Sunday, November 7, 2021

"सौ जासूस मरते हैं तब एक कवि पैदा होता है" - चंद्रकांत देवताले



 "वह औरत

आकाश और पृथ्वी के बीच

कब से कपड़े पछीट रही है

पछीट रही है शताब्दियों से

धूप के तार पर सुखा रही है"

सहज शब्दों में नारीत्व का ऐसा वृहद चित्रण करने वाले चंद्रकांत देवताले जी, कोमल किन्तु पैनी दृष्टि वाले कवि थे! उनकी प्रज्ञा और चैतन्य ने उनको गहन अन्वेषक दृष्टि दी, परन्तु उनके सादे व्यक्तित्व ने कभी इसे आडम्बर की तरह नहीं ओढ़ा। समाज, परिवार और स्वयं को विलक्षण नज़र से परखने वाले चंद्रकांत जी, जीवन में बहुत सहज और उदारमना थे। छह दशक तक वे हिंदी कविता में सक्रिय रहे और अकविता आंदोलन के अग्रणी कवि रहे। उनकी पुस्तकों के शीर्षकों में उनका आक्रोश और विद्रोह साफ झलकता है।

देवताले कविताओं की सघन बुनावट और उसमें निहित सामाजिक दृष्टि के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कहा था कि "सौ जासूस मरते हैं तब एक कवि पैदा होता है और एक कवि हज़ार आँखों से देखता है।" कवि की प्रतिबद्धता पर उन्होंने कहा, ”कवि की प्रतिबद्धता अनेकान्त होती है। जब जैसा क्षण होता है उसकी प्रतिबद्धता, उसकी पहचान वैसी ही होती है। सबसे बड़ी बात है मनुष्यता का सत्य! उसी सत्य और मानव गरिमा की रक्षा करने के लिए कवि को भाषा का उपयोग करना चाहिए।'' वे कहते थे कि जिस समाज में कविता के लिए जगह नहीं वह समाज मनुष्यता से वंचित होता जाता है। उनके काव्य और निजी जीवन में एक ईमानदार समानता थी। देवताले जी अनुभूति, अनुभव और संवेदनशीलता को काव्य का केंद्रीय तत्व मानते थे। वे बौद्धिकता को काव्य पर हावी नहीं होने देते थे। वह कहते थे कि साहित्य तो ग्रासरूट पाठकों के लिए होता है जो उनके अंदर संघर्ष करने की ताकत भरता है। शायद यही कारण है कि हर पीढ़ी का लेखक चंद्रकांत जी के प्रति आदर भाव रखता है और उनके पाठक उन्हें सर-आँखों पर बिठा के रखते हैं| 

 

उन्होंने दर्जन से ऊपर हिन्दी कविता-संग्रह लिखे और मराठी से संत तुकाराम के अभंगों और दिलीप चित्रे की कविताओं का हिंदी अनुवाद किया। उनके कविता संग्रह 'पत्थर फेंक रहा हूँ' के लिए २०१२ में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने पर बहुत से लोगों ने कहा कि उनको यह पुरस्कार बहुत पहले मिलना चाहिए था। परन्तु चंद्रकांत जी स्वयं अपने लेखन से पूरे संतुष्ट नहीं थे। आत्म-प्रशंसा करना उन्हें कतई पसंद नहीं था। उनकी बिटिया अनुप्रिया देवताले जी बताती हैं कि जब वह उनके सम्मान में कोई कार्यक्रम रखतीं या उन्हें महान कवि कहतीं तो वे असहज हो जाते। 


चंद्रकांत जी की जड़ें गाँव-कस्बों में थीं। उनकी पकड़ अपने चारों तरफ की ज़िन्दगी पर इतनी मज़बूत थी कि वे ग्रामीण, शहरी और साथ ही जनजाति पर पूरे अधिकार से लिखते। उनके मित्र विष्णु खरे कहते हैं कि देवताले कबीर की परंपरा के कवि थे। रघुवीर सहाय के बाद वह चंद्रकांत जी को हिंदी कविता की सबसे ठोस राजनीतिक कलम मानते हैं, जो कभी तटस्थ नहीं रही।


