Friday, November 26, 2021

आधुनिकता और दर्शन के अनूठे हस्ताक्षर - कैलाश वाजपेयी

 


कोलाहल इतना मलिन
दुःख कुछ इतना संगीन हो चुका है
मन होता है
सारा विषपान कर
चुप चला जाऊँ
ध्रुव एकान्त में

सही नहीं जाती
पृथ्वी-भर मासूम बच्चों
माँओं की बेकल चीख़।
सारे के सारे रास्ते
सिर्फ़ दूरियों के मानचित्र थे
रहा भूगोल
उसका अपना ही पुश्तैनी फ़रेब है

·         भविष्य घट रहा हैसे

कैलाश वाजपेयी हिन्दी साहित्य के ऐसे दार्शनिक हस्ताक्षर थे जिनकी स्याही में आधुनिकता का गहरा रंग था। आधुनिक सूफ़ी कवि कहलाने वाले कैलाश जी गहन (इंटेंस) व्यक्तित्व के मालिक थे। अपने विशद अध्ययन और विदेश यात्राओं के फलस्वरूप भारतीय दर्शन और पाश्चात्य साहित्य का उन पर मिला-जुला असर रहा। उनकी कविताएँ देश-दुनिया के समकालीन यथार्थ से अनुप्राणित रहीं। वैसे तो कैलाश जी सीधे अकविता आंदोलन से नहीं जुड़े, परन्तु अकविता के भाषाई ढाँचे की बुनावट काफी हद तक कैलाश वाजपेयी की कविताओं से प्रेरित है।

ढीली सी कमीज़, तिरछी टोपी लगाए, थोड़ा देवानंद की तरह लगते, कैलाश वाजपेयी कभी अपने समय से आगे की बातें करते, और कभी भारतीय स्वर्णिम अतीत के ज्ञान को खोजने और उसे वर्तमान से जोड़ने की कोशिश में लग जाते! कैलाश जी संगीत, धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान, ज्योतिष, तंत्र और क्वांटम भौतिकी जैसे गूढ़ विषयों में रुचि रखते थे। कई भाषाएँ जानने के साथ-साथ वे पद्य और गद्य पर सामान अधिकार रखते। इसलिए कॉलम लेखक और समीक्षक की तरह सदैव उनकी बड़ी पूछ रही।धर्मयुगजैसी पत्रिकाओं में उनके लेखों की याद बहुतों को होगी। वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर काव्य पाठ के लिए आमंत्रित होने वाले प्रमुख कवि में से थे। उनकी रचनाओं का अंग्रेजी, स्पेनिश, जर्मन में अनुवाद हुआ। एक समय था कि वे दूरदर्शन के अधिकांश साहित्यिक कार्यक्रमों के केंद्र में हुआ करते थे। अपनी विवादास्पदराजधानीकविता पर दिल्ली के कोपभाजन बनने वाले कवि की दिल्ली के शीर्ष तक की यह रचना-यात्रा उनकी तरह ही अनूठी है - उत्तरोत्तर उर्ध्व होती हुई!

 उनकी एक कविता जो बहुत समय से कवि के नाम बिन मेरे साथ रही:


“अगर तुम्हें गर्भ में पता चलता,
जिस घर में तुम होने वाले हो
नमाज़ नहीं पढ़ता वहाँ कोई
यज्ञ होम कीर्तन नहीं होता
कोई नहीं जाता रविवार को
गिरिजाघर या ग्रंथपाठ में
अगर तुम्हें यह पता चलता
तब तुम क्या करते
क्या माँ बदलते?”

ऐसे अनूठे, भीड़ से इतर प्रश्न करने वाले कवि कैलाश जी का जन्म ११ नवंबर १९३६ को हमीरपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। कविता और संगीत का शौक उन्हें बचपन से ही था। शुरूआती दौर में गीत लिखने और बढ़िया आवाज़ में गाने वाले कैलाश जी धीरे-धीरे छंद मुक्त कविताओं की तरफ बढ़ते चले गए। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि हासिल की और फिर टाईम्स ऑफ इंडिया मुंबई में नौकरी शुरु की। बाद में शिवाजी व हस्तिनापुर कॉलेज दिल्ली में अध्यापन करते हुए वे  रीड़र पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उनकी जीवन यात्रा के सामानांतर उनकी साहित्यिक यात्रा चलती रही जिसमें प्रेम, परंपरा, राजनीतिक व्यवस्था, रहस्यवाद, और आध्यात्म के महत्वपूर्ण पड़ाव थे। उन पर दर्शन, सूफ़ीवाद, रहस्यवाद, जैन और बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव था, जो उनके हिंदी और अंग्रेजी लेखन में छलकता है। 

