अपने पहले उपन्यास से ही जिन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार अपनी झोली में डाल लिया हो उनकी लेखनी किसी परिचय की मोहताज नहीं। अलका सरावगी हिन्दी साहित्य जगत में एक सुपरिचित नाम हैं। उनके पास कहानियों की अक्षय पोटली है जो समय-समय पर खुलती है और इतिहास के पन्नों से होते हुए वर्तमान
के पृष्ठों पर बड़ी सहजता से रच जाती है। नवम्बर २०२० में अपने नए उपन्यास “कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए”
के साथ अलका सरावगी ने एक बार फिर अपने सुपरिचित कथा-तत्व एक अनूठे अंदाज में प्रस्तुत किये हैं। आइए, उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर एक नज़र डालते हैं।
पृष्ठभूमि:
अलका सरावगी का जन्म
१७ नवम्बर १९६० को कलकत्ता में विस्थापित एक मारवाड़ी व्यवसायी परिवार में हुआ था।
तीन बहनों में सबसे छोटी अलका को अपनी माँ व अन्य बहनों से अधिक पढ़ने
का अवसर मिला, किन्तु तत्कालीन मारवाड़ी रिवाज़ों के अनुसार मात्र २० वर्ष की आयु में उनका विवाह कलकत्ता के ही एक संभ्रांत मारवाड़ी व्यवसायी परिवार में कर दिया गया।
शुद्ध भाषा पर पकड़ और गद्य के संस्कार उन्हें अपने पिता से धरोहर में मिले
थे। पिता ने उनकी शिक्षा-दीक्षा में कोई कोताही भी नहीं बरती थी, किन्तु वे तत्कालीन समाज की मान्यताओं के अनुसार अलका के विवाहोपरांत उनकी उच्च शिक्षा के पक्षधर नहीं थे। पिता की इच्छा के विपरीत ससुराल के सहयोग
और प्रोत्साहन
ने अलका को आगे पढ़ने के लिए
प्रेरित किया और आगे चलकर
यही ससुराल वाले उनकी
लेखनी के सबसे बड़े प्रशंसक भी बने।
उच्च शिक्षा की ललक और साहित्य के प्रति रुझान के फलस्वरूप अलका
सरावगी ने अपनी दोनों संतानों के आने के बाद अपनी पढ़ाई पुनः आरम्भ की। उन्होंने पहले हिन्दी
साहित्य से एम.ए. किया और
फिर “रघुवीर सहाय के काव्य” विषय पर पीएचडी की। पत्रकारिता के आकर्षण ने
उन्हें पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के लिए प्रेरित किया। इसी
दौरान संयोगवश उनका परिचय जाने-माने विचारक, समाजशास्त्री व लेखक अशोक सेकसरिया से हुआ। पठन-पाठन और लेखनी के प्रति अलका के रुझान को देखते हुए अशोक जी ने उन्हें लिखने की प्रेरणा
दी। “हाथ-कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे
को फारसी क्या” बस यहीं से अलका सरावगी का साहित्यिक सफ़र आरम्भ हो गया।
साहित्यिक सफ़रनामा:
अलका सरावगी का साहित्यिक सफ़र १९९६ से प्रारम्भ हुआ जब उनका पहला कहानी संग्रह “कहानी की तलाश में” प्रकशित हुआ। इसमें शामिल सभी कहानियाँ
जीवन की कहानियाँ हैं – जो कभी सुख की अनुभूति कराती हैं तो कभी आधुनिकतावादी जीवन की संवेदनहीनता और विसंगतियों को उजागर करती हैं। ‘कहानी की तलाश में’, ‘हर शै बदलती है’, ‘आपकी हँसी’, ‘ख़िज़ाब’, ‘मँहगी किताब’, ‘संभ्रम’ आदि इस संग्रह की कुछ लोकप्रिय कहानियाँ हैं। इस कहानी-संग्रह से अलका सरावगी के साहित्य जगत की असीमित संभावनाओं को तलाशने व उजागर करने की महत्वाकांक्षा का परिचय मिलता है।
