"मेरे मन में यह बात आई कि ऐसे चरित्र को प्रस्तुत करूँ, जो पारिवारिक और सामाजिक संबंधों के रूढ़ होते हुए दायरों से अलग जीवन का नैसर्गिक सुख लेना चाहता हो और अपनी शर्तों पर जीते हुए सर्वमान्य सामाजिक मर्यादाओं और बंधनों की तनिक भी परवाह नहीं करता हो।"
ये पंक्तियाँ हैं, मिथिलेश्वर द्वारा लिखी गई कहानी 'बाबूजी' के बारे में स्वयं मिथिलेश्वर जी की। अपनी ही कहानियों की समीक्षा करते हुए उनका कहना था कि 'मुझे यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं कि 'बाबूजी' धरती के किसी यथार्थ चरित्र की अनुकृति नहीं, मेरे अंतर्मन की पैदाइश है। 'हरिहर काका' कहानी व्यक्ति के ऊपर बढ़ते आर्थिक दबाव और उसके संबंधों को परिचालित करने वाले आर्थिक कारणों की उपज रही है। व्यक्ति की व्यक्तिगत संपत्ति ही सारे अनर्थ की जड़ है। अपने नाम पर संपत्ति का होना हमें सुखकर अवश्य लगता है, लेकिन संबंधों का विघटन और हमारे दुखों का कारण भी बहुधा वह संपत्ति ही होती है।
'मेघना का निर्णय' कहानी फुटकर मज़दूरों के अंदर पैदा हुई वर्गीय चेतना की कहानी है। सामंती मूल्यों के खिलाफ़ फुटकर मज़दूरों की एकजुटता और उनके संगठित निर्णय की प्रेरणा से इस कहानी का जन्म हुआ है। इसी प्रकार 'तिरिया जन्म' कहानी भारतीय समाज में महिला जीवन की करुण गाथा है। पुरुष प्रधान समाज द्वारा महिलाओं को तुच्छ और उपभोग की वस्तु समझने तथा अपनी इच्छा और मर्ज़ी के अनुसार उनके साथ सलूक करने की सामाजिक छूट की प्रतिक्रिया में पैदा हुई है, यह कहानी।
ये संक्षिप्त विवेचना है, रचनाकार व कहानीकार मिथिलेश्वर जी की कुछ कहानियों की,आइए विस्तार से जानते हैं उनसे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को -
पारिवारिक पृष्ठभूमि
मिथिलेश्वर जी का जन्म ३१ दिसंबर १९५० को बिहार के भोजपुर ज़िले के 'बैसाडीह' नामक गाँव में हुआ। इन्होंने हिंदी में एम०ए० और पी०एच०डी करने के उपरांत व्यवसाय के रूप में अध्यापन कार्य को चुना। दिसंबर १९८१ से जून १९८४ तक रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में कार्यरत रहे और फिर यूजीसी के टीचर फे़लोशिप अवार्ड के तहत एच०डी०जैन कॉलेज, आरा आ गए। बाद में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा, बिहार के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में वरिष्ठ उपाचार्य (रीडर) रहे। मिथिलेश्वर के पिता प्रो० वंशरोपन लाल भी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे, परंतु उनकी असाध्य बीमारी ने मिथिलेश्वर के जीवन में आरंभ से ही कठिन संघर्ष के बीज बो दिए थे। भाइयों की शिक्षा-दीक्षा में होने वाले खर्च के अतिरिक्त बहनों की शादी में होने वाले खर्च ने मिथिलेश्वर को बहुत परेशान किया। परिस्थितिवश स्वयं के वयस्क होते ही शादी की विवशता और फिर कई पुत्रियों का पिता हो जाना उनके संघर्षमय जीवन को और अधिक कठिन बनाने में योगदान देता रहा। इसके अतिरिक्त माँ की बीमारी और आरा शहर में नया घर बनाने की आवश्यकता मेें मिथिलेश्वर ने बहुत संघर्ष किया, किंतु उन्होंने हार नहीं मानी। मिथिलेश्वर के व्यक्तित्व के निर्माण में अनवरत संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा की अहम भूमिका रही है। उनकी माँ अपने ज़माने की पढ़ी-लिखी महिला थी। कम ही शिक्षा में उन्होंने बहुत ज्ञान अर्जित कर लिया था। मिथिलेश्वर अपने लेखक होने का श्रेय अपनी माँ को देते हैं। माँ के निधन से वे बिल्कुल टूटे हुए से महसूस करने लगे थे। सारे संघर्षों के बीच पारिवारिक सद्भाव व उनकी पत्नी का साथ उन्हें सदा संबल देता रहा। चार बेटियों की माँ होने के बावजूद भी उनकी पत्नी रेणु स्वस्थ-सुरूपा रहीं और हमेशा मिथिलेश्वर जी की पग-पग सहयोगिनी रहीं, जिसके कारण मिथिलेश्वर ने संघर्षों से कभी हार नहीं मानी।