छात्रावस्था से ही उनका बच्चन जी से नाता था।रिमेम्बेरिंग बच्चनमें कैलाश जी लिखते हैं कि १९५५ में जब बच्चन जी प्रयाग विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे, उस समय कैलाश जी एक छात्र थे। उनकी एक लोकप्रिय कविता पर बच्चन जी ने उनको बहुत सराहा। यह सिलसिला ३२ सालों तक अनवरत चला। जब कैलाश जी ने परिवार की नाराज़गी के बावज़ूद एक सिख लड़की, रूपा, से शादी का निश्चय किया तो परिवार की अनुपस्थिति के मध्य, बच्चन जी उनके साथ खड़े रहे। लेखकीय जगत में एक सुन्दर प्रतिमान स्थापित करते हुए रूपा और कैलाश जी की गृहस्थी सुख-सौहार्द्य से जीवन-पर्यन्त चलती रही। १९७२ में जन्मीं उनकी बेटी अनन्या आज एक सफल साहित्यकार और अकादमिक हैं। 

१९६४ में कैलाश वाजपेयी का पहला कविता संग्रहसंक्रांत आया। केवल २८ वर्ष की अवस्था में वे अलग तेवर वाले गीतकार के रुप में चर्चित हो गए। उसके बाद १९६८ में प्रकाशित संग्रह 'देहांत से हटकर' में अपने समय, समाज, राजनीति और व्यवस्था से नाराज़गी और विरक्ति की कविताएँ छपीं, जो आधुनिक जीवन के मोहभंग की कहानी कहती हैं। 

चूंकि कविता का धर्म ही अवज्ञा है चाहे वह सविनय हो या अविनय, तो चलिए देखते हैं उनकीराजधानीकविता की व्यवस्था पर ज़बरदस्त चोट करती इन पंक्तियों को :


“सिल की तरह गिरी स्वतंत्रता, और पिचक गया है पूरा देश”

“चरित्र-रिक्त शासक
और संक्रामक सेठों की सड़ांध से भरी
इस नगरी में मैं जी रहा हूँ
जी रहा हूँ जीवन की व्याकृति
झूठे नारों और खुशहाल सपनों से लदी
बैलगाड़ियां वर्षों से
‘जनपथ’ पर आ-जा रही हैं…”

इस कविता पर संसद में हंगामा हुआ और कई सदस्यों द्वारा प्रतिबन्ध लगाने की माँग की गई। 

१९७० में छपेमहास्वप्न का मध्यांतरमें कैलाश वाजपेयी का नया रूप सामने आया - यह आपातकाल की निःशब्द पीड़ा को आख्यायित करता, ठहराव, जगत दृष्टि एवं आत्म-मंथन से लैस सघन कविताओं का संग्रह था। इसी दशक में कैलाश जी आकाशवाणी की तरफ से रूस और यूरोप की लम्बी यात्रा पर गए। फ़्रांस में वे बहुत से साहित्यकारों से मिले, जिसमें ज्यां पॉल सात्र, और आयरिश नोबल विजेता सैम्युल बेक्केट प्रमुख हैं। उस समयआस्तित्ववादऔरनया वामपंथज़ोर पर था। कैलाश जी अपने समकालीन निर्मल वर्मा और गुरु अज्ञेय की तरह, इस नई दुनिया के बारे में खुले विचार रखते। विदेश यात्राओं में विदेशी लेखकों और विचारकों के साथ रवींद्रनाथ टैगोर की चर्चा एक कॉमन ग्राउंड की तरह उभर कर आती रहती। १९७३-७७ तक वे मेक्सिको और अमरीका में विज़िटिंग प्रोफेसर की तरह रहे। अपने विदेशी प्रवास से लौट कर कैलाश जी का मन भारतीय दर्शन की तरफ झुक गया जो उनके लेखन में बखूबी प्रतिबिंबित हुआ। स्वामी विवेकानंद के जीवनवृत्त  पर लिखा उनका नाटक 'युवा संन्यासी' बहुत प्रचलित हुआ। कैलाश जी ने अनेक कवियों, चिंतकों - कबीर, हरिदास, सूरदास, जे. कृष्णमूर्ति, रामकृष्ण परमहंस और बुद्ध के जीवन दर्शन पर दूरदर्शन के लिए वृत्तचित्र बनाए। 