वर्ष १९९८ में उनका पहला उपन्यास “कलि-कथा वाया बाइपास” प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास उनकी साहित्यिक यात्रा में मील का पत्थर बनकर उभरा। इसके माध्यम से अलका ने लगभग साठ सालों के समय को इसके नायक के इर्द-गिर्द बाँधने का साहस किया है। इस उपन्यास में नायक किशोरी बाबू के माध्यम से मारवाड़ी परिवार की चार पीढ़ियों के सुदूर रेगिस्तान - राजस्थान - से पूर्व प्रदेश - कलकत्ता - की ओर पलायन, इससे जुड़ी उम्मीदें, पीड़ा और अंतर्द्वंद्व को आधुनिक शैली में प्रस्तुत किया गया है। इसमें एक ओर मानव जीवन का मनोविज्ञान एवं उसका संवेदनशील स्वरुप देखने को मिलता है तो वहीं दूसरी तरफ अस्थिर राजनीतिक परिवेश, सामाजिक विडंबना, भारतीय अर्थव्यवस्था, भूमंडलीकरण एवं पाश्चात्य संस्कृति के अन्धानुकरण की वास्तविकता को गहराई से अनुभव किया जा सकता है। आलोचकों एवं पाठकों की प्रशंसा के बीच इसे अपने प्रकाशन वर्ष में ही श्रीकांत वर्मा पुरस्कार से नवाज़ा गया। पुनः इसी उपन्यास के लिए अलका सरावगी को वर्ष २००१ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह उपन्यास अनेक भारतीय भाषाओँ के आलावा इटालियन, फ्रेंच, जर्मन व स्पैनिश भाषाओं में अनूदित हुआ। साथ ही, यह भारत, कैम्ब्रिज, ट्यूरिन, और नेपल्स के विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल है।
प्रोत्साहन व पाठकों की प्रशंसा ने अलका सरावगी की कलम को निरंतर कुछ नया परोसने के लिए प्रेरित किया। वर्ष २००१ में ‘शेष कादम्बरी’ नाम से उनका दूसरा उपन्यास प्रकाशित हुआ। वृद्ध और युवा जीवन-दृष्टि के फ़र्क को रेखांकित करनेवाला यह उपन्यास अलका सरावगी के जीवन्त लेखन का प्रतीक है। इसमें उन्नीस्वीं सदी में जन्मे रूबी दी – उनकी ‘आइडेंटिटी क्राइसिस’, एकरेखीय ‘सोशल-वर्क’ के आडम्बर से जुड़कर उससे उबरने का प्रयास, और अन्ततः अपनी नातिन ‘कादम्बरी’ में अपनी शेष-कथा देखने की अनूठी दास्तान है। शेष कादम्बरी को वर्ष २००६ में के.के. बिरला फाउंडेशन के बिहारी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इससे पूर्व वर्ष २००० में अलका सरावगी की एक अन्य कहानी संग्रह ‘दूसरी कहानी’ प्रकाशित हुई। यह समकालीन कहानी के प्रचलित ढर्रे से अलग जाकर कहानी के लिए एक नयी संभावना का संकेत बनकर उभरी। इसकी कहानियाँ यथार्थ को तथ्य-सीमित करने की रूढ़ि को ध्वस्त करती हैं। ‘पार्टनर’, ‘एक पेड़ की मौत’, ‘यह रहगुज़र न होती’, ‘कन्फेशन’ आदि इस संग्रह की लोकप्रिय कहानियाँ हैं।
