Saturday, November 27, 2021

साहित्य जगत का मील का पत्थर: हरिवंश राय बच्चन


हरिवंश राय बच्चन २० वीं सदी के सर्वाधिक प्रशंसित हिन्दी-भाषी कवियों में से एक हैं। १९३५ में प्रकाशित हुई उनकी लंबी कविता मधुशाला से वे साहित्य जगत पर छा गए| मधुशाला ने उन्हें प्रशंसकों की एक बड़ी फौज दी और इस संख्या में आज भी दिन-प्रतिदिन इजाफा हो रहा है| दिल को छू लेने वाली उनकी काव्यशैली वर्तमान समय में भी हर उम्र के लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ती है। डॉ. हरिवंश राय बच्चन का हिन्दी साहित्य में अविस्मरणीय योगदान रहा है| आइए, इस कुशल साहित्यकार एवं कवि के जीवन के कुछ दिलचस्प पहलुओं को जानने का प्रयास करें|

पृष्ठभूमि:

मिट्टी का तन, मस्ती का मन

क्षणभर जीवन मेरा परिचय

मधुशाला' की इन पंक्तियों में खुद को समा देने वाले हिन्दी के महान कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन का जन्म इलाहाबाद के कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव तथा माता का नाम सरस्वती देवी था। इनको बाल्यकाल में प्यार से बच्चन कहा जाता था जिसका अर्थ होता है बच्चा। बाद में इसी नाम से वे और उनका परिवार मशहूर हुए। साल १९२६ में १९ वर्ष की उम्र में उनका विवाह श्यामा बच्चन से हुआ, जो उस समय १४ साल की थीं। लेकिन १९३६ में ही  टी.बी की बीमारी के कारण श्यामा जी की मृत्यु हो गई| इस घटना ने उनके ह्रदय पर गहरा आघात किया और इससे उबरने में उन्हें काफी समय लग गया। १९३९ में लिखी उनकी रचना एकांत संगीत उसी दुःख और अकेलेपन को झलकाती है।  

५ साल बाद १९४१ में उन्होंने तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी थीं। तेजी बच्चन से हरिवंश राय के दो पुत्र हुए - अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन| आगे चलकर अमिताभ बच्चन फ़िल्म अभिनेता बने और अपने पिता के संमान ही प्रसिद्धि अर्जित की| वहीँ अजिताभ ने सामान्य पारिवारिक जीवन चुना और अपने व्यवसाय में सफलता अर्जित की|  

साहित्यिक सफ़र:

बच्चन जी की कविताएँ और रचनाऍं एक ऐतिहासिक मिसाल हैं| उनके काव्य की गहराई, सच्चाई और वास्तविकता ही उनकी असली धरोहर है और यही उनकी लोकप्रियता का प्रमुख कारण भी है। हरिवंश राय बच्चन जी उत्तर छायावादी युग के आस्थावादी कवि हैं। उनकी कविताओं में मानवीय भावना की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है। डॉ. नागेंद्र ने "बच्चन जी" की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए लिखा है, 'जीवन की मौलिक भावनाओं का व्यक्तिगत रूप में प्रबल संवेदन करते हुए उन्हीं के अनुरूप प्रकृति अथवा जीवन के सरल एवं व्यापक तत्त्व का साधारणीकरण करना बच्चन की मुख्य विशेषता है।” 

बच्चन जी को ख्याति १९३५ में प्रकाश में आए लोकप्रिय संग्रहमधुशालासे मिली। उसके बाद १९३६ में बच्चन का कविता संग्रह मधुबाला और १९३७ में मधुकलश आया।  ये रचनाएँ भी खूब प्रसिद्ध हुईं। निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल अंतर और सतरंगिनी उनके प्रसिद्ध रचना संग्रह हैं।  उनकी रचनादो चट्टानेंको १९६८ में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उसी साल उनको सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार और एफ्रो-एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए बच्चनजी को १९७६  में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 

क्या भूलूँ क्या याद करूँ हरिवंश राय बच्चन की बहुप्रशंसित आत्मकथा तथा हिन्दी साहित्य की एक कालजयी कृति है। यह चार खण्डों में हैः 'क्या भूलूँ क्या याद करूँ', ‘नीड़ का निर्माण फिर', 'बसेरे से दूर' और 'दशद्वार से सोपान तक'। इसके लिए बच्चनजी को १९९१ में भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार 'सरस्वती सम्मान' से सम्मानित किया गया था।  हिन्दी प्रकाशनों में इस आत्मकथा का अत्यंत ऊँचा  स्थान है।