 २००८ में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित उनकी किताबअनहदमें वैदिक से लेकर आधुनिक ज्ञान तक की अतुलनीय और व्यापक ज्ञानराशी पर व्ययाख्यात्मक निबंध और लेख संकलित हैं।  २००९ में कैलाश जी के जीवन का वह महत्वपूर्ण बिंदु आया जब हवा में हस्ताक्षर' कविता संग्रह के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कैलाश वाजपेयी की कविताएँ एक तरफ़ भारत के सत्तावर्ग से मोहभंग की देन हैं तो दूसरी तरफ़ विश्वस्तर पर पूंजी के बढ़ते दबदबे व मनुष्य के नितांत अकेलेपन की पीड़ा से जन्मी हैं। वे सार्वभौमिक मानवीय दुविधाओं के गायक थे, उनकी कविताएँ सार्वकालिक हैं। 

दूरदर्शन के एक साक्षातकार में सुधीश पचौरी से उन्होंने कहा:साहित्य से आम आदमी कहीं ज़रूर दूर चला गया है, जिसका कारण कहीं न कहीं आज की आर्थिक व्यवस्था, आज की राजनितिक प्रणाली, आज की सत्ता - इन सब से जुड़ा है।पोएट्री मैक्स नथिंग हैपनजिसने लिखा है वह सही कहा है।

कैलाशजी अपने साक्षात्कारों में ऐसा कुछ कह जाते थे कि सालों बाद भी लगता मानो विश्वव्यापी दृष्टि रखने वाले व्यक्ति की तरह वे भविष्य की दस्तक पहचानते थे। उनको यह भी दुःख था कि मूल अनुभव से रुख़ फेर कर लोग कविताओं से कविता बना रहे हैं! वे कहते थे, “पहले जो आदमी के अंदर कविता की थोड़ी बहुत प्यास थी, वह नई कौम के लिए पॉप संगीत से पूरी हो जाती है! 

वाजपेयीजी के साहित्य मित्र कवि श्रीराम वर्मा का कहना था, ‘कैलाश वाजपेयी की कविताएँ खौलते पानी में ताजे कमल जैसी है।'  

मौत से उनकी कविता का गहरा नाता था। लेखन और आवाजहियों में अंत तक सक्रिय वह अप्रतिम कलम-दल १ अप्रैल २०१५ को हृदयगति रुक जाने से एक अंतहीन नदी में उतर गया। उस समय उनका परिवार उनके साथ था। उनका अंतिम संस्कार उनकी पुत्री अनन्या ने किया। प्रयाग में संगम पर उनके विसर्जन को याद करते हुए अनन्या लिखती हैं, “...पिता का सिखाया हुआ शब्द प्रवाह याद आ गया। पानी का प्रवाह, जीवन, समय और अविरलफ्लक्सका प्रवाह जसके हम बने हुए हैं, जिसमें वास करते हैं और विलीन होते जाते हैं।”  कैलाश जी की कविता कहती है:

 

“आँख भी न बंद हो
और ये दुनिया ओझल हो जाये
कुछ ऐसी तरकीब करना
डूबना तो तय है इसलिए, नाव नहीं
नदी पर भरोसा करना!”

एक कवि और विचारक, एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज के साथ एक करिश्माई व्यक्तित्व, कविता और साहित्य से लेकर रुचियों के एक विशाल और विविध स्पेक्ट्रम - यह है कैलाश वाजपेयीजी का हवा में अमिट हस्ताक्षर!  

डॉ. कैलाश वाजपेयी: जीवन परिचय

जन्म

११ नवम्बर १९३६, हमीरपुर उत्तर प्रदेश

पुण्यतिथि 

१ अप्रेल २०१५, दिल्ली 

पत्नी 

रूपा वाजपेयी, अंग्रेजी साहित्य की प्रॉफेसर 

पुत्री 

अनन्या वाजपेयी, अंग्रेजी लेखिका और साहित्यकार 

कर्मभूमि

·         रीडर, शिवाजी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय 

·         विज़िटिंग प्रोफ़ेसर, एल कालेजियो द मौख़िको,मेक्सिको, १९७३-७६

·         एडजंक्ट प्रोफ़ेसर, डैलस विश्वविद्यालय, अमरीका -१९७६ -७७ 

·         सदस्य, हिन्दी सलाहकार समिति - भारतीय दूरदर्शन

शिक्षा एवं शोध

एम. ए. 

लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए.

पीएच.डी.