अपनी लेखनी से नए आयाम गढ़ते हुए अलका सरावगी ने कोई बात नहीं ( २००४), एक ब्रेक के बाद (२००८), जानकीदास तेजपाल मेन्शन (२०१०), एक सच्ची-झूठी गाथा (२०१८), कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिए (नवम्बर २०२०) के नाम से एक-से-बढ़कर-एक बेहतरीन उपन्यासों की रचना की। इनमें से ‘एक ब्रेक के बाद’, ‘जानकीदास तेजपाल मैन्शन’ और ‘सच्ची-झूठी गाथा’ में अलका सरावगी ने कथा के स्वाभाविक विकास के साथ मीडिया के अनेक पहलुओं को उजागर किया है। बाजारवाद, भूमंडलीकरण, उपभोक्तावाद, विज्ञापनों का आमजन पर प्रभाव – सुदूर गाँवों तक इसका असर, वर्चुअल रियेलिटी आदि तथ्यों को इन उन्यासों के माध्यम से बड़ी सहजता से परखा जा सकता है।
एक ओर जहाँ ‘जानकीदास तेजपाल मैन्शन’ में अलका सरावगी ने पत्रकार, पत्रकारिता एवं प्रकाशन सम्बन्धी आदर्शों एवं आधारभूत मूल्यों को खो रहे समाज का चित्रण किया है, वहीं दूसरी ओर ‘सच्ची-झूठी गाथा’ में सोशल मिडिया की पृष्ठभूमि पर रची कहानी के ज़रिये इसकी भयावहता बताने का सशक्त प्रयास किया है। कितना आसान है कंप्यूटर, लैपटॉप के पीछे अपना नाम और पता बदलकर कुछ और बन जाना। इसी बात का फ़ायदा उठाते हुए एक आतंकवादी अपनी फ़ेक आइडेंटिटी से उपन्यास की नायिका, जो एक प्रख्यात लेखिका होती है, के जीवन में प्रवेश कर झूठ और फरेब का जो खेल खेलता है, उसी का नाम है सच्ची-झूठी गाथा।
अपने उपन्यासों में अलका सरावगी ने स्त्री-चित्रण पर विशेष ध्यान दिया है। चाहे वह ‘कलिकथा वाया बाइपास’ में किशोरी बाबू की विधवा भाभी हों या ‘शेष कादम्बरी’ की रूबी दी - मारवाड़ी समाज में स्त्रियों की घुटनभरी विवश ज़िन्दगी को बड़े मार्मिक किन्तु वास्तविक रूप में उजागर करने का सार्थक प्रयास किया है अलका सरावगी ने। ‘एक ब्रेक के बाद उपन्यास में’ कॉर्पोरेट जगत के स्त्री-चरित्रों का चित्रण तत्कालीन स्त्रियों को अपनी कहानी-सा प्रतीत हो सकता है। अलका की विशेषता यह है कि वे स्त्री की प्रचारित और प्रचलित छवि को तोड़ते हुए पुरुषों द्वारा स्त्री पर किये गए शोषण के साथ-साथ स्त्री-जीवन के अन्य पक्षों पर भी सोचने को मजबूर करती हैं। समय के साथ स्त्री के वैयक्तिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति में आये बदलाव को बहुत पारखी निगाहों से देखा है अलका सरावगी ने!
उन्होंने वेनिस विश्वविद्यालय में एक कोर्स का अध्यापन किया है। फ्रांस, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन, नार्वे तथा मॉरीशस में अनेक बार पुस्तक मेलों और साहित्यिक सेमीनार में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। उनकी तीन उपन्यासों के इतावली भाषा में प्रकाशित होने पर उन्हें इटली की सरकार द्वारा ‘ऑर्डर ऑफ़ द स्टार ऑफ़ इटली-कैवेलियर’ का सम्मान दिया गया। सच में, असाधारण किस्सों का चमकता सितारा हैं अलका सरावगी!