डॉ॰ धर्मवीर भारती ने इसे हिन्दी के हज़ार वर्षों के इतिहास में ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में किसी ने सब कुछ इतनी बेबाकी, साहस और सद्भावना से कह दिया हो। 

डॉ॰ हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार इसमें केवल बच्चन जी का परिवार और उनका व्यक्तित्व ही नहीं उभरा है, बल्कि उनके साथ समूचा काल और क्षेत्र भी अधिक गहरे रंगों में उभरा है। डॉ॰ शिवमंगल सिंह सुमन की राय में ऐसी अभिव्यक्तियाँ नई पीढ़ी के लिए पाठेय बन सकेंगी, इसी में उनकी सार्थकता भी है।

कविताआत्म परिचयमें बच्चन जी ने अपने स्वभाव एवं व्यक्तित्व के बारे में बताया है,

मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूँ

फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ


इसी प्रकार "एक गीत" के शीर्ष गीत में श्री हरिवंश राय बच्चन ने अपने जीवन के अकेलेपन की कुंठा को अभिव्यक्त किया है। 

हरिवंश राय बच्चन पर अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं। इनमें उन पर हुए शोध, आलोचना एवं रचनावली शामिल हैंबच्चन रचनावली के ग्यारह खंड है जिसका संपादन अजित कुमार ने किया है। अन्य उल्लेखनीय पुस्तकें हैं- 'हरिवंश राय बच्चन' (बिशन टंडन) 'गुरुवर बच्चन से दूर' (अजित कुमार)। 

अकोला, महाराष्ट्र के प्रसिद्ध लेखक व शिक्षक डॉ.रामप्रकाश वर्मा ने श्री हरिवंशराय बच्चन पर लिखे अपने संस्मरण 'क्या-क्या याद करुँ' में बच्चन जी पर किए गए शोध के बारे में विस्तार से बताया कि किस प्रकार बच्चन जी ने स्वयं बड़ी आत्मीयता व अपनेपन से उनके शोधकार्य में उनका मार्गदर्शन किया था। वर्मा जी ने उसमें यह भी लिखा है कि बच्चन जी के बँगले 'प्रतीक्षा' के लॉन में एक हनुमान जी का मंदिर है और घर की यह प्रथा है कि कोई भी सदस्य घर से बाहर जाते समय हनुमान जी को प्रणाम अवश्य करता है।

विश्व साहित्य और बच्चन

हरिवंश राय बच्चन का विदेशी साहित्य से गहरा सम्बन्ध था।  उन्होंने अपनी पीएचडी अँग्रेज़ी साहित्य के विख्यात कवि डब्ल्यू० बी० यीट्स की कविताओं पर की थी| उन्होंने उमर ख़य्याम की कृतियों कोखय्याम की मधुशालाऔरउमर ख़य्याम की रुबाइयाँपुस्तकों के ज़रिये हिन्दी पाठकों तक पहुँचाया था| साथ ही अँग्रेज़ी की कई और कृतियों से हिन्दी भाषियों को रूबरू करवाया था। उन्होंने ६४ रूसी कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी से हिन्दी में किया था और १९६५ में इन कविताओं की पुस्तकचौंसठ रूसी कविताएँप्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक के माध्यम से पूश्किन, ब्लोक और मयकोवस्की जैसे महान कवियों की रचनाएँ भारतीय पाठकों तक हिन्दी में पहुँची थीं। इस सराहनीय कार्य के लिए १९६८ में उन्हें सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार से नवाज़ा गया था।  

रूस में बच्चन जी हमेशा लोकप्रिय रहे और वे कई बार यहाँ आधिकारिक दौरों पर बुलाए गए। रूस के प्रसिद्ध कवि, भारतविद अलेक्सांदर सिन्केविच, ने कई हिन्दी कवियों की रचनाओं का अनुवाद किया है। हिन्दी कवियों पर सिन्केविच जी ने अपना काम हरिवंशराय बच्चन की रचनाओं से शुरू किया था। उनकी किताब रूसी में थी जिसका अनुवाद प्रो० वरयाम सिंह ने किया है - बच्चन एक व्याख्या।  