बचपन में टायफायड रिलैप्स होने से उनकी आवाज़ चली गई। आवाज़ लौटाने के लिए उन्होंने सिग्नल पर चढ़ कर कहानी, कविताएँ ज़ोर-ज़ोर से पढ़ीं। आवाज़ लौटी, और उन्हें सम्प्रेषण से प्रेम हो गया! आज़ादी के संग्राम और द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभाव उनके ह्रदय पर गहरे अंकित हुए। शायद इसी कारण राजनीतिक संवेदना का स्वर उनकी कविताओं में सदा मुखर रहा! उन्होंने आज़ाद भारत की बेचैनियों को शिद्दत से अपनी कविताओं में जिया। वे लघु पत्रिकाओं में छपते और उनको साहित्य के जनतंत्रीकरण का जरिया मानते। उनका मानना था कि लोकप्रियता लेखन का मानक नहीं होना चाहिए। साहित्य या सृजनात्मक सोच की अनुभूति को वे दीर्घकालिक मानते जो मनुष्य को मनुष्य बनाने में सहयोग देगी। 

 

१९५२ में नर्मदा में तैरते-तैरते उन्होंने पहली पुख़्ता कविता लिखी। वे कबीर, निराला, रघुबीर सहाय, शमशेर और मुक्तिबोध से बहुत प्रभावित थे। वह मुक्तिबोध की तरह स्पष्ट विचार, तीखी दलील रखते। जब भी वह समाज की किसी व्यवस्था की आलोचना करते सबसे पहले खुद को तौलते। प्रेम विषय पर देवताले जी कहते कि हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि क्या हम प्रेम में स्वयं को दे सकते हैं! माँ से चद्रकांत जी का रिश्ता अटूट रहा। माँ खाना बहुत अच्छा बनाती, तो चन्द्रकांत जी अच्छे देसी खाने के बहुत शौक़ीन रहे। उन्हें खाने-खिलाने का बड़ा शौक था। माँ की सादगी ने उन्हें एक ग्रामीण की तरह सरल और स्पष्टवादी बनाये रखा। चंद्रकांत जी का अधिकांश जीवन इंदौर - उज्जैन - रतलाम (मध्यप्रदेश) में गुज़रा, जहाँ वे पहले अपने माता-पिता, बाद में अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ रहते थे। उनकी पत्नी उनके सृजनात्मक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं। देवताले नितांत पारिवारिक व्यक्ति थे और पत्नी के निघन के बाद वह बहुत अकेलापन महसूस करते थे|


उनकी पुत्री, अनुप्रिया देवताले एक प्रसिद्ध वायलिन वादिका हैं। वह अपने अंदर की अनूठी सृजनामकता का श्रेय अपने पिता को देती हैं। अनुप्रिया देवताले जी मुझसे एक साक्षात्कार में कहती हैं कि वह अपने पिता जी की सृजनशीलता से हतप्रभ हो कह उठतीं कि "पापा आप तो सूर्यदेव जैसे हैं। आपकी सोच और पकड़ अद्भुत है!" चंद्रकांत जी बात टालते हुए हँस देते! वे अपने बच्चों से अक्सर कहते - "मीठा बोलो – संक्षेप में बोलो – जरुरी हो तो ही बोलो", ‘अप्प दीपो भव’- अर्थात अपना दीप स्वयं बनो। शायद यही उनकी रचनाधर्मिता का सार है। अपने परिवार, मित्र, युवा पाठकों के साथ-साथ वे पशु, पक्षी, परिंदों से भी प्रेम करते। उनकी किताबें लिखने-पढ़ने की अपनी अलग दुनिया थी – बिना कम्प्यूटर के – गहरी और जीवन्त! उज्जैन के घर में बड़े से बागीचे में पेड़-पौधों और पक्षियों के बीच बैठ कर चंद्रकांत जी पढ़ते-लिखते। उनके पास सदैव युवा कवियों की आवाजाही रहती, कई बार सम्मलेन के सत्र छोड़कर वह युवाओं से बातचीत में मग्न हो जाते। वे बार-बार बाज़ारवाद से सतर्क रहने को कहते! चंद्रकांत जी कहते थे – "बाज़ार जाता हूँ, खरीददार नहीं हूँ"। उन्हें संग्रह करने का बिलकुल शौक नहीं था| फेसबुक को 'थोबड़े की किताब' कह कर नकार देते। 

 