सन्दर्भ:
१.कुलभूषण का नाम दर्ज कीजिये, अलका सरावगी
२. https://www.scotbuzz.org
६. http://www.hindijournal.com
७. कलिकथा : वाया बायपास, अलका सरावगी
लेखक परिचय
मास्टर ऑफ़ जर्नलिज़्म में स्वर्ण पदक प्राप्त दीपा लाभ विभिन्न मिडिया संस्थानों के अनुभवों के साथ पिछले १२ वर्षों से अध्यापन कार्य से जुडी हैं। आप हिन्दी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में समान रूप से सहज हैं तथा दोनों भाषाओं में लेख व संवाद प्रकाशित करती रहती हैं। हिन्दी व अंग्रेज़ी भाषा में क्रियात्मकता से जुड़े कुछ लोकप्रिय पाठ्यक्रम चला रही हैं। इन दिनों ‘हिन्दी से प्यार है’ की सक्रिय सदस्या हैं और ‘साहित्यकार तिथिवार’ का परिचालन कर रहीं हैं।
अलका सरावगी जी पर दीपा जी का यह लेख बहुत ही जानकारी भरा एवं पठनीय है। साथ ही दीपा जी का यह लेख इस परियोजना के आरंभ में एक मानक लेख के रूप में भी प्रयुक्त हुआ। दीपा जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteहैसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद दीपक जी| आप सभी के लेख बहुत ही रोचक और सराहनीय हैं| यह संयोग की बात है कि मेरा यह लेख मानक बना| आगाज़ बेहतर हो, यही प्रयास था| जिस तरह आप सभी का साथ और प्रोत्साहन मिल रहा है, हम सभी इस परियोजना को एक नए मुकाम तक ले जाने में अवश्य सफल होंगे| आभार!
Deleteदीपा जी का यह लेख अलका सरावगी जी की जीवन यात्रा और साहित्यिक उपलब्धियों को बखूबी समेटता है | यह आलेख जिन्होंने अलका जी को नहीं पढ़ा है उन्हें भी आकर्षित करता है अलका जी के लेखन की ओर |
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई और साधुवाद |
आपका प्रोत्साहन अतुल्य है| मैं ह्रदय से आपको धन्यवाद देती हूँ|
DeleteMaine Alka Saravgi ji ke baare me kabhi suna nahi tha. Aapke lekh padhkar unki kritiyon ko padhne ka man kar raha hai. Sahitya ke aisi pratibha ko ujagar karne ke liye apka dhanyavaad.
ReplyDeleteआभार पंकजजी!
Deleteदीपा जी आप का यह लेख पढ़ते पढ़ते मैं अलका सरावगी जी के साहित्य प्रेम में डूब गई हूँ
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
आपका बहुत बहुत आभार महोदया! उनका उपन्यास पढ़कर आपको और भी आनन्द आएगा|
Deleteसुंदर लेख है ,दीपा जी । आपने सीमित शब्दों में अलका जी के कृतित्व का सुंदर वर्णन किया है ।
ReplyDeleteदीपा जी, अलका सरावगी जी के कृतित्व और व्यक्तित्व को आपके आलेख के ज़रिये जानना बहुत ज्ञानवर्धक और आनंददायी रहा। आपको बधाई और हार्दिक आभार।
ReplyDeleteएकदम कसावटपूर्ण लेखनी...साधुवाद
ReplyDeleteबढ़िया आलेख। अलका जी की कहानियाँ और उपन्यास ज़रूर पढ़ूँगी।
ReplyDeleteफिर तो मेरा लिखना सार्थक हो गया| बहुत बहुत आभार ऋचा जी|
Deleteइतने व्यवस्थित तरीके से लेखक और उसके जीवन से परिचय कराते हए दीपा जी की भी लेखनी को नमन
ReplyDeleteआपका सहृदय धन्यवाद राकेश जी|
Deleteअलका जी के कृतित्व एवं व्यकतित्व पर दीपा जी द्वारा लिखित लेख पाठकों के लिए ज्ञानवर्धक भी है और रोचक भी । दोनों को बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteआप सभी का उत्साहवर्धन पाकर मैं कृतज्ञ हूँ| आप सभी को ह्रदय से धन्यवाद|
ReplyDeleteदीपा जी, अलका सरावगी पर अत्यंत रोचक, भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई। आलेख बहुत अच्छा लगा, मज़ा आया पढ़कर।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरती से शब्दों का चयन
ReplyDelete👌👌