रचनात्मक परिचय
मिथिलेश्वर मुख्यतः कथाकार है। कहानी के साथ-साथ उपन्यास विधा को भी उन्होंने गंभीरता से अपनाया है तथा इन दोनों विधाओं में अनेक कृतियाँ दी हैं। मिथिलेश्वर का विषय-क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण जीवन है। प्रेमचंद और रेणु के बाद गाँव से संबंधित कथा-लेखन में मिथिलेश्वर का नाम सबसे प्रथम आता है। वे सादगी के शिल्प में कहानी रचने वाले कथाकार हैं। शैली में आत्यंतिक सादगी उनकी पहचान बन चुकी है। मिथिलेश्वर मूलतः उस जनता के लेखक हैं, जो गाँव में रहती है और आज भी अपनी बेहतरी के लिए सामंती पूंजीवादी मिजाज़ के खिलाफ़ निजी और सामूहिक स्तर पर विरोध कर रही है। मिथिलेश्वर ने बाल-साहित्य तथा नवसाक्षरोपयोगी अनेक कृतियों के साथ-साथ निबंध विधा में भी अपनी कलम चलाई है तथा संपादन के क्षेत्र में भी अपना हाथ आज़माया है। उनकी आत्मकथात्मक रचना के तीन खंड भी प्रकाशित हो चुके हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ
मिथिलेश्वर ने अपनी कहानियों में ग्रामीण जीवन को बहुत अच्छी तरह से उकेरा है। इन्होंने देश की आज़ादी के बाद गाँव के बदलते परिवेश के कारण ग्रामीण जीवन तथा संस्कृति में आई भयावहता, जटिलता एवं गिरते मानवीय मूल्यों का बारीकी से जीवंत चित्रण किया है। परिपत्र के नाम पर प्रेम भावना,आपसी भाईचारा,आम लोगों के शोषण के नए तरीके, सभी सामाजिक विषमताओं का वर्णन उन्होंने इतने स्पष्ट रूप में किया है, जैसे पाठक वहाँ उपस्थित हो। इनकी रचनाओं का मूल स्वर राष्ट्रभक्ति, देश-समाज, गाँव को सुखी-समृद्ध तथा सुसंस्कृत बनाने का है। इनकी हर रचना में इनका व्यक्तित्व स्पष्ट झलकता है। इनकी रचनाएँ इनके धुर विरोधियों को भी स्पष्ट दृश्य दिखाती हैं।
भाषा शैली
मिथिलेश्वर जी की भाषा शैली आत्मपरक, विश्लेषणात्मक, वर्णनात्मक, ऐतिहासिक सभी तरह की है। इनकी भाषा सहज, सरल और बहुत रोचक है। यह गहरी से गहरी बात बड़े स्पष्ट ढंग से कह देते हैं। उनकी रचनाएँ बहुत मर्मस्पर्शी हैं। भाषा प्रौढ़ एवं उज्ज्वल है। बिंब विधान, प्रतीक योजना, मुहावरे, लोकोक्तियाँ आदि सभी का प्रयोग इन्होंने संदर्भानुसार किया है।
ईमेल : rashmizawar74@gmail.com
फोन : 9588440759
मिथिलेश्वर जी का जन्म ३१ दिसंबर १९५० को बिहार के भोजपुर ज़िले के 'बैसाडीह' नामक गाँव में हुआ। इन्होंने हिंदी में एम०ए० और पी०एच०डी करने के उपरांत व्यवसाय के रूप में अध्यापन कार्य को चुना। दिसंबर १९८१ से जून १९८४ तक रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में कार्यरत रहे और फिर यूजीसी के टीचर फे़लोशिप अवार्ड के तहत एच०डी०जैन कॉलेज, आरा आ गए। बाद में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा, बिहार के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में वरिष्ठ उपाचार्य (रीडर) रहे। मिथिलेश्वर के पिता प्रो० वंशरोपन लाल भी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे, परंतु उनकी असाध्य बीमारी ने मिथिलेश्वर के जीवन में आरंभ से ही कठिन संघर्ष के बीज बो दिए थे। भाइयों की शिक्षा-दीक्षा में होने वाले खर्च के अतिरिक्त बहनों की शादी में होने वाले खर्च ने मिथिलेश्वर को बहुत परेशान किया। परिस्थितिवश स्वयं के वयस्क होते ही शादी की विवशता और फिर कई पुत्रियों का पिता हो जाना उनके संघर्षमय जीवन को और अधिक कठिन बनाने में योगदान देता रहा। इसके अतिरिक्त माँ की बीमारी और आरा शहर में नया घर बनाने की आवश्यकता मेें मिथिलेश्वर ने बहुत संघर्ष किया, किंतु उन्होंने हार नहीं