समाज के वंचित वर्ग और राजनीति पर मर्मस्पर्शी, आत्मावलोकन करने वाली कविताएँ लिखने वाले चंद्रकांत देवताले ने स्त्री पर भी पारिवारिक ऊष्मा से भरी विलक्षण कविताएँ लिखी हैं- चाहे प्रेमसिक्त काव्य हो, माँ पर कविता हो, या बेटी पर! उनका मानना था कि प्रकृति की तरह ही स्त्री इस सृष्टि की केंद्रीय सत्ता है। वह पृथ्वी का संगीत भी है, और नमक भी। व्यवस्था और पुरुष सत्ता ने उसी का सबसे अधिक शोषण किया है। १९७४ में चंद्रकांत जी ने "माँ जब खाना परोसती थी" कविता का पाठ किया तो उनकी अम्मा जी की आँखें आँसू से भर गईं। उनकी 'माँ पर नहीं लिख सकता कविता' माँ पर लिखी सबसे श्रेष्ठ कविताओं में गिनी जाती है:

 

“माँ ने हर चीज़ के छिलके उतारे मेरे लिए

देह, आत्मा, आग और पानी तक के छिलके उतारे

और मुझे कभी भूखा नहीं सोने दिया

मैंने धरती पर कविता लिखी है

चंद्रमा को गिटार में बदला है
समुद्र को शेर की तरह आकाश के पिंजरे में खड़ा कर दिया
सूरज पर कभी भी कविता लिख दूँगा 
माँ पर नहीं लिख सकता कविता!"

अपने समय के कवियों में वे रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा, राजकमल चौधरी, केदारनाथ सिंह, ऋतुराज, जगूड़ी, कुमार विकल, विष्णु खरे, सौमित्र मोहन, भगवत रावत, और युवा कवि मंगलेश डबराल, राजेश जोशी, अरुण कमल और विजय कुमार इत्यादि की कविताओं को पसंद करते! उनकी स्वयं की प्रिय कविताओं में 'उतर आओ मेरे लिए धरती पर', 'तो गाँव थूक नहीं सकता था मेरी हथेली पर' और 'बाई दरद ले' शामिल हैं। समकालीन कविता में उनकी १९८२ में छपी लम्बी रचना 'भूखंड तप रहा है' एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। देवताले कहते हैं, "'भूखंड' के त्रिभुवन का और मेरा गहरा रिश्ता है, पर त्रिभुवन सिर्फ़ चंद्रकांत नहीं!" कविताओं में व्यंग्य, संवेदना और आक्रोश की समन्वित शैली से लैस चंद्रकांत देवताले जी की कविताएँ समय की देहरी लांघ कर सदैव प्रासंगिक बनी रहेंगी। 



चंद्रकांत देवताले: जीवन परिचय


जन्म

७ नवम्बर १९३६, जौलखेड़ा, बैतूल, मध्य प्रदेश

निधन

१४ अगस्त २०१७, दिल्ली

कर्मभूमि

इंदौर – उज्जैन - रतलाम (मध्य प्रदेश में शिक्षण एवं प्रधानाचार्य पदभार)

शिक्षा एवं शोध

उच्च शिक्षा

उच्च शिक्षा- एम.ए. हिंदी, होलकर कॉलेज इंदौर,

मुक्तिबोध पर पी.एच.डी. सागर विश्वविद्यालय, १९८४ 

साहित्यिक रचनाएँ 

कविता संग्रह

हड्डियों में छिपा ज्वर (१९७३), दीवारों पर खून से (१९७५), 

लकड़बग्घा हँस रहा है (१९८०), रोशनी के मैदान की तरफ (१९८२),

भूखंड तप रहा है (१९८२), आग हर चीज़ में बताई गई थी (१९८७),

बदला बेहद महंगा सौदा (१९९५), पत्थर की बेंच (१९९६),

उसके सपने (१९९७), इतनी पत्थर रोशनी (२००२), 

उजाड़ में संग्रहालय (२००३), जहां थोड़ा सा सूर्योदय होगा (२००८)

पत्थर फेंक रहा हूँ (२०१०), खुद पर निगरानी का वक्त (२०१५),

‘पिसाटी का बुर्ज़’-दिलीप चित्रे की मराठी कविताओं का अनुवाद 

पुरस्कार व सम्मान

साहित्य अकादमी (२०१२), माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार (मध्य प्रदेश सरकार), मध्य प्रदेश सरकार का शिखर सम्मान, सृजन भारती सम्मान, कविता समय सम्मान, मुक्तिबोध फेलोशिप 