हरिवंश राय बच्चन का व्यक्तित्व और कृतित्व ऐसा था कि उन्हें वैश्विक नागरिक की संज्ञा आसानी से दी जा सकती है। साहित्य अध्ययन और व्यक्तित्व के निर्माण के बीच अटूट सम्बन्ध होता है। विभिन्न समाजों  की संवेदनाओं, भावनाओं और सोच का उत्कृष्ट दर्पण साहित्य ही होता है। बच्चन जी की शख़्सियत अलग-अलग भाषाओं के साहित्य-अध्ययन से तो निखरी ही, साथ ही उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से उसे हिन्दी प्रेमियों तक पहुँचाकर उनके जीवन को भी समृद्ध किया।

कुछ रोचक पहलू:

हरिवंश राय बच्चन ने महू और सागर में फ़ौजी प्रशिक्षण लिया था और लेफ्टिनेंट बन कर कंधे पर दो सितारे लगाने का अधिकार भी पाया था। बच्चन जी ने कुछ समय के लिए ऑल इंडिया रेडियो के इलाहाबाद केंद्र में भी काम किया था। आज भी न केवल हिन्दी साहित्य में, अपितु समग्र विश्व के अव्वल, लोकप्रिय और महान कवियों में बच्चन जी का स्थान सुरक्षित है।

18 जनवरी 2003 को 95 साल की उम्र में हिन्दी कविता का यह सूर्य अस्ताचल को पा गया किन्तु अपनी कविताओं के प्रकाश से सम्पूर्ण जगत को उदीयमान करता गया| उनकी कविताएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के दिलों में धड़कन बनकर ज़िंदा है|  

हरिवंश राय बच्चन: जीवन परिचय

जन्म

२७  नवम्बर १९०७, इलाहाबाद, भारत 

मृत्यु 

१८ जनवरी २००३ 

मुम्बई, महाराष्ट्र, भारत

व्यवसाय 

कवि, लेखक, प्राध्यापक 

भाषा 

अवधी, हिंदी, उर्दू  

शिक्षा एवं शोध

एम. ए. 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय

पीएच.डी.

सेन्ट कैथेराइन कॉलेज, कैम्ब्रिज

साहित्यिक रचनाएँ

मुख्य रचनाएँ (काव्य) 

मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश 

निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल अंतर और सतरंगिनी

मुख्य रचनाएं (गद्य) 

आत्मकथा: क्या भूलूँ क्या याद करूँ

नीड़ का निर्माण फिर 

बसेरे से दूर 

दशद्वार से सोपान तक 

पुरस्कार व सम्मान

साहित्य अकादमी पुरस्कार-१९६८  दो चट्टानें (हिन्दी कविता)

सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार-१९६८     चौंसठ रूसी  कविताएँ 

एफ्रो एशियाई सम्मेलन का कमल पुरस्कार-१९६८ 

पद्म भूषण-१९७६    साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

बिड़ला फाउंडेशन सरस्वती सम्मान-१९९१       आत्मकथा 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 





लेखक परिचय

रश्मि बंसल झवर- विगत १५ वर्षों से हिन्दी अध्यापन में कार्यरतलेखन व पठन में गहन रुचि। विविध अख़बारों व पत्रिकाओं में समय-समय पर लेख तथा कविताएँ प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी भाषा की बहुत बड़ी प्रशंसक।

ईमेल: rashmizawar74 @gmail.com

Mobile no. 9588440759



6 comments:

  1. काव्य पुरुष बच्चन जी के कृतित्व व व्यक्तित्व को मितशब्द शैली में समग्रता से प्रस्तुत करके हिन्दी प्रेमियों को बच्चन जी से परिचित कराकर परम उपकार किया है। आपको अनन्त बधाइयां एवं प्रणाम।
    डॉ. अनिरुद्ध कुमार अवस्थी
    प्रवक्ता (हिन्दी)
    किशोरी रमण इंटर कॉलेज, मथुरा

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  2. बच्चन जी के जीवन और साहित्य पर प्रकाश डालता उत्तम लेख। रश्मि जी, आपको बहुत बहुत बधाई।

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  3. लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन जी पर बहुत बढ़िया लेख है। रश्मि जो को बधाई।

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  4. सराहनीय उपक्रम भाभी जी आप के सुप्त गुणों को प्रगट करने का मंच आपने स्वयं बनाया है और साथ में पाठको को हिंदी पढ़ने के लिए प्रवृत्त किया है इसलिए सभी पाठक आप के आभारी रहेंगे।
    धन्यवाद।

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  5. असंख्य शुभकामनाएं आपको भाभीजी... बहुत सुंदर

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