Friday, January 7, 2022

समाज की विडंबनाओं का साहित्यकार : उदय प्रकाश

uday prakash (@udayprakash2009) / Twitter

हिंदी साहित्य में उदय प्रकाश ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभासंपन्न लेखनी से सामाजिक प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है। इसी प्रतिबद्धता के कारण वे साहित्य जगत में संवेदनशील कवि, प्रयोगशील कथाकार और समाजशास्त्रीय चिंतक के रूप में जाने जाते हैं। उदय प्रकाश ने साहित्य की सभी विधाओं में रचनाएँ लिखी हैं। उनका लेखन समय के थपेड़ों की मार सहते हुए लगातार तपता रहा और निखरता गया है। जीवन के संघर्ष, अभाव, पीड़ा, त्रासदियाँ, विडंबनाएँ, क्षोभ, अपमान, बेगानापन आदि अनेक तत्त्वों ने उनकी सृजन-प्रक्रिया को समृद्ध किया है।

उदय प्रकाश के साहित्यिक व्यक्तित्व के निर्माण में उनकी माँ की अमिट छाप देखी जा सकती है। इस बात को स्वीकार करते हुए वे कहते हैं - “ पेंटिंग और कविता की प्रेरणा माँ की नोटबुक से मिली, जो वे अपने साथ अपने गाँव से लेकर आई थीं, उसमें भोजपुरी लोकगीत, कजरी, सोहर, चैती, फगुआ, बिरहा, बिदेसिया और चिड़ियों एवं फूलों के चित्र बने हुए थे। इन लोकगीतों में वह संगीत और कविता थी जो मुझे अपने भीतर डुबो लेती थी, आज भी मुझे हर अच्छी कहानी में कविता या संगीत एक साथ पाने की इच्छा रहती है। ”

उदय प्रकाश के चिंतन और लेखन का आधार समाज का आम आदमी है, जो सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था के षड्यंत्रों का शिकार होता है, जिसे संपन्न शक्तियों के समक्ष अपने सभी सुख-साधनों को समर्पित करना होता है तथा सामाजिक और सार्वजनिक जीवन में उसका निरंतर शोषण होता है। खुद खाने के लिए मरे, परिवार टूटे, पर अपने आकाओं को खुश रखने के लिए हाड़ तोड़ मेहनत करनी पड़ती है, समाज के ऐसे सभी उपेक्षित और शोषित पात्र उदय प्रकाश के रचनात्मक साहित्य में जीवंत रूप में चित्रित हैं। वे अपनी कविता में इन्हीं भावों को अभिव्यक्त करते हुए लिखते हैं -

“  हम जानते हैं कि तुम्हें अभी
परधान का खेत निराना है, ठाकुर के
गोरु चराने हैं, पटवारी का चौखट बनाना है,
पंडिज्जी की रसोईं के लिए
लकड़ी चीरना है, पटेल का हल चलाना है।
तकादे में आए महाजन के
कारिंदे को फिर से टकराना है। ”

यह एक विडंबना ही है, कि आदमी एक है और उससे सेवा लेने वाले अनेक हैं। उन सभी में बस लिबास का अंतर है, स्वभाव या व्यवहार इनका मात्र एक ही है- शोषण और अत्याचार। आचार ऐसा जिसके तहत सबको ग़ुलाम बनाकर रखा जा सके। यह कोई आज की बात है भी नहीं। पूरी की पूरी पिछली सदियाँ उनकी इस ग़ुलामी की गवाह रही हैं। उठने का अवसर इन्हें कभी दिया ही नहीं गया। दबाने का प्रयत्न हद से अधिक किया गया। इनके जो व्यक्तिगत अधिकार होते भी थे, उन पर भी सामाजिकता का आवरण लोगों द्वारा चढ़ाकर रखा गया। थोड़ी सी भी कोशिश यदि इन्होंने करनी चाही उस आवरण को हटाने की, तो सामाजिक बहिष्कार का फरमान सुनाया गया। आश्चर्य की बात तो यह है, कि यह फरमान सुनाया भी उसे गया, जिसने समाज के निर्माण में अपना सर्वस्व कुर्बान कर दिया। खेत से लेकर खलिहान तक, घर से लेकर बाज़ार तक की काल्पनिक स्थितियों को साकार स्वरुप देने वाले इस आम आदमी को खेत, खलिहान, घर से नदारद करके बाज़ार की वस्तु समझा गया। बाज़ार में भी इनके किसी अन्य रूप को महत्त्व नहीं दिया गया, सिवाय इनके श्रम के। यह श्रम ही है, जिसकी वजह से वे इस दुनिया में अब भी अपने होने को लेकर आश्वस्त हैं। पर कवि को दुःख है, कि जिसने समाज-निर्माण के कण-कण में अपना योगदान दिया, वहाँ इस आम आदमी का नाम मात्र भी नहीं छोड़ा जाता। इनका संपूर्ण जीवन एक पहेली मात्र बनकर रह जाता है। इनकी आने वाली संतति को ये हर एक जगह दिखाई देते हैं, पर जब यथार्थ स्थिति उन्हें पता चलती है, तो एक पश्चाताप और प्रश्नाकुल निगाहों के अतिरिक्त होता भी कुछ नहीं है। उदय प्रकाश जी ने अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से यथार्थ का सुंदर चित्र खींचा है -