सन्दर्भ:


१. ‘चंद्रकांत देवताले - एक कवि को माँगनी होती है क्षमा कभी न कभी - कवि का गद्य' - निशिकांत ठाकर, कनुप्रिया देवताले, वाणी प्रकाशन 
२. ‘अपने को देखना चाहता हूँ’ - अनुप्रिया देवताले

३. https://www.amarujala.com/kavya/halchal/renowned-hindi-poet-chandrakant-devtale-dies-in-delhi?page=3

४. https://en.wikipedia.org/wiki/Chandrakant_Devtale

५. https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/97811

६. https://www.youtube.com/watch?v=5Ykv2fCYZgU

. https://www.youtube.com/watch?v=XBdJ9U5q_eE


                                                                  
लेखक परिचय

शार्दुला नोगजा सुपरिचित हिंदी कवयित्री हैं और हिंदी के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। पेशे से वे तेल एवं ऊर्जा सलाहकार  हैं और २००५ से सिंगापुर में कार्यरत हैं। उनकी संस्था ‘कविताई-सिंगापुर’, भारत और सिंगापुर के काव्य स्वरों को जोड़ती और मजबूत करती है। 

+6591793432 (M) ; shardula.nogaja@gmail.com



19 comments:

  1. सुंदर , काव्यात्मक प्रवाह में लिखा गया लेख । शोध पर की गई मेहनत स्पष्ट झलकती है । बधाई , शार्दुला जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया दीपा! मुझे इस शोध ने वाकई समृद्ध किया!

      Delete
  2. शार्दुला, बहुत रोचक और प्रशंसनीय आलेख, मज़ा आ गया पढ़कर। इसकी कुछ पंक्तियाँ तो हमेशा के लिए याद रह जाने वाली हैं।

    ReplyDelete
  3. बहुत शुक्रिया सरोज जी! आभारी हूँ कि आपने लेख पढ़ा और आनन्द लिया!

    ReplyDelete
  4. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  5. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  6. देवताले जी पर रुचिकर आलेख के लिए आपको बधाई शर्दुला जी!

    ReplyDelete
  7. बहुत ही अच्छा आलेख बना पड़ा है, शार्दुला जी ! चंद्रकांत जी की कुछ और कविताओं के अंश अगर डाल सकें तो आलेख और रोचक बन सकता है |

    ReplyDelete
  8. कवि और कविता को महानतम दर्जा देने वाले चंद्रकांत देवताले जी के बारे में कहानीनुमा रोचक आलेख पढ़कर बहुत मज़ा आया।
    शार्दुला जी को सुंदर और सहज तरीक़े से दिलचस्प तथ्य, साक्षात्कार के अंश आदि रखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई।

    ReplyDelete
  9. देवताले जी के बारे में सहज और रोचक ढंग से लिखे लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई। ऐसे लेखों की अब प्रतीक्षा रहती है |
    शालिनी वर्मा क़तर

    Reply

    ReplyDelete
  10. चंद्रकांत देवताले जी के समग्र जीवन को परिचित कराता हुआ शोध परक के उपयोगी लेख । बहुत-बहुत बधाई शार्दुला जी.

    ReplyDelete
  11. बहुत रोचक लेख। शार्दुला जी के परिश्रम एवं शोध का परिणाम है कि लेख इतना अच्छा बन पाया। हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  12. चंद्रताले जी की कविताएं तो पढ़ी थी लेकिन उन कविताओं के पीछे छिपे इंसान से परिचय नहीं था | शार्दूला (जी) का यह आलेख हमें उस इंसान से मिलवाता है | अंतरंग प्रसंगों से सजा यह लेख कवि के बारे में एक मील का पत्थर साबित होगा |

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया अनूप दा! इस परियोजना से जुड़ कर, इसमें ईमानदार मेहनत कर के हम स्वयं साहित्यिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं। आपके स्नेह, विश्वास और आशीर्वाद के लिए शुक्रिया!