मानी। मिथिलेश्वर के व्यक्तित्व के निर्माण में अनवरत संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा की अहम भूमिका रही है। उनकी माँ अपने ज़माने की पढ़ी-लिखी महिला थी। कम ही शिक्षा में उन्होंने बहुत ज्ञान अर्जित कर लिया था। मिथिलेश्वर अपने लेखक होने का श्रेय अपनी माँ को देते हैं। माँ के निधन से वे बिल्कुल टूटे हुए से महसूस करने लगे थे। सारे संघर्षों के बीच पारिवारिक सद्भाव व उनकी पत्नी का साथ उन्हें सदा संबल देता रहा। चार बेटियों की माँ होने के बावजूद भी उनकी पत्नी रेणु स्वस्थ-सुरूपा रहीं और हमेशा मिथिलेश्वर जी की पग-पग सहयोगिनी रहीं, जिसके कारण मिथिलेश्वर ने संघर्षों से कभी हार नहीं मानी।
रचनात्मक परिचय
मिथिलेश्वर मुख्यतः कथाकार है। कहानी के साथ-साथ उपन्यास विधा को भी उन्होंने गंभीरता से अपनाया है तथा इन दोनों विधाओं में अनेक कृतियाँ दी हैं। मिथिलेश्वर का विषय-क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण जीवन है। प्रेमचंद और रेणु के बाद गाँव से संबंधित कथा-लेखन में मिथिलेश्वर का नाम सबसे प्रथम आता है। वे सादगी के शिल्प में कहानी रचने वाले कथाकार हैं। शैली में आत्यंतिक सादगी उनकी पहचान बन चुकी है। मिथिलेश्वर मूलतः उस जनता के लेखक हैं, जो गाँव में रहती है और आज भी अपनी बेहतरी के लिए सामंती पूंजीवादी मिजाज़ के खिलाफ़ निजी और सामूहिक स्तर पर विरोध कर रही है। मिथिलेश्वर ने बाल-साहित्य तथा नवसाक्षरोपयोगी अनेक कृतियों के साथ-साथ निबंध विधा में भी अपनी कलम चलाई है तथा संपादन के क्षेत्र में भी अपना हाथ आज़माया है। उनकी आत्मकथात्मक रचना के तीन खंड भी प्रकाशित हो चुके हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ
मिथिलेश्वर ने अपनी कहानियों में ग्रामीण जीवन को बहुत अच्छी तरह से उकेरा है। इन्होंने देश की आज़ादी के बाद गाँव के बदलते परिवेश के कारण ग्रामीण जीवन तथा संस्कृति में आई भयावहता, जटिलता एवं गिरते मानवीय मूल्यों का बारीकी से जीवंत चित्रण किया है। परिपत्र के नाम पर प्रेम भावना,आपसी भाईचारा,आम लोगों के शोषण के नए तरीके, सभी सामाजिक विषमताओं का वर्णन उन्होंने इतने स्पष्ट रूप में किया है, जैसे पाठक वहाँ उपस्थित हो। इनकी रचनाओं का मूल स्वर राष्ट्रभक्ति, देश-समाज, गाँव को सुखी-समृद्ध तथा सुसंस्कृत बनाने का है। इनकी हर रचना में इनका व्यक्तित्व स्पष्ट झलकता है। इनकी रचनाएँ इनके धुर विरोधियों को भी स्पष्ट दृश्य दिखाती हैं।
भाषा शैली
मिथिलेश्वर जी की भाषा शैली आत्मपरक, विश्लेषणात्मक, वर्णनात्मक, ऐतिहासिक सभी तरह की है। इनकी भाषा सहज, सरल और बहुत रोचक है। यह गहरी से गहरी बात बड़े स्पष्ट ढंग से कह देते हैं। उनकी रचनाएँ बहुत मर्मस्पर्शी हैं। भाषा प्रौढ़ एवं उज्ज्वल है। बिंब विधान, प्रतीक योजना, मुहावरे, लोकोक्तियाँ आदि सभी का प्रयोग इन्होंने संदर्भानुसार किया है।
संदर्भ
- साहित्य अमृत
- हिंदी लेखक ब्लॉग
- साहित्य शिल्पी
- हिंदी समय
- विकिपीडिया हिंदी
- भारत कोश
- सांगोपांग
- बृहत साहित्यकार संदर्भ कोश
- कविता कोश
- केंद्रीय हिंदी संस्थान,आगरा
लेखक परिचय
रश्मि बंसल झवर
विगत १५ वर्षों से हिंदी अध्यापन में कार्यरत, लेखन व पठन में गहन रुचि। विविध अख़बारों व पत्रिकाओं में समय-समय पर लेख तथा कविताएँ प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी भाषा की बहुत बड़ी प्रशंसक हैं।
ईमेल : rashmizawar74@gmail.com
फोन : 9588440759