एक एक ईमारत पर
उनकी कन्नियाँ सरकीं थीं।
एक एक दीवार पर
उनकी उँगलियों के निशान थे।
हर दरवाज़े की काठ पर
उनका रंदा चला था।
………नाके के इस पार
जहाँ से गाँव की वीरानगी शुरू होती है
हर खेत की कठोर छाती पर
पिता अपनी कुदाल
धँसा गए थे।
हल की हर मूठ पर
उनकी घट्ठेदार हथेलियों की छाप थी
हर गरियार बैल के पुट्ठों पर
उनके डंडे के दाग़ थे।
बाद में पिता
ग़ायब हो गए
कहते हैं खेत, कुदाल,
बैल, इमारतें, ईंटें, दरवाजें,
बाज़ार
उन्हें पचा गए।”

उदय प्रकाश मार्क्सवादी और कम्युनिस्ट पार्टी से संबद्ध रहे। यही कारण है, कि उनकी अधिकतर रचनाएँ सामंतवाद, पूँजीवाद, बाज़ारवाद आदि कुप्रवृत्तियों के खिलाफ़ जंग छेड़े हुए सी प्रतीत होती हैं। सामंतवादी प्रवृत्तियों के खिलाफ़ लिखी ‘मालिक आप नाहक नाराज़ हैं’ की चंद पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं –

मैं ठीक कह रहा हूँ मालिक, आप नाहक नाराज़ हैं
भूल जाइए बिलकुल उन चीज़ों को, जिन पर हुक़्म नहीं चलता आपका
आखिर हवा किसनिया कहारिन तो है नहीं मालिक,
जो कराहती हुई चौका-बासन करे आपका
बाल्टी भर-भर पानी, छत तक चढ़ाए, दो घंटे छोटे बाबू को कहलाए
और फिर आपका, बिछौना बिछाय
आखिर धूप सूरजा तो है नहीं मालिक,
जिसकी कमीज आप गुस्से से फाड़ दें और ,
जिसकी काली पीठ पर, अपनी चिल्मजी के गुल झाड़ दें।

उदय प्रकाश ने ‘शरीर’ नामक कविता में राजनीति के यथार्थ को प्रस्तुत किया है, राजनीतिक ग़ुलामी से दशकों पहले भारत की मुक्ति हुई, किंतु हमारे शासक और शासित में अब भी यह उपनिवेशवादी गुलामी मानसिकता बरकरार है। मोटे तौर पर कोई विरोध उपस्थित होता नहीं, क्योंकि ग़ुलामी और स्वतंत्रता के बारे में सोचने में सक्षम मस्तिष्क भी ग़ुलामी की पकड़ में है, तभी तो वे लिखते हैं -

रहा मस्तिष्क तो उसकी भी अपनी ही अलग अलग आत्मकथा है
उसके कई हिस्से अभी तक उपनिवेश हैं किसी अन्य साम्राज्य के
कुछ हिस्सों में दिखता है कोई स्वप्न या दूर कहीं जलता है कोई बल्ब
और बुझ जाता है।