      Delete
  13. बहुत बढ़िया लिखा है शार्दूला जी,चंद्रकांत जी के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी,लेकिन आपके इस आलेख से उनके जीवन और कृतित्व के बहुआयामी स्वरूप को जानने का अवसर मिला,बहुत शुक्रिया

    ReplyDelete
  14. प्रिय शार्दुला , बहुत बहुत बधाई , एक अत्यंत सारगर्भित और ज्ञानवर्धक लेख के लिये

    ReplyDelete
  15. एक रोचक और सारगर्भित लेख जो चंद्रकांत जी से परिचय कराता है. उनको पिछले कई वर्षों से पद्घति रहे हैं किन्तु शार्दूला ने खोज कर कर नै जानकारियां उपलब्ध कराई।
    आभार और बधाई

    ReplyDelete
  16. बहुत ही सुंदर आलेख शार्दूला जी, आपके जरिये मिला ये परिचय मेरी जानकारियों को और समृद्ध कर गया |

    ReplyDelete
  17. इंदौर और उज्जैन के उनके घर की सैकड़ों स्मृतियाँ मन में हैं...तरल हो गई आँखें, इतनी तरलता से लिखा है आपने शार्दुला जी, देवताले जी की तरह बहुत सरलता से लिखा आपने शार्दुला जी

    ReplyDelete

आलेख पढ़ने के लिए चित्र पर क्लिक करें।

कलेंडर जनवरी

Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat
            1वह आदमी उतर गया हृदय में मनुष्य की तरह - विनोद कुमार शुक्ल
2अंतः जगत के शब्द-शिल्पी : जैनेंद्र कुमार 3हिंदी साहित्य के सूर्य - सूरदास 4“कल जिस राह चलेगा जग मैं उसका पहला प्रात हूँ” - गोपालदास नीरज 5काशीनाथ सिंह : काशी का अस्सी या अस्सी का काशी 6पौराणिकता के आधुनिक चितेरे : नरेंद्र कोहली 7समाज की विडंबनाओं का साहित्यकार : उदय प्रकाश 8भारतीय कथा साहित्य का जगमगाता नक्षत्र : आशापूर्णा देवी
9ऐतिहासिक कथाओं के चितेरे लेखक - श्री वृंदावनलाल वर्मा 10आलोचना के लोचन – मधुरेश 11आधुनिक खड़ीबोली के प्रथम कवि और प्रवर्तक : पं० श्रीधर पाठक 12यथार्थवाद के अविस्मरणीय हस्ताक्षर : दूधनाथ सिंह 13बहुत नाम हैं, एक शमशेर भी है 14एक लहर, एक चट्टान, एक आंदोलन : महाश्वेता देवी 15सामाजिक सरोकारों का शायर - कैफ़ी आज़मी
16अभी मृत्यु से दाँव लगाकर समय जीत जाने का क्षण है - अशोक वाजपेयी 17लेखन सम्राट : रांगेय राघव 18हिंदी बालसाहित्य के लोकप्रिय कवि निरंकार देव सेवक 19कोश कला के आचार्य - रामचंद्र वर्मा 20अल्फ़ाज़ के तानों-बानों से ख़्वाब बुनने वाला फ़नकार: जावेद अख़्तर 21हिंदी साहित्य के पितामह - आचार्य शिवपूजन सहाय 22आदि गुरु शंकराचार्य - केरल की कलाड़ी से केदार तक
23हिंदी साहित्य के गौरव स्तंभ : पं० लोचन प्रसाद पांडेय 24हिंदी के देवव्रत - आचार्य चंद्रबलि पांडेय 25काल चिंतन के चिंतक - राजेंद्र अवस्थी 26डाकू से कविवर बनने की अद्भुत गाथा : आदिकवि वाल्मीकि 27कमलेश्वर : हिंदी  साहित्य के दमकते सितारे  28डॉ० विद्यानिवास मिश्र-एक साहित्यिक युग पुरुष 29ममता कालिया : एक साँस में लिखने की आदत!
30साहित्य के अमर दीपस्तंभ : श्री जयशंकर प्रसाद 31ग्रामीण संस्कृति के चितेरे अद्भुत कहानीकार : मिथिलेश्वर          

आचार्य नरेंद्रदेव : भारत में समाजवाद के पितामह

"समाजवाद का सवाल केवल रोटी का सवाल नहीं है। समाजवाद मानव स्वतंत्रता की कुंजी है। समाजवाद ही एक सुखी समाज में संपूर्ण स्वतंत्र मनुष्यत्व...