मैं मिथिलेश्वर को पढ़ता हूं, पर मेरे ज़ेहन में ये बात बैठी हुई थी कि मिथिलेश्वर कम से कम बिहार के तो होंगे नहीं, पर जब उनके बारे में पता चला कि उनका निवास बिहार ही है तो मैंने उनसे बात की और यह बता भी दिया कि मैं आपको यू पी का और कहानीकार संजीव को बिहार का समझ रहा था.मेरी बात सुनकर वो हंस कर सादगी से टाल गये.शिवपूजन सहाय, और रेणु की कहानियों में गांव की संस्कृति है, लेकिन मिथिलेश्वर की कहानियों में गांव की खुशबू है.रेणु का डॉ.प्रशांत से और प्रेमचंद का खन्ना से आत्मीयता भले ने हो, पर हरिहर काका और मेघना का आत्मीय संबंध मिथिलेश्वर के साथ है. मिथिलेश्वर के पात्र थोपे हुए नहीं हैं, वो साथ रहकर जीने वाले हैं,इसलिए ज़िंदा जावेद हैं.मिथिलेश्वर की कहानियों में विविधता है, लेकिन जैसे ही किसी लेखक पर आंचलिकता का लेबल लगता है उसके लेखन के अन्य विषय घुट कर दम तोड़ देते हैं, कमोबेश मिथिलेश्वर के साथ भी ऐसा ही हुआ.हिन्दी कहानी और उपन्यास का इतिहास लिखने वालों ने भी उनके लिए अपना खुले ह्रदय का परिचय नहीं दिया.
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. डॉ.जियाउर रहमान जाफरी
हिन्दी विभाग, मिर्ज़ा ग़ालिब कॉलेज गया, बिहार
हार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteबहुत बढ़िया आलेख
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteरश्मि जी, आपने मिथिलेश्वर जी के जीवन एवं कृतित्व का परिचय बड़े अच्छे , सरल प्रवाह में दिया है । धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ। 💐💐
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteरश्मि जी, आपने मिथिलेश्वर जी के साहित्य यात्रा को वर्णित करता बहुत अच्छा लेख लिखा है। इस रोचक लेख के लिये आपको बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteरश्मि जी ने अपने सुरुचिपूर्ण लेख में कथाकार मिथिलेश्वर जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को समग्रता के साथ प्रस्तुत किया है। सरल, सहज और रोचक शैली में लिखे लेख को पढ़कर अच्छा लगा। रश्मि जी को बहुत बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteमर्मस्पर्शी रचनाओं के साहित्यकार आदरणीय मिथिलेश्वर जी निराडम्बर व्यक्तित्व वाले लेखक है। ग्रामीण जीवन-जगत को निरावरण करती हुई उनकी रचनाएं प्रामाणिक रूप प्रदर्शित करती है। हिंदी साहित्य में बेशुमार समृद्दि प्रदान करने वाली उनकी कहानियाँ संवेदनाओं को उत्तेजित करती है। ऐसे महान कथाकार-साहित्यकार के बारे में आदरणीया रश्मि जी का आलेख सुंदर और सरल शब्द रचना से सुगठित किया गया है। इसके लिए आपका बहुत बहुत आभार और हार्दिक शुभकामनाएं। अग्रिम आलेखों के लिए आपका अभिवादन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteभारत माता ग्रामवासिनी को चरितार्थ करने वाले साहित्यकार की रचनाधर्मिता को नमन।रश्मि जी का अभिनंदन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteरश्मि जी, मिथिलेश्वर जी से सादगी और सहजता के पाठ लेकर लिखा गया लगता है यह आलेख। मिथिलेश्वर जी के व्यक्तित्व और उनके साहित्य संसार का अच्छा परिचय दिया है आपने। आपको इस लेख के लिए बधाई और शुक्रिया।
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteरश्मि जी, आपने मिथिलेश्वर जी पर बहुत ही अच्छा आलेख प्रस्तुत किया है। मिथिलेश्वर जी अपनी कहानियों और उपन्यासों में जहां ग्रामीण परिवेश में फैले सामंती उत्पीड़न व मानसिकता के खिलाफ आवाज़ उठाई है, वहीं दूसरी तरफ शहरों में मजदूरों के उत्पीड़न और मजदूरों के संघर्षों को भी नये स्वर दिए हैं। वहीं जीवन के जटिल है संबधों तथा उसके मनोविज्ञान को अच्छे से परिभाषित किया है। आपको पुनः इस शोधपरक आलेख के लिए बहुत-बहुत बधाई।-सुनील
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
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