उदय प्रकाश ने अपनी कविताओं में नारी-पीड़ा को भी चित्रित किया है। ‘पंचनामे में दर्जा नहीं है’, ’परदा’, ’इंजीनियर इंतज़ार में है’, ’एक नसीहत, जो हम बताए जाते हैं’ आदि कवितायें स्त्री के असह्य दुःख, यौन-शोषण, यातना और पीड़ा को अभिव्यक्त करती हैं। गली में जीवन बिताने वाली स्त्रियों के त्रासद जीवन को कवि ने इन शब्दों में चित्रित किया है –

समूची नागरिकता वहाँ पचास साल से खाँसती है
स्त्रियाँ निरंतर प्रजनन और प्रसव करती हैं
कैमरों के सामने नंगी, अध-नंगी परेड करती हुई
अपनी फटी आँखों से सभ्यता को देखती हैं
और बिना चीखे किसी स्टोव या किसी
तंदूर में शामिल हो जाती हैं।

इस प्रकार देखें, तो कवि के रूप में उदय प्रकाश जन-संघर्ष को दिशा-निर्देश देने का प्रयास करते हुए, व्यापक जन-संघर्ष की मानवीय चेतना के कवि हैं।

उदय प्रकाश ने कहानी सृजन में समसामयिक परिस्थितियों और घटनाओं को यथार्थ रूप में अभिव्यक्त किया है। प्रसिद्ध आलोचक ज्योतिष जोशी ने उदय प्रकाश की कहानियों के संबंध में लिखा है- “उदय प्रकाश व्यक्ति की ‘आत्मा’ के सर्जक हैं, इसलिए घटनाएँ उनकी कहानियों का प्राण नहीं हैं, प्राण है उसकी सत्यता को थाहने की साधना। यही कारण है, कि उनकी कहानियों के चरित्र प्रदत्त स्थितियों से लड़ते हुए भी निरंतर यातना के मर्मांतक क्षणों को भोगते हुए भी अपने ‘आत्म’ से बेज़ार नहीं होते। ‘वस्तु’ को उनके पूरे वितान से उठाते हुए उदय प्रकाश केवल ‘प्रतिरोध’ कर अपने कर्म से छुट्टी नहीं पाते, वे एक ‘सांस्कृतिक दृष्टि’ और उससे भी अधिक एक सर्वहितकारी ‘लोकमत’ की प्रस्तावना करते हैं। मरणासन्न क़िस्सागोई को पुनर्जीवित कर उदय प्रकाश ने वैश्विक परिवर्तनों की अपनी समझ और अपनी सर्जनात्मक प्रतिभा के मेल से ऐसा कहानी-संसार निर्मित किया है, जिसका कोई विकल्प नहीं और प्रेमचंद की यथार्थवादी परंपरा का विकास कह देने से काम नहीं चलता। सही मायनों में वह ‘कहानी में अपनी सभ्यता का कठिन संघर्ष’ है और एक तरह से वैश्विक पाखंड का क्रांतिकारी रचनात्मक प्रतिरोध ही नहीं एक सार्वभौमिक विकल्प है।” (सृजनात्मता के आयाम : उदय प्रकाश पर एकाग्र- संपादक ज्योतिष जोशी)

