितारे  28डॉ० विद्यानिवास मिश्र-एक साहित्यिक युग पुरुष 29ममता कालिया : एक साँस में लिखने की आदत!
30साहित्य के अमर दीपस्तंभ : श्री जयशंकर प्रसाद 31ग्रामीण संस्कृति के चितेरे अद्भुत कहानीकार : मिथिलेश्वर          

आचार्य नरेंद्रदेव : भारत में समाजवाद के पितामह

"समाजवाद का सवाल केवल रोटी का सवाल नहीं है। समाजवाद मानव स्वतंत्रता की कुंजी है। समाजवाद ही एक सुखी समाज में संपूर्ण स्वतंत्र मनुष्यत्व...