हिन्दी साहित्य, लखनऊ विश्वविद्यालय

शोध: आधुनिक हिन्दी-कविता में शिल्प (१९६३)

साहित्यिक रचनाएँ

कविता संग्रह   

·         संक्रांत, १९६४

·         देहान्त से हटकर, १९६८

·         तीसरा अँधेरा, १९७२ 

·         महास्वप्न का मध्यान्तर, १९८०

·         सूफ़ीनामा, १९९२

·         पृथ्वी का कृष्णपक्ष, (प्रबंध  काव्य) १९९५

·         An Anthology of Modern Hindi Poetry, 1998

·         हवा में हस्ताक्षर, २००५

·         मॉस्को में दिल्ली के दिन (कविता संकलन रूसी भाषा में)

दर्शन, नाटक निबंध, गद्य 

·         शब्द संसार, २००६

·         अनहद, २००७

·         युवा संन्यासी, विवेकानन्द, १९९१ (नाटक )

·         और कुछ दीखै 

·         The Science of Mantras: A manual for Peace & Prosperity 1981

·         Astrological Combinations, 1985

पुरस्कार व सम्मान

·         १९९५ हिंदी अकादमी सम्‍मान 

·         २००० एसएस मिलेनियम अवॉर्ड

·         २००२ व्यास सम्मान - पृथ्वी का कृष्ण पक्ष 

·         २००५ में ह्यूमन केयर ट्रस्ट अर्वाड

·         २००९ साहित्य अकादमी पुरस्कार - हवा में हस्ताक्षर

 सन्दर्भ: 

 लेखक परिचय: 

शार्दुला नोगजा सुपरिचित हिंदी कवयित्री हैं और हिंदी के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। पेशे से वे तेल एवं ऊर्जा सलाहकार हैं और २००५ से सिंगापुर में कार्यरत हैं। उनकी संस्थाकविताई-सिंगापुर’, भारत और सिंगापुर के काव्य स्वरों को जोड़ती और मजबूत करती है। शार्दुला साहित्यकार-तिथिवार परियोजना का नेतृत्व और प्रबंधन कर रही हैं। 

shardula.nogaja@gmail.com 

 

 

 

पूनम मिश्रा:

स्नातक (बायोकेमिस्ट्री), स्नातकोत्तर (पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन), नागपुर विद्यापीठ

हिन्दी व अंग्रेजी अखबार में पत्रकारिता का १५ वर्ष का अनुभव

कृतियां: कैकेयी (पद्य); गीली माटी (काव्य संग्रह साझा); ओ चिरैय्या (काव्य संग्रह)

हाइबुन संग्रह (एकल), अनेक अखबारों में लघुकथा व कविताएँ प्रकाशित।

 

8 comments:

  1. कैलाश वाजपेयी जी जैसे करिश्माई व्यक्तित्व पर ये लेख भी करिश्माई बना है। उनकी चुनिंदा कविताओं के उदाहरणों ने लेख को बहुत रोचक बना दिया है। शार्दुला जी को बहुत बहुत बधाई।

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    1. दीपक जी आप का हार्दिक धन्यवाद एक सच्चे सपोर्टर की तरह इस श्रृंखला के लेखों से जुड़ने और लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए।

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  2. इस आलेख के माध्यम से कैलाश वाजपेयी जी के साहित्य और व्यक्तित्व दोनों से ही सुन्दर परिचय प्राप्त हुआ, विभिन्न तथ्यों को उजागर करता धाराप्रवाह शैली में लिखा यह लेख अद्भुत है। शार्दुला जी को बहुत-बहुत बधाई।

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    1. प्रगति तुम्हारे साथ से यह अभियान गुलज़ार है! बहुत शुक्रिया लेख पसंद करने के लिए!

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  3. बहुत रोचक, प्रवाहमय और सारगर्भित आलेख के लिए बहुत-बहुत बधाई शार्दुला। तुमने तो कैलाश वाजपेयी जी के जीवन की किताब खोलकर रख दी। कविताओं से उदाहरण बहुत पसंद आए, बहुत मज़ा आया पढ़ने में।

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  4. सरोज जी हार्दिक आभार! अभी आपके आलेख के मक्खन जैसे संपादन से उठी हूँ तो आपकी प्रशंसा मायने रखती है!

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  5. शार्दुला जी , पूनम जी ।इस लेख की खूबी यह है कि कैलाश जी का व्यक्तित्व और कृतित्व आपस में गुँथे हुए इस रोचक तरीक़े से आगे बढ़ते हैं कि उनकी कहानी ठीक से समझ आ जाती है । इस शृंखला के लेखकों से यही अपेक्षा की गई थी । कैलाश जी को “धर्मयुग” में खूब पढ़ा । उनके दार्शनिक पक्ष ने प्रभावित किया ( शिकायत और कड़वाहट तो कभी प्रभावित नहीं करते ) । आप दोनों इसी प्रकार लिखते रहें और इस शृंखला का मान बढ़ाते रहें । 💐💐

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  6. आलेख में कविताओं के अंशों पढ़कर रचनाकार को और पढ़ने की इच्छा जगाने वाला सार्थक और रोचक लेख। आभार - विशेष धन्यवाद इन पंक्तियों के लिए
    'आँख भी न बंद हो
    और ये दुनिया ओझल हो जाये'

    साधुवाद

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