उदय प्रकाश अपनी कहानियाँ सामाजिक संरचनाओं और प्रकियाओं पर केंद्रित करते हैं। सामंतवाद, उपनिवेशवाद, स्वातंत्र्योत्तर राजनीतिक वर्चस्व और भूमंडलीकरण सभी व्यवस्थाओं का चरित्र जन-विरोधी है। कहीं-न-कहीं उनमें शोषण की क्रमिकता के सूत्र जुड़े हुए हैं और उदय प्रकाश ने इन सामाजिक कुव्यवस्थाओं को कथाओं में अभिव्यक्त किया है। वैसे तो उदय प्रकाश की सभी कहानियों के कथानकों में  गंभीर चिंतन-मनन और गहरे भावबोध की अभिव्यक्ति है, पर ‘पॉल गोमरा का स्कूटर’, ‘वॉरेन हेस्टिंग्स का सांड’, ‘पीली छतरी वाली लड़की’, ‘छप्पन तोले का करधन’, ‘मोहनदास’, ’मैंगोसिल’ आदि उदय प्रकाश की बहुत ही चर्चित कहानियाँ रही हैं। ‘और अंत में प्रार्थना’ कहानी में लोकतांत्रिक व्यवस्था के सत्ता और विचारधारा के संवेदनशील एवं विवादास्पद विषय पर गंभीर विश्लेषण किया है और सिद्ध किया है, कि राजनीतिक पार्टियाँ अपने हित के लिए विचारधाराओं का सहारा लेती हैं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने में बढ़ चढ़कर आगे आती हैं। ‘मोहनदास’ कहानी समाज में व्याप्त वर्ग-भेद जैसी सामाजिक अव्यवस्था में कुढ़ते व्यक्तियों की दास्तान है। जहाँ निम्न वर्ग का युवक अपनी प्रतिभा और मेधा से शिक्षा और रोज़गार के क्षेत्र में सवर्ण वर्ग के वर्चस्व को चुनौती देता है, और सामाजिक अव्यवस्था से क्षुब्ध होता है, कि अंत में उसे कहने पर मजबूर होना पड़ता है –‘मैं मोहनदास नहीं हूँ’। समग्रत: देखा जाए तो उदय प्रकाश अपने साहित्य को विस्तृत वितान देते हैं, और कथा को वैश्विक फ़लक पर विश्लेषण के साथ प्रस्तुत करने की नवीनता देते हैं। उनकी कहानियों की विशिष्टता उनके मूल पाठ से अधिक उन अंतर्धाराओं में है, जो मूल कथा के समानांतर एक ऐतिहासिक सामाजिक पाठ रचती हैं। उदय प्रकाश परिस्थितियों का वृत्तांतपूर्ण आकलन और मानवीय स्थिति का संवेदनशील चित्रण करते हुए, कहानी कहने की रोचकता और प्रामाणिकता को भी बनाए रखते हैं।

उदय प्रकाश : जीवन परिचय

जन्म 

१ जनवरी १९५२ 

जन्मस्थान

मध्यप्रदेश के शहडोल ज़िले के सीतापुर गाँव में (अब अनूपपुर)

पिता

श्री प्रेमकुमार सिंह

माता

श्रीमती गंगादेवी  

शिक्षा 

  • विज्ञान में स्नातक डिग्री, सागर विश्वविद्यालय से स्वर्णपदक सहित 

  • हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर, सागर विश्वविद्यालय

  • जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में एक शोधछात्र रहे

कार्य क्षेत्र

  • अकादमिक विमर्श

  • सृजनात्मक लेखन

  • अनुवाद

  • पत्रकारिता प्रशासन और मीडिया के दृश्य-श्रृव्य माध्यम, डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण और राष्ट्रीय चैनलों के लिए महत्त्वपूर्ण धारावाहिकों का निर्देशन 

साहित्यिक रचनाएँ

कविता संग्रह


  •  सुनो कारीगर

  • अबूतर कबूतर

  • कविता और शहर में दरबदर 

  • एक भाषा हुआ करती है

  • कवि ने कहा

  • रात में हारमोनियम

कहानी संग्रह 

 

  • दरियायी घोड़ा

  • तिरिछ

  • दत्तात्रेय के दुख

  • पॉलगोमरा का स्कूटर

  • अरेबा परेबा

  • और अंत में प्रार्थना

  • मोहनदास

  • मैंगोसिल

  • पीली छतरीवाली लड़की

  • राम सजीवन की प्रेमकथा

  • मेंगोलिस

  • दिल्ली की दीवार

  • अरेबा परेबा

  • गदारहा बाबा की तलवार

उपन्यास

  • चीना बाबा

  • अरेखित त्रिकोण

निबंध और आलोचना संग्रह

  • ईश्वर की आंख

  • नयी सदी का पंचतंत्र

  • तेरी मेरी बात (साक्षात्कार संग्रह)

अनुवाद

 

  • इंदिरा गांधी की आख़िरी लड़ाई

  • कला अनुभव

  • लाल घास पर नीले घोड़े

  • एक पुरुष डेढ़ पुरुष

  • रोम्यां रोलां का भारत

  • इतालो काल्विनो

  • नेरूदा

  • येहुदा अमिचाई

  • फर्नांदो पसोवा

  • कवाफ़ी

  • लोर्का

  • ताद्युश रोज़ेविच

  • ज़ेग्जेव्येस्की

  • अलेक्सान्दर ब्लॉक आदि रचनाकारों के अनुवाद

सम्मान 

  • भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार

  • ओम प्रकाश सम्मान

  • श्रीकांत वर्मा पुरस्कार

  • मुक्तिबोध सम्मान

  • द्विजदेव सम्मान

  • वनमाली सम्मान

  • पहल सम्मान

  • रूस का प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पूश्किन सम्मान

  • SAARC Writers Award

  • PEN Grant for the translation of The Girl with the Golden Parasol, Trans| Jason Grunebaum, 

  • कृष्णबलदेव वैद सम्मान

  • महाराष्ट्र फाउंडेशन पुरस्कार

  • २०१० का साहित्य अकादमी पुरस्कार ('मोहन दास' के लिये)

 

संदर्भ 

  • अपनी उनकी बात - उदय प्रकाश, वाणी प्रकाशन

  • सृजनात्मकता के आयाम - संपादक ज्योतिष जोशी, नयी किताब प्रकाशन 

  • डिबिया में धूप : उदय प्रकाश एक अध्ययन - शम्भु गुप्त, वाणी प्रकाशन 

  • हिंदी कहानी की २१ वीं सदी - संजीव कुमार, राजकमल प्रकाशन


लेखक परिचय


C:\Users\chd\Desktop\Deepak Pandey.jpegडॉ दीपक पाण्डेय 

वर्तमान में केंद्रीय हिंदी निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली में सहायक निदेशक पद पर कार्यरत हैं। आप २०१५ से २०१९ तक भारत का उच्चायोग, त्रिनिडाड एवं टोबैगो में राजनयिक पद पर पदस्थ रहे। प्रवासी साहित्य पर आपकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 

मोबाइल- 8929408999   ईमेल- dkp410@gmail.com

13 comments:

  1. बहुत प्रभावित करने वाला लेख लिखा है आपने , दीपक जी। उदय प्रकाश जी के लिखे आम आदमी के श्रम-साध्य और संघर्षरत जीवन को बहुत उत्कटता , तीव्रता से उकेरा है। पढ़ते हुए रक्त की गति तेज हो जाती है और उदय प्रकाश जी एवं आपके साथ पाठक जुड़ जाता है।अच्छा अनुभव। उत्तम लेखन के लिए धन्यवाद । 💐

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  2. बहुत सुंदर लेख है. उदय प्रकाश की कविता से रूबरू होने का अवसर मिला. धन्यवाद

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  3. उदय प्रकाश जी की कविताओं में बहुत ही सुंदर ढंग से लोककलाओं की विशेष छाप स्पष्ट दिखाई देती है, उनके जीवन चरित्र को प्रकाशित करता इतना आकर्षक लेख हम तक पहुँचाने के लिए सादर आभार दीपक जी।

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  4. उदय प्रकाश के काव्य की विशेषताओं से अवगत कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

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  5. एक सफल व्यक्तित्व का सार्थक चित्रण बहुत-बहुत बधाई

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  6. डॉ. दीपक पाण्डेय जी द्वारा लिखे इस लेख के माध्यम से उदय प्रकाश जी के जीवन एवं साहित्य के बारे में बहुत सारी जानकारी मिली। इस रोचक एवं जानकारी भरे लेख के लिए दीपक जी को बहुत बहुत बधाई।

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  7. दीपक जी बहुत सारगर्भित और समग्र लेख है! कुछ देर तक आप के लेख की इस पंक्ति पर ठिठकी रही-
    “जीवन के संघर्ष, अभाव, पीड़ा, त्रासदियाँ, विडंबनाएँ, क्षोभ, अपमान, बेगानापन आदि अनेक तत्त्वों ने उनकी सृजन-प्रक्रिया को समृद्ध किया है।”
    पुन: उदय जी के कथानक के मज़दूर पात्रों पर बात कहते हुए आपने लिखा:
    “इनकी आने वाली संतति को ये हर एक जगह दिखाई देते हैं, पर जब यथार्थ स्थिति उन्हें पता चलती है, तो एक पश्चाताप और प्रश्नाकुल निगाहों के अतिरिक्त होता भी कुछ नहीं है।”
    यह केवल उदय जी की ही नहीं आपकी सूक्ष्म दृष्टि को भी दर्शाता है! साधुवाद और शुक्रिया 🙏🏻

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  8. दीपक जी, बेहद उत्कृष्ट लेखन।
    आपने बड़ी सहजता से अपने शब्दों की डोर में उदय प्रकाश जी के लेखन की मार्मिकता को समेट लिया।
    "उनका लेखन समय के थपेड़ों की मार सहते हुए लगातार तपता रहा और निखरता गया है।"... आपकी यह पंक्तियाँ निश्चय ही उदय प्रकाश जी के लेखन की सार्थकता को पुष्ट कर देती हैं।
    साधुवाद!

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  9. उदय प्रकाश को पढ़ा था, पर उन्हें जाना पहली बार. इस लेखन के लिए आपको बधाई.

    . डॉ जियाउर रहमान जाफरी

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  10. दीपक जी, आम आदमी की सभी तकलीफों, समस्याओं, उसकी समाज में स्थिति, समाज के उस पर भार तथा और भी अनेकों उसके पहलुओं पर सशक्त कलम चलाने वाले उदय प्रकाश जी के साहित्य से आपने बहुत खूबसूरती से रूबरू कराया। सीमित शब्दों में विस्तृत और गहन जानकारी दी। आपको इस शानदार लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई और शुक्रिया।

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  11. प्रसिद्ध कथाकार श्री उदय प्रकाश जी की कहानियों की संरचना में विन्यस्त वैचारिकी,संवेदना तथा भाषा शैली का विस्तार मुख्यतः पढ़ने मिलता हैं। उनका कहना हैं कि इतिहास में स्वप्न,यथार्थ में कल्पना और अतीत में भविष्य को मिलाया जाता है तो सत्य का साक्षात्कार होता हैं। हिंदी कथा साहित्य में श्री उदय जी का वैचारिक और संवेदनात्मक रूप विरल और नए प्रतिमानों को स्थापित करता हैं। आद. दीपक जी का आलेख जितना संशिष्ट है उतना ही विचारोत्तेजक भी हैं। अति गतिशील शब्द रचना से उसे गढ़ा गया हैं। सुंदर और प्रभावशाली आलेख के लिए उनका पुनः आभार और ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।

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  12. दीपक जी, जैसी उदय प्रकाश जी की कविताओं एवं कहानियों में रवानगी और सरसता है, उसी प्रवाह और सहजता से आपने उन पर आलेख लिखा है। आपने उदय प्रकाश जी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को बख़ूबी समेटा है। आपको धन्यवाद और बधाई।
    उदय प्रकाश जी की एक छोटी और बेहद लोकप्रिय कविता-
    आदमी मरने के बाद कुछ नहीं सोचता
    आदमी मरने के बाद कुछ नहीं बोलता
    कुछ नहीं सोचने और कुछ नहीं बोलने पर
    आदमी मर जाता है।

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  13. उदय प्रकाश जी की कविताएँ और कहानियाँ पढ़ते हुए उनकी लेखन शैली से बहुत प्रभावित रहीं हूँ। लेकिन इस लेख के माध्यम से उदय प्रकाश जी की साहित्यिक सृजनात्मक यात्रा को समग्रता के साथ पढ़ने और जानने का अवसर मिला। एक सार्थक , सारगर्भित लेख के लिए दीपक जी को बहुत बहुत बधाई।

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कलेंडर जनवरी

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आचार्य नरेंद्रदेव : भारत में समाजवाद के पितामह

"समाजवाद का सवाल केवल रोटी का सवाल नहीं है। समाजवाद मानव स्वतंत्रता की कुंजी है। समाजवाद ही एक सुखी समाज में संपूर्ण स्वतंत्र मनुष